सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट न्यू india की तस्वीर
पर्देदारी:कोर्ट में दावा: कोई भी जाकर देख सकता है कि काम कोविड प्रोटोकॉल के हिसाब से हो रहा है, हकीकत: साइट पर कोई झांक भी नहीं सकता
राष्ट्रपति भवन से लेकर इंडिया गेट तक की तीन किलोमीटर लंबी सड़क का हिस्सा खुदा हुआ है और यहां जगह-जगह जेसीबी काम करती नजर आती हैं। मोदी सरकार के ड्रीम प्रोजेक्ट ‘सेंट्रल विस्टा रीडेवलपमेंट प्रोजेक्ट’ का काम विरोध के बावजूद पूरी रफ्तार से चल रहा है। राजनीतिक बयानबाजी के साथ अदालत में भी इसका विरोध चल रहा है।
पहले मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा था। कोर्ट से अनुरोध किया गया था कि इस प्रोजेक्ट के काम पर तत्काल रोक लगा दी जाए, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने ऐसे करने से इनकार करते हुए कहा था कि तत्काल सुनवाई के लिए हाई कोर्ट में अपील की जाए। इसके बाद 10 मई से दिल्ली हाईकोर्ट में इस मामले की सुनवाई चल रही है।
दिल्ली हाई कोर्ट में दाखिल याचिका में कहा गया है कि कोरोना के दौरान जब सारे निर्माण कार्य रोक दिए गए हैं, तब यहां काम क्यों चल रहा है? इससे मजदूरों की जान खतरे में हैं। सरकार का कहना है कि साइट पर कोविड नियमों का पूरा ध्यान रखा जा रहा है, मजदूर पूरी तरह सेफ हैं। जबकि याचिकाकर्ताओं का कहना है कि ऐसा नहीं है।
नमस्ते india इंडिया गेट की कंस्ट्रक्शन साइट पर पहुंचा और वहां जाकर अदालत में सरकार द्वारा किए गए दावों और याचिका में लगाए गए आरोपों को परखने की कोशिश की …
1-कोर्ट में सरकार का दावा :
साइट पर कोविड प्रोटोकॉल फॉलो किया जा रहा है, कोई भी जाकर देख सकता है
हाई कोर्ट में दाखिल याचिका में सवाल उठाया गया था कि कोरोना के खतरे के बावजूद काम क्यों चल रहा है? इस पर केंद्र सरकार के वकील ने कहा था कि सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट के तहत कंस्ट्रक्शन साइट पर लॉकडाउन के पहले से काम चल रहा था। दूसरे काम के दौरान इस बात का ध्यान रखा जा रहा है कि मजदूरों के बीच पर्याप्त दूरी रहे। सरकारी हलफनामे में कहा गया कि कार्यस्थल पर मजदूर पूरी तरह सुरक्षित हैं।
कंस्ट्रक्शन के दौरान ऐसा कैसे संभव है कि मजदूर अपने बीच पर्याप्त दूरी रख सकें? इस सवाल पर सरकारी पक्ष का कहना था कि याचिका में ज्यादातर बातें परसेप्शन के आधार पर कहीं गई हैं। साइट पर कोविड प्रोटोकाल का पालन किया जा रहा है? इसे कोई भी जाकर देख सकता है।
हकीकत:
कंस्ट्रक्शन साइट पर गार्ड किसी को नहीं जाने देते, फोटो खींचना भी मना
रिपोर्टर्स की टीम जब राजपथ के पास पहुंचती है, तो जगह-जगह जेसीबी मशीनें नजर आती हैं। दूर से देखने पर इक्का-दुक्का मजदूर भी दिखाई देते हैं, लेकिन, मोबाइल निकालते ही वहां तैनात गार्ड रोक देते हैं। बताया जाता है कि यहां फोटो खींचना मना है।
हम सिर्फ कंस्ट्रक्शन साइट पर मजूदरों को काम करते देखना चाहते हैं? इस सवाल पर साफ मना कर दिया जाता है और जहां काम चल रहा है, वहां जाने की इजाजत नहीं दी जाती है।
यानी अदालत में भले ही सरकारी तौर पर यह दावा किया जा रहा हो कि सेंट्रल विस्टा के मौजूदा काम को जाकर कोई भी देख सकता है, लेकिन हकीकत में ऐसा नहीं हैं। किसी को भी अंदर जाने की तो दूर फोटो खींचने तक की इजाजत नहीं है।
