फ्लू और कोरोना के बारीक अंतर को जानें:87% कोरोना संक्रमितों में सूंघने और स्वाद की क्षमता गायब हो जाती है, कोविड-19 के 4 नए लक्षण सीजनल फ्लू से एकदम अलग हैं
शरीर दर्द, खांसी, छींक और गले में खरास कोरोना और फ्लू दोनों के लक्षण हैं, पर इनमें भी अंतर कर सकते हैं छोटे बच्चों में कोरोना के लक्षण पूरे शरीर में सूजन आना, होंठ और मुंह का नीला हो जाना भी हो सकता है
मौसम बदल रहा है, गर्मी जा रही है और सर्दी आ रही है। ऐसे में मौसमी बुखार और फ्लू होने की संभावनाएं बढ़ जाती हैं। नॉर्मल फ्लू और कोरोना में बहुत ज्यादा अंतर है, लेकिन समान्य लक्षण एक जैसे ही दिखते हैं। इसलिए लोग कन्फ्यूजन में हैं और दोनों में अंतर करने में गलती कर बैठ रहे हैं। एक्सपर्ट्स के मुताबिक दोनों में कुछ बारीक बातों के जरिए अंतर किया जा सकता है। वहीं, एक अध्ययन के मुताबिक बच्चों में कोरोना के लक्षण बड़ों की तुलना में अलग भी हो सकते हैं।
कोरोना और फ्लू के लक्षणों में क्या बारीक अंतर हैं?
इसे समझने के लिए आपको कोरोना के लक्षणों के साथ उसकी बारीकियों को भी ध्यान से समझना होगा, क्योंकि नॉर्मल फ्लू और कोरोना के लक्षण लगभग एक जैसे हैं। इसे 3 बातों के जरिए समझ सकते हैं।
- अगर आप कोरोना के चपेट में आ गए हैं तो आपको तेज बुखार आएगा, साथ ही आपके जोड़ों मे दर्द भी महसूस होगा।
- नॉर्मल फ्लू में सिर्फ पूरे शरीर में दर्द होता है, बुखार भी हल्का होता है।कोरोना में सूखी खांसी आती है, जबकि फ्लू में कफ के साथ खांसी आती है। लेकिन कमजोरी दोनों में महसूस होगी।
- कोरोना का सबसे अलग लक्षण है कि उसके चपेट में आए शख्स की सूंघने और टेस्ट करने का सेंस चला जाता है। यानी उसे न तो किसी चीज की स्मेल आएगी और न ही कुछ खाने पर टेस्ट आएगा वहीं, नॉर्मल फ्लू में सिर्फ मुंह का टेस्ट खराब होता है और सूंघने का सेंस डैमेज नहीं होता।
क्या सभी कोरोना मरीजों की स्मेल चली जाती है ?
- ऐसा जरूरी नहीं की सभी कोरोना मरीजों की स्मेल और टेस्ट गायब हो जाए। अमेरिका में हुई एक रिसर्च में पाया गया है कि 87% कोरोना पीड़ित की सूंघने और टेस्ट करने की क्षमता गायब होती है।
एक्सपर्ट्स का कहना है कोरोना संक्रमितों में कई बार ऐसे लक्षण भी आते हैं, जो एकदम से नए तरह के हैं। इनमें सीने में दर्द होना, होंठ का नीला पड़ जाना जैसी बातें शामिल हैं। इसके अलावा कई बार आप कुछ बातें भूलना शुरू कर देते हैं। जैसे- आप कोई चीज करने वाले हों और आप भूल गए या कुछ कहने वाले हों और भूल गए। सामान्य तौर पर ऐसा हमारे साथ कभी-कभी होता है, पर कोरोना में यह कई बार होता है।
बच्चों में कोरोना के लक्षण को कैसे पहचानें?
