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महंत नरेंद्र गिरि के सुसाइड नोट के 13 पन्ने:लिखा- 13 सितंबर को ही आत्महत्या करना चाहता था, पर हिम्मत नहीं हुई; लड़की के साथ फोटो बनाकर बदनाम करना चाहता था आनंद गिरि

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अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष और निरंजनी अखाड़ा के सचिव महंत नरेंद्र गिरि (70) की मौत को लेकर सस्पेंस बना हुआ है। इस बीच उनके चेले आनंद गिरि को यूपी पुलिस हरिद्वार से प्रयागराज ले आई है। आनंद से पुलिस लाइन में पूछताछ की जा रही है।

बता दें कि सोमवार को प्रयागराज के बाघंबरी मठ में नरेंद्र गिरि का शव संदिग्ध हालत में लटका मिला था। उनके सुसाइड नोट में आनंद गिरी का जिक्र है। इसलिए उत्तराखंड पुलिस ने आनंद गिरि को हरिद्वार में गिरफ्तार कर लिया था। उसके बाद यूपी पुलिस की टीम भी हरिद्वार पहुंच गई थी।

 सुसाइड नोट में नरेंद्र गिरि के हवाले से लिखा गया है कि एक महिला से जोड़कर उनका वीडियो वायरल किए जाने की धमकी दी जा रही थी। इसके चलते उन्हें यह कदम उठाना पड़ रहा है। लेटर में आनंद गिरि, आद्या तिवारी और संदीप तिवारी का जिक्र है। उन्हें आत्महत्या के लिए जिम्मेदार बताया गया है। पुलिस ने इन तीनों को हिरासत में ले लिया है।

13 पेज के इस सुसाइड लेटर में तीन बार मौत के लिए आनंद, आद्या और संदीप को जिम्मेदार बताया गया है। मठ का उत्तराधिकारी बलबीर को घोषित किया गया है।

।क्या लिखा है सुसाइड नोट में, पढ़ें-

मैं नरेंद्र गिरि, आज मेरा मन आनंद गिरि के चलते बहुत विचलित हो गया है। आनंद गिरि मुझे बदनाम करने की कोशिश कर रहा है। आज जब मुझे सूचना मिली है कि हरिद्वार से कम्प्यूटर के जरिए आनंद गिरि लड़की की तस्वीर लगाकर मेरा कोई वीडियो वायरल करने जा रहा है, तौ मैं सोच रहा हूं कि मैं कहां जाऊंगा, यदि ऐसा हो गया तो किस किस को सच बताऊंगा। इसलिए ये कदम उठाने जा रहा हूं। मैं जिस पद पर हूं, यदि मेरा वीडियो वायरल हो गया तो मैं जिस समाज से जी रहा हूं, कैसे लोगों के सामने आऊंगा।

इससे अच्छा, मेरा मर जाना है। इससे दुखी होकर मैं आत्महत्या करने जा रहा हूं। मेरी मौत के जिम्मेदार आनंद गिरि, आद्या प्रसाद तिवारी, संदीप तिवारी होंगे। इन लोगों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई की जाए।

ये भी लिखा गया है कि 13 सितंबर को भी उन्होंने सुसाइड के लिए कदम उठाने की कोशिश की थी, लेकिन हिम्मत नहीं जुटा पाए।

मेरी आखिरी ख़्वाहिश है कि जिस तरह से इस गद्दी पर रहते मैंने गरिमा का ख्याल रखा है। मैं चाहता हूं कि उसी तरह आगे जो नया व्यक्ति इस गद्दी को संभाले, उसका ख्याल रखे।

भास्कर को कथित सुसाइड नोट मिला है, ये पहली बार सामने आया है, लेकिन पुलिस ने इसकी पुष्टि अभी नहीं की है।
भास्कर को कथित सुसाइड नोट मिला है, ये पहली बार सामने आया है, लेकिन पुलिस ने इसकी पुष्टि अभी नहीं की है।