2- कोर्ट में सरकार का दावा
सभी मजूदर साइट पर ही रह रहे हैं, बाहर से नहीं आते
याचिका में आरोप लगाया गया है कि बस से मजदूरों को साइट पर ले जाया जाता है, जिससे उनमें कोरोना संक्रमण का खतरा है। याचिका और मीडिया रिपोर्ट्स में कहा गया था कि मजदूरों को सराय काले खां के कैंप से लाया जाता है।
इसके जवाब में दाखिल शपथपत्र में सरकार ने कहा था कि 19 अप्रैल को दिल्ली में कोरोना कर्फ्यू लगने से पहले यहां चार सौ मजदूर काम कर रहे थे और इनमें से 250 के साइट पर बने कैंप में ही रहने की व्यवस्था थी। सरकार ने इस दावे को गलत बताया कि रोज मजूदर बस से काले खां से आते हैं। सरकार के मुताबिक सभी मजदूर इसी साइट पर रह रहे हैं और यहां थर्मल स्क्रीनिंग से लेकर आरटी-पीसीआर टेस्ट तक की व्यवस्था है। हलफनामे में यह भी कहा गया है कि कांट्रैक्टर ने सभी मजूदरों को कोविड इंश्योरेंस भी दे रखा है।
हकीकत : कितने मजदूर काम कर रहे हैं, कोई यही बताने को तैयार नहीं
इंडिया गेट वाली साइट पर काम कर रहे किसी मजदूर से बात करना आसान नहीं है। पहले तो आप मजूदरों तक पहुंच ही नहीं पाएंगे और अगर पहुंच भी गए तो उन्हें इस बात के सख्त निर्देश दिए गए हैं कि वे मीडिया से कोई बात न करें। साइट पर फिलहाल 400 मजदूर काम कर रहे है या 250? सभी यहीं रहते हैं या कुछ काले खां से आते हैं? क्योंकि इस साइट पर काम करने वाले मजदूरों की संख्या 400 कही जाती है। और रहने की व्यवस्था की बात आने पर 250 कहा जाता है। आखिर सच क्या है? इस बात का जवाब वहां मौजूद कोई सुपरवाइजर देने को तैयार नहीं था।
कुछ सुरक्षाकर्मियों ने ये जरूर बताया कि सुबह बस मजदूरों को लेकर आती है और शाम को लेकर जाती है। लेकिन, कुछ गार्डों का कहना था कि ज्यादातर मजदूर कैंप में ही रह रहे हैं। जब हमने उनसे कैंप तक ले जाने की गुजारिश की तो उन्होंने इनकार कर दिया। यह तक जानकारी नहीं दी गई कि साइट पर मजदूरों के रहने की जगह कहां बनाई गई है।
मौके पर मजूदरों की रहने की जगह न दिखाने पर reporter ने कंस्ट्रक्शन कंपनी शापूरजी पालोनजी के प्रबंधन को भी मेल किया कि क्या हमें साइट के भीतर कुछ चीजें दिखाई जा सकती हैं? शापूरजी पालोनजी का जनसंपर्क (PR) देखने वाली कंपनी कॉन्सेप्ट पीआर को भी मेल किया गया,लेकिन किसी का जवाब नहीं आया।
केंद्रीय लोक निर्माण विभाग के अधिकारियों ने इस बारे में कुछ भी बोलेने से इन्कार कर दिया।
‘लॉकडाउन में मेरी नौकरी क्यों खतरे में डालना चाहती हैं’
सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट को लेकर हाई कोर्ट में किए गए दावों को परखने का कोई तरीका नहीं है। राजपथ, मानसिंह रोड हर तरफ इस तरह के साइन बोर्ड लगे हैं कि आप यहां प्रवेश नहीं कर सकते। केंद्रीय लोक निर्माण विभाग ने अब साइट्स के फोटो खींचने पर भी रोक लगा दी है। चारों तरफ सख्त पहरा है।
Reporter एक गार्ड से अंदर जाने देने के लिए कहती है। इस पर गार्ड का जवाब आता है कि, ‘बड़ी मुश्किल से ये नौकरी मिली है। लॉकडाउन में घर का खर्च चल पा रहा है। आप क्यों मेरी नौकरी को खतरे में डालना चाहती हैं।’ वो हाथ जोड़कर कैमरा बंद करने की गुजारिश करता है। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि सुरक्षाकर्मियों को कितने सख्त निर्देश दिए गए हैं।
