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राजस्थान में विधानसभा सत्र बुलाने को लेकर सीएम-गवर्नर में मतभेद; क्या राज्यपाल ठुकरा सकता है किसी निर्वाचित सरकार का फैसला?

गहलोत ने 23 जुलाई की रात नोटिस के साथ सत्र बुलाने की मांग की, इसमें 6 आपत्तियां, सत्र किस तारीख से बुलाना है, इसका न कैबिनेट नोट में जिक्र था, न ही कैबिनेट ने इसका अनुमोदन किया 19 विधायकों की सदस्यता का मामला सुप्रीम कोर्ट में है, इस बारे में भी सरकार को नोटिस लेने के निर्देश, कोरोना को देखते हुए सत्र कैसे बुलाना है, इसकी भी डिटेल देने को कहा गया है

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राजस्थान का सियासी घटनाक्रम हर दिन नए रंग दिखा रहा है। आम तौर पर विधायकों के पार्टी छोड़ने पर मुख्यमंत्री विश्वास मत साबित करने से बचते दिखते हैं। लेकिन राजस्थान में जो हो रहा है, वह इसके उलट है। मुख्यमंत्री अशोक गहलोत चाहते हैं कि विधानसभा सत्र बुलाया जाए, लेकिन राज्यपाल कलराज मिश्र इसके खिलाफ हैं। डर है कि विधानसभा सत्र के दौरान कोरोनावायरस का संक्रमण बढ़ सकता है। इससे सवाल यह उठता है कि क्या कोई केंद्र सरकार की सिफारिश पर नियुक्त होने वाला राज्यपाल किसी राज्य की निर्वाचित सरकार के फैसले को पलट सकता है?

क्या है पूरा मामला?

  • यह पूरा विवाद सचिन पायलट की बगावत से शुरू हुआ। उनके साथ 18 विधायक हैं। कांग्रेस विधायक दल की बैठकों में इनके भाग न लेने पर पार्टी ने इनकी सदस्यता रद्द करने की अपील स्पीकर को की थी।
  • स्पीकर सीपी जोशी ने 19 विधायकों को कारण बताओ नोटिस भेजा तो वे हाईकोर्ट चले गए। हाईकोर्ट ने भी सभी पक्षों को सुना और कह दिया कि स्पीकर उन 19 विधायकों पर कोई कार्रवाई नहीं कर सकते।
  • इस बीच, स्पीकर जोशी सुप्रीम कोर्ट गए, जिसने हाईकोर्ट को फैसले पर रोक लगाने से इनकार कर दिया। हाईकोर्ट का फैसला आ चुका है, जिसका सोमवार को रिव्यू सुप्रीम कोर्ट में होगा यानी उसके बाद ही स्थिति स्पष्ट होगी।
  • दूसरी ओर, हाईकोर्ट का फैसला आते ही मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने विधानसभा सत्र बुलाने की जिद पकड़ ली। इस संबंध में राजभवन भेजे गए कैबिनेट नोट में राज्यपाल कलराज मिश्र ने छह आपत्तियां उठाई तो विधायकों के साथ पांच घंटे तक राजभवन में धरना दिया।

क्या आपत्ति है राज्यपाल को विधानसभा सत्र बुलाने से?

