जिंदगी उतार और चढ़ाव का नाम है। जिंदगी में अगर कभी काली रात अपने साये को लेकर आती है तो कभी उजली सुबह भी अपना उजियारा फैला देती है। जरूरत है तो बस हिम्मत न हारने की और आगे बढ़ते जाने की। अगर आप जिंदगी में मुश्किलों को पार करना सीख जाते हैं तो पूरी दुनिया आपके लिए लड़ाई लड़ने को तैयार हो सकती है। जरुरत है तो बस जज़्बे को बरक़रार रखते हुए अपने हौसले के साथ लड़ते जाने की, फिर कारवां बनता जाता है।
ऐसी ही एक महिला उद्यमी के बारे में हम आपको बताने जा रहे हैं, जिनकी कहानी सुनने और पढ़ने में भले फ़िल्मी लगे, लेकिन है सच। यह कहानी है शिल्पा की, जो मैंगलोर में फ़ूड ट्रक चलाती हैं। उनकी जिंदगी में जितने भी दुःख आये उन्होंने उसका सकारात्मक उपयोग किया और हम सबके सामने जुझारूपन की वो मिसाल खड़ी की, जिसका लोहा महिंद्रा एंड महिंद्रा कंपनी के मालिक आनंद महिंद्रा ने भी माना और उनकी मदद को आगे आये। उन्होंने केनफ़ोलिओज़ से एक्सक्लूसिव बातचीत में अपनी कहानी को साझा किया।
महिला उद्यमी की नयी पहचान हैं शिल्पा
अपनी जीवन के बारे में बताते हुए वो कहती हैं की मुझे बचपन से खाना बनाने का शौक जरूर था लेकिन मैं इसे अपने व्यापार के रूप में कभी नहीं देखती थी। “मैं फ़ूड ट्रक के व्यापार में अपनी मर्जी से नहीं बल्कि मज़बूरी में आयी”। जब 2005 में अपने पति से शादी करके वो मैंगलोर आयी तो उन्हें नहीं पता था कि उन्हें एक दिन इसी मैंगलोर में अकेले दम पर फ़ूड ट्रक शुरू करना पड़ेगा और जीवन और परिवार के तमाम संघर्षों से अकेले लोहा लेना होगा। आज वो मैंगलोर में एक जाना माना नाम हैं और खासतौर से महिलाओं के लिए प्रेरणा का जीता जागता उदाहरण हैं। वास्तव में जिंदगी में ‘हार’ तब तक संभव नहीं है जब तक हमारे मन ने जीतने का पक्का निश्चय कर रखा हो।
9 साल पहले पति ने छोड़ दिया था, नहीं हारी हिम्मत
शिल्पा बातचीत के दौरान अपनी टूटी फूटी हिंदी से अपने संघर्ष की सच्चाई बयां करती हैं। वो बात करते हुए कभी रोती हैं तो कभी हंसती हैं और कभी भावुक होकर एकदम चुप हो जाती हैं। वो बताती हैं कि, “मेरे पति यह बोलकर गए कि अपने व्यापार के लिए लोन लेने के सिलसिले में वो बैंगलोर जा रहे हैं, कुछ दिन में लौटेंगे। लेकिन वो कभी नहीं लौटे। वह 2008 का वर्ष था, उस वक़्त मेरे हाथ में 3 साल का बच्चा था और समाज में उसको एक पहचान दिलाने के लिए संघर्ष करने का जिम्मा अब मेरा था”। उन्हें यह बिलकुल नहीं पता था कि उनका फ़ूड ट्रक चल पायेगा या नहीं, लेकिन उन्होंने बस हिम्मत न हारते हुए उसी फ़ूड ट्रक पर खाना बनाना शुरू किया। धीरे-धीरे लोग उनके विषय में जानने लगे। वो आगे कहती हैं,”अगर मैं तब हार मान जाती तो आज मैं मेरे बेटे को सुनेहरा भविष्य देने का सोच नहीं पाती”।
संघर्ष से जूझते हुए आया फ़ूड ट्रक खोलने का विचार
