टीटीई को कोट-टाई पहनने की जरूरत नहीं; फेस शील्ड और ग्लव्स जरूरी, टिकट चेक करने के लिए मैग्निफाईंग ग्लास दिए जाएंगे
नई दिल्ली. रेलवे ने एक जून से चलने वाली 200 ट्रेनों के टीटीई के लिए शुक्रवार को गाइडलाइन जारी की हैं। इन ट्रेनों में िटकट चेकिंग स्टाफ को कोट और टाई पहनने की जरूत नहीं है। लेकिन, संक्रमण से बचने के लिए उन्हें फेस शील्ड, मास्क हैंड ग्लव्स, हेड कवर पहनकर चलेगा। इनके पास साबुन और सैनिटाइजर भी रहेंगे। टिकट हाथ से ना पकड़ने पड़ें, इसके लिए टीटीई को मैग्निफाईंग ग्लास दिए जाएंगे और वे दूर से ही टिकट की जानकारियां देख सकेंगे।
20 मई तक रेलवे ने 279 श्रमिक स्पेशल ट्रेनें चलाईं
- श्रमिक स्पेशल ट्रेनों और प्रवासी मजदूरों की स्थिति बताने के लिए रेलवे बोर्ड ने शुक्रवार को प्रेस कॉन्फ्रेंस की। चेयरमैन विनोद कुमार यादव ने बताया कि 20 मई तक रेलवे ने 279 श्रमिक स्पेशल ट्रेनें चलाईं। रेलवे ने राज्यों की हर मांग को पूरा किया। रोज करीब 3 लाख लोगों को उनके घर पहुंचाया गया।
- यादव ने बताया कि 24 मई को हमने सारी राज्य सरकारों से बात की थी तब 983 ट्रेनें की जरूरत थी। आज केवल 449 ट्रेनों की जरूरतें हैं। हमने राज्य सरकारों से कहा है कि अगर उनकी अतिरिक्त जरूरतें होगी तो उसे भी पूरा किया जाएगा। जहां भी श्रमिक भाई-बहन हैं, वे धैर्य से रहें। हम और ट्रेनें चलाएंगे।
- रेलवे ने राज्यों से अनुरोध किया है कि वे मजदूरों के रजिस्ट्रेशन का काम शुरू करें। रेलवे पूरी तरह से मजदूरों को उनके घर तक पहुंचाने के लिए तैयार हैं। 80% मजदूर यूपी और बिहार में गए हैं। हमने रेलवे में सफर के लिए जो प्रोटोकॉल बनाए थे वे सफल साबित हुए हैं। अब तक हम 52 लाख लोगों को पहुंचा चुके हैं।
- ‘‘ट्रेन के ओरिजनेटिंग स्टेट और रेलवे रूट पर मौजूद कर्मचारी मजदूरों के खाने-पीने की व्यवस्था कर रहे हैं। इसके साथ ही स्वयंसेवी संस्थाएं भी इस काम में जुटी हैं।”
- “बहुत सारे किचन और रेस्तरां इस समय बंद हैं, इसके बावजूद रेलवे कर्मचारी मजदूरों को खाने-पीने का सामान जुटाने की कोशिश कर रहे हैं। कुछ जगहों से शिकायतें मिली हैं, इन पर गौर करते हुए हम कोशिश कर रहे हैं कि मजदूरों को किसी तरह की दिक्कत नहीं हो।’’
घर तक पहुंचाने के लिए डीएमयू और एमईएमयू ट्रेनें भी चलाईं
रेलवे बोर्ड के चेयरमैन ने यह भी बताया कि यूपी और बिहार में मजदूरों को लोकल स्थानों तक पहुंचने में बस और दूसरे साधन नहीं मिल रहे थे। उनके लिए हमने 300 डीईएमयू और एमईएमयू ट्रेनें चलाईं।
यादव के मुताबिक, ‘‘1 से 19 मई के बीच कोई भी ट्रेन डायवर्ट नहीं हुई। 25 से 28 मई के बीच भी ऐसा हुआ। 20 से 24 मई के बीच कुछ ट्रेनों का रूट डायवर्ट हुआ। 3840 ट्रेनों में से सिर्फ 71 ट्रेनें यानी 1.8% ट्रेनें ही डायवर्ट हुई हैं। ऐसा कुछ रूटों पर व्यस्तता बढ़ने के कारण हुआ।’’
‘‘रेलवे के 12 लाख मजदूर भाई-बहन, मजदूरों को घर तक पहुंचाने का काम कर रहे हैं। सिर्फ 4 ट्रेनों ने 72 घंटे से ज्यादा समय लिया है। ये ट्रेनें पूर्वोत्तर जा रही थी। इसके पीछे भी कारण थे। असम में भूस्खलन के कारण 12 घंटे ट्रेन रोकना पड़ी। 3500 ट्रेनें सामान्य एक्सप्रेस ट्रेन से ज्यादा स्पीड से पहुंचीं। केवल 10 प्रतिशत ट्रेनें ही ऐसी थी जो तीन से चार घंटे देरी से पहुंचीं।’’
गर्भवती महिलाएं सफर करने से बचें
बोर्ड के चेयरमैन के मुताबिक, ट्रेनों में 30 से ज्यादा बच्चों ने जन्म लिया है। भारतीय रेल के डॉक्टर्स ने गर्भवती महिलाओं की डिलीवरी में मदद की। हम जानते हैं कि कोई भी महिला ऐसी स्थिति में सफर नहीं करना चाहेगी, उनकी कुछ मजबूरियां होंगी। स्वास्थ्य और गृह मंत्रालय की एडवायजरी का पालन करें। जिन लोगों को स्वास्थ्य से जुड़ी समस्या हैं या गर्भवती हैं, वे सफर करने से बचें।
ट्रेनों में मौतें होने की क्या वजह रही?