  • राज्यपाल कलराज मिश्र का कहना है कि संवैधानिक मर्यादा से ऊपर कोई नहीं है। किसी भी तरह दबाव की राजनीति नहीं होनी चाहिए। सरकार के पास बहुमत है तो सत्र बुलाने की क्या जरूरत है?
  • सरकार ने 23 जुलाई की रात जल्दबाजी में नोटिस के साथ सत्र बुलाने की मांग की। कानून विशेषज्ञों ने इसमें छह आपत्तियां निकाली हैं। इस पर राजभवन ने एक नोट भी जारी किया था।
  • इन आपत्तियों के मुताबिक, सत्र किस तारीख से बुलाना है, इसका न कैबिनेट नोट में जिक्र था, न ही कैबिनेट ने इसका अनुमोदन किया।
  • कैबिनेट नोट में कम समय में सूचना पर सत्र बुलाने का न तो कोई औचित्य बताया, न ही एजेंडा। सामान्य प्रक्रिया में सत्र बुलाने के लिए 21 दिन का नोटिस देना जरूरी होता है।
  • राज्यपाल कलराज मिश्र ने सरकार को यह भी तय करने के निर्देश दिए हैं कि सभी विधायकों की स्वतंत्रता और उनकी स्वतंत्र आवाजाही भी तय की जाए, जो हर बार दिया जाता है।
  • 19 विधायकों की सदस्यता का मामला सुप्रीम कोर्ट में है। इस बारे में भी सरकार को नोटिस लेने के निर्देश दिए हैं। कोरोना को देखते हुए सत्र कैसे बुलाना है, इसकी भी डिटेल देने को कहा है।

राज्यपाल की आपत्ति पर गहलोत सरकार का क्या रुख है?

  • मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने शुक्रवार देर रात कैबिनेट की बैठक की। अब खबरें आ रही हैं कि सरकार ने 31 जुलाई से विधानसभा सत्र बुलाने का दूसरा नोट राजभवन भेजा है।
  • दूसरी ओर, मुख्यमंत्री यह माहौल बनाना चाहते हैं कि भाजपा सरकार के खिलाफ साजिश कर रही है। इसी वजह से राज्यपाल पर विधानसभा सत्र न बुलाने का दबाव है।
  • यह प्रचारित करने के लिए विधायकों ने राजभवन में धरना दिया। विधानसभा का सत्र जल्द बुलाने की मांग की। धमकी भी दी कि यदि पीएम निवास पर धरना देना पड़ा तो उसके लिए भी तैयार हैं।

उधर, सचिन पायलट समर्थकों और भाजपा का क्या रुख है?

  • भाजपा के प्रदेशाध्यक्ष सतीश पूनिया के नेतृत्व में 13 नेताओं का एक दल शनिवार शाम को राज्यपाल से मिला। उसके बाद कहा कि मुख्यमंत्री राज्यपाल को धमका रहे हैं, यह गलत बात है।
  • वहीं, सचिन पायलट ने गहलोत और कांग्रेस के अन्य नेताओं के उकसाने वाले बयानों का भी अब तक संयम के साथ जवाब दिया है। उनके समर्थकों ने स्पष्ट किया कि वे बंधक नहीं हैं।
  • फिलहाल, मामला सुप्रीम कोर्ट में है। लिहाजा, लगता नहीं कि भाजपा और पायलट समर्थक विधायक सुप्रीम कोर्ट के फैसले से पहले अपना रुख स्पष्ट करेंगे। सोमवार बाद ही नए समीकरण बनेंगे।

अब मुद्दे की बात, राज्यपाल क्या निर्वाचित सरकार के फैसले पलट सकते हैं?

  • नहीं। तमाम सीनियर एडवोकेट और संविधान एक्सपर्ट कह रहे हैं कि राज्यपाल को संविधान में इतनी शक्ति नहीं है कि वह किसी भी निर्वाचित सरकार के फैसले को खारिज करें।
  • सुप्रीम कोर्ट के पुराने फैसले भी यही इशारा कर रहे हैं कि राज्यपाल को देर-सबेर विधानसभा सत्र बुलाना ही होगा। गहलोत सरकार ने भी इसी वजह से दूसरा कैबिनेट नोट तैयार कर लिया है।

…तो क्या राज्यपाल को कोई अधिकार नहीं है? संविधान क्या कहता है?

