कोवैक्सिन में नहीं है गाय के बछड़े का सीरम, वैक्सीन के लिए सेल्स बनाने में हुआ है इस्तेमाल; इस पर बवाल क्यों?
भारत बायोटेक ने कोवैक्सिन बनाने में नवजात बछड़े के सीरम का इस्तेमाल किया है। विकास पाटनी ने सूचना के अधिकार के तहत सेंट्रल ड्रग्स स्टैंडर्ड कंट्रोल ऑर्गेनाइजेशन (CDSCO) से यह जानकारी हासिल की। इसको लेकर सब जगह इतना बखेड़ा खड़ा हो गया कि सरकार और भारत बायोटेक, दोनों को सफाई देनी पड़ी।
मामले ने तूल पकड़ा कांग्रेस के नेशनल कोऑर्डिनेटर गौरव पांधी के ट्वीट से। उन्होंने RTI के जवाब में मिले दस्तावेज शेयर किए। पांधी ने कहा, ‘नरेंद्र मोदी सरकार ने मान लिया है कि भारत बायोटेक की वैक्सीन में गाय के बछड़े का सीरम शामिल है। यह बहुत बुरा है। इस जानकारी को पहले ही लोगों को बताया जाना चाहिए था।’
जवाब देने के लिए भाजपा प्रवक्ता संबित पात्रा सामने आए और कहा कि कांग्रेस लोगों को भ्रमित कर रही है। आइए, समझते हैं कि आखिर यह मामला क्या है, आपके सवाल और एक्सपर्ट के जवाब के जरिए…
क्या वैक्सीन बनाने में बछड़े के सीरम का इस्तेमाल होता है?
- हां, यह एक आम प्रक्रिया है। भारत के तो लगभग सभी वैक्सीन निर्माता इसका इस्तेमाल करते हैं। पोलियो की वैक्सीन भी ऐसे ही बनती है।
- वैक्सीन बनाने में वायरस को कमजोर किया जाता है। इसके लिए बड़ी संख्या में वायरस चाहिए। वैक्सीन कंपनियां बछड़े के सीरम का इस्तेमाल सेल्स को विकसित करने में करती हैं। उसमें वायरस को दाखिल किया जाता है। बाद में इन वायरस को कमजोर कर वैक्सीन में लिया जाता है।
तो क्या जो कोवैक्सिन हम अभी लगवा रहे हैं, उसमें बछड़े का सीरम है?
- नहीं, उसमें बछड़े का सीरम नहीं है। दरअसल, बछड़े के सीरम का काम बहुत सीमित होता है। वैक्सीन बनाने से पहले सेल्स विकसित होते हैं, जिन्हें वायरस से इंफेक्ट किया जाता है। इन सेल्स को बनाने में बछड़े के सीरम का इस्तेमाल जरूर होता है।
- जब सेल्स विकसित हो जाते हैं तो उन्हें प्यूरीफाई करते हैं। इस दौरान सेल्स एक रासायनिक प्रक्रिया से गुजरते हैं और इसके बाद उनमें बछड़े के सीरम का अंश रहने की कोई संभावना नहीं रहती। भारत बायोटेक के अनुसार इस वजह से अंतिम प्रोडक्ट यानी कोवैक्सिन में बछड़े का सीरम नहीं रह जाता।
अच्छा तो ये बताइए कि क्या सीरम के लिए बछड़ों की हत्या की जा रही है?
- नहीं, वैज्ञानिक लंबे समय से गाय के भ्रूण का इस्तेमाल करते रहे हैं। पहले इसके लिए गर्भवती गायों को मारा जाता था। पर अब यह प्रक्रिया बदल गई है। पशुओं को क्रूरता से बचाने के लिए अब नवजात बछड़ों का ब्लड सीरम लेते हैं। आमतौर पर जन्म के 3 से 10 दिन के भीतर इन्हें निकाला जाता है।
- भारत में गोहत्या प्रतिबंधित है। इस वजह से ज्यादातर ब्लड सीरम बायोलॉजिकल रिसर्च करने वाली लैब्स से इम्पोर्ट होता है। वाणिज्य मंत्रालय के मुताबिक भारत ने 2019-20 में दो करोड़ रुपए का सीरम इम्पोर्ट किया था। इस साल यह आंकड़ा काफी बढ़ सकता है, क्योंकि अप्रैल और जून के बीच ही, यानी करीब तीन महीने में 1.5 करोड़ रुपए का सीरम इम्पोर्ट हो चुका है।
तो इस पर इतनी राजनीति और हल्लागुल्ला क्यों हो रहा है?
