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किरण नेगी गैंगरेप:दुष्कर्म के बाद आंखों में तेजाब डाला, नाजुक अंगों से शराब की बोतल मिली, नौ साल हो गए, अभी सुप्रीम कोर्ट में ‘अगली तारीख’ का इंतजार है

हाई कोर्ट ने 2014 में ही फांसी की सजा सुना दी थी, लेकिन फिर मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा और लटक गया, परिवार को तो ये भी नहीं पता कि अगली तारीख कब है, वो अपने वकील का नाम तक सही से नहीं जानते पिता कहते हैं, 'मैं जंतर मंतर पर धरने पर बैठा था, बेटी के पोस्टर लगाए थे, वहां केजरीवाल का भाषण चल रहा था, उन्होंने हमारी ओर झांककर नहीं देखा, दूसरे गेट पर राहुल गांधी की बैठक चली, वो भी हमारी तरफ नहीं आए' किरण की मौत मीडिया की सुर्खियां नहीं बनीं, पिता जब इंसाफ मांगने मुख्यमंत्री के पास गए थे तो ये कहकर टरका दिया गया था कि ऐसी घटनाएं होती रहती हैं, न्याय के नाम पर अधिकारियों ने एक लाख का चैक पकड़ा दिया

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कुंवर सिंह नेगी लड़खड़ाते कदमों से एक छोटे से किराए के घर में दाखिल होते हैं। ये उनके रिटायर हो जाने की उम्र हैं, लेकिन कुछ देर बाद ही उन्हें नाइट ड्यूटी पर जाना है। वो सुरक्षा गार्ड हैं और घर के अकेले कमाने वाले। बड़ी बेटी, जिसने नौकरी करके परिवार की ज़िम्मेदारी थाम ली थी, सामने दीवार पर उसकी तस्वीर टंगी है। कुंवर सिंह नेगी हाथ से इशारा करके कहते हैं, ये थी मेरी बेटी, और मैं उस लड़की को देखती रहती हूं।

सलीके से पहने कुर्ते पर गले में पड़ा सफेद दुपट्टा। चेहरा बिलकुल पिता जैसा। आंखों से झांक रहे सपने। ये तस्वीर उसने अपने दस्तावेजों पर लगाने के लिए खिंचाई थी। अब दीवार पर टंगी हैं। उसकी मौत के साथ सिर्फ उसके सपने ही खत्म नहीं हुए हैं बल्कि परिवार में बाकी रह गए चार लोगों के सपने भी चकनाचूर हो गए हैं।

पिता जो हमेशा ये सोचता था कि अब बेटी कमाने लगी है, मेरे आराम करने के दिन आ रहे हैं। वो मां जो बेटी के टिफिन में रोटियां रखते हुए गर्व से फूली नहीं समाती थी कि मेरी बेटी काम पर जा रही है। वो छोटे भाई-बहन जो अपनी हर जरूरत के लिए दीदी की ओर दौड़ते थे, अब गुमसुम उदास से बैठे हैं। वो घर में एक दूसरे से अपना दर्द छुपाते हैं, अकेले होते हैं तो दिल भर रो लेते हैं, लेकिन गम है कि कम नहीं होता।

वो 9 फरवरी 2012 की शाम थी। किरण नेगी रोजाना की तरह काम से घर लौट रही थी। सूरज डूब चुका था, कुछ धुंधली रोशनी रह गई थी। बस से उतरते ही किरण के कदम तेज हो गए थे, बीस मिनट का ये पैदल रास्ता उसे जल्दी तय करना था। घर पहुंचते ही वो मां से कहती थी, मां मैं आ गई।

लेकिन, उस दिन दरिंदों की उस पर नजर थी। एक लाल रंग की इंडिका कार में उसे अगवा कर लिया गया। हरियाणा ले जाकर तीन दिन तक उसका रेप किया गया। फिर एक सरसों के खेत में उसे मरने के लिए छोड़ दिया गया। पुलिस रिकॉर्ड बताते हैं वो दरिंदों से अपनी जान की भीख मांगती रही, लेकिन हवस मिटाने के बाद भी उनका दिल नहीं पसीजा और उन्होंने उसे ऐसी दर्दनाक मौत दी कि लिखते हुए हाथ कांपने लगते हैं।

9 फरवरी 2012 को किरण नेगी को अगवा करने के बाद दरिंदों ने तीन दिनों तक गैंगरेप किया था।
9 फरवरी 2012 को किरण नेगी को अगवा करने के बाद दरिंदों ने तीन दिनों तक गैंगरेप किया था।

क्या यहां ये बताना मायने रखता है कि उसकी आंखों में तेजाब डाल दिया गया था। उसके नाजुक अंगों से शराब की बोतल मिली थी। पाना गरम करके उसके शरीर को दाग दिया गया था। अगर ये सब ना भी हुआ होता तो क्या उसकी मौत का गम परिवार के लिए कम होता?