मान सिंह रोड पर केंद्रीय सुरक्षा बलों की दो बसें भी खड़ी हैं। ये सुरक्षाकर्मी यहां आने-जाने वाले लोगों पर नजर रख रहे हैं। जगह-जगह दिल्ली पुलिस के जवान भी तैनात हैं।
सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट की बाकी साइट भी टिन से घेर दी गई हैं
इंडिया गेट से राष्ट्रपति भवन के बीच काम चल रहा है। दिल्ली हाई कोर्ट में पड़ी याचिका इंडिया गेट वाली साइट के लिए ही है। इसके अलावा पुराने संसद भवन के पास नए संसद भवन की कंस्ट्रक्शन साइट को टिन की हरे रंग की ऊंची चादरों से घेर दिया गया है। झिर्री से झांकने पर यहां कंस्ट्रक्शन मशीनरी नजर आती है। साइट से ऊपर उठ रही कंस्ट्रक्शन क्रेनों के मूवमेंट से काम की तेज रफ्तार का अंदाजा होता है। ये काम समय पर पूरा हुआ तो नवंबर 2022 में देश की नई त्रिकोणाकार संसद यहीं खड़ी होगी। यहां भी किसी को भीतर जाने या फोटो खींचने की इजाजत नहीं है।
राजपथ वाले हिस्से पर नवंबर 2021 तक काम पूरा होना है
केंद्रीय लोक निर्माण विभाग ने (सीपीडब्ल्यूडी) ने सेंट्रल एवेन्यू रीडेवलपमेंट के लिए इसी साल जनवरी में 502 करोड़ रुपए का टेंडर निकाला था। यह काम 487.08 करोड़ रुपए की बिड पर शापूरजी पालोनजी कंपनी को मिला था। 04 फरवरी को यहां काम शुरू हो गया था। तय शर्तों के तहत इस प्रोजेक्ट का काम 300 दिनों के अंदर पूरा किया जाना है।
सीपीडब्ल्यूडी की तरफ से कोर्ट में दायर हलफनामे में बताया गया है कि इंडिया गेट -राजपथ पर हो रहा काम सेंट्रल विस्टा एवेन्यू रीडेवलपमेंट प्रोजेक्ट का केवल एक हिस्सा है। इसके तहत राजपथ पर सार्वजनिक सुविधाओं को सुधारा जा रहा है। ये काम नवंबर 2021 तक पूरा हो जाना है, इसलिए काम रोकना ठीक नहीं होगा। विभाग की ओर से यह भी कहा गया है कि इस काम को इसलिए भी लेट नहीं किया जा सकता, क्योंकि यहीं पर गणतंत्र दिवस की परेड भी होती है। कुल मिलाकर सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट के कई हिस्सों में तेजी से काम चल रहा है।
ब्रिटिश आर्किटेक्ट एडविन लुटियंस ने जब रायसीना की पहाड़ियों पर तत्कालीन ब्रिटिश साम्राज्य का हिस्सा रहे भारत की नई राजधानी की कल्पना की थी, तब उन्होंने सेंट्रल विस्टा को इसका अहम हिस्सा बनाया था। विस्टा यानी दिलकश नजारा। सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट जब पूरा होगा तो क्या शक्ल लेगा, ये अभी पुख्ता तौर पर नहीं कहा जा सकता है, क्योंकि अभी भी इसके बारे में बहुत सी जानकारियां सार्वजनिक नहीं हैं।
सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट में सबसे पहले बनेगा उप-राष्ट्रपति का घर, इस प्रोजेक्ट के लिए कहां क्या टूटेगा और क्या बनेगा, जानिए सब कुछ
सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का ड्रीम प्रोजेक्ट है। जब से इसकी घोषणा हुई है तभी से इस प्रोजेक्ट का विवाद पीछा नहीं छोड़ते। विवादों और कोरोना के बीच इस पर तेजी से काम जारी है। हाल ही में इससे जुड़ी इमारतों को पूरा करने की टाइम लाइन भी आ गई।
आज हम इस प्रोजेक्ट के विवादों की बात नहीं करेंगे। आज बात होगी इस प्रोजेक्ट की। आखिर इसमें कहां क्या बनना है? कितनी इमारतें इसके लिए गिराई जाएंगी, कितनी इमारतों को रिनोवेट किया जाएगा, कितनी इमारतों का इस्तेमाल बदलेगा। संसद की नई बिल्डिंग में कहां क्या होगा? आइए जानते हैं…
सेंट्रल विस्टा क्या है?