- कांग्रेस ने इस मुद्दे के जरिए सोशल मीडिया पर केंद्र सरकार को घेरने की कोशिश की। आरोप लगाया कि सरकार ने कोवैक्सिन में गाय के बछड़े का खून होने की बात छिपाई है। जवाब में भाजपा प्रवक्ता संबित पात्रा jiने कहा कि कांग्रेस पार्टी कोवैक्सिन को लेकर भ्रम फैला रही है। कांग्रेस महापाप कर रही है।
- पर विशेषज्ञों का कहना है कि पूरी दुनिया में वैक्सीन बनाने की प्रक्रिया में बछड़े के खून से सीरम निकाला जाता है। यह विषय राजनीति का नहीं बल्कि विज्ञान का है। और ऐसा कोई पहली बार तो हो नहीं रहा।
आज हम सोनिया जी, राहुल जी और प्रियंका गांधी से पूछना चाहते हैं कि आप तीनों बताएं कि आपने वैक्सीन का अपना पहला और दूसरा डोज कब लिया है?
क्या गांधी परिवार ने टीका लगवाया है या नहीं?
गांधी परिवार को कोवैक्सीन पर विश्वास है या नहीं?
ये सवाल पूरे हिंदुस्तान का है: डॉ @sambitswaraj
— BJP (@BJP4India) June 16, 2021
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तो क्या सरकार ने सच में यह बात छिपाई?
- नहीं, भारत बायोटेक ने प्री-क्लीनिकल ट्रायल्स से लेकर हर स्टडी में इसकी जानकारी दी है। और यह भी कोई नई बात नहीं है। यह एक स्टैंडर्ड प्रक्रिया है, जिसमें छिपाया नहीं, बताया जाता है।
तो अब इस पर सरकार और कंपनी का क्या कहना है?
- सोशल मीडिया पर बवाल मचा तो केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय और भारत बायोटेक ने स्पष्टीकरण जारी किया। मंत्रालय का कहना है कि तथ्यों को तोड़-मरोड़कर पेश किया जा रहा है। नवजात बछड़े का सीरम विरो सेल्स की संख्या बढ़ाने में होता है। विरो सेल्स को बढ़ाने के लिए दुनियाभर में यह प्रक्रिया अपनाई जाती है। कोविड ही नहीं बल्कि पोलियो, रेबीज और इनफ्लुएंजा वैक्सीन भी ऐसे ही बनती है।
- इन विरो सेल्स को पानी, केमिकल्स और अन्य प्रक्रिया से साफ किया जाता है। इसे नवजात बछड़े के सीरम से मुक्त किया जाता है। इसके बाद ही विरो सेल्स को वायरल ग्रोथ के लिए कोरोना वायरस से इंफेक्ट किया जाता है।
- इस वजह से अंतिम प्रोडक्ट (कोवैक्सिन) में नवजात बछड़े का सीरम नहीं होता। वैक्सीन के अंतिम प्रोडक्ट में इनग्रेडिएंट के तौर पर यह शामिल नहीं होता।
क्या कहते हैं विशेषज्ञ?
- वायरोलॉजिस्ट शाहिद जमील का कहना है कि वैक्सीन बनाने की प्रक्रिया में गाय के बछड़े के ब्लड सीरम का इस्तेमाल होना कोई नई बात नहीं। रेबीज, इनफ्लुएंजा जैसी वैक्सीन में भी इस्तेमाल हुआ है। इसका मतलब यह नहीं है कि वैक्सीन में गाय के बछड़े का ब्लड सीरम है। यह सवाल ही बचकाना है। यह एक साइंटिफिक प्रक्रिया है, भारत ही नहीं दुनियाभर में इस प्रक्रिया को अपनाया जाता है।
- वैक्सीन साइंटिस्ट और वेल्लोर के क्रिश्चियन मेडिकल कॉलेज की प्रोफेसर डॉ. गगनदीप कंग का कहना है कि वैक्सीन बनाते समय वैज्ञानिक कई बातों का ध्यान रखते हैं। धार्मिक भावनाओं का भी पूरा सम्मान करते हैं। वैक्सीन में बछड़े का सीरम होने का सवाल ही नहीं उठता है।