किरण नेगी की मौत पर आक्रोश नहीं फूटा था। वो मीडिया की सुर्खियां नहीं बनीं थी। उसके चले जाने के बाद बहसें नहीं हुई थीं, कानून नहीं बदले गए थे। कोई नेता उसके घर नहीं गया था। उसके पिता जब बेटी के लिए इंसाफ मांगने तत्कालीन मुख्यमंत्री के पास गए थे तो ये कहकर टरका दिया गया था कि ‘ऐसी घटनाएं तो होती ही रहती हैं।’

उस दिन को याद करके वो आज भी फफक पड़ते हैं। वो कहते हैं, मैं उस वक्त की सीएम शीला दीक्षित के पास गया था। कई लोग मेरे साथ थे। जब हमने उनसे घटना के बारे में बताया तो उन्होंने कहा ऐसे अपराध तो होते ही रहते हैं। नेगी बताते हैं कि वहां अधिकारियों ने उन्हें एक लाख रुपए का चैक दिया। इसके अलावा किसी भी तरह की कोई मदद या मुआवजा उन्हें नहीं दिया गया।

इस घटना को नौ साल होने को आए हैं, लेकिन परिवार अभी भी इंसाफ का इंतजार कर रहा है। किरण नेगी का गैंगरेप करने वाले तीनों दरिंदों को हाई कोर्ट ने साल 2014 में ही फांसी की सजा सुना दी थी। लेकिन, फिर ये मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा और लटक गया। परिवार को तो अब ये भी नहीं पता कि अगली तारीख कब है। वो अपने वकील का नाम तक सही से नहीं जानते। बस इस उम्मीद में रहते हैं कि उनके जीते-जी दरिंदों को फांसी हो जाए।

किरण नेगी एक गरीब परिवार में पैदा हुए मेहनती बेटी थी, जिसे पता था कि घर की पूरी जिम्मेदारी उसे उठानी है। उसकी मां माहेश्वरी नेगी कहती हैं, ‘वो बहुत सपने देखती थी, कहती थी जल्द से जल्द अपना घर खरीदना है। वो उड़ना चाहती थी। हमने भी कभी उस पर कोई पाबंदी नहीं लगाई। काम से वापस लौटती थी तो तेजी से पास आकर कहती थी मां मैं आ गई।’

इंसाफ की उम्मीद, देरी पर रोष

किरण के पिता कहते हैं, ‘आठ साल कोर्ट कचहरी का चक्कर लगाते लगाते बीत गए। पांव में छाले पड़ जाते हैं। हम न्याय के लिए ही दौड़ रहे हैं, लेकिन न्याय मिल नहीं रहा है। हमारी कानून व्यवस्था अपराधियों को पनाह देती है और पीड़ितों से चक्कर कटवाती है। अगर हमारी बेटी हाथरस की होती तो न्याय मिलता, हमारी बेटी देश की निर्भया होती तो न्याय मिलता। ये निर्भया से पहले का केस है, निर्भया के मुलजिमों को फांसी हो गई, हम अभी भी लाइन में ही लगे हैं। हमें नहीं पता कि कब फांसी होगी।’

परिवार कहता है, ‘सरकार अंधी तो है नहीं, सब देखती है। मां-बाप कब तक अपनी बेटियों के पीछे-पीछे जाएंगे और कहां-कहां तक जाएंगे। सुरक्षा की जिम्मेदारी तो सरकार की ही है। बेटियों को घर में कैद नहीं रखा जा सकता। आजकल एक की कमाई से घर नहीं चलता है। बेटियों को नौकरी करने के लिए बाहर निकलना ही है।’

पीड़िता के माता और पिता। घटना के लगभग नौ साल बाद भी ये परिवार उबर नहीं सका है। आर्थिक मदद के लिए ना समाज आगे आया और न ही सरकार।
पीड़िता के माता और पिता। घटना के लगभग नौ साल बाद भी ये परिवार उबर नहीं सका है। आर्थिक मदद के लिए ना समाज आगे आया और न ही सरकार।

