कोरोना ठीक होने के 2 से 6 हफ्ते बाद बच्चों को हो रही दर्दनाक बीमारी, क्या ये तीसरी लहर से पहले खतरे का संकेत है?
कोरोना की दूसरी लहर कमजोर पड़ते ही अब तीसरी लहर आने का अनुमान हैं। एक्सपर्ट्स कह रहे हैं कि अगस्त-सितंबर के बीच तीसरी लहर आ सकती है। तब तक बच्चों को वैक्सीन नहीं लगी होगी, लिहाजा वही सबसे अनसेफ होंगे और खतरे में भी। पर इससे पहले, कोरोना से रिकवर हो चुके बच्चों में एक नई बीमारी दिख रही है। ये उन बच्चों को हो रही है जिनमें कोरोना के माइल्ड सिम्प्टम्स थे।
इस बीमारी का नाम मल्टीसिस्टम इंफ्लेमेटरी सिंड्रोम (MIS-C) है। हाल ही में केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने राज्यों को कहा है कि वो MIS-C के मामलों पर नजर रखें। इससे निपटने के लिए इंतजाम करें। मई के आखिरी दो हफ्तों में इस बीमारी के मामले सामने आने शुरू हुए थे।
आखिर ये MIS-C क्या है? इसके लक्षण क्या हैं? इसका इलाज क्या है? क्या ये किसी दूसरी बीमारी से भी मिलती-जुलती है? क्या ये सिर्फ बच्चों को ही होती है? देश में इसके मामले कितने और कहां आए हैं?
इन सभी सवालों के जवाब के लिए हमने प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना की एडवाइजर और इंडियन एकेडमी ऑफ पीडियाट्रिक्स डायरिया मॉड्यूल की नेशनल कोऑर्डिनेटर डॉक्टर नीलम मोहन, मुंबई के जसलोक हॉस्पिटल के डिपार्टमेंट ऑफ पीडियाट्रिक्स के डायरेक्टर डॉक्टर फैजल नबी, नोएडा के फोर्टिस हॉस्पिटल के डिपार्टमेंट ऑफ पीडियाट्रिक्स के हेड डॉक्टर आशुतोष सिन्हा से बात की…
क्या है MIS-C?
MIS-C एक तरह की पोस्ट कोविड बीमारी है। ये सिर्फ 19 साल से कम के किशोरों और बच्चों में होती है। इस बीमारी से जुड़े कॉम्प्लिकेशंस कोरोना होने के 2 से 6 हफ्ते बाद सामने आते हैं। इससे पीड़ित बच्चे को बुखार के साथ शरीर के अलग-अलग हिस्सों में सूजन की शिकायत होती है।
इसके साथ ही फेफड़े, किडनी, दिल, आंतों, ब्लड के सिस्टम, त्वचा, आंख और मस्तिष्क में भी सूजन हो सकती है। आमतौर पर MIS-C के मरीज को दो या दो से ज्यादा अंगों में सूजन की शिकायत होती है। देश में आए ज्यादातर मामलों में बच्चों को बुखार के साथ आंख लाल होने और उसमें सूजन की शिकायत रही है।
कितने % कोरोना संक्रमित बच्चों को MIS-C होने का खतरा है?
भारत में इस तरह का कोई सेंट्रलाइज डेटा नहीं है। हालांकि अलग-अलग राज्यों में इस तरह के मामले सामने आ रहे हैं। विशाखापट्टनम, एर्नाकुलम समेत देश के कई और शहरों में इस तरह के केस आए हैं। वहीं, दुनियाभर में हुई स्टडीज बताती हैं कि इस पोस्ट कोविड इन्फेक्शन से 0.15 से 0.2% बच्चे प्रभावित हुए हैं। यानी कोरोना संक्रमित 1000 में एक या दो बच्चों में ये बीमारी होती है। वैसे ज्यादातर बच्चों में कोरोना के गंभीर लक्षण नहीं होते हैं, लेकिन ये बीमारी एसिम्प्टोमेटिक और माइल्ड लक्षण वाले बच्चों को भी हो सकती है।
क्या MIS-C के लक्षण बच्चों में होने वाली बीमारी कावासाकी जैसे ही हैं?