- नई दिल्ली में राष्ट्रपति भवन से इंडिया गेट तक के 3.2 किमी लंबे एरिया को सेंट्रल विस्टा कहते हैं। इसकी कहानी 1911 से शुरू होती है। ये वो दौर था जब भारत में अंग्रेजों का शासन था। कलकत्ता उनकी राजधानी थी, लेकिन बंगाल में बढ़ते विरोध के बीच दिसंबर 1911 में किंग जॉर्ज पंचम ने भारत की राजधानी कलकत्ता से दिल्ली शिफ्ट करने का ऐलान किया। दिल्ली में अहम इमारतें बनाने का जिम्मा मिला एडविन लुटियंस और हर्बर्ट बेकर को। इन दोनों ने ही सेंट्रल विस्टा को डिजाइन किया। ये प्रोजेक्ट वॉशिंगटन के कैपिटल कॉम्प्लेक्स और पेरिस के शान्स एलिजे से प्रेरित था। ये तीनों प्रोजेक्ट नेशन-बिल्डिंग प्रोग्राम का हिस्सा थे।
- लुटियंस और बेकर ने उस वक्त गवर्नमेंट हाउस (जो अब राष्ट्रपति भवन है), इंडिया गेट, काउंसिल हाउस (जो अब संसद है), नॉर्थ ब्लॉक, साउथ ब्लॉक और किंग जॉर्ज स्टैचू (जिसे बाद में वॉर मेमोरियल बनाया गया) का निर्माण किया।
- इस प्रोजेक्ट की शुरुआत में ही राजपथ के दोनों ओर एडमिनिस्ट्रेटिव ऑफिसेस बनाने का प्लान था, लेकिन ये आजादी के वक्त तक नहीं बन सके थे। यानी, जब देश आजाद हुआ तो सेंट्रल विस्टा का अधूरा मॉडल मिला। आजादी के बाद सेंट्रल विस्टा के दोनों ओर कई नई इमारतें बनीं। रेल भवन, वायु भवन, उद्योग भवन, कृषि भवन जैसी इमारतें 1962 तक यहां बन चुकी थीं। इसी तरह अलग-अलग मंत्रालयों ने अलग-अलग इमारतें बनाईं।
- इस वक्त सेंट्रल विस्टा के अंदर राष्ट्रपति भवन, संसद, नॉर्थ ब्लॉक, साउथ ब्लॉक, रेल भवन, वायु भवन, कृषि भवन, उद्योग भवन, शास्त्री भवन, निर्माण भवन, नेशनल आर्काइव्ज, जवाहर भवन, इंदिरा गांधी नेशनल सेंटर फॉर आर्ट्स (IGNCA), उपराष्ट्रपति का घर, नेशनल म्यूजियम, विज्ञान भवन, रक्षा भवन, वाणिज्य भवन, हैदराबाद हाउस, जामनगर हाउस, इंडिया गेट, नेशनल वॉर मेमोरियल, बीकानेर हाउस आते हैं।
सेंट्रल विस्टा रि-डेवलपमेंट प्रोजेक्ट क्या है?
सेंट्रल विस्टा के पूरे एरिया को नए सिरे से डेवलप करने के प्रोजेक्ट का नाम सेंट्रल विस्टा रि-डेवलपमेंट प्रोजेक्ट है। इसमें मौजूदा कुछ इमारतों में कोई बदलाव नहीं होगा तो कुछ को किसी और काम में इस्तेमाल किया जाएगा, कुछ को रिनोवेट किया जाएगा तो कुछ को गिराकर उनकी जगह नई इमारतें बनाई जाएंगी।
इस प्रोजेक्ट के दौरान किन इमारतों को गिराया जाएगा किन्हें नहीं, इसे लेकर इसी साल 18 मार्च को लोकसभा में पूछे गए एक सवाल के जवाब में शहरी विकास मंत्री हरदीप सिंह पुरी ने कहा था कि इसे लेकर अभी कोई अंतिम सूची नहीं बनाई गई है।
वहीं, दूसरी तरफ इस प्रोजेक्ट को डिजाइन करने वाले डॉक्टर बिमल पटेल ने जून 2020 में एक सेमिनार के दौरान इसकी पूरी डिजाइन साझा की थी। जिससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि इस प्रोजेक्ट के दौरान कहां क्या होना है। हालांकि, उन्होंने ये जरूर कहा था कि इस डिजाइन में थोड़ा बहुत बदलाव हो सकता है। पटेल के बताए मुताबिक आइए इन बदलावों को जानते हैं।
इन इमारतों में कोई बदलाव नहीं होगा: राष्ट्रपति भवन, इंडिया गेट, वॉर मेमोरियल, हैदराबाद हाउस, रेल भवन, वायु भवन रि-डेवलपमेंट प्रोजेक्ट का हिस्सा नहीं हैं।
इन इमारतों का इस्तेमाल बदलेगा: नॉर्थ ब्लॉक जहां अभी वित्त मंत्रालय, गृह मंत्रालय, सेंट्रल बोर्ड ऑफ डायरेक्ट टैक्सेज (CBDT) का ऑफिस है। साउथ ब्लॉक जहां अभी PMO, रक्षा मंत्रालय, विदेश मंत्रालय, कैबिनेट सेक्रेटेरिएट और नेशनल सिक्योरिटी काउंसिल (NSC) का ऑफिस है। इन दोनों को नेशनल म्यूजियम में बदला जाएगा।
संसद की मौजूदा इमारत को पुरातत्व धरोहर में बदला जाएगा। इसका इस्तेमाल संसदीय कार्यक्रमों में भी किया जाएगा। अभी जहां जामनगर हाउस है वहां, रि-डेवलपमेंट के बाद IGNCA को शिफ्ट किया जाएगा।
इन इमारतों को रिनोवेट किया जाएगा: नेशनल आर्काइव्स, वाणिज्य भवन को रिनोवेट किया जाएगा।
ये इमारतें नई सिरे से बनेंगी: इस प्रोजेक्ट में संसद की नई बिल्डिंग बनेगी, प्रधानमंत्री और उप-राष्ट्रपति ने नए आवास बनेंगे। नया सेंट्रल सेक्रेटेरिएट बनेगा जिसमें सरकार के सभी मंत्रालय और उनके ऑफिस शिफ्ट होंगे।
कृषि भवन, शास्त्री भवन, IGNCA, उद्योग भवन, निर्माण भवन, जवाहर भवन, नेशनल म्यूजियम, विज्ञान भवन, रक्षा भवन, उप-राष्ट्रपति निवास, जाम नगर हाउस को रिनोवेशन के लिए गिराया जाएगा। इन इमारतों की जगह सेंट्रल सेक्रेटरिएट की 10 नई बिल्डिंग बनेंगी। इसके साथ ही जिस जगह पर अभी जवाहर भवन और निर्माण भवन है वहां पर सेंट्रल कॉन्फ्रेंस सेंटर बनाया जाएगा।
संसद की नई बिल्डिंग में क्या खास होगा?