तुरंत फांसी की मांग

कुंवर नेगी का कहना है कि जब तक रेप के मामलों में त्वरित न्याय नहीं होगा कुछ नहीं बदलेगा। वो कहते हैं कि जो डर बेटियां महसूस करती हैं वो डर अपराधियों में होना चाहिए। नेगी कहते हैं, “मेरा मानना है जब तक अपराधियों को फांसी नहीं होगी, रेप नहीं रुकेंगे। इन जैसे अपराधियों को तुरंत फांसी देनी चाहिए। जिन मामलों में पुख्ता सबूत होता है उनमें तीन से छह महीनों के भीतर इन दरिंदों को फांसी होनी चाहिए। ऐसा होगा तब ही ये अपराध रुकेंगे। ये लोग सरकारी राशन खा रहे हैं, इन्हें तिहाड़ में भर रखा है। इन्हें सरकारी खर्चे पर जिंदा रखने की क्या जरूरत है?”

जंतर-मंतर पर दिया धरना, सबने नजरअंदाज किया

अपनी बेटी को इंसाफ दिलाने के लिए कुंवर नेगी जंतर-मंतर पर लंबा धरना भी दे चुके हैं। वो कहते हैं कि कोई भी नेता उनसे मिलने नहीं पहुंचा। नेगी कहते हैं, ‘मैं जंतर-मंतर पर धरने पर बैठा हुआ था। वहां केजरीवाल का पंडाल लगा था, भाषण चल रहा था, उन्होंने हमारी ओर झांककर नहीं देखा। दूसरे गेट पर राहुल गांधी की बैठक चली, वो भी हमारी तरफ नहीं आए। मेरी बेटी को न्याय दिलाने के लिए पोस्टर लगे थे, लेकिन किसी ने उस पर गौर नहीं किया।’

उसकी मौत के बाद परिवार के सामने गंभीर आर्थिक संकट खड़ा हो गया। लेकिन परिवार की आर्थिक मदद के लिए ना समाज आगे आया और न ही सरकार। घटना के लगभग नौ साल बाद भी ये परिवार उबर नहीं सका है। वो एक अंधेरे भरी दुनिया में फंसा हैं जहां सिर्फ न्याय ही उनकी जिंदगी में रोशनी ला सकता है।

 

कहानी ढाई साल की मासूम की:दरिंदों ने दुष्कर्म के बाद बच्ची को कुत्तों की तरह नोंचा, सरकार ने कहा था फास्ट ट्रैक सुनवाई होगी, डेढ़ साल बाद भी बयान दर्ज नहीं

  • पीड़ित के पिता कहते हैं, ‘जब उसकी बॉडी मिली तो हालत ऐसी थी कि देखा भी नहीं जा रहा था, लगा तेजाब डालकर जलाया है, लग रहा था उसके साथ रेप हुआ है लेकिन मेडिकल रिपोर्ट में रेप का जिक्र नहीं है
  • वो कहते हैं, ‘पहले पांच महीनों तक मुकदमा अदालत में पहुंचा ही नहीं, फिर कहने लगे कि कोरोना हो रहा है, हमसे कहा गया था छह महीने में इंसाफ मिलेगा, डेढ़ साल हो गया है, अभी तक कुछ भी नहीं हुआ’

पहले बेटे की जन्म के समय मौत के बाद शिल्पा ने औलाद के लिए बड़ी मिन्नतें की। पांच साल बाद जब बिटिया का जन्म हुआ तो नाम रखा ट्विंकल। ट्विंकल जो किसी सितारे की तरह चमकती थी। घर के इस कोने से उस कोने तक दौड़ती रहती। उसे किसी एक जगह बिठाकर रखना मुश्किल होता। ढाई साल की उम्र में वो पांच साल के बच्चे की तरह बातें करती थी।

पापा, चाचा, दादा को जब वो दौड़कर गले लगाती तो सारी थकान दूर हो जाती। जब वो दुनिया की फिक्र में होते तो अपनी मीठी ज़बान में कुछ ऐसा मासूम सवाल पूछती कि वो सबकुछ भूल बस उसी के जवाब देने लग जाते।