रेलवे बोर्ड के मुताबिक, जिन लोगों की मौतें ट्रेन में सफर के दौरान हुई है उनके परिवार के प्रति हमारे संवदेनाएं हैं। जो भी मौत होती हैं, स्थानीय पुलिस उसकी पूरी जांच करती है। मौतों की वजह क्या है इसका पता लगाया जाता है। कुछ ऐसी बातें सामने आई जिनमें कहा गया कि कुछ यात्रियों की ट्रेन भूख से हुई। हमने इसकी जांच की है लेकिन यह पाया गया कि 90% लोगों को भोजन मिला था। हम ट्रेनों और स्टेशनों पर हुई मौतों का आंकड़ा जुटा रहे हैं।
ऑपरेशन कॉस्ट क्या है?
ऑरिजनेटिंग स्टेट और सेंडिंग स्टेट के बीच समन्वय बनाया गया है। मजदूरों को किसी तरह का किराया नहीं दिया जाता। स्पेशल ट्रेनें एक ओर से पैसेंजर लेकर जाती है और दूसरी ओर से खाली आती हैं। इसके आधार पर ही उनका किराया तय होता है। हालांकि श्रमिक स्पेशल ट्रेनें के लिए हमने सामान्य किराया ही रखा है। हर ट्रेन पर 85% किराया भारत सरकार वहन कर रही है। शुरूआत में कुछ राज्यों ने मजदूरों से किराया लिया था लेकिन अब ऐसा नहीं है।
यात्रा करने का प्रोटोकॉल है?
रेलवे ने यात्रा कराने वालों के लिए प्रोटोकॉल बनाए हैं। इसके तहत सभी यात्री की स्क्रीनिंग की जाती है। सब कुछ सही पाए जाने पर उन्हें मेडिकल टीम सर्टिफिकेट देती है। इसके आधार पर ही आगे के सफर की मंजूरी दी जाती है। जो लोग यात्रा करने के योग्य नहीं होते या जांच में वे यात्रा करने के योग्य नहीं समझे जाते तो उन्हें ट्रेन में नहीं बैठने दिया जाता।
स्पेशल ट्रेनें कब तक चलेंगी?
- स्पेशल ट्रेनें तब तक चलती रहेंगी, जब तक सभी मजदूर अपने गंतव्य तक पहुंच नहीं जाते। जो भी राज्यों की मांग होगी, उसके हिसाब से ट्रेनें चलाई जाएंगी। हमने मांग बढ़ने पर एक दिन में 289 ट्रेनें तक चलाई है। मांग बढ़ने पर हमने 50% कोविड केयर कोच को निकाला था, लेकिन अब सारे ऐसे कोच अपनी जगह पर पहुंच गए हैं।
- यादव ने बताया- 100 ट्रेनें देश के सभी नेटवर्क पर चलाने का फैसला किया था। यह ट्रेनें उन रूटों पर चलाई गई थीं, जहां आम तौर पर व्यस्तता ज्यादा होती है। दूसरे चरण में ट्रेनों की संख्या बढ़ाने पर भी विचार करेंगे। अगर हम बिना किराए के ट्रेनें चलाते तो हमारे प्रबंधन में मुश्किल होती। मौजूदा समय में राज्य सरकारों को सिर्फ 15% हिस्सा देना है।
- उन्होंने कहा- करीब 50 से ज्यादा ऐसी ट्रेनें थी जो राज्य सरकार ने हमसे मांगी, उनमें 1400 से 1500 लोगों को जाना था। इनमें 500 तक कम लोग गए। ऐसे में अगर राज्य सरकारों को मुफ्त ट्रेनें मांगने की इजाजत दे दी जाती तो हमारे प्रबंधन पर इसका सीधा असर पड़ता।