रि-डेवलपमेंट प्रोजेक्ट में कहां क्या होगा और कैसा होगा इसे लेकर अभी तक बहुत ज्यादा जानकारी सरकार की ओर से नहीं दी गई है। सिर्फ संसद की नई बिल्डिंग के बारे में ही काफी कुछ बताया गया है।
ये नई इमारत पार्लियामेंट हाउस स्टेट के प्लॉट नंबर 118 पर बनेगी। पूरा प्रोजेक्ट 64,500 स्क्वायर मीटर में फैला होगा। संसद की मौजूदा बिल्डिंग 16,844 वर्ग मीटर में फैली है। संसद की नई बिल्डिंग 20,866 वर्ग मीटर में फैली होगी। यानी, मौजूदा बिल्डिंग से करीब 4 हजार वर्ग मीटर ज्यादा बड़ी।
इस बिल्डिंग में क्या-क्या होगा, पुरानी से कितनी अलग होगी?
नए भवन में लोकसभा सांसदों के लिए लगभग 876 और राज्यसभा सांसदों के लिए करीब 400 सीटें होंगी। संसद के संयुक्त सत्र में लोकसभा चेंबर में 1,224 सदस्य एक साथ बैठ सकेंगे। इसमें फर्क सिर्फ इतना होगा कि जिन सीटों पर दो सांसद बैठेंगे उनमें संयुक्त सत्र के दौरान तीन सांसदों के बैठने का प्रावधान होगा।
नए सदन में दो-दो सांसदों के लिए एक सीट होगी, जिसकी लंबाई 120 सेंटीमीटर होगी। यानी एक सांसद को 60 सेमी की जगह मिलेगी। देश की विविधता दर्शाने के लिए संसद भवन की एक भी खिड़की किसी दूसरी खिड़की से मेल खाने वाली नहीं होगी। हर खिड़की अलग आकार और अंदाज की होगी। तिकोने आकार में बनी बिल्डिंग की ऊंचाई पुरानी इमारत जितनी ही होगी। इसमें सांसदों के लिए लाउंज, महिलाओं के लिए लाउंज, लाइब्रेरी, डाइनिंग एरिया जैसे कई कम्पार्टमेंट होंगे।
ये प्रोजेक्ट कब तक पूरा हो जाएगा?
20 हजार करोड़ रुपए के इस प्रोजेक्ट के लिए सेंटर की सभी मिनिस्ट्रीज से 13,450 करोड़ रुपए का क्लियरेंस मिल चुका है। अकेले संसद की नई बिल्डिंग बनने में ही करीब 971 करोड़ रुपए का खर्च आएगा। टाटा प्रोजेक्ट ने पिछले साल ही संसद की नई बिल्डिंग बनाने का काम शुरू कर दिया है।
इस प्रोजेक्ट में जितनी बिल्डिंगें शामिल हैं उनके पूरा होने की टाइमलाइन हाल ही में तय हुई है। इसके मुताबिक उप-राष्ट्रपति का आवास मई-2022 तक, संसद की नई बिल्डिंग का निर्माण नवंबर 2022 तक, प्रधानमंत्री आवास का निर्माण दिसंबर 2022 तक, प्रधानमंत्री की सुरक्षा में रहने वाली SPG की बिल्डिंग दिसंबर 2022 तक, कॉमन सेंट्रल सेक्रेटेरिएट की 10 बिल्डिंगें मई 2023 से जून 2025 तक, सेंट्रल कॉन्फ्रेंस सेंटर दिसंबर 2026 तक पूरा हो जाएगा।
इसकी जरूरत क्यों पड़ी?