  • विधानसभा सत्र बुलाने, उसका अवसान करने और सदन को भंग करने के राज्यपाल के अधिकारों का जिक्र संविधान के दो प्रावधानों में है।
  • आर्टिकल 174 के तहत राज्यपाल निर्धारित वक्त और स्थान पर विधानसभा सत्र बुला सकता है। आर्टिकल 174 (2) (ए) कहता है कि सरकार समय-समय पर सदन का अवसान कर सकते हैं। वहीं, आर्टिकल 174 (2) (बी) राज्यपाल को विधानसभा भंग करने का अधिकार देता है।
  • दूसरी ओर, आर्टिकल 163 कहता है कि राज्यपाल मंत्रिपरिषद की सलाह पर काम करेगा। लेकिन यदि संविधान के लिए आवश्यक है तो वह बिना सलाह के भी अपने विवेक पर फैसले ले सकता है।
  • मद्रास हाईकोर्ट ने 1973 में राज्यपाल के विवेकाधिकार से जुड़े प्रश्न पर कहा था कि राज्यपाल मंत्रिपरिषद की सलाह और सुझाव पर काम करने को बाध्य है।

सुप्रीम कोर्ट राज्यपाल के विवेकाधिकार पर क्या कहता है?

  • इस संबंध में 2016 में नबम रेबिया केस में सुप्रीम कोर्ट के फैसले से अरुणाचल में संवैधानिक संकट खड़ा हो गया था। इसमें कहा गया था कि राज्यपाल सिर्फ मंत्रिपरिषद की सलाह पर ही काम करेगा।
  • अरुणाचल में 20 बागी कांग्रेस विधायकों, 11 भाजपा विधायकों और एक निर्दलीय के संयुक्त अनुरोध पर राज्यपाल ने 14 जनवरी 2016 के बजाय 15 दिसंबर 2015 को ही सत्र बुला लिया था।
  • यह विधायक स्पीकर और सरकार से खुश नहीं थे। उस समय रेबिया ही अरुणाचल प्रदेश के स्पीकर थे। तब उन्होंने राज्यपाल के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका लगाई थी।
  • इस केस में कोर्ट ने यह भी कहा था कि यदि राज्यपाल के पास यह भरोसा करने के कारण है कि मंत्रिपरिषद सदन का विश्वास खो चुकी है तो फ्लोर टेस्ट का आदेश दिया जा सकता है।

यह तो हो गई कानूनी बातें, कोरोना के डरे के बाद भी गहलोत क्यों अड़े हैं?

  • दरअसल, कहानी शुरू हुई थी गहलोत और पायलट के टकराव से। गहलोत जनता के सामने साबित करना चाहते हैं कि सचिन पायलट कमजोर नेता हैं और वह ही राज्य में कांग्रेस के बडे़ नेता हैं।
  • दूसरा, पायलट समेत 19 विधायकों को अयोग्य ठहराने की एक कोशिश नाकाम रही है। अब सत्र होता है तो पायलट खेमे को व्हिप का पालन करना होगा, यानी गहलोत खेमे को दूसरा मौका मिलेगा।
  • वैसे, गहलोत सरकार पर फिलहाल कोई संकट नहीं दिख रहा। सचिन पायलट गुट के 19 विधायकों को छोड़ भी दें तो भी इस समय गहलोत के साथ 200 के सदन में 102 विधायक दिख रहे हैं।

राजस्थान में सियासी ड्रामा :गहलोत ने विधानसभा सत्र के लिए राज्यपाल को नया प्रस्ताव भेजा, पर इसमें फ्लोर टेस्ट का जिक्र नहीं, कांग्रेस का जनता से सवाल- लोकतंत्र पर भाजपा का हमला स्वीकार है?

