मानसून आने वाला है:दो तूफान गुजरने के दो दिन बाद आएगा मानसून, समय से दो दिन पहले 31 मई को केरल पहुंचेगा
दो चक्रवाती तूफान ताऊ ते और यास गुजरने के बाद अब मानसून का इंतजार है। मानसून की उत्तरी सीमा कोमोरिन सागर (कन्याकुमारी के पास) तक पहुंच गई है। मौसम विभाग का अनुमान है कि यह अगले 2 से 3 दिन में केरल के तट पर दस्तक दे देगा। पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय के सचिव ने कहा है कि मानसून 31 मई को केरल के तट पर पहुंच जाएगा।
केरल में मानसून के दस्तक देने की सामान्य तारीख वैसे एक जून है, लेकिन मौसम विभाग ने इसके 31 मई को ही दस्तक देने की भविष्यवाणी करते हुए 4 दिन प्लस-माइनस होने की संभावना भी जताई थी।
अभी सामान्य गति से चल रहा है मानसून
निजी मौसम एजेंसी स्काईमेट ने मानसून के दस्तक देने का दो दिन आगे-पीछे की गुंजाइश के साथ 30 मई का अनुमान लगाया था। मानसून अपनी सामान्य गति से आगे बढ़ रहा है। अंडमान-निकोबार द्वीप समूह में अपनी तय तारीख 21 मई को दस्तक देने के बाद यह लगातार उत्तर-पश्चिमी दिशा में आगे बढ़ रहा है। यह 24 मई को श्रीलंका के दक्षिणी तटों तक पहुंच चुका था और तीन दिन में श्रीलंका के उत्तरी सिरे के करीब पहुंच चुका है।
गुरुवार को मानसून मालदीव को भी पार कर चुका है। मानसून की उत्तरी सीमा केरल के तट से अभी करीब 200 किलोमीटर दूर है। ताऊ ते तूफान के गुजरने के दौरान और उसके बाद भी केरल में भारी बारिश हुई है। इस हफ्ते की शुरुआत से ही केरल के तटीय इलाकों में भारी बारिश हो रही थी, लेकिन गुरुवार से इसमें कमी आने लगी है।
बंगाल की खाड़ी में आए यास तूफान के चलते भी मानसून के जल्द पहुंचने यानी 27-29 मई तक ही आने की संभावना जताई जा रही थी, लेकिन अब 30 मई से एक जून के बीच ही मानसून के दस्तक देने के आसार हैं। मौसम विभाग मानसून की प्रगति पर नजर बनाए हुए है।
इंडियन मैजिक डिपार्टमेंट:दुनिया के 10% चक्रवात भारतीय तटों पर आते हैं, यहां देश की 40% आबादी; जानिए तूफानों से कैसे बचाता है मौसम विभाग
हाल ही में आए ताऊ ते तूफान को लेकर अलर्टनेस और तैयारी ने सैकड़ों भारतीयों की जान बचाई। इसी तरह अब यास को लेकर तैयारियां युद्ध स्तर पर जारी हैं। भारतीय मौसम विभाग (IMD) का इसमें सबसे बड़ा रोल है। इसने अपने सिस्टम को अपग्रेड कर निगरानी और चेतावनी को पुख्ता और भरोसेमंद बनाया है। इससे 7500 किलोमीटर लंबी भारतीय तट रेखा के पास रहने वाली देश की करीब 40% आबादी की हिफाजत के लिए वक्त रहते कदम उठाए जाते हैं। जानिए इंडियन मीटियरोलॉजिकल डिपार्टमेंट के इंडियन मैजिक डिपार्टमेंट बनने की वजहें…
मौसम विज्ञान के क्षेत्र में आत्मनिर्भर बना भारत
