सैनिटाइजर के 41 में से 26 सैंपल फेल, निर्माता पैकिंग पर लिखे केमिकल की मात्रा के अलावा डाल रहे मेथेनॉल
सैनिटाइजर घर के राशन के साथ जरूरी आइटम हो गया है। जालंधर में हर महीने करीब 10 करोड़ रुपए तक इसका कारोबार पहुंच गया है लेकिन इस बीच बड़ा मसला यह है कि जिस सैनिटाइजर पर औसतन 100 रुपए हर हफ्ते एक शख्स खर्च कर रहा है, क्या वह कीटाणुओं से पूरी सुरक्षा दे रहे हैं? आपका शक जायज है, विभिन्न जगहों से ड्रग एंड एडमिनिस्ट्रेशन विभाग ने सैनिटाइजर के 50 सैंपल लिए।
इनमें से 41 की रिपोर्ट आई है, जिनमें 26 फेल हो गए हैं। वजह यह थी कि किसी में मेथेनॉल मिला और किसी में तय मात्रा से दूसरे केमिकल तय माणक से कम थे। दूसरी तरफ डॉक्टर भी सलाह दे रहे हैं कि अगर आपके वर्क स्टेशन पर साबुन और पानी है तो इससे कम से कम 20 सेकंड की मसलाहट के साथ हाथ धोना ज्यादा अच्छा है क्योंकि सैनिटाइजर भी एक केमिकल है और अत्यधिक इस्तेमाल से नुकसान ही होता है।
पिछले महीने सैनिटाइजर के सैंपल लिए गए थे
दरअसल, विभाग प्रमुख केएस पन्नू के आदेश पर विभिन्न जगहों से पिछले महीने में सैनिटाइजर के सैंपल लिए गए थे। ये सैनिटाइजर अल्कोहल, ग्लीसरीन, परफ्यूम जेल इत्यादि मिलाकर बनाए जाते हैं। इसमें कोई कंपनी अल्कोहल 40 फीसदी डाल रही है तो कोई 73 फीसदी। कई तो 90 फीसदी का दावा कर रही हैं। वहीं, कई कंपनियां केवल जेल, जड़ी-बूटी और परफ्यूम आधारित सैनिटाइजर सेल कर रही हैं। ग्राहक केवल प्रति 100 मिलीलीटर 40 से 50 रुपए और बड़े 5 लीटर पैक पर 750 रुपए तक खर्च कर रहे हैं।
आमतौर पर हाथ पर मलने के लिए अलग से और घर की चीजों को सैनिटाइज करने के लिए अलग से केमिकल युक्त सैनिटाइजर खरीदे जा रहे हैं। दुकानों पर अलग से हाई अल्कोहल वाले सैनिटाइजर की बोतल रखी होती है, जिसकी कीमत 150 से 250 तक होती है लेकिन दिक्कत यह है कि सारे सैनिटाइजर के फॉर्मूले अलग-अलग हैं। ऐसे में यह लोगों के लिए खारिश जैसी परेशानी खड़ी कर रहे हैं। इसी के चलते इनकी सैंपलिंग की गई, जिसमें मेथेनॉल मिले होने और पैकिंग में लिखे केमिकल के कंपोजीशन की रिपोर्ट क्लियर हुई है।
ग्राहक क्या करें?… साबुन और पानी है तो उससे हाथ धोना ही बेस्ट
कोरोना काल से पहले जो सैनिटाइजर बाजार में आ रहे थे, उनमें अल्कोहल मुख्य केमिकल होता था। कोरोना फैलने के बाद सरकार ने शराब कारखानों को स्पिरिट तैयार करने के आदेश दिए और इसे फ्री भी बांटा गया। इसके बाद तमाम फूड, दवा और कॉस्मेटिक कंपनियों ने सैनिटाइजर निकाले, जिसमें अधिक मात्रा में अल्कोहल होती है। इसमें मिलाया जाने वाला केमिकल यानी कलोरोहैक्सीडाइन वैसे कैंसर माना जाता है।
इस कारण संभव हो तो साबुन व पानी से ही हाथ धोएं। सैनिटाइजर ट्रेवलिंग में काम आता है। डॉ. रवि शर्मा कहते हैं कि सैनिटाइजर चमड़ी में रच जाता है। फिर इसके रोमछिद्र में मौजूद कीटाणु खत्म करता है, लेकिन आंख, नाक-कान का बचाव रखना पड़ता है। अल्कोहल सैनिटाइजर ठीक माने जाते हैं, कोई दूसरा हिडन केमिकल चमड़ी खराब कर रहा है तो कंप्लेंट कर सकते है।
दुकानदारों की मांग- टैक्स फ्री करें सैनिटाइजर
अगर 1000 रुपए के सैनिटाइजर की खरीद की जाती है तो 180 रुपए टैक्स में चले जाते हैं। जालंधर की ट्रेडर्स फोरम के डेलीगेट बलजीत सिंह कहते हैं कि आम आदमी के घर के राशन में सैनिटाइजर शामिल हो चुका है। स्कूल खुलेंगे तो बच्चों के टिफिन के साथ सैनिटाइजर की बोतल भी जाएगी। हर हफ्ते एक परिवार का कम से कम 500 का खर्च आएगा।
हमारी मांग है कि सरकार सैनिटाइजर की सारी आइटम को टैक्स फ्री करे। कारोबारी स्पिरिट भी टैक्स फ्री करने की बात कह रहे हैं। जीएसटी एडवोकेट अमित बजाज कहते हैं कि कंपनियों को सैनिटाइजर डोनेट करने पर टैक्स रिफंड की बात हो रही है लेकिन आम आदमी को तभी राहत मिलेगी, जब जीएसटी की दर जीरो होगी।
सैनिटाइजर सस्ते हुए लेकिन रेट अलग
मार्केट में 3 दर्जन नाम से सैनिटाइजर मिल रहे हैं। अधिकतर हरियाणा व हिमाचल से आ रहे हैं जबकि लोकल मेड भी हैं। इनकी कीमतें भी अलग हैं। अभी कीमतों में लूट जरूर बंद हुई है। 100 एमएल सैनिटाइजर 100 में आता था, अब वो 50 रुपए में मिल रहा है। लेकिन कीमतें एकसार नहीं हैं। इससे उपभोक्ता परेशान होते हैं। दिल्ली से जालंधर आकर बसे तरनबीर सिंह कहते हैं- जालंधर प्रशासन ने सैनिटाइजर के रेट दुकानों पर डिस्पले करने के आदेश दिए थे, ये कोई मान नहीं रहा है।