- दरअसल 2026 में लोकसभा सीटों का नए सिरे से परिसीमन का काम शेड्यूल्ड है। इसके बाद सदन में सांसदों की संख्या बढ़ सकती है। इस बात को ध्यान में रखकर नई बिल्डिंग को बनाया जा रहा है। अभी लोकसभा में 543 सदस्य और राज्यसभा के 245 सदस्य हैं।
- 1951 में जब पहली बार चुनाव हुए थे तब देश की आबादी 36 करोड़ और 489 लोकसभा सीटें थीं। एक सांसद औसतन 7 लाख आबादी को रिप्रजेंट करता था। आज देश की आबादी 138 करोड़ से ज्यादा है। एक सांसद औसतन 25 लाख लोगों को रिप्रजेंट करता है।
- संविधान के आर्टिकल-81 में हर जनगणना के बाद सीटों का परिसीमन मौजूदा आबादी के हिसाब से करने का भी प्रावधान था, लेकिन 1971 के बाद से ये नहीं हुई है।
- आर्टिकल-81 के मुताबिक देश में 550 से ज्यादा लोकसभा सीटें नहीं हो सकती हैं। इनमें 530 राज्यों में जबकि 20 केंद्र शासित प्रदेशों में होंगी। फिलहाल देश में 543 लोकसभा सीटें हैं। इनमें 530 राज्यों में और 13 केंद्र शासित प्रदेशों में हैं, लेकिन देश की आबादी को देखते हुए इसमें भी बदलाव की बात चल रही है।
- मार्च 2020 में सरकार ने संसद को बताया कि पुरानी बिल्डिंग ओवर यूटिलाइज्ड हो चुकी है और खराब हो रही है। इसके साथ ही लोकसभा सीटों के नए सिरे से परिसीमन के बाद जो सीटें बढ़ेंगी उनके सांसदों के बैठने के लिए पुरानी बिल्डिंग में पर्याप्त जगह नहीं है। वैसे भी 2021 में इस बिल्डिंग को बने हुए 100 साल पूरे होने वाले हैं।
याचिका लगाने वालों की ओर से सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट को बताया गया मौत का किला, जाने मोदी के ड्रीम प्रोजेक्ट पर दिल्ली हाईकोर्ट में क्या हुआ
कोरोना की दूसरी लहर ने देश में मूलभूत सुविधाओं की पोल खोल कर रख दी है। हॉस्पिटल, बेड और ऑक्सीजन की कमी ने हाहाकार मचा रखा है। लॉकडाउन के बीच लोग घरों में कैद हैं, लेकिन देश की इस भयानक स्थिति का सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट पर कोई असर नहीं पड़ा है। लॉकडाउन के दौरान भी धड़ल्ले से इस प्रोजेक्ट का निर्माण कार्य जारी है। सरकार ने इस प्रोजेक्ट को आवश्यक सेवाओं की सूची में शामिल कर दिया है ताकि समय पर निर्माण कार्य पूरा हो सके। इसी बीच पूरे प्रोजेक्ट पर ट्वीटर से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक बहस जारी है।
इस प्रोजेक्ट को लेकर कोर्ट में क्या हो रहा है? क्यों विपक्षी दल इस मामले पर सरकार को घेर रहे हैं? आखिर ये प्रोजेक्ट है क्या जिस पर इतना विवाद है? आइए जानते हैं…
हाईकोर्ट में आज सुनवाई किसलिए हुई और क्या हुआ?
सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट पर रोक लगाने के लिए सोहेल हाशमी और अन्या मल्होत्रा द्वारा अधिवक्ता सिद्दार्थ लूथरा के जरिए दिल्ली हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की गई थी, जिस पर 12 मई को सुनवाई हुई। इसी सुनवाई से एक दिन पहले केंद्र सरकार ने भी हलफनामा दायर कर इस याचिका को बेबुनियाद बताते हुए कहा था कि ये प्रोजेक्ट में बाधा डालने का तरीका है। हाईकोर्ट पूरे मामले पर 17 मई फिर सुनवाई हुई। कोर्ट ने सभी पक्षों की दलील सुनने के बाद अपना फैसला सुरक्षित रख लिया।
कोर्ट में किस पक्ष ने क्या कहा?
याचिकाकर्ताओं को वकील सिद्धार्थ लूथरा ने कहा कि सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट को अभ सेंट्रल विस्टा नहीं बल्कि सेंट्रल फोर्टरेस्ट ऑफ डेथ यानी मौत का किला कहना चाहिए। उन्होंने मीडिया रिपोर्ट्स का हवाला देते हुए कहा कि साइट पर एक कमरे में सात मजदूरों को रखा जा रहा है। वहीं, सरकार के वकील तुषार मेहता ने याचिकाकर्ताओं की मंशा पर सवाल उठाते हुए कहा कि याचिकाकर्ताओं का पब्लिक इंट्रेस्ट केवल एक प्रोजेक्ट को लेकर वहीं, आसपास चल रहे दूसरे प्रोजेक्ट में वो ऐसा क्यों नहीं करते।
बिल्डर शापोरजी पलोनजी की ओर के वकील ने कहा की इस प्रोजेक्ट के लिए आधे राजपथ को खोदा गया है। अगर बरसात आने के पहले इस काम को तेजी से करना है नहीं तो बारिश में ये गड्ढे भर जाएंगे। साथ ही, अगले साल की गणतंत्र दिवस की परेड पर भी इसका असर पड़ेगा।
याचिकाकर्ताओं की क्या मांग है?