एक समय था, जब भारत तकनीक और मौसम विज्ञान की दुनिया में पिछड़ा हुआ माना जाता था। उसे दूसरे देशों पर निर्भर रहना पड़ता था। आज हालात बदल चुके हैं। अब दुनिया टेक्निकल एक्सपर्ट्स के लिए भारत की ओर देखती है। केंद्र सरकार, मौसम विभाग और साइंटिस्ट्स ने कई साल मेहनत करके इस तस्वीर को बदला है।
पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय (MOES) और IMD ने लेटेस्ट तकनीक को अपनाया। मॉर्डनाइजेशन प्रोग्राम चलाया। इसके अलावा केंद्र ने भी इन विभागों के लिए अपनी पॉलिसी को सुधारा। इसके चलते तूफानों की निगरानी और अलर्ट भेजने के सिस्टम में बड़ा सुधार हुआ है। यही वजह है कि तैयारियां काफी पहले से और पुख्ता हो रही हैं। इससे तूफानों से होने वाला नुकसान काफी हद तक घट गया है।
हर साल 2-3 खतरनाक तूफानों का सामना
भारत की तट रेखा 7 हजार 516 किलोमीटर लंबी है। इससे सटे इलाके हर साल दुनिया के करीब 10% तूफानों का सामना करते हैं। इस लिहाज से ये सबसे ज्यादा चक्रवात प्रभावित क्षेत्रों में आता है। बंगाल की खाड़ी और अरब सागर में हर साल लगभग 5-6 तूफान आते हैं और इनमें से 2-3 तूफान बेहद खतरनाक रूप ले लेते हैं।
IMD का मॉनिटरिंग और अलर्ट सिस्टम
- सरकार ने IMD को चक्रवातों के पूर्वानुमान लगाने के लिए रडार दिए हैं। पूर्वी तटों पर कोलकाता, पारादीप, विशाखापट्टनम, मछलीपट्टनम, मद्रास और कराईकल में ये रडार हैं। पश्चिमी तट में कोचीन, गोवा, मुंबई और भुज में इन्हें लगाया गया है। इन रडारों के जरिए तूफानों पर नजर रखी जाती है।
- सैटेलाइट्स भी इसमें मदद करते हैं। सैटेलाइट्स पिक्चर रिसीविंग (APT) टेक्नोलॉजी से चक्रवातों की तस्वीरें दिल्ली, मुंबई, पुणे, मद्रास, विशाखापट्टनम, कोलकाता और गुवाहाटी में भेजी जाती हैं।
- इन तस्वीरों को दिल्ली में एडवांस सिस्टम के जरिए क्लियर किया जाता है। रेडियो-मीटर ग्राउंड रिसीविंग इक्विपमेंट के जरिए तस्वीरों का रेजोल्यूशन काफी हाई हो जाता है। ये उपकरण दिल्ली में 1982 से है।
- इसके अलावा सैटेलाइट इनसेट-LB के मौसम से जुड़े प्रोग्राम शुरू होने के बाद तूफानों की ट्रैकिंग और उनके पूर्वानुमान में ज्यादा सुधार हुआ है।
- मौसम विज्ञान डेटा उपयोग केंद्र यानी MDUC देशभर के मौसम केंद्रों को हर घंटे की तस्वीरें भेजता है। चक्रवात की तस्वीरों से मौसम के अनुमान में मदद मिलती है। रेडियो के जरिए ये फोटो IMD के सभी सेंटर्स पर भेजे जाते हैं।
- कोलकाता और चेन्नई में क्षेत्र चक्रवात चेतावनी केंद्र (ACWC), भुवनेश्वर और विशाखापट्टनम में चक्रवात चेतावनी केंद्र (CWC) पर चक्रवातों पर नजर रखने की जिम्मेदारी है। मुंबई में ACWC और अहमदाबाद में CWC अरब सागर में निगरानी संभालते हैं।
- रडारों, सैटेलाइट्स और तस्वीरों के इस पूरे सिस्टम के जरिए तूफानों के बारे में पूर्वानुमान लगाए जाते हैं और फिर प्रभावित इलाकों में इसी हिसाब से अलर्ट भेजा जाता है।