अपडेट्स…

  • वहीं, महंत मौत मिस्ट्री मामले में रसोइया बद्री प्रसाद शुक्ला ने बड़ा खुलासा किया है। उन्होंने कहा है कि ‘नरेंद्र गिरि के दो सेवक 20 सितंबर को साथ नहीं थे, महंत के साथ दोनों हमेशा रहते थे, लेकिन कल नहीं थे।’
  • नरेंद्र गिरि की मौत पर सांसद प्रज्ञा ठाकुर ने कहा कि ‘पालघर और इस घटना में कहीं कोई संबंध है।’ साथ ही उन्होंने CBI जांच की भी मांग की है।
  • प्रयागराज के डीआईजी ने मौत की जांच के लिए SIT का गठन कर दिया है। ADG प्रेम प्रकाश के मुताबिक नरेंद्र गिरि की मौत की जांच के लिए 18 सदस्यीय SIT टीम बनाई गई है। इस टीम की अगुआई CO अजीत चौहान कर रहे हैं।
  • नरेंद्र गिरि की मौत के मामले में समाजवादी पार्टी ने हाईकोर्ट के मौजूदा जजों की निगरानी में जांच करवाने की मांग की है। सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ने बाघंबरी मठ पहुंचकर नरेंद्र गिरि को श्रद्धांजलि दी।
  • शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती ने CBI जांच की मांग की है। वहीं पिटिशनर वकील सुनील चौधरी ने भी CBI जांच की मांग को लेकर इलाहाबाद हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की गई है। उन्होंने प्रयागराज के DM और SSP को बर्खास्त करने की मांग भी की है।
  • सांसद रीता बहुगुणा जोशी भी प्रयागराज पहुंची हैं। उन्होंने कह है कि ये एक संत की आत्महत्या का मामला है। इसकी तह तक जाया जाएगा। इसके पीछे कौन लोग हैं ,कौन दोषी हैं, इसका पता लगाकर कार्रवाई की जाएगी।

नरेंद्र गिरि को CD से ब्लैकमेल किया जा रहा था
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक नरेंद्र गिरि को ब्लैकमेल किया जा रहा था। उनके किसी वीडियो की सीडी तैयार की गई थी। पुलिस ने यह सीडी भी बरामद की है। मीडिया रिपोर्ट्स में कहा जा रहा है कि समाजवादी पार्टी (सपा) की सरकार में राज्य मंत्री का दर्जा पाने वाले इंदुप्रकाश मिश्रा से भी पूछताछ की जा सकती है, उन्होंने नरेंद्र गिरि और आनंद गिरि के बीच समझौता करवाया था। साथ ही बताया जा रहा है कि राजनीतिक दलों से जुड़े कुछ लोगों के साथ-साथ आधा दर्जन से ज्यादा लोगों को हिरासत में लिया गया है। नरेंद्र गिरि के सुरक्षाकर्मी से भी पूछताछ की गई है।

डिप्टी कमांडेंट ओपी पांडेय से भी होगी पूछताछ
नरेंद्र गिरि की मौत के मामले में डिप्टी कमांडेंट ओपी पांडेय से भी पूछताछ होगी। ओपी पांडेय मुरादाबाद स्थित 23 बटालियन पीएसी में तैनात हैं, लेकिन इन दिनों लखनऊ मुख्यालय से अटैच हैं। उनका पक्ष जानने के लिए कई बार संपर्क करने की कोशिश की गई, लेकिन उन्होंने कॉल रिसीव नहीं किया।

नरेंद्र गिरि को कल दी जाएगी समाधि
नरेंद्र गिरि के अंतिम दर्शन के लिए प्रयागराज पहुंचे योगी आदित्यनाथ ने बताया कि अखाड़ा परिषद के सदस्यों की राय है कि नरेंद्र गिरि का पार्थिव शरीर अंतिम दर्शन के लिए आज बाघंबरी पीठ में ही रहेगा। उसके बाद कल पोस्टमॉर्टम होगा और फिर धार्मिक संस्कारों के अनुरूप उनकी समाधि का कार्यक्रम होगा।