अभी उसने स्कूल जाना शुरू ही किया था। मां उसे स्कूल छोड़ने जाती, उसका हाथ थामे-थामे अपना बचपन भी जी लेती। कॉलेज जाने, नौकरी करने के वो सपने फिर से देख लेती जो बचपन में देखे तो थे लेकिन पूरे ना हो सके थे। वो खुद तो बहुत ज्यादा नहीं पढ़ सकीं थीं लेकिन ट्विंकल को दुनिया की सबसे अच्छी शिक्षा देना चाहती थीं। ट्विंकल जब स्कूल की ओर भागती तो मां को लगता कि वो जरूर कुछ ना कुछ बनेगी।

ट्विंकल पेन पकड़ना सीख गई थी। अक्षरों पर पेन फिराने लगी थी। घर की दीवारों पर जहां तक उसके हाथ जाते वो कलाकारी कर देती। मां का डांटने का मन होता, लेकिन वो डांटने के बजाए मन ही मन हंसती। ढाई साल की इस मासूम की मौजूदगी ने घर को स्वर्ग बना दिया था। मां तो उसे नजर से ओझल ही ना होने देती। ट्विंकल अपने परिवार की पूरी दुनिया बन गई थी।

फिर एक मनहूस दिन ने परिवार की इस सबसे बड़ी खुशी को सबसे बड़ा गम बना दिया।

दिल्ली से करीब 90 किलोमीटर दूर अलीगढ़ जिले के टप्पल कस्बे में मई 2019 में ढाई साल की मासूम के साथ दुष्कर्म के बाद दरिंदों ने हत्या कर दी थी।
दिल्ली से करीब 90 किलोमीटर दूर अलीगढ़ जिले के टप्पल कस्बे में मई 2019 में ढाई साल की मासूम के साथ दुष्कर्म के बाद दरिंदों ने हत्या कर दी थी।

वो 30 मई 2019 का दिन था। ट्विंकल घर के बाहर खेल रही थी, जहां वो रोज खेलती थी। मां छोटे-मोटे काम में लगी थी। कुछ देर बाद ट्विंकल को देखा तो वो वहां नहीं थी। कोई दरिंदा इस घर के इकलौते फूल को नोच ले गया।

शिल्पा शर्मा को नहीं मालूम कि कौन उसे कब उठा ले गया। तीन दिन बाद दो जून को घर के पास एक खंडहर मकान में ट्विंकल की लाश मिली। सड़ी-गली। शरीर के कई अंग गायब थे। ऐसा लग रहा था जैसे उसे दरिंदगी करके फेंका गया है। उसकी लाश को देखने वालों का कहना है कि शायद उसे कुत्तों ने नोंच लिया था।

बेटी के साथ हुई इस दरिंदगी ने परिवार को तोड़ कर रख दिया। दिल्ली से करीब 90 किलोमीटर दूर अलीगढ़ जिले के टप्पल कस्बे में ढाई साल की मासूम के रेप और हत्या की खबर जैसे ही फैली लोगों में आक्रोश भड़क गया। जिसने सुना सन्न रह गया। ट्विंकल को इंसाफ दिलाने के लिए रैलियां निकलीं, प्रदर्शन हुए, मोमबत्तियां जलाई गई।

टीवी कैमरे ट्विंकल के घर पहुंच गए। उसकी रोती बिलखती मां को देश ने देखा। जिसने भी इस परिवार को देखा वो उनके गम में शामिल हो गया। लोगों में गुस्सा बढ़ता जा रहा था। सरकार इस गुस्से को समझ रही थी। घटना में शामिल संदिग्धों को तुरंत गिरफ्तार कर लिया गया। परिवार को छह महीने के भीतर इंसाफ दिलाने का वादा किया गया। सरकार के वादों की बौछार ने परिवार का गुस्सा शांत कर दिया।

मुझे याद है जब मैं ट्विंकल के घर गई थी उसकी मां शिल्पा शर्मा बेसुध पड़ी थी। रो-रोकर उनकी आंखें लाल हो चुकी थीं, चेहरा सूख गया था। उन्होंने मुझे उसके छोटे-छोटे सेंडल दिखाए थे। किताबें दिखाईं थीं, सहेजकर रखे खिलौने दिखाए थे। वो पेंसिल दिखाईं थी जिन्हें ट्विंकल के नन्हें-नन्हें हाथों को थामना था। उस मासूम ट्विंकल को देखकर ये यकीन करना मुश्किल था कि कोई इस फूल जैसी बच्ची से भी दरिंदगी कर सकता है।