ये बीमारी शरीर के कई अंगों में सूजन पैदा करती है। इसका सबसे ज्यादा असर हार्ट कोरोनरी पर पड़ता है। पांच साल या उससे कम उम्र के बच्चों में होने वाली कावासाकी बीमारी के जैसे ही इसके भी लक्षण होते हैं। हालांकि ये बीमारी 19 साल तक के बच्चों में हो सकती है।
इस बीमारी के लक्षण क्या हैं?
MIS-C के लक्षण हर बच्चे के लिए एक जैसे नहीं होते हैं। आमतौर पर बच्चे को तीन दिन से ज्यादा समय तक हाई फीवर की शिकायत हो सकती है। इसके साथ ही पेट दर्द, डायरिया, उल्टी होना, शरीर पर चकत्ते पड़ना, आंखें लाल होना, हाथ-पैर में सूजन, सांस लेने में तकलीफ होना, सुस्ती होना, लो ब्लड प्रेशर जैसी शिकायतें भी हो सकती हैं। WHO के मुताबिक अगर किसी बच्चे को तीन दिन से ज्यादा बुखार के साथ इनमें से कोई दो लक्षण और हैं तो उसे MIS-C हो सकता है।
आखिर किस वजह से हो रही है ये बीमारी?
फ्रांस और अमेरिका में हुई शुरुआती स्टडी में अनुवांशिक वजहों को संभावित कारण माना गया है। हालांकि अभी ये शुरुआती स्टडी है। अंतिम नतीजों के लिए अभी और डेटा की स्टडी की जा रही है। यहां तक कि अलग-अलग इलाकों में अलग-अलग तरह के लक्षण देखे जा रहे हैं। इतना ही नहीं शरीर के किस हिस्से में संक्रमण है, उसके हिसाब से भी नतीजे बदलते हैं।
क्या इसके बड़े संकट में बदलने की आशंका है?
दरअसल कोरोना होने के दो से 6 हफ्ते बाद ये बीमारी सामने आती है। तब तक बच्चे की RT-PCR रिपोर्ट निगेटिव हो चुकी होती है। लेकिन बच्चों का इम्यून सिस्टम सही तरीके से रिस्पॉन्ड नहीं करता। MIS-C शरीर के हर हिस्से पर असर डालती है, लेकिन सबसे ज्यादा खतरा हार्ट को होता है। यहां तक कि इसमें कार्डियक शॉक का भी खतरा होता है।
इसका इलाज क्या है?
MIS-C के ज्यादातर मरीजों को हॉस्पिटल में एडमिट करना पड़ता है। इनमें से भी ज्यादातर मरीज बच्चों को पीडियाट्रिक ICU की भी जरूरत पड़ती है। डायग्नोसिस में MIS-C कन्फर्म होते ही स्टेरॉयड और IVIG के कॉम्बिनेशन के साथ ट्रीटमेंट शुरू होता है। इसके साथ ही ब्लड थिनर एस्पिरिन भी दी जाती है।
सपोर्टिव केयर के लिए सलाइन चढ़ाई जाती है। जिन बच्चों को सांस लेने में तकलीफ होती है, उन्हें ऑक्सीजन भी लगाई जाती है। ज्यादातर मामलों में सिम्प्टम माइल्ड होते हैं। लगभग सभी केस में इस ट्रीटमेंट का मरीज पर अच्छा असर पड़ता है। इलाज के बाद भी किसी तरह के कॉम्प्लिकेशन से बचने के लिए अगले एक दो महीने तक फॉलोअप्स भी होते हैं। बहुत ही रेयर केस में स्थिति गंभीर होती है। ऐसा होने पर एक्स्ट्राकॉर्पोरियल मेम्ब्रेन ऑक्सीजनेशन (ECMO) लगाया जाता है। ये मशीन हार्ट और फेफड़ों का काम करती है।