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तापमान जब 42 डिग्री के ऊपर जाने लगे तो क्या होने लगता है आपके शरीर में

गरमी अब बढ़ने लगी है. बढ़ता तापमान शरीर को नुकसान पहुंचाने वाला है. तापमान जब 40 डिग्री के ऊपर पहुंचता है तो शरीर पर उसका असर भी अलग तरह से होने लगता है. और ज्यादा बढ़ता तापमान शरीर के लिए बहुत घातक भी साबित हो सकता है. जानें बढ़ते तापमान का शरीर पर क्या असर होता है.

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तापमान फिर बढ़ने लगा है. देश के कई हिस्सों तापमान 45 डिग्री के ऊपर पहुंच गया है. यानि आप कह सकते हैं कि प्रचंड गर्मी पड़ने लगी है. अभी ये तापमान और ऊपर भी जा सकता है. महाराष्ट्र के नागपुर में तापमान 46.5 डिग्री पहुंच चुका है तो अकोला में ये 46 डिग्री है. राजस्थान समेत उत्तर भारत के कई इलाके भी बहुत गर्म हो रहे हैं.

आखिर प्रचंड गर्मी की वो कौन सी हद है, जिसे हम बर्दाश्त कर सकते हैं? कई बार गर्मी इतनी बढ़ जाती है कि शरीर इसे बर्दाश्त नहीं कर पाता. बढ़ती गरमी के साथ शरीर की हालत बदलने और बिगड़ने लगती है. इस समय शरीर का ध्यान देने की बहुत जरूरत होती है. इसी संबंध में जानते हैं कि भीषण गर्मी में हमारा शरीर किस तरह रिएक्ट करने लगता है.

Heat Exhaustion or Heat Stroke? – Avenue 360

सवाल – हीट स्ट्रेस कब होता है?
– इंसानी शरीर पर बढ़ते तापमान के असर के बारे में बात करते हुए डॉक्टर और शोधकर्ता अक्सर ‘हीट स्ट्रेस’ शब्द का इस्तेमाल करते हैं. हीट स्ट्रेस को समझाते हुए आईआईटी दिल्ली में एसोसिएट प्रोफेसर डे कहते हैं, ‘जब हमारा शरीर बेहद गर्मी में होता है, तो वो अपने कोर तापमान को बनाए रखने की कोशिश करता है. वातावरण और शारीरिक स्थितियों पर निर्भर करता है कि शरीर अपने कोर तापमान को बनाए रखने की कोशिश किस कदर कर पाता है, ऐसे में हमें थकान भी महसूस करने लगते हैं.

सवाल- क्या होते हैं हीट स्ट्रेस के लक्षण?

– हीट स्ट्रेस के लक्षणों के बारे में नेफ्रॉन क्लीनिक के डॉ. संजीव बागई कहते हैं कि पारा अगर 40 डिग्री के पार हो जाए, तो शरीर के लिए मुश्किल पैदा हो ही जाती है. हालांकि अलग स्थितियों में असर अलग होता है, लेकिन सामान्य रूप से दिखने वाले लक्षण बताते हुए डॉ. बागई कहते हैं, ‘पारा 40 से 42 डिग्री तक हो तो सिरदर्द, उल्टी और शरीर में पानी की कमी जैसी शिकायतें होती हैं. अगर पारा 45 डिग्री हो तो बेहोशी, चक्कर या घबराहट जैसी शिकायतों के चलते ब्लड प्रेशर का कम होना आम शिकायतें हैं’.

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प्रतीकात्मक चित्र

सवाल – अगर हम 48 से 50 डिग्री तापमान में ज्यादा देर रहें तो क्या होता है?
– अगर आप 48 से 50 डिग्री या उससे ज़्यादा तापमान में ज़्यादा देर रहते हैं तो मांसपेशियां पूरी तरह जवाब दे सकती हैं और मौत भी हो सकती है. जैसा पिछले साल झांसी के पास केरल एक्सप्रेस के यात्रियों के साथ हुआ. ये बताने की ज़रूरत है नहीं कि इस तरह की स्थितियों में बच्चे, बूढ़े, गर्भवती महिलाएं या बीमार लोग जल्दी शिकार हो सकते हैं.