4 पॉइंट पर काम, जिससे IMD ने जान-माल का नुकसान कम किया
- भारत तूफान, बाढ़, सूखा, भूकंप, भूस्खलन, लू, शीत लहर, बवंडर, भारी बारिश जैसी कई प्राकृतिक आपदाओं का सामना करता है। IMD ने इनके लिए जोखिम प्रबंधन का प्रोग्राम तैयार किया है।
- प्रोग्राम 4 चरणों का है। इनमें पहला है खतरा और संसाधनों की कमियों का रिव्यू, दूसरा तैयारियां और प्लान, तीसरा पूर्व चेतावनी और चौथा है आपदा को रोकने के लिए कदम उठाना।
- IMD किसी तूफान की भयावहता और उसके नेचर का सटीक रिव्यू करता है। इसे सही समय पर प्रभावित इलाकों को भेजकर उन्हें अलर्ट किया जाता है। NDRF और SDRF जैसी एजेंसीज के साथ सही कोऑर्डिनेशन से तैयारियां भी बेहतर होती हैं।
- इसके अलावा अलर्ट के जरिए लोगों को भी ऐहतियाती कदम उठाने की सलाह दी जाती है। इन सभी तरीकों से जान-माल का नुकसान काफी कम हो जाता है।
13 पड़ोसी देशों की मदद करता है भारत, दुनिया भी मुरीद
IMD ने मौसम संबंधी अनुमानों और अपडेट्स से 13 पड़ोसी देशों की प्राकृतिक आपदाओं के वक्त मदद की है। इनमें सबसे ज्यादा फायदा बांग्लादेश और सिंगापुर को हुआ है। संयुक्त राष्ट्र की एजेंसी विश्व मौसम विज्ञान संगठन यानी WMO ने अपनी चिट्ठी में IMD की इन कोशिशों की तारीफ की थी।
पिछले साल अम्फान और फानी तूफान के दौरान भी IMD के सटीक पूर्वानुमानों से नुकसान काफी कम हुआ। WMO ने अम्फान पर IMD की अपडेट को बहुत बेहतरीन काम माना था। WMO ने कहा था कि तूफान की उत्पत्ति, ट्रैक, तीव्रता, लैंडफॉल पॉइंट और समय की सटीक भविष्यवाणी से बचाव में काफी मदद मिली है। आपदाओं को संभालने में भारत की परफॉर्मेंस तारीफ के काबिल है।
मार्च से मई तक आते हैं सबसे ज्यादा तूफान
- हिंद महासागर के क्षेत्र में पड़ने वाले देश, भारत, श्रीलंका और बांग्लादेश में मार्च से मई तक सबसे ज्यादा तूफान आते हैं। इस सीजन को प्री-मानसून साइक्लोन सीजन भी कहते हैं। सितंबर से नवंबर के आखिर में भी तूफान आते हैं।
- इस बार प्री-मानसून साइक्लोन सीजन शुरुआत में काफी शांत रहा था, लेकिन पिछले 10 दिनों में 2 तूफान आए हैं। पिछले दो दशकों में सिर्फ 2005, 2011 और 2012 ऐसे साल हुए हैं, जब कोई चक्रवात/तूफान रिकॉर्ड नहीं किया गया।
- प्री-मानसून साइक्लोन सीजन में समुद्र का तापमान बढ़ता है। 26 डिग्री से ज्यादा के तापमान में पानी भाप बनकर सतह से ऊपर उठता है और कम दबाव के क्षेत्र में तब्दील होता है। समुद्री सतह के ऊपर हल्की हवाओं से ये लो प्रेशर एरिया तूफान में तब्दील हो जाता है।
- तूफानों के माध्यम से समुद्र खुद को ठंडा करता है। जलवायु परिवर्तन के कारण समुद्रों का तापमान बढ़ रहा है, यही कारण है कि पिछले कुछ साल में तूफानों की संख्या बढ़ी है।