योगी ने कहा- दोषियों को कड़ी सजा दी जाएगी
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा है कि नरेंद्र गिरि की मृत्यु के मामले में कई सबूत जुटाए गए हैं और कई वरिष्ठ अधिकारी एक साथ मिलकर काम कर रहे हैं। एक-एक घटना का पर्दाफाश होगा। जांच एजेंसियों को निष्पक्ष ढंग से काम को आगे बढ़ाने दें। जो भी जिम्मेदार होगा उसे कानून के दायरे में लाकर कड़ी से कड़ी सजा दिलवाई जाएगी।

योगी ने कहा कि महंत नरेंद्र गिरि का नहीं रहना एक दुखद घटना है, इसीलिए अपने संत समाज और प्रदेश सरकार की ओर से श्रद्धांजलि देने के लिए स्वयं उपस्थित हुआ हूं।
योगी ने कहा कि महंत नरेंद्र गिरि का नहीं रहना एक दुखद घटना है, इसीलिए अपने संत समाज और प्रदेश सरकार की ओर से श्रद्धांजलि देने के लिए स्वयं उपस्थित हुआ हूं।

आनंद गिरि के खिलाफ FIR दर्ज
नरेंद्र गिरि की संदिग्ध मौत के मामले में उनके शिष्य आनंद गिरि (45) के खिलाफ आत्महत्या के लिए मजबूर करने का मामला दर्ज किया गया है। यह FIR लेटे हनुमान मंदिर के व्यवस्थापक अमर गिरि की ओर से दर्ज करवाई गई है। इसमें आरोप हैं कि आनंद की प्रताड़ना की वजह से ही महंत नरेंद्र गिरि ने जान दी है।

आनंद गिरि ने खुद को बेगुनाह बताते हुए इसे बड़ी साजिश बताया है। आनंद ने CM योगी से निष्पक्ष जांच की मांग की है। उन्होंने कहा है कि जांच में हर सहयोग के लिए तैयार हैं। पुलिस ने लेटे हनुमान मंदिर के पुजारी आद्या तिवारी और उनके बेटे संदीप तिवारी को भी पूछताछ के लिए प्रयागराज से हिरासत में लिया है।

आनंद गिरि का अपने गुरु नरेंद्र गिरि से लंबे समय से विवाद चल रहा था। आनंद ने नरेंद्र पर मठ की जमीन 40 करोड़ में बेचने के आरोप भी लगाए थे।
आनंद गिरि का अपने गुरु नरेंद्र गिरि से लंबे समय से विवाद चल रहा था। आनंद ने नरेंद्र पर मठ की जमीन 40 करोड़ में बेचने के आरोप भी लगाए थे।

नरेंद्र गिरि के सुसाइड नोट में आनंद गिरि का जिक्र
महंत नरेंद्र गिरि का शव बाघंबरी मठ के कमरे में लटका मिला था। IG रेंज केपी सिंह ने बताया कि मौके से 7 पेज का सुसाइड नोट भी मिला है। इसे महंत नरेंद्र गिरि ने वसीयतनामे की तरह लिखा है और इसमें उनके शिष्य आनंद गिरि का भी जिक्र है। नरेंद्र गिरि ने सुसाइड नोट में यह जिक्र भी किया है कि किस शिष्य को क्या देना है? कितना देना है? साथ ही लिखा है कि वे अपने कुछ शिष्यों के व्यवहार से बहुत ही आहत और दुखी हैं और इसीलिए सुसाइड कर रहे हैं।

मठ के इसी कमरे में महंत नरेंद्र गिरि का शव मिला था।
मठ के इसी कमरे में महंत नरेंद्र गिरि का शव मिला था।

 

आदि शंकराचार्य ने आठवीं सदी में बनाए थे 13 अखाड़े, जानें इनकी परंपरा और इतिहास के बारे में सब कुछ

अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष और निरंजनी अखाड़ा के सचिव महंत नरेंद्र गिरि की सोमवार को संदिग्ध मौत हो गई। उनका शव प्रयागराज के उनके बाघंबरी मठ में ही फंदे से लटका मिला। उनकी मौत को लेकर अलग-अलग थ्योरी सामने आ रही है।