जयपुर/नई दिल्ली3 घंटे पहले
  • मुख्यमंत्री गहलोत होटल में विधायकों से फिर मिले, प्रदेश भाजपा अध्यक्ष पूनिया ने कहा- कुर्सी की भूख ने आपको लोभी बना दिया
  • राज्यपाल की ओर से विधानसभा सत्र न बुलाने पर कल कांग्रेस देशभर में राज्यभवनों का घेराव करेगी

राजस्थान में सियासी उठापटक का आज 17वां दिन है। मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने 31 जुलाई को विधानसभा सत्र बुलाने के लिए राज्यपाल को संशोधित प्रस्ताव भेज दिया है। इसे 7 दिन के नोटिस के साथ भेजा गया है। सूत्रों ने बताया कि इस प्रस्ताव में फ्लोर टेस्ट का जिक्र नहीं है।

वहीं, कांग्रेस ने सोशल मीडिया पर स्पीकअप फॉर डेमोक्रेसी अभियान शुरू किया है। कांग्रेस नेता अजय माकन ने रविवार दोपहर जयपुर में प्रेस कॉन्फ्रेंस की और कहा कि प्रधानमंत्री मोदी कोरोना से लड़ने की बजाय कांग्रेस से लड़ रहे हैं। बहुमत की हत्या हो रही है।

कांग्रेस ने जनता के सामने 5 सवाल रखे
1. 
क्या देश को प्रजातंत्र और संविधान पर भाजपा का हमला स्वीकार है?
2. क्या बहुमत और जनमत का फैसला राजस्थान की 8 करोड़ की जनता को वोट से होगा या दिल्ली के हुकमरानों के सत्ता बल और धन बल से होगा?
3. क्या प्रधानमंत्री और भारत सरकार सत्ता हासिल करने के लिए संवैधानिक परंपराओं को रौंद सकते हैं?
4. क्या बहुमत से चुनी राजस्थान सरकार द्वारा बुलाए गए विधानसभा सत्र को राज्यपाल इजाजत देने से इनकार कर संविधान की अवहेलना कर सकते हैं?
5. क्या राज्यपाल विधायिका के आधार क्षेत्र में असंवैधानिक तौर पर दखलअंदाजी कर सकते हैं? क्या इससे विधायिका और न्यायपालिका में टकराव की स्थिति पैदा नहीं होगी?

मोदी और भाजपा पर 4 आरोप
1. मोदी सरकार और भाजपा ने प्रजातंत्र पर हमला बोल रखा है। बहुमत की हत्या हो रही है। संविधान को भाजपा द्वारा बेहरमी से रौंदा जा रहा है। राजस्थान की बहुमत वाली कांग्रेस सरकार में हमारे बहादुर विधायक जो किसी लालच में नहीं आ रहे, उनके समर्थन में कांग्रेस के कार्यकर्ता कल प्रदर्शन करेंगे।
2. आजादी के बाद से भारतीय लोकतंत्र के अंदर दो घटनाएं ऐसी हुई हैं, जो इतिहास में कभी नहीं हुईं। लोकतंत्र का अपहरण हो गया है। प्रजातंत्र का कत्ल हो रहा है। पहली घटना में लोकतंत्रिक इतिहास में विधानसभा अध्यक्ष के नोटिस को आज तक रोका नहीं गया। विधानसभा के अध्यक्ष के निर्णय को कोर्ट जरूर एग्जामिन करती है। निर्णय देने से पहले की प्रक्रिया को कभी रोका नहीं गया, जो राजस्थान में पहली बार हुआ है। दूसरी घटना- सरकार आज विधानसभा का सत्र बुलाना चाहती है, उसे रोका जा रहा है। ऐसा पहली बार होगा कि चुनी हुई सरकार के कहने के बावजूद अब तक सत्र नहीं बुला रहे हैं।
3. राजस्थान में लोकतांत्रिक प्रक्रिया से चुनी सरकार को गिराने के षड्यंत्र से ये साफ है कि ये ताकतें प्रजातंत्र को दिल्ली दरबार की दासी बनाना चाहती हैं। लोकतंत्र को अपने हाथ की कठपुतली बनाना चाह रही हैं। बहुमत की सरेआम हत्या हो रही है। जनमत को कुचल कर भाजपा की काल कोठरी के पीछे डाल दिया गया है।
4. संवैधानिक परंपराओं को बेरहमी से रौंदा जा रहा है। न्यायपालिका से न्याय की उम्मीद खत्म हो गई है। राज्यपाल जैसे संवैधानिक पदों पर बैठे व्यक्ति संविधान की रक्षा करने में असहाय नजर आते हैं।