वो कहती हैं कि उनके पति उनके पास कुछ भी पैसे छोड़ कर नहीं गए थे लेकिन उन्होंने खुद से कुछ पैसे जरूर इकठ्ठा किये थे, जिसे उन्होंने अपने बैंक अकाउंट में जमा किया था। वो आगे कहती हैं “वो करीब 1 लाख रुपये थे उसके अलावा मेरे पास और कुछ नहीं था, न इतने रुपये में मैं कोई दुकान खरीद सकती थी, न ही ज्यादा दिन किराये पर दुकान चला सकती थी। मेरे घर के ठीक सामने महिंद्रा का शोरूम था, मैंने एक दिन अचानक से सोचा कि क्यों न मैं एक ट्रक ले लूँ और उसे फ़ूड ट्रक में परिवर्तित कर अपना खुद का खाने का व्यापार शुरू करूं”। उन्हें शुरुआत में लोगों ने कहा कि वो सेकंड हैंड ट्रक लें, लेकिन वो उन्हें फाइनेंस पर नहीं मिल सकती थी। इसलिए उन्होंने नया ट्रक लेने का सोचा जो उन्हें फाइनेंस पर मिल सकता था।
अब मुश्किल यह थी कि उनके पास केवल 1 लाख रुपये ही थे, जो उन्होंने अपने बेटे के लिए बचा रखे थे, लेकिन फिर उन्होंने एक कठोर फैसला लिया और उन पैसों को महिंद्रा ट्रक खरीदने के लिए इस्तेमाल करने का सोचा। वह जब शोरूम गयी, तो उन्हें पता चला कि उन्हें डाउन पेमेंट के तौर पर 1 लाख 18 हज़ार रुपये जमा करने होंगे। उस वक़्त उनके पास केवल 1 लाख रुपये ही थे, बाकि के 18 हज़ार के अलावा, खाना बनाने के सामान, गाड़ी को परिवर्तित करने वगैरह के खर्चे के लिए भी पैसे जुटाने थे। फिर उन्होंने सरकार की योजना, ‘महिला रोजगार उद्योग योजना’ के अंतर्गत लोन लिया और अपने पास बचे हुए सोने के गहने बेच कर रकम जुटाई।
शुरू में मिलते थे 500-1001 लेकिन अब मिलते हैं 10,000
वो कहती हैं, “जब मैंने अपना फ़ूड ट्रक खोला तो मुझे दिन के 500-1000 ही मिलते थे लेकिन अब मुझे 10,000 के करीब मिल जाता है। जिसे मैं अपने बच्चे की पढ़ाई के लिए, अपने स्वास्थ्य, अपने माँ-पिता के स्वास्थ्य और दूसरों खर्चों पर लगाती हूँ”। आज “हाली माने रोटीज” नाम से उनका यह फ़ूड ट्रक काफी मशहूर हो चुका है।
वो कहती हैं कि उन्हें सबसे ज्यादा ख़ुशी तब हुई जब महिंद्रा एन्ड महिंद्रा के मालिक आनंद महिंद्रा ने उनकी कहानी से प्रभावित होकर ट्वीट किया और उनकी हर संभव मदद का आश्वासन दिया। वो बताती हैं कि जब से आनंद महिंद्रा ने मेरे लिए ट्वीट किया तब से मेरे ग्राहकों में खासा वृद्धि हुई है, लोग मदद के लिए भी आगे आ रहे हैं। मुझे मेरी जिंदगी में और उम्मीदें मिली है।
शिल्पा की कहानी हम सबके लिए एक मिसाल है क्यूंकि उन्होंने जिंदगी में संघर्ष करते हुए सही फैसले लिए और अपने हौसले के दम पर यह दिखा दिया कि कोई भी मंजिल तब तक दूर नहीं जब तक आपके पास दूर तक चलने का जज़्बा मौजूद हो। उन्होंने जिंदगी में एक वक़्त जहर खाकर खुद को खत्म कर लेने का भी सोचा था, लेकिन फिर उन्हें लगा की वो दुनिया के सामने एक कायर नहीं बनना चाहती। उन्होंने पति के छोड़ जाने के बाद अपने जीवन को एक नयी शुरुआत दी, जहाँ उन्होंने अपने स्वयं के लिए सभी मुकाम हासिल किये। वो कहती हैं कि उनकी मंजिल भले अभी दूर हो, लेकिन उनका ज़ज़्बा उन्हें उस मंजिल तक एक न एक दिन जरूर पहुंचा देगा। उनका मानना है कि हम सब में अपार शक्ति मौजूद है, आप की खुद की एक पहचान है, जरुरत है तो बस खुद को पहचानने की, फिर कोई भी मुकाम आपसे दूर नहीं।