सवाल – शरीर और गर्मी की केमिस्ट्री
– मानव शरीर का सामान्य तापमान 98.4 डिग्री फारेनहाइट या 37.5 से 38.3 डिग्री सेल्सियस होता है. इसका मतलब ये नहीं है कि 38 या 40 डिग्री सेल्सियस के तापमान पर आपको गर्मी नहीं लगनी चाहिए. वास्तव में ये शरीर का कोर तापमान होता है. यानी त्वचा के स्तर पर इससे कम तापमान भी महसूस हो सकता है.

सवाल – हवा में ज्यादा गरमी क्यों महसूस होने लगती है?
ऐसा इसलिए होता है क्योंकि हवा ऊष्मा की सुचालक नहीं है. आसान भाषा में ऐसे समझिए कि तापमान की तुलना आप अपने शरीर के संपर्क में आने वाले वातावरण के साथ करते हैं. आपका शरीर जब हवा के संपर्क में आता है तो हवा का तापमान आपके शरीर में ट्रांसफर होता है, लेकिन आपके शरीर का तापमान हवा में उतना ट्रांसफर नहीं होता क्योंकि हवा ऊष्मा की अच्छी चालक नहीं है. लेकिन पानी है. जब आप पानी के संपर्क में आते हैं तो आपके शरीर का तापमान पानी में ट्रांसफर होता है. यही वजह है कि 45 या 50 डिग्री सेल्सियस के ताप वाला पानी आपको उतना गर्म नहीं महसूस होता, जितनी इसी ताप वाली हवा.

सवाल- तापमान बढ़ने पर कैसे रिएक्ट करता है शरीर?

– क्लिनिकल शोधों के मुताबिक तापमान बढ़ने पर शरीर एक खास पैटर्न में रिएक्ट करता है. शरीर का 70 फीसदी से ज़्यादा अंश पानी निर्मित है. यानी हमारे शरीर का पानी बढ़ते तापमान में शरीर का तापमान स्थिर बनाए रखने के लिए गर्मी के साथ जूझता है. पसीना आना इसी प्रक्रिया का हिस्सा है. लेकिन ज़्यादा देर अगर शरीर इस प्रक्रिया में रहता है तो शरीर में पानी की कमी हो जाती है.

सवाल – इस समय शरीर में किस तरह के लक्षण होने शुरू होते हैं?
– पानी की कमी होते ही हर शरीर अपनी तासीर के हिसाब से रिएक्ट करता है. किसी को चक्कर आ सकते हैं, तो किसी को सिरदर्द हो सकता है और किसी को बेहोशी भी. असल में, पानी की कमी से सांस की पूरी प्रक्रिया प्रभावित होती है. इस वजह से खून का फ्लो बनाए रखने के लिए दिल और फेफड़ों पर ज़्यादा दबाव पड़ता है. इससे रक्तचाप पर भी असर पड़ना स्वाभाविक है.

खून के फ्लो से सबसे जल्दी मस्तिष्क यानी दिमाग पर असर पड़ता है. इसलिए सिरदर्द की समस्या अमूमन सबसे पहला लक्षण होती है. माइग्रेन के रोगियों को तो डॉक्टर ज़्यादा गर्मी से पूरी तरह बचने की सलाह देते ही हैं. इन नतीजों के बाद सबसे खराब हो सकता है हीट स्ट्रोक. एक स्टडी में पाया गया कि जो लोग हीट स्ट्रोक के बुरी तरह शिकार हुए थे, उनमें से 28 फीसदी की मौत इलाज के बावजूद एक साल के भीतर हो गई.

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अगर आपकी त्वचा सूखती है, जीभ और होंठ सूखते हैं, त्वचा पर लाल निशान उभरते हैं, मांसपेशियों में कमज़ोरी महसूस होती है तो आपको समझना चाहिए कि बढ़ता तापमान आपके शरीर को खासा प्रभावित कर रहा है.