कांग्रेस की अपील
कल पूरे देश में राजस्थान में लोकतंत्र बचाने के लिए प्रदर्शन किया जाएगा। हमारे विधायकों के समर्थन में हर राज्य के राजभवन के बाहर प्रदर्शन करें। राजस्थान राजभवन को कहा जाए कि जल्द से जल्द विधानसभा सत्र बुलाया जाए।

स्पीकअप फॉर डेमोक्रेसी अभियान के संबंध में कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने ट्विटर पर एक वीडियो पोस्ट किया है। इसके साथ उन्होंने लोकतंत्र की रक्षा के लिए एकजुट होकर आवाज उठाने की अपील की है। वीडियो में कहा गया है कि भाजपा लोकतंत्र को खत्म कर रही है। राजस्थान में सरकार को गिराने की कोशिश की जा रही है। ऐसा ही उन्होंने मध्यप्रदेश में किया। हम राजस्थान विधानसभा का सत्र बुलाने की मांग करते हैं।

अपडेट्स…

  • मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने होटल फेयरमोंट में सुबह योग क्लास के बाद विधायकों के साथ बैठक की। गहलोत यहां रात 11:30 बजे ही पहुंच गए थे। गहलोत दोपहर करीब 12 बजे के करीब होटल से अपने घर चले गए।
  • राजस्थान प्रदेश कांग्रेस कमेटी के चीफ गोविंद सिंह डोटसरा ने कांग्रेस कार्यकर्ताओं से राज्य में लोकतंत्र को बचाने के लिये स्पीक अप फॉर डेमोक्रेसी अभियान से जुड़ने की अपील की है।
  • प्रदेश भाजपा अध्यक्ष सतीश पूनिया ने एक बार फिर गहलोत सरकार पर निशाना साथा। उन्होंने लिखा कि जनता सब देख रही है, ईश्वर भी साक्षी है। आपका ईमान कैसे गवाही दे रहा है, कुर्सी की भूख ने आपको लोभी बना दिया है। कोरोना ही नहीं अपराध भी तेजी से बढ़ रहे हैं, क्या बाड़े में बैठे रहना ही लोकतंत्र है? शासन है? कांग्रेस बताए कब बाड़े से निकलेगी?
  • राजस्थान कांग्रेस के प्रभारी अविनाश पांडे ने कहा- भाजपा हमारी सरकार को अस्थिर करने की कोशिश कर रही है। राज्यपाल ने विधानसभा सत्र बुलाने के मुख्यमंत्री के अनुरोध की अनदेखी की है। इससे पता चलता है कि केंद्र सरकार संवैधानिक संस्थाओं का दुरुपयोग कर रही है।
  • कांग्रेस ने 27 जुलाई को देशभर में राजभवन का घेराव करेगी। इस अभियान को ‘प्रजातंत्र के लिए बोलो’ नाम दिया गया है।

दिनभर गहलोत के राज्यपाल से मिलने की चर्चा रही

कल देर रात तक चर्चा रही कि गहलोत राज्यपाल कलराज मिश्र से मिलेंगे, लेकिन यह नहीं हुआ। देर शाम भाजपा के 13 सदस्यों का दल जरूर राजभवन पहुंचा। इस दौरान उन्होंने राज्यपाल को ज्ञापन सौंपा जिसमें राजभवन घेराव वाले बयान पर मुख्यमंत्री के खिलाफ कार्रवाई की मांग की गई।

पूनिया ने कहा- गहलोत का बयान गलत, सजा हो सकती है
शनिवार को राज्यपाल से मुलाकात के बाद सतीश पूनिया ने कहा- राज्य के मुखिया ये चेतावनी देते हैं कि 8 करोड़ जनता राज्यपाल को घेर लेगी। यह गलत है। यह बयान उन्हें (मुख्यमंत्री गहलोत को) आईपीसी की धारा 124 के तहत सजा दिला सकता है। भाजपा के दल ने मुख्यमंत्री के बयान के संबंध में राज्यपाल को ज्ञापन भी सौंपा है।