सबसे ज्यादा चर्चा में उनके शिष्य आनंद गिरि हैं, जिन्हें पुलिस ने गिरफ्तार किया है। इसकी वजह बाघंबरी गद्दी की 300 साल पुरानी वसीयत है, जिसे नरेंद्र गिरि संभाल रहे थे। कुछ साल पहले आनंद गिरि ने नरेंद्र गिरि पर गद्दी की 8 बीघा जमीन 40 करोड़ में बेचने का आरोप लगाया था, जिसके बाद विवाद गहरा गया था। आनंद ने नरेंद्र पर अखाड़े के सचिव की हत्या करवाने का आरोप भी लगाया था।

आखिर ये अखाड़े होते क्या हैं? इनकी परंपरा और इतिहास क्या है? इनमें एंट्री कैसे होती है? आइए जानते हैं…

अखाड़े कब और कैसे बने?

कहा जाता है कि आदि शंकराचार्य ने आठवीं सदी में 13 अखाड़े बनाए थे। इन अखाड़ों का गठन हिंदू धर्म और वैदिक संस्कृति की रक्षा के लिए किया गया था। उस दौर में वैदिक संस्कृति और यज्ञ परंपरा संकट में थी, क्योंकि बौद्ध धर्म तेजी से भारत में फैल रहा था और बौद्ध धर्म में यज्ञ और वैदिक परंपराओं का निषेध था। मूलतः धर्म की रक्षा के लिए नागा साधुओं की एक सेना की तर्ज पर ही अखाड़ों को तैयार किया गया था। जिसमें उन्हें योग, अध्यात्म के साथ शस्त्रों की भी शिक्षा दी जाती है। आज तक वही अखाड़े बने हुए हैं। नासिक कुंभ को छोड़कर बाकी कुंभ मेलों में सभी अखाड़े एक साथ स्नान करते हैं। नासिक के कुंभ में वैष्णव अखाड़े नासिक में और शैव अखाड़े त्र्यंबकेश्वर में स्नान करते हैं। यह व्यवस्था पेशवा के दौर में कायम की गई जो सन 1772 से चली आ रही है।

अखाड़ों की अपनी व्यवस्थाएं होती हैं, लेकिन आदि शंकराचार्य ने इन 10 अखाड़ों (शैव और उदासीन) की व्यवस्था चार शंकराचार्य पीठों के अधीन की है। इन अखाड़ों की कमान शंकराचार्यों के पास होती है। अखाड़ों की व्यवस्था के लिए कमेटी के चुनाव होते हैं, लेकिन अखाड़ा प्रमुख का पद अलग होता है, जो अखाड़ों की अगुआई करता है। 10 शैव अखाड़ों में आचार्य महामंडलेश्वर पद सबसे बड़ा होता है, ये अखाड़े के प्रमुख आचार्य होते हैं, जिनके मार्गदर्शन में अखाड़े काम करते हैं, महंत और महामंडलेश्वर स्तर के संतों की अखाड़े में एंट्री इन्हीं की अनुमति से होती है और ये ही उनके आचार्य माने जाते हैं।

वहीं, वैष्णव अखाड़ों में अणि महंत पद सबसे बड़ा होता है। इसमें महामंडलेश्वर जैसे पदों के समतुल्य श्रीमहंत पद होता है। इन सभी श्रीमहंतों के आचार्य को अणि महंत कहा जाता है, जो अखाड़े का संचालन करते हैं।

ये 13 अखाड़े कौन से हैं?

