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2500 साल में पहली बार भगवान मंदिर से बाहर निकलेंगे लेकिन भक्त घरों में रहेंगे, कुल 9 दिन का उत्सव, 7 दिन मौसी के घर रहेंगे जगन्नाथ

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पुरी. मंगलवार को आखिरकार रथयात्रा के लिए बने रथों के पहिए खींचे जाएंगे। लगभग तीन महीनों से चल रही उधेड़बुन की स्थिति अब साफ हो गई है। 2500 साल से ज्यादा पुराने रथयात्रा के इतिहास में पहली बार ऐसा मौका होगा, जब भगवान जगन्नाथ की रथयात्रा निकलेगी, लेकिन भक्त घरों में कैद रहेंगे। कोरोना महामारी के चलते पुरी शहर को टोटल लॉकडाउन करके रथयात्रा को मंदिर के 1172 सेवक गुंडिचा मंदिर तक ले जाएंगे।

2.5 किमी की इस यात्रा के लिए मंदिर समिति को दिल्ली तक का सफर पूरा करना पड़ा। सुप्रीम कोर्ट की रोक के बाद मंदिर समिति के साथ कई संस्थाओं ने सरकार से मांग की कि रथयात्रा के लिए फिर प्रयास करें। सुप्रीम कोर्ट में 6 याचिकाएं लगाई गईं। अंततः फैसला मंदिर समिति के पक्ष में आया और पुरी शहर में उत्साह की लहर दौड़ गई। फैसला आते ही, सेवकों ने रथशाला में खड़े रथों को खींचकर मंदिर के सामने ला खड़ा किया।

मंगलवार को रथयात्रा पूरी कर भगवान जगन्नाथ अपने भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा के साथ अपनी मौसी के घर मुख्य मंदिर से ढाई किमी दूर गुंडिचा मंदिर जाएंगे। यहां सात दिन रुकने के बाद आठवें दिन फिर मुख्य मंदिर पहुंचेंगे। कुल नौ दिन का उत्सव पुरी शहर में होता है। मंदिर समिति पहले ही तय कर चुकी थी कि पूरे उत्सव के दौरान आम लोगों को इन दोनों ही मंदिरों से दूर रखा जाएगा। पुरी में लॉकडाउन हटने के बाद भी धारा 144 लागू रहेगी।

  • दुनिया की सबसे बड़ी रसोई की रिप्लिका गुंडिचा मंदिर में 

भगवान जगन्नाथ के लिए जगन्नाथ मंदिर में 752 चूल्हों पर खाना बनता है। इसे दुनिया की सबसे बड़ी रसोई का दर्जा हासिल है। रथयात्रा के नौ दिन यहां के चूल्हे ठंडे हो जाते हैं। गुंडिचा मंदिर में भी 752 चूल्हों की ही रसोई है, जो जगन्नाथ की रसोई की ही रिप्लिका मानी जाती है। इस उत्सव के दौरान भगवान के लिए भोग यहीं बनेगा।

  • 16 पहियों वाला 13 मीटर ऊंचा जगन्नाथ का रथ, इसके 3 नाम

भगवान जगन्नाथ का रथ- इसके तीन नाम हैं जैसे- गरुड़ध्वज, कपिध्वज, नंदीघोष आदि। 16 पहियों वाला ये रथ 13 मीटर ऊंचा होता है। रथ के घोड़ों का नाम शंख, बलाहक, श्वेत एवं हरिदाश्व है। ये सफेद रंग के होते है। सारथी का नाम दारुक है। रथ पर हनुमानजी और नरसिंह भगवान का प्रतीक होता है। रथ पर रक्षा का प्रतीक सुदर्शन स्तंभ भी होता है। इस रथ के रक्षक गरुड़ हैं। रथ की ध्वजा त्रिलोक्यवाहिनी कहलाती है। रथ की रस्सी को शंखचूड़ कहते हैं। इसे सजाने में लगभग 1100 मीटर कपड़ा लगता है।

बलभद्र का रथ- इनके रथ का नाम तालध्वज है। रथ पर महादेवजी का प्रतीक होता है। इसके रक्षक वासुदेव और सारथी मातलि हैं। रथ के ध्वज को उनानी कहते हैं। त्रिब्रा, घोरा, दीर्घशर्मा व स्वर्णनावा इसके अश्व हैं। यह 13.2 मीटर ऊंचा और 14 पहियों का होता है। लाल, हरे रंग के कपड़े व लकड़ी के 763 टुकड़ों से बना होता है। रथ के घोड़े नीले रंग के होते हैं।

सुभद्रा का रथ- इनके रथ का नाम देवदलन है। रथ पर देवी दुर्गा का प्रतीक मढ़ा जाता है। इसकी रक्षक जयदुर्गा व सारथी अर्जुन हैं। रथ का ध्वज नदंबिक कहलाता है। रोचिक, मोचिक, जीता व अपराजिता इसके अश्व होते हैं। इसे खींचने वाली रस्सी को स्वर्णचूड़ा कहते हैं। ये 12.9 मीटर ऊंचा और 12 पहियों वाला रथ लाल, काले कपड़े के साथ लकड़ी के 593 टुकड़ों से बनता है। रथ के घोड़े कॉफी कलर के होते हैं।

  • पुरी के कई नाम 

पुरी एक ऐसा स्थान है, जिसे हजारों वर्षों से कई नामों जैसे- नीलगिरी, नीलाद्रि, नीलांचल, पुरुषोत्तम, शंखश्रेष्ठ, श्रीश्रेष्ठ, जगन्नाथ धाम, जगन्नाथ पुरी – से जाना जाता है।

  • गुंडिचा मंदिर में ही बनी थी जगन्नाथ की पहली प्रतिमा 

भगवान जगन्नाथ की रथयात्रा प्रतिवर्ष आषाढ़ शुक्ल द्वितीया तिथि को निकाली जाती है। यह यात्रा गुंडिचा मंदिर तक जाकर पुन: आती है। ऐसी मान्यता है कि इसी गुंडिचा मंदिर में देवताओं के शिल्पी विश्वकर्मा ने भगवान जगन्नाथ, बलभद्र व सुभद्राजी की प्रतिमाओं का निर्माण किया था। इसलिए गुंडिचा मंदिर को ब्रह्मलोक या जनकपुरी भी कहा जाता है।

रथयात्रा के दौरान भगवान जगन्नाथ कुछ समय इस मंदिर में बिताते हैं। इस समय गुंडिचा मंदिर में भव्य महोत्सव मनाया जाता है। इसे गुंडिचा महोत्सव कहते हैं। गुंडिचा मंडप से रथ पर बैठकर दक्षिण दिशा की ओर आते हुए श्रीकृष्ण, बलभद्र और सुभद्राजी के जो दर्शन करता है, वे मोक्ष के भागी होते हैं।

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