मुख्यमंत्री को इस्तीफा दे देना चाहिए
नेता विपक्ष गुलाब चंद कटारिया ने कहा कि मुख्यमंत्री राज्य के मुखिया हैं। वे खुद कह रहे हैं कि कानून-व्यवस्था की स्थिति के उल्लंघन के लिए वे जिम्मेदार नहीं होंगे। वे जिम्मेदार नहीं होंगे, तो कौन होगा? उन्हें ऐसी भाषा का उपयोग करने के लिए इस्तीफा देना चाहिए।

5 सवालों से समझिए… राजस्थान की सियासत की पूरी तस्वीर
1. हाईकोर्ट के फैसले का पायलट खेमे पर क्या असर होगा?

जवाब: हाईकोर्ट ने 19 विधायकों को नोटिस मामले में यथास्थिति को कहा है। मायने यह कि अभी उनकी सदस्यता रद्द नहीं होगी। आदेश का सोमवार को सुप्रीम कोर्ट रिव्यू करेगा।
2. क्या गहलोत सरकार के पास बहुमत है?
जवाब: गहलोत सरकार ने राजभवन ले जाकर विधायकों की परेड करवाई। इसमें 102 का आंकड़ा दिया है। इनमें कांग्रेस के 88, निर्दलीय 10, बीटीपी के 2, सीपीएम और आरएलडी का एक-एक विधायक है। यदि इतने विधायक फ्लोर टेस्ट में सरकार का साथ देते हैं तो सरकार बहुमत हासिल कर लेगी। यदि दो-पांच विधायक भी इधर-उधर हुए तो सरकार खतरे में है।
3. क्या राज्यपाल सोमवार को विशेष सत्र बुलाएंगे?
जवाब: राज्यपाल ने शुक्रवार रात कैबिनेट से कोरोना का हवाला देने और जल्दबाजी में विशेष सत्र बुलाने जैसे 6 सवाल पूछे थे। इससे लगता है कि राज्यपाल सोमवार को या इमरजेंसी में सत्र बुलाने की अनुमति नहीं देंगे। यदि कैबिनेट ने दूसरी बार राजभवन को प्रस्ताव भेजा तो नियमानुसार राज्यपाल मना भी नहीं कर सकते। लेकिन तुरंत सत्र की गुंजाइश नहीं लग रही है।
4. आखिर सत्र क्यों बुलाना चाहते हैं गहलोत?
जवाब: सत्र बुलाना तो बहाना है। मंशा बिल लाकर व्हिप जारी करना है। जो बागी बिल के खिलाफ वोट देंगे उनकी सदस्यता रद्द होगी। इसीलिए राज्यपाल को जो पत्र दिया, उसमें फ्लोर टेस्ट का उल्लेख नहीं। 19 की विधायकी गई तो बहुमत को 92 विधायक चाहिए जो सरकार के पास हैं।
5. भाजपा की सत्र बुलाने में रुचि क्यों नहीं है?
जवाब: भाजपा नहीं चाहती कि सरकार सत्र बुलाकर पायलट गुट पर एक्शन ले। वह चाहती है कि 19 विधायकों की सदस्यता बची रहे और जरूरत पड़े तो सरकार को हिला सकें।

सियासी संग्राम से पहले विधानसभा में स्थिति
107 कांग्रेस
…और अब ये हालात

गहलोत के पक्ष में: 88 कांग्रेस, 10 निर्दलीय, 2 बीटीपी, 1 आरएलडी, 1 माकपा यानी कुल 102
पायलट गुट: 19 बागी कांग्रेस, 3 निर्दलीय। कुल 22
भाजपा प्लस: 72 भाजपा, 3 आरएलपी। कुल 75
माकपा 1 : गिरधारी मईया फिलहाल तटस्थ।

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