परंपरा के मुताबिक शैव, वैष्णव और उदासीन पंथ के संन्यासियों के मान्यता प्राप्त कुल 13 अखाड़े हैं। इन अखाड़ों का नाम निरंजनी अखाड़ा, जूना अखाड़ा, महानिर्वाणी अखाड़ा, अटल अखाड़ा,आह्वान अखाड़ा, आनंद अखाड़ा, पंचाग्नि अखाड़ा, नागपंथी गोरखनाथ अखाड़ा, वैष्णव अखाड़ा, उदासीन पंचायती बड़ा अखाड़ा,उदासीन नया अखाड़ा, निर्मल पंचायती अखाड़ा और निर्मोही अखाड़ा है।

शाही सवारी, हाथी-घोड़े की सजावट, घंटा-नाद, नागा-अखाड़ों के करतब और तलवार और बंदूक का खुले आम प्रदर्शन यह अखाड़ों की पहचान है। यह साधुओं का वह दल है जो शस्त्र विद्या में पारंगत होता है। अखाड़ों से जुड़े संतों के मुताबिक जो शास्त्र से नहीं मानते, उन्हें शस्त्र से मनाने के लिए अखाड़ों का जन्म हुआ। इन अखाड़ों ने स्वतंत्रता संघर्ष में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। आजादी के बाद इन अखाड़ों ने अपना सैन्य चरित्र त्याग दिया था। शुरू में सिर्फ 4 प्रमुख अखाड़े थे, लेकिन वैचारिक मतभेद की वजह से उनका बंटवारा होता गया।

इन अखाड़ों को अखाड़ा नाम कैसे मिला?

अखाड़ा, यूं तो कुश्ती से जुड़ा हुआ शब्द है, मगर जहां भी दांव-पेंच की गुंजाइश होती है, वहां इसका प्रयोग भी होता है। पहले आश्रमों के अखाड़ों को बेड़ा अर्थात साधुओं का जत्था कहा जाता था। पहले अखाड़ा शब्द का चलन नहीं था। साधुओं के जत्थे में पीर होते थे। अखाड़ा शब्द का चलन मुगलकाल से शुरू हुआ। हालांकि, कुछ ग्रंथों के मुताबिक अलख शब्द से ही ‘अखाड़ा’ शब्द की उत्पत्ति हुई है। जबकि, धर्म के कुछ जानकारों के मुताबिक साधुओं के अक्खड़ स्वभाव के चलते इसे अखाड़ा का नाम दिया गया है।

ये अखाड़े काम कैसे करते हैं?

कुंभ में शामिल होने वाले सभी अखाड़े अपने अलग-नियम और कानून से संचालित होते हैं। यहां जुर्म करने वाले साधुओं को अखाड़ा परिषद सजा देता है। छोटी चूक के दोषी साधु को अखाड़े के कोतवाल के साथ गंगा में पांच से लेकर 108 डुबकी लगाने के लिए भेजा जाता है। डुबकी के बाद वह भीगे कपड़े में ही देवस्थान पर आकर अपनी गलती के लिए क्षमा मांगता है। फिर पुजारी पूजा स्थल पर रखा प्रसाद देकर उसे दोषमुक्त करते हैं। विवाह, हत्या या दुष्कर्म जैसे मामलों में उसे अखाड़े से निष्कासित कर दिया जाता है। अखाड़े से निकल जाने के बाद ही इन पर भारतीय संविधान में वर्णित कानून लागू होता है।

अगर अखाड़े के दो सदस्य आपस में लड़ें-भिड़ें, कोई नागा साधु विवाह कर ले या दुष्कर्म का दोषी हो, छावनी के भीतर से किसी का सामान चोरी करते हुए पकड़े जाने, देवस्थान को अपवित्र करे या वर्जित स्थान पर प्रवेश, कोई साधु किसी यात्री, यजमान से अभद्र व्यवहार करे, अखाड़े के मंच पर कोई अपात्र चढ़ जाए तो उसे अखाड़े की अदालत सजा देती है। अखाड़ों के कानून को मानने की शपथ नागा बनने की प्रक्रिया के दौरान दिलाई जाती है। अखाड़े का जो सदस्य इस कानून का पालन नहीं करता उसे भी निष्कासित कर दिया जाता है।

अखाड़े में कैसे होती है साधुओं की एंट्री?