0 से 5 साल तक के बच्चे चूंकि बोल नहीं पाते हैं और न ही अपनी फीलिंग को शेयर कर सकते हैं, इसलिए वो वयस्कों जैसा नहीं बता सकते हैं कि उन्हें क्या हो रहा है। इसलिए पैरेंट्स को इस बात पर ध्यान देना होगा कि जो लक्षण उनमें दिख रहे हैं, वे फ्लू के हैं या फिर कोरोना के। बच्चों में कुछ नए तरह के लक्षण भी दिखाई दे रहे हैं।
- अगर बच्चे को सांस लेने में तकलीफ हो रही है। उसके होंठ नीले पड़ रहे हैं तो तुरंत डॉक्टर के पास ले जाएं। इसके अलावा यदि बच्चे को बुखार आ रहा है और वह सोकर उठने के बाद कुछ देर तक कन्फ्यूज रह रहा है या ठीक तरीके से रिस्पॉन्स नहीं कर पा रहा है तो उसे डॉक्टर के पास ले जाना चाहिए।
- कोरोना के बाद कुछ बच्चों में ‘मल्टी-सिस्टम इन्फ्लेमेटरी सिंड्रोम’ के लक्षण भी दिखाई दे रहे हैं, यानी बच्चों के शरीर में सूजन आ जाती है और बुखार भी आ सकता है। लेकिन ऐसा बहुत रेयर होता है। इस स्थिति में भी आपको तुरंत डॉक्टर की सलाह लेनी चाहिए।
कोरोना और फ्लू बचने के लिए क्या सावधानी रखें?
- दिन भर में बार-बार हाथ धोएं।
- एक-दूसरे से दूरी बनाकर रखें।
- जितना ज्यादा हो सके मास्क पहनें।
डॉक्टरों का कहना है कि लोगों को पल्स ऑक्सीमीटर और खून में ऑक्सीजन की मात्रा को जानने लिए फिंगरप्रिंट डिवाइस भी रखनी चाहीए। अगर रीडिंग 92 से कम है तो तुरंत डॉक्टरों से संपर्क करना चाहिए। ऐसा करके हम खुद को कोरोना और सीजनल फ्लू दोनों से बचा सकते हैं।
महामारी में सेफ रहने का फंडा:छोटे आयोजनों में है कोरोना का खतरा; किसी करीबी से भी मिलें तो एहतियात जरूर बरतें, बच्चों की गतिविधियों पर भी रखें नजर
- अगर घर के अंदर लोग इकट्ठा हो रहे हैं, तो खिड़की-दरवाजों को खोलकर ज्यादा से ज्यादा वेंटिलेशन की व्यवस्था करें
- एक्सपर्ट्स के मुताबिक, छोटे आयोजनों के मुकाबले बड़े और औपचारिक आयोजन ज्यादा सुरक्षित, यहां कड़े नियमों का पालन जरूरी
. इस बात का पता लगाना फिलहाल मुश्किल है कि कोरोनावायरस कब तक रहेगा। हालांकि, शुरुआती दिनों में कोरोना को लेकर सावधानी बरत रहे लोग अब लापरवाह हो गए हैं। वहीं, महीनों से अनिश्चितताओं के बीच रह रहे छोटे बच्चों वाले परिवार अब सामान्य होने की कोशिश कर रहे हैं। वे अब बाहर निकलकर लोगों से मिलना शुरू कर रहे हैं। पिछले दिनों में अमेरिकी हेल्थ अधिकारियों ने पाया है कि कुछ परिवार ऐसे कार्यक्रमों में शामिल होने लगे हैं, जो कुछ समय पहले तक खतरनाक माने जा रहे थे।
एक्सपर्ट्स ने दी है चेतावनी
- फिलहाल स्वास्थ्य अधिकारियों को इस बात की जानकारी नहीं है कि देश में बढ़ रहे कोविड के मामलों में छोटा जमावड़े की कितनी भूमिका है। हालांकि, अमेरिका के शिकागो, लॉस एंजिलिस, मेरिलैंड, मिशीगन जैसे कुछ शहरों में इन दोनों चीजों के आपस में जुड़े होने की बात सामने आ रही हैं।
- एक्सपर्ट्स ने चेतावनी दी है कि यदि आप अपने करीबी दोस्तों, रिश्तेदारों और दूसरे लोगों के करीब रह रहे हैं, तो आपको सावधान रहने की जरूरत है। मिनेसोटा के हेल्थ कमिश्नर जैन मैल्कम ने एक न्यूज कॉन्फरेंस में कहा कि “कहीं न कहीं हमारे दिमाग में यह बात है कि अगर हम परिवार के करीबियों के साथ इकट्ठे होते हैं, तो बीमारी फैलने का डर उतना नहीं होता, जितना सार्वजनिक जगहों पर होता है। जबकि, ऐसा नहीं है।”
बीमार बच्चे का पता लगाना बड़ी चुनौती से कम नहीं
- एक्सपर्ट्स का कहना है कि एक परेशानी यह भी है कि कोविड 19 से जूझ रहे कई बच्चों में लक्षण नजर नहीं आते हैं। जब वे बीमार होते हैं, तो यह कहना मुश्किल हो जाता है कि उन्हें लक्षण कोरोनावायरस के कारण नजर आ रहे हैं या नहीं।
- दक्षिण कोरिया में 91 बच्चों पर हुई एक स्टडी में पता चला था कि 42% पॉजिटिव बच्चे एसिंप्टोमैटिक थे। इसलिए ऐसा हो सकता है कि परिवार अपने बच्चों के साथ किसी कार्यक्रम में शामिल हो जाएं और उन्हें इस बात का एहसास ही न हो कि उनका बच्चा कोरोना फैला सकता है।
कैसे सुरक्षित तरीके से शामिल हों?
