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कोरोना संक्रमित का डॉग टेस्ट:कोरोना वायरस से संक्रमित मरीजों को सूंघकर पहचान लेते हैं स्निफर डॉग, 97% है एक्यूरेसी रेट

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एयरपोर्ट और भीड़-भाड़ वाली जगहों पर स्निफर डॉग्स यानी सूंघ कर चीजों का पता लगाने वाले कुत्तों को आपने देखा होगा। ये कुत्ते विस्फोटक, ड्रग्स, इलेक्ट्रॉनिक्स या आक्रामक चीजों के बारे में पता लगाने में सुरक्षाकर्मियों की मदद करते हैं। हालिया रिसर्च में विशेषज्ञों ने दावा किया है कि ये कुत्ते, इंसानों को सूंघ कर उनमें कोरोना वायरस का भी पता लगा सकते हैं।

अप्रैल में यूनिवर्सिटी ऑफ पेंसिलवेनिया एंड कोलैबोरेटर्स के रिसर्चर्स की एक स्टडी जर्नल पीएलओएस वन में पब्लिश हुई। इसके मुताबिक ट्रेनिंग पा चुके 9 कुत्तों (8 लेब्राडोर रिट्रिवर और 1 बेल्जियन मेलिनोइस) ने SARS-CoV-2 से संक्रमित मरीजों के यूरिन सैंपल आईडेंटिफाई किए थे। इनकी पॉजिटिव सैंपल को डिटेक्ट करने की एक्यूरेसी 96% थी।

पिछले हफ्ते लंदन स्कूल ऑफ हाइजीन एंड ट्रॉपिकल मेडिसिन (LSHTM) एंड कोलैबोरेटर्स ने एक साल तक चली स्टडी (यूके सरकार से फंडेड) के निष्कर्षों का एक प्रीप्रिंट पब्लिश किया है। इसमें बताया गया कि छह ट्रेंड स्निफर कुत्तों ने कोरोना संक्रमित लोगों के ओडर (गंध) सैंपल की पहचान की और उनकी एक्यूरेसी 94% थी। RT-PCR टेस्ट के मुकाबले कुत्तों की सैंपल टेस्टिंग एक्यूरेसी 97.2% थी। नेगेटिव सैंपलिंग में इनकी एक्यूरेसी 92% थी।

इस टेस्ट के लिए कुत्तों को ही क्यों चुना गया?
यूके में हुई इस स्टडी के लिए कुत्तों को ट्रेनिंग देने वाली मेडिकल डिटेक्शन डॉग्स का कहा है कि कुत्तों की नाक की जटिल संरचना के कारण उनकी सूंघने की क्षमता सबसे ज्यादा होती है। इंसान को जिस चीज से कोई गंध या खुशबू नहीं आती, कुत्ते उसका पता भी लगा सकते हैं। कुत्तों में सूंघने की क्षमता इंसानों के मुकाबले 10 हजार गुना अधिक होती है, इसलिए इस टेस्ट के लिए कुत्तों को चुना गया।

कुत्ते आरटी-पीसीआर टेस्टिंग का विकल्प हो सकते हैं?
यूके स्टडी के ऑथर प्रोफेसर लोगान का कहना है कि इसे एक सब्स्टिट्यूट की तरह देखें, न कि आरटी-पीसीआर के विकल्प की तरह। डॉग टेस्ट का सबसे बड़ा फायदा यह है कि स्निफर डॉग्स कुछ मिनटों में ही संक्रमण का पता लगा सकते हैं। भीड़भाड़ वाली जगह में अगर इस टेस्ट के माध्यम से स्क्रीनिंग हो तो संक्रमण को फैलने से रोकने में मदद मिल सकती है। इसके अलावा इसका एक और फायदा यह होगा कि आरटी-पीसीआर टेस्टिंग में कमी आएगी और टेस्टिंग करने वालों पर दबाव कम होगा।

कुत्तों की ट्रेनिंग में लगता है इतना समय
अलग-अलग देशों में हुई इस तरह की कई स्टडी में शामिल हुए कुत्तों की ट्रेनिंग में लगने वाला समय भी अलग-अलग रहा। यूके में हुई स्टडी में टेस्ट के लिए 3000 लोगों का सैंपल लिया गया, इस टेस्ट में शामिल कुत्तों की ट्रेनिंग में करीब 2 महीने का समय लगा था।

वहीं, फ्रांस के नेशनल वेटरनरी स्कूल में रिसर्चर्स ने 16 मार्च से 9 अप्रैल के बीच हुई ऐसी ही एक स्टडी में 335 लोगों का सैंपल लिया। इस स्टडी में शामिल कुत्तों की ट्रेनिंग में 25 दिन लगे थे।

भारत में अभी कोई तैयारी नहीं
भारत में ऐसे किसी टेस्ट की फिलहाल कोई तैयारी नहीं है, लेकिन एक्सपर्ट्स का मानना है कि जितनी ज्यादा आरटी-पीसीआर टेस्टिंग भारत में इन दिनों हो रही है, उस दबाव को कम करने में इससे मदद मिल सकती है।

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