सवाल – वॉटर लॉस क्यों बर्दाश्त नहीं कर सकता शरीर?
– पानी हमारे शरीर का जीवन स्रोत है इसलिए हमारे शरीर में सबसे ज़्यादा पानी ही है. गर्मी में पसीना बहने से न केवल पानी बल्कि सॉल्ट यानी नमक की भी कमी होती है. पानी हर अंग के लिए ज़रूरी है. 40 से 45 डिग्री सेल्सियस तापमान के चलते अगर शरीर में पानी की कमी होती है और देर तक बनी रहती है तो इसके गंभीर नतीजे हो सकते हैं जैसे हीट स्ट्रोक, हार्ट स्ट्रोक या ब्रेन हैमरेज तक.

गर्मी के मौसम में डिहाइड्रेशन यानी शरीर में पानी व सॉल्ट की कमी के चलते ही कई समस्याएं पैदा होती हैं. पानी की कमी ज़्यादा हो जाए या देर तक रहे तो हार्ट रेट बढ़ सकता है, रक्तचाप अचानक बढ़ सकता है. पानी और नमक की कमी के कारण किडनियां यूरिन बनाने का काम ठीक से नहीं कर पातीं. मस्तिष्क तक खून का प्रवाह अवरुद्ध होता है. मांसपेशियां शिथिल हो जाती हैं. कुल मिलाकर पानी और सॉल्ट हर अंग के लिए ज़रूरी हैं. ज़रूरी है कि बढ़ती गर्मी के मौसम में अपने शरीर की पानी की ज़रूरत पूरी करते रहें.

 डॉ. आशुतोष दरबारी, एमएस

सवाल – कितने अधिकतम तापमान तक मनुष्य जिंदा रह सकता है?
– कोई मनुष्य अधिकतम कितने तापमान में ज़िंदा रह सकता है? ये एक ऐसा सवाल है, जिसका कोई ठीक-ठीक जवाब नहीं दिया जा सकता. क्योंकि हमारी धरती पर अलग-अलग तरह के क्लाइमेट यानी वातावरण हैं और अलग-अलग क्षमताओं वाले शरीर भी. अब तक ऐसी कोई स्टडी नहीं है जो इस सवाल का ठीक ठीक जवाब दे सके. लेकिन हां, 40 से 45 डिग्री सेल्सियस तापमान के बाद सामान्य परिस्थिति वाले हर व्यक्ति को सतर्कता और सावधानी बरतने की ज़रूरत होती है.

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ऐसा ही एक सवाल है कि गर्मी ज़्यादा घातक होती है या आर्द्रता? वास्तव में, दोनों का एक तालमेल होता है. अगर बढ़ते तापमान और आर्द्रता यानी ह्यूमिडिटी का तालमेल सही है तो आपका शरीर ज़्यादा देर तक बर्दाश्त कर पाएगा, वरना नहीं.

सवाल – हीट वेव और हीट स्ट्रोक क्या है?
हीट वेव को भारतीय संदर्भ में समझा जाए तो इसका मतलब लू है. जैसे सर्दियों के मौसम में शीतलहर होती है, वैसे ही गर्मियों में लू. यानी बेहद गर्म हवा. हीट वेव किस तापमान की होती है? इसका जवाब ये है कि स्थान के हिसाब से एक सामान्य तापमान तय होता है. अगर उस सामान्य तापमान से करीब 5 डिग्री सेल्सियस ज़्यादा तापमान होता है, तब हीट वेव होती है.

पहले बताए जा चुके कारणों से जब हीट वेव या बेहद गर्मी के चलते शरीर बर्दाश्त नहीं कर पाता और शरीर का तापमान बढ़ने से पैदा होने वाली गंभीर समस्याओं को हीट स्ट्रोक कहा जाता है. बेहोशी, चक्कर और तेज़ सिरदर्द इसके साफ लक्षण हैं.

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