- शिकागो हेल्थ डिपार्टमेंट की कमिश्नर डॉक्टर एलिसन एर्वाडी का कहना है कि हो सकता है कि यह थोड़ा अजीब लगे, लेकिन छोटे और अनौपचारिक आयोजनों की तुलना में बड़े और औपचारिक आयोजन आमतौर पर सुरक्षित होते हैं, क्योंकि बड़े इवेंट में लोगों को जोखिम कम करने के लिए नियमों का पालन करना पड़ता है।
- एलिसन कहते हैं कि हाल ही में आए मामलों में से 5-6% ही ऐसे केस होंगे, जिनके तार भीड़ वाली जगह या बड़े दफ्तरों से जुड़े हों। कुछ मामले बड़े धार्मिक या आंदोलन जैसी आयोजनों से मिले हैं। कई शहरों में कई जगह समर कैम्प भी चले, लेकिन कड़े नियमों के कारण कुछ ही बच्चे बीमार हुए।
परिवार के साथ भी हों, तो भी न करें लापरवाही
- यह बात सच है कि जब भी हम दोस्तों और परिवारों के साथ मिलते हैं, तो हम रिलेक्स हो जाते हैं और मास्क हटा देते हैं। इसके अलावा बच्चों के सोशल डिस्टेंसिंग को लेकर भी हम ध्यान नहीं देते हैं। डॉक्टर एलिसन कहते हैं कि “मुझे लगता है कि जहां लोगों को सुरक्षित महसूस होता है, दरअसल वहां कई मायनों में जोखिम ज्यादा होता है, बल्कि सबसे ज्यादा होता है।”
- हालांकि, एएपी की इन्फेक्शियस डिसीज की कमेटी के वाइस चेयरमैन और पीडियाट्रिशियन डॉक्टर शॉन ओ लेरी ने कहा कि इसका मतलब यह नहीं है कि परिवारों को खुद को घर के अंदर पूरे साल के लिए बंद हो जाना चाहिए। हमें पब्लिक हेल्थ गाइडलाइंस का पालन करने की जरूरत है।
- लेरी के मुताबिक, ‘जब भी मुमकिन हो सामाजिक कार्यक्रमों का आयोजन बाहर ही करें और यह तय कर लें कि सभी लोग मास्क पहनें। खासतौर से तब जब मौके पर 6 फीट की दूरी बनाना मुमकिन न हो। अगर आपको अंदर रहना जरूरी है तो सेंटर्स फॉर डिसीज कंट्रोल एंड प्रिवेंशन घर में वेंटिलेशन बढ़ाने की सलाह देती है।
- डॉक्टर एलिसन कहती हैं कि “बच्चों को दूसरों से मिलना जरूरी है, मुझे गलत मत समझिए। हमारा मकसद यह है कि बच्चों को वे सभी चीजें मिलें, जो उनके भावनात्मक विकास और मानसिक स्वास्थ्य के लिए जरूरी हैं, लेकिन सुरक्षित तरीकों से।”