अखाड़ों में साधुओं की एंट्री आसान नहीं होती है। शैव परंपरा में नागा साधु बनने के लिए अखाड़े को काफी समय देना होता है। इसके लिए अखाड़ों की अपनी अलग व्यवस्था है। अखाड़े में आते ही किसी को भी दीक्षा नहीं दी जाती। अगर कोई साधु बनना चाहता है, तो उसे कुछ समय अखाड़े में रखकर अपनी सेवाएं देनी होती है। साधुओं के साथ रहकर उनकी सेवा और इसी दौरान अपने गुरु को चुनना होता है। सेवा का समय 6 महीने से लेकर 6 साल तक भी हो सकता है। इस दौरान अखाड़ा उस व्यक्ति का इतिहास और पारिवारिक पृष्ठभूमि की जांच करता है, उसके चरित्र के बारे में पता लगाता है। फिर, किसी कुंभ मेले में उसे दीक्षा दी जाती है। इसके लिए व्यक्ति को अपने सांसारिक जीवन का त्याग करना पड़ता है, खुद का पिंडदान करना होता है। करीब 36 से 48 घंटे की दीक्षा प्रक्रिया के बाद उसे नए नाम के साथ अखाड़े में एंट्री दी जाती है।

क्या अखाड़ों में चुनाव होते हैं?

अखाड़े के साधु-संतों के मुताबिक अखाड़े लोकतंत्र से ही चलते हैं। जूना अखाड़े में छह साल में चुनाव होते हैं। कमेटी बदल दी जाती है। हर बार नए को चुनते हैं, यह इसलिए ताकि सभी को नेतृत्व का मौका मिले। सभी संतों में भी अच्छी नेतृत्व क्षमता आए। कुछ अखाड़ों में बाकायदा चुनाव प्रक्रिया होती है, जरूरत पर वोटिंग भी होती है। अच्छा काम करने वाले को दोबारा चुना जाता है, नहीं करने पर बदल दिया जाता है। कुछ अखाड़े ऐसे भी हैं जहां चुनाव नहीं होता है। इसी तरह अखाड़ा परिषद में अध्यक्ष, उपाध्यक्ष, सचिव सहित 16 लोगों की कमेटी चुनी जाती है, इसे कैबिनेट कहते हैं। कमेटी (कैबिनेट) की समय-समय पर बैठक होती है। आपात बैठक का भी प्रावधान है। सिंहस्थ या कुंभ में जब भी धर्मध्वज की स्थापना होती है, कमेटी स्वत: भंग हो जाती है। सारे अधिकार दो प्रधान के पास आ जाते हैं, यह मिलकर पूरे सिंहस्थ या कुंभ की व्यवस्था संभालते हैं। कुंभ-सिंहस्थ के बाद कमेटी वापस अस्तित्व में आ जाती है।

इन अखाड़ों में होता है चुनाव

जूना अखाड़ा : 3 और 6 साल में चुनाव। 3 साल में कार्यकारिणी, न्याय से जुड़े साधुओं का। 6 साल में अध्यक्ष, मंत्री, कोषाध्यक्ष।

पंचायती निरंजनी अखाड़ा : पूर्ण कुंभ, अर्द्धकुंभ इलाहाबाद में छह-छह साल में नई कमेटी चुनते हैं।

पंचायती महानिर्वाणी अखाड़ा : 5 साल में पंच परमेश्वर चुनते हैं।

पंच दशनामी आवाहन अखाड़ा : तीन साल में रमता पंच। बाकी छह साल में चुनाव।

पंचायती आनंद अखाड़ा : छह साल में होते हैं चुनाव।

पंच अग्नि अखाड़ा : तीन साल में चुनाव।

पंच रामानंदी निर्मोही अणि अखाड़ा : छह साल में चुनाव।

यहां नहीं होते चुनाव

पंचायती बड़ा उदासीन अखाड़ा: पंच व्यवस्था नहीं। चार महंत होते हैं, जो आजीवन रहते हैं, रिटायर नहीं होते।

पंचायती उदासीन नया अखाड़ा : एक बार बने तो आजीवन रहते हैं।

पंचायती निर्मल अखाड़ा: चुनाव नहीं होते, स्थाई चुनते हैं।

पंच दिगंबर अणि अखाड़ा: चुनाव नहीं। एक बार चुनते हैं। उन्हें असमर्थता, विरोध होने पर पंच हटाते हैं।