इस घटना के विरोध में देशभर में प्रदर्शन हुए थे, लोगों ने कैंडल जलाकर इंसाफ की मांग की थी।
इस घटना के विरोध में देशभर में प्रदर्शन हुए थे, लोगों ने कैंडल जलाकर इंसाफ की मांग की थी।

हाल ही में जब मैं ट्विंकल के घर पहुंची तो यहां एक नई दुकान के उद्घाटन का प्रसाद बंट रहा था। ट्विंकल के चाचा कपिल ने बताया, ‘बीते डेढ़ साल से भैय्या बहुत परेशान रहते थे। उस डिप्रेशन से निकल ही नहीं पा रहे थे। ये छोटी सी दुकान खुलवाई है ताकि उनका मन काम में लग सके और वो उस दुख से बाहर आ जाएं।’

परिवार के लोग हंसने-बोलने की कोशिश कर रहे थे, लेकिन शिल्पा शर्मा ने वही उदासी ओढ रखी थी। उनका चेहरा पहले से ज्यादा खाली था। अब उनका नजरिया सरकार और न्याय व्यवस्था के प्रति तीखा हो गया है।

दरअसल, पोस्टमार्टम रिपोर्ट में रेप की पुष्टि ना होने की वजह से अदालत में बस ट्विंकल के कत्ल का मामला पहुंचा है। परिवार को भरोसा दिया गया था कि सुनवाई फास्टट्रैक अदालत में होगी, लेकिन ऐसा भी नहीं हो सका। बल्कि डेढ़ साल बीत जाने के बाद अभी तक इस मामले में गवाहों के बयान तक नहीं हो सके हैं। इस मामले में जाहिद, मेहंदी हसन और असलम नाम के तीन आरोपी जेल में है। शगुफ्ता नाम की महिला की जमानत हो गई है।

शिल्पा कहती हैं, ‘मैं जब भी उस गली की ओर जाती हूं मेरा खून खौलने लगता है। जी करता है कि अपने हाथों से उस वहशी का कत्ल कर दूं। खून का घूंट पीकर रह जाती हूं। ये दर्द मुझे हर दिन झेलना पड़ता है।’

तारीख पर तारीख

शिल्पा शर्मा कहती हैं, ‘सरकार इंसाफ को कोर्ट पर छोड़ देती है। कोर्ट कुछ नहीं करती। तारीख पर तारीख चलती जाती है। कभी तीन तारीख कभी चार तारीख। डेढ़ साल हो गया है मुक़दमा चलते हुए। हर बार तारीख पड़ती है फिर रद्द हो जाती है। हमें बताया जाता है कि इस दिन सुनवाई होगी। हम फिर पूछते हैं तो बताया जाता है कि सुनवाई आगे बढ़ गई है। डेढ़ साल से बस तारीख ही पड़ रही है, सुनवाई नहीं हो रही है।’

परिवार ने आज भी उस मासूम से जुड़ी हर एक चीज को संभाल कर रखा है।
परिवार ने आज भी उस मासूम से जुड़ी हर एक चीज को संभाल कर रखा है।

सुनवाई में हो रही देरी पर सवाल करते हुए शिल्पा कहती हैं, ‘हमसे कहा जा रहा है कि देरी कोरोना की वजह से हो रही है। सुशांत के मामले में तो देरी नहीं हो रही है। अदालत-सीबीआई सब लगे हैं। फिर हमारी बेटी के लिए ही कोरोना का बहाना क्यों। उसके दरिंदों को फांसी क्यों नहीं दी जा रही है। या सुशांत अलग थे और हमारी बेटी अलग है? इंसाफ तो सबके लिए बराबर होना चाहिए?’

पीड़िता के पिता बनवारी लाल शर्मा कहते हैं, ‘पहले हमें मुकदमे को हाई कोर्ट और फास्ट ट्रैक कोर्ट में भेजने का आश्वासन दिया गया। बड़ी धाराएं लगाने का आश्वासन दिया गया। पहले पांच महीनों तक मुकदमा अदालत में पहुंचा ही नहीं। फिर कहने लगे कि कोरोना हो रहा है। हमसे कहा गया था छह महीने में इंसाफ मिलेगा। डेढ़ साल हो गया है, इंसाफ की झलक भी नजर नहीं आई है।’

इस मामले में परिवार के वकील का कहना है चार्जशीट दायर हो गई है और अब