याचिका में मांग की गई है कि सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट का काम तुरंत रोका जाना चाहिए, क्योंकि दिल्ली में लॉकडाउन लगा हुआ है। इन मजदूरों को दिल्ली के अलग-अलग इलाकों से रोजाना काम के लिए यहां लाया और ले जाया जा रहा है। इससे इलाके में कोरोना फैलने का खतरा है।
केंद्र ने अपने हलफनामे में क्या कहा?
केंद्र ने हलफनामे में कहा है कि मजदूरों को यहां से लाने ले जाने का आरोप बिल्कुल बेबुनियाद है। 19 अप्रैल से पहले इस प्रोजेक्ट पर 400 मजदूर काम कर रहे थे, लेकिन फिलहाल 250 मजदूर यहां काम कर रहे हैं, जो यहीं रह रहे हैं। सभी मजदूरों का कोरोना टेस्ट भी कराया गया है और उन्हें तमाम मेडिकल सुविधाएं भी दी गई हैं। काम के दौरान मजदूर सोशल डिस्टेंसिंग का पालन भी कर रहे हैं। साथ ही सभी मजदूरों का हेल्थ इंश्योरेंस भी किया गया है।
पहले भी क्या इस प्रोजेक्ट से जुड़ी कोई याचिका कोर्ट में लगी है?
इस मामले पर पर्यावरण, भूमि उपयोग जैसे कई मुद्दों पर अलग-अलग याचिकाएं दाखिल की गई थीं। जुलाई 2020 में सुप्रीम कोर्ट ने इन सभी याचिकाओं को एक बैच में मिलाकर सुनवाई शुरू की। 3 जजों की बेंच ने 2:1 से फैसला सुनाया और जनवरी 2021 में सुप्रीम कोर्ट ने प्रोजेक्ट का निर्माण कार्य शुरू करने की अनुमति दे दी।
दिल्ली हाईकोर्ट क्या फैसला सुना सकती है?
संविधान एक्सपर्ट फैजान मुस्तफा के मुताबिक, सुप्रीम कोर्ट पहले ही इस मामले पर फैसला दे चुकी है इसलिए इस बात की उम्मीद बहुत कम है कि दिल्ली हाईकोर्ट सेंट्रल विस्टा के कंस्ट्रक्शन पर स्टे लगाए। हालांकि सरकार अपनी तरफ से नैतिकता के आधार पर खुद ही कंस्ट्रक्शन को फिलहाल के लिए टाल सकती है।
जब सुप्रीम कोर्ट ने फैसला दे दिया है तो हाईकोर्ट में किस मामले पर सुनवाई हो रही है?
कानूनी मामलों के जानकार विराग गुप्ता के मुताबिक, जनवरी 2021 में सुप्रीम कोर्ट में जिन याचिकाओं पर सुनवाई हुई थी वो पर्यावरण और भूमि उपयोग से जुड़ी हुई थीं। इस पर 3 जजों की बेंच ने 2:1 से फैसला देते हुए प्रोजेक्ट को हरी झंडी दिखा दी थी। उस फैसले में जस्टिस संजीव खन्ना ने असहमति व्यक्त करते हुए कहा था कि प्रोजेक्ट क्लियरेंस के दौरान जनसुनवाई की जरूरी कानूनी प्रक्रिया का सही पालन नहीं किया गया है। हालांकि 3 में से 2 जजों का एक जैसा फैसला था इसलिए सुप्रीम कोर्ट ने बहुमत के आधार पर निर्माण की अनुमति दे दी थी।
फिलहाल जो याचिका दायर की गई है वो DDMA (दिल्ली डिजास्टर मैनेजमेंट अथॉरिटी) के 19 अप्रैल के एक ऑर्डर को आधार बनाकर की गई है। इस ऑर्डर में लॉकडाउन के दौरान सभी तरह की निर्माण गतिविधियों पर रोक लगाई गई है। याचिकाकर्ता ने इसी को आधार बनाकर सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट के निर्माण कार्य पर रोक लगाने की मांग की है।
विपक्ष के निशाने पर क्यों है प्रोजेक्ट
प्रोजेक्ट की घोषणा के बाद से ही तमाम विपक्षी दल इसके विरोध में हैं। राहुल गांधी समेत तमाम बड़े नेता आए दिन सरकार को घेरते रहे हैं। लॉकडाउन के दौरान भी निर्माण कार्य चलते रहने से आलोचनाएं और तीखी हो गई हैं। सरकार ने इस प्रोजेक्ट को आवश्यक सेवाओं की सूची में शामिल कर दिया है ताकि लॉकडाउन के दौरान भी काम नहीं रुके, इसके बाद विरोध और बढ़ गया है। नेताओं का कहना है कि देश की वर्तमान हालात को देखते हुए ये गैर जरूरी खर्च है। इसके बजाय स्वास्थ्य सुविधाओं पर ये खर्च किया जा सकता है।
कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने सेंट्रल विस्टा को आपराधिक बर्बादी करार दिया है। उन्होंने एक ट्वीट में लिखा कि लोगों की जिंदगी को केंद्र में रखिए, न कि नया घर पाने के लिए अपनी जिद।
विपक्ष इस मुद्दे पर लगातार सरकार को घेरता आया है। छत्तीसगढ़ में भी नई विधानसभा, राज्यपाल भवन और सीएम निवास का निर्माण कार्य जारी था। हाल ही में छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने उस पर भी रोक लगा दी है। भूपेश सरकार के इस कदम को सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट पर सरकार पर दबाव बढ़ाने के प्रयासों के तौर पर देखा जा रहा है।
क्या है सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट?
इस प्रोजेक्ट के तहत राष्ट्रपति भवन से लेकर इंडिया गेट तक कई इमारतों का रिडेवलपमेंट और कंस्ट्रक्शन शामिल है। इसमें एक नया संसद भवन जिसमें लोकसभा और राज्यसभा के लिए एक-एक बिल्डिंग होगी, मंत्रालय के कार्यालयों के लिए केंद्रीय सचिवालय, प्रधानमंत्री आवास, उप-राष्ट्रपति आवास का निर्माण किया जाना है। अभी जो संसद भवन है उसके सामने एक तिकोना नया संसद भवन बनाया जाएगा। करीब 15 एकड़ में प्रधानमंत्री के नए आवास का निर्माण भी होगा।
सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट की घोषणा सितंबर 2019 में की गई थी। 10 दिसंबर 2020 को प्रधानमंत्री ने प्रोजेक्ट की आधारशिला रखी थी। सरकार ने पूरे प्रोजेक्ट के लिए 20 हजार करोड़ का बजट रखा है। सेंट्रल विस्टा का काम नवंबर 2021 तक, नए संसद भवन का काम मार्च 2022 तक और केंद्रीय सचिवालय का काम मार्च 2024 तक पूरा करने की डेडलाइन रखी गई है।
सेंट्रल विस्टा किसे कहते हैं
सेंट्रल विस्टा राजपथ के दोनों तरफ के इलाके को कहते हैं। इसके तहत राष्ट्रपति भवन, संसद, नॉर्थ ब्लॉक, साउथ ब्लॉक, उपराष्ट्रपति आवास आता है। इसके अलावा नेशनल म्यूजियम, नेशनल आर्काइव्ज, इंदिरा गांधी नेशनल सेंटर फॉर आर्ट्स, उद्योग भवन, बीकानेर हाउस, हैदराबाद हाउस, निर्माण भवन और जवाहर भवन भी सेंट्रल विस्टा का ही हिस्सा हैं।
सरकार क्यों बना रही है नया भवन?
केंद्र सरकार का कहना है कि इस इलाके में जो पुरानी बिल्डिंग मौजूद हैं उनकी डिजाइन वर्षों पुरानी है। बदलती जरूरतों के साथ बिल्डिंग में अब पर्याप्त स्थान और सुविधाएं नहीं हैं।
सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट के विरोध के बीच केंद्रीय शहरी विकास मंत्री हरदीप पुरी कई बार सफाई दे चुके हैं। समाचार एजेंसी एएनआई को दिए एक बयान में पुरी ने कहा था कि “मौजूदा बिल्डिंग 93 साल पुरानी है जिसका निर्माण भारत की निर्वाचित सरकार ने नहीं किया था, इसका निर्माण उपनिवेश काल में हुआ था। जो नई बिल्डिंग बनेगी वो भारत की आकांक्षाओं को दर्शाएगी”।
सरकार का एक तर्क ये भी है कि 2026 में लोकसभा सीटों के परिसीमन के बाद सांसदों की संख्या बढ़ सकती है जिसके लिए संसद में ज्यादा जगह की जरूरत होगी। फिलहाल जो संसद भवन है उसमें केवल अभी के सांसदों के बैठने की ही जगह है। इसलिए भविष्य की जरूरतों को देखते हुए नए संसद भवन का निर्माण आवश्यक है।