सफलता के रास्ते उन्हीं के लिए खुलते हैं जो असफल होने पर भी मेहनत और प्रयास जारी रखते हैं। आराम परस्ती के लिए यह कहकर परिश्रम से पीछा छुड़ा लेते हैं कि दुनिया का दस्तूर है अमीर और अमीर हो रहे हैं गरीब और गरीब। वह कभी सफलता का स्वाद नहीं चख पाते हैं। परिश्रमी लोग ऐसे होते हैं जो आशा और आत्मविश्वास का सहारा लेकर अंधेरों को रोशन करने का दम रखते हैं। हमारी आज की कहानी भी ऐसी ही महिलाओं के एक समूह के बारे में है जिन्होंने प्रियदर्शनी महिला उद्योग की स्थापना कर के उसे एक ब्रांड में तब्दील कर दिया। 1996 में महाराष्ट्र के छोटे से शहर वरोरा के बैंक मैनेजर मोइन काजी से मिलने महिलाओं का एक समूह पहुंचा। वह महिलाएं बैंक से लोन लेना चाहती थी। मोइन काजी ने जब उनका उद्देश्य पूछा तो उन्होंने बताया कि वह इससे आगे लोगों को छोटे-छोटे लोन देंगी। इन लोगों के पास गिरवी रखने के लिए कोई सिक्योरिटी नहीं है रोजगार से आमदनी बहुत कम है और पहले लिए उधार का कोई रिकॉर्ड नहीं है लेकिन उन महिलाओं का कहना था कि जिन लोगों को वह पैसा देंगी उन पर उनका अच्छा दबदबा है इसलिए लोन का रुपया शत-प्रतिशत वापस आएगा। सब कुछ बैंक मैनेजर के ऊपर था उनका विश्वास जीतने पर ही महिलाओं को लोन मिल सकता था। यह उन महिलाओं की खुशकिस्मती थी कि मोइन काजी ने लोन देने के साथ-साथ जिला प्रशासन की मदद से महिलाओं के समूह को बीना रावत जो कि कॉमर्स में स्नातक है, की अध्यक्षता में महिला उद्योग के नाम से रजिस्टर्ड करवाया। दो सप्ताह में व्यापार योजना, लोन की औपचारिकताएं, स्टोरेज और गोदाम जैसी मूलभूत व्यवस्थाओं में भरपूर सहयोग और मार्गदर्शन दिया।
प्रियदर्शिनी के ब्रांड बनने का सफर यहीं से शुरू हुआ। एक वस्तु नहीं अनेकों वस्तुओं पर ध्यान केंद्रित कर सभी को प्रियदर्शनी ब्रांड के अंतर्गत लाने का फैसला लिया गया। छोटी मशीनों की औद्योगिक नगरी नागपुर में संस्था की मशीनरी को बनवाने का काम शुरू हुआ जैसे कि, पॉपकॉर्न बनाने की मशीन, जो पेट्रोलियम से चलती है।
ब्रांड का प्रचार करने के लिए प्रिंटर ने कैरी बैगस पर प्रियदर्शिनी के नाम और लोगो लगाने का काम उचित दामों पर मुहैया करा दिया। मोमबत्ती के निर्माता ने मुंबई से नई से नई डिजाइन के सांचे उन्हें दिए जिससे इलाके में लोगों के बीच प्रियदर्शिनी की मांग बढ़ने लगी।
मार्केटिंग की समस्या को दूर करने के लिए वरोरा की म्यूनिसिपल काउंसिल ने चॉक स्टिक, मोमबत्ती और झाड़ू का ऑर्डर अधिक से अधिक मात्रा में दिया। उधर स्थानीय दुकानदारों ने प्रियदर्शनी का माल अपनी दुकानों पर रखना शुरू कर दिया। महिलाओं की मेहनत बढ़ती पूंजी और विस्तृत सेवाओं के रूप में रंग ला रही थी। वर्मीसेली जवें, कपूर की टिकिया बनाना, बचे हुए समय में सिलाई के काम में कार्यरत रहकर महिलाएं निरंतर प्रगति कर रही थी।
स्कूल के बच्चों के लिए दिन के खाने की सप्लाई एक सुनहरे अवसर के रूप में प्रियदर्शिनी को मिली लेकिन खाने में मिल रही लगातार शिकायतों के कारण प्रियदर्शनी ने 1000 बच्चों के भोजन तक सीमित कर के विश्वासपात्र महिलाओं को कार्य के लिए चुना। पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह द्वारा प्रियदर्शनी महिला उद्योग को मिले सम्मान से एक प्रतिष्ठित समूह के रूप में प्रियदर्शनी की पहचान बननी शुरू हुई।
व्यापार की बारीकियों की जानकारी के बिना इन महिलाओं के समूह ने जिस आत्मविश्वास से व्यापार शुरू किया और लगातार सीखते हुए विकास की अनवरत सीढ़ियों पर चढ़ते हुए सफलता की जिस मंजिल को पाया है उसका मूल मंत्र कर्मशीलता और कड़ा परिश्रम है।