पंच रामानंदी निर्वाणी अणि अखाड़ा: एक बार चुने जाने पर आजीवन या जब तक असमर्थ न हो जाएं।

 

यह खुदकुशी है या हत्या:गिरि के पास कहां से आई रस्सी और सल्फास; FIR से लेकर ब्लैकमेलिंग की साजिश तक की पूरी पड़ताल

अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष और निरंजनी अखाड़ा के सचिव महंत नरेंद्र गिरि (70) की मौत को लेकर सस्पेंस बना हुआ है। सोमवार को प्रयागराज के बाघंबरी मठ में उनका शव संदिग्ध हालत में लटका मिला था। उनके सुसाइड नोट में आनंद गिरी का जिक्र है। इसलिए उत्तराखंड पुलिस ने आनंद गिरि को हरिद्वार में गिरफ्तार कर लिया था। उसके बाद यूपी पुलिस की टीम भी हरिद्वार पहुंच गई थी।

मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक नरेंद्र गिरि को ब्लैकमेल किया जा रहा था। उनके किसी वीडियो की सीडी तैयार की गई थी। पुलिस ने यह सीडी भी बरामद की है। मीडिया रिपोर्ट्स में कहा जा रहा है कि समाजवादी पार्टी (सपा) की सरकार में राज्य मंत्री का दर्जा पाने वाले एक नेता पर नरेंद्र गिरि को ब्लैकमेल करने का शक है।

महंत के पास कहां से आई रस्सी और सल्फास, शिष्यों ने पुलिस को बताया क्यों मंगाई थी रस्सी

महंत नरेंद्र गिरि अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष और निरंजनी अखाड़ा के सचिव थे। -फाइल फोटो
महंत नरेंद्र गिरि अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष और निरंजनी अखाड़ा के सचिव थे। -फाइल फोटो

महंत नरेंद्र गिरि की संदिग्ध मौत के बाद से मठ में रहने वाले सेवादार और शिष्यों पर भी सवाल खड़े हो रहे हैं। शिष्य बबलू का कहना है कि रविवार को ही महंत नरेंद्र गिरि ने गेहूं में रखने के लिए सल्फास की गोलियां मंगाई थीं। हालांकि कमरे में मिली सल्फास की डिब्बी खुली नहीं थी।

एक शिष्य ने बताया कि महंत ने 2 दिन पहले यह कहकर नायलॉन की नई रस्सी मंगाई थी कि कपड़े टांगने में समस्या आ रही है। शिष्य ने नायलॉन की रस्सी लाकर दी थी। इसी रस्सी से महंत ने फांसी लगाई। प्रत्यक्षदर्शी सर्वेश ने बताया, ‘मैंने और एक अन्य शिष्य सुमित ने महंत जी को फंदे से उतारा था।

नरेंद्र गिरि की मौत की FIR: फोन नहीं उठाया तो शिष्यों ने दरवाजा तोड़ा, पंखे पर लटके हुए थे

सोमवार देर रात 12.54 बजे महंत नरेंद्र गिरि के शिष्य आनंद गिरि पर खुदकुशी के लिए उकसाने का मुकदमा थाना जार्ज टाउन में दर्ज किया गया। आईपीसी की धारा-306 में यह मुकदमा शिष्य अमन गिरी पवन महाराज ने दर्ज कराया है। इसमें लिखा है कि महंत ने चाय पीने के लिए मना कर दिया था और यह कहा था कि जब चाय पीना होगा, स्वयं सूचित करेंगे। शाम 5 बजे फोन स्विच ऑफ आने पर धक्का देकर दरवाजा खोला गया। महाराज पंखे में रस्सी से लटकते हुए पाए गए। पूरी खबर यहां पढ़ें…

7 पन्नों के सुसाइड नोट पर खड़े हो रहे सवाल, महंत को किसी ने पढ़ते-लिखते नहीं देखा

महंत नरेंद्र गिरि के 7 पन्नों के सुसाइड नोट पर सवाल खड़े किए जा रहे हैं। बताया जा रहा है कि वे ज्यादा लिखते-पढ़ते नहीं थे। पुलिस सूत्रों के मुताबिक घटनास्थल से मिले सुसाइड नोट को देखकर ऐसा लग रहा है, जैसे सब कुछ पहले से तय हो और कई दिनों से इसको लेकर मंथन चल रहा हो। यदि खुद महंत नरेंद्र गिरि ने लिखा तो उस वक्त उनकी मनोदशा क्या थी?

