रिसर्च अपडेट / ओरल पोलियो वैक्सीन कोरोनावायरस काे कमजोर कर सकती है, ये इम्यूनिटी बढ़ाकर मौत का खतरा 3 गुना तक घटाती है
पोलियो की वैक्सीन कोरोनावायरस के संक्रमण से बचा सकती है। हाल ही में हुई एक स्टडी में ऐसा पाया गया है। मेडिकल जर्नल साइंस में प्रकाशित शोध के मुताबिक, ओरल पोलियो वैक्सीन (OPV) कोरोनावायरस को कमजोर करती है और मरीजों से दूसरों में संक्रमण फैलने का खतरा भी घटाती है। रिसर्च के दौरान ऐसे प्रमाण मिले हैं जिससे पुष्टि होती है कि वैक्सीन में मौजूद इंटरफेरान के कारण यह कोरोना के संक्रमण से बचाती है। साथ ही शरीर की इम्युनिटी भी बढ़ाती है।
मौत का खतरा 3 गुना कम करती है
रिसर्च में सामने आया था कि पहले से तैयार एक वायरस की वैक्सीन का असर दूसरे वायरस पर भी होता है। शोध के दौरान जब ओरल पोलियो वैक्सीन वॉलंटियर्स को दी गईं तो सामने आया कि यह इंफ्लूएंजा वायरस से होने वाली मौत का खतरा 3 तीन गुना तक कम हो गया।
एड्स के वायरस को खोजने वाले विशेषज्ञ वैक्सीन पर शोध कर रहे
कोरोना का संक्रमण रोकने लिए पोलियो वैक्सीन पर अमेरिका के कुछ जाने माने वायरस विशेषज्ञ रिसर्च कर रहे हैं उनमें डॉ. रॉबर्ट गैलो भी शामिल हैं। एचआईवी वायरस की खोज करने वाले वैज्ञानिक डॉ. रॉबर्ट का फोकस इन दिनों पोलियो वैक्सीन पर है।
अस्थायी तौर पर संक्रमण से बचाती है
अमेरिका के फूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन के एसोसिएट रिसर्च डायरेक्टर और वायरस विशेषज्ञ डॉ. कॉन्सटेन्टिन चुमाकोव के मुताबिक, ओरल पोलियो वैक्सीन एक लाइव वैक्सीन है। यह वैक्सीन तब तक शरीर में पहुंचने वाली बाहरी चीजों से लड़ती है जब तक इम्यून सिस्टम उस चीज के खिलाफ एंटीबॉडी विकसित न कर ले। यह अस्थायी तौर पर संक्रमण से बचाती है।
वायरस से लड़ने का यह तरीका बेहतर
डॉ. कॉन्सटेन्टिन का कहना है कि अस्थायी तौर पर रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाकर वायरस से लड़ने का यह तरीका बेहतर है। पोलियो की वैक्सीन पूरी तरह से इसलिए सुरक्षा नहीं दे सकती, क्योंकि यह कोरोनावायरस के लिए नहीं बनाई गई थी लेकिन अस्थायी तौर पर बचाव कर सकती है।
वायरल वैक्सीन दूसरे वायरस से मौत का खतरा घटाती है
डॉ. कॉन्सटेन्टिन के मुताबिक, पोलियो की वैक्सीन कोरोना से बचाने का पर्मानेंट इलाज नहीं है। अभी तीन तरह की ओरल पोलियावायरस वैक्सीन हैं जो इम्युनिटी को बढ़ा सकती हैं। डॉ. कॉन्सटेन्टिन ने इसे समझाने के लिए 1960 में हुई रिसर्च का हवाला दिया। उन्होंने बताया, रशिया में 1960 में तीन साल का ट्रायल चला था। जिसमें मेरी मां एक शोधकर्ता के तौर पर शामिल थीं।