प्रयागराज अखिल भारतीय संत समिति और गंगा महासभा के महासचिव जीतेंद्रानंद सरस्वती ने दावा किया है कि वह इतना बड़ा सुसाइड नोट लिख ही नहीं सकते। महंत जी सिर्फ हस्ताक्षर और काम चलाऊ लिखना जानते थे।

काशी के मसलों पर बेबाक थे महंत, BHU में प्रोफेसर फिरोज की नियुक्ति का समर्थन किया था

महंत नरेंद्र गिरि काशी के मसलों को लेकर हमेशा मुखर रहे। इसलिए उनका काशी के संत-महंतों से आत्मीय संबंध था। जो बात नरेंद्र गिरि को नागवार गुजरती थी, उस पर वह अपनी त्वरित प्रतिक्रिया देते थे। हाल के वर्षों में काशी में ऐसे 2 प्रकरण सामने आए जब महंत नरेंद्र गिरि ने बेबाकी से अपनी बात रखी थी। काशी में गंगा में मूर्ति विसर्जन पर साधु-संतों ने 2015 में धरना दिया था। पुलिस ने लाठीचार्ज किया था। स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद के नेतृत्व में संतों ने इसके विरोध में प्रतिकार यात्रा निकाली थी।

महंत नरेंद्र गिरि ने अन्याय प्रतिकार यात्रा पर नाराजगी जताई थी। उन्होंने दो-टूक कहा था कि गंगा में अस्थि विसर्जन की परंपरा पुरानी है, लेकिन मूर्ति विसर्जन ज्यादा पुराना नहीं है। BHU के संस्कृत विद्या धर्म विज्ञान संकाय में असिस्टेंट प्रोफेसर के पद पर डॉ. फिरोज खान की नियुक्ति का उन्होंने समर्थन किया था। पूरी खबर यहां पढ़ें…

300 साल पुरानी गद्दी के लिए महंत से लड़ रहे थे शिष्य आनंद; जमीन बेचने का आरोप लगाया था

2018 में आनंद गिरि सिडनी गए थे, वहां महिलाओं के साथ छेड़छाड़ मामले में उन्हें जेल भी जाना पड़ा था। -फाइल फोटो
2018 में आनंद गिरि सिडनी गए थे, वहां महिलाओं के साथ छेड़छाड़ मामले में उन्हें जेल भी जाना पड़ा था। -फाइल फोटो

महंत नरेंद्र गिरि के शिष्य आनंद गिरि को पुलिस ने गिरफ्तार किया है। वे शक के दायरे में इसलिए हैं, क्योंकि नरेंद्र गिरि से उनका विवाद काफी पुराना है। इसकी वजह बाघंबरी गद्दी की 300 साल पुरानी वसीयत है, जिसे नरेंद्र गिरि संभाल रहे थे।

कुछ साल पहले आनंद गिरि ने नरेंद्र गिरि पर गद्दी की 8 बीघा जमीन 40 करोड़ में बेचने का आरोप लगाया था, जिसके बाद विवाद गहरा गया था। आनंद ने नरेंद्र पर अखाड़े के सचिव की हत्या करवाने का आरोप भी लगाया था। 2018 में ऑस्ट्रेलिया में महिलाओं से छेड़छाड़ के आरोप में फंस चुके आनंद गिरि ने ये आरोप भी लगाए थे कि उन्हें छुड़ाने के नाम पर नरेंद्र गिरि ने कई बड़े लोगों से 4 करोड़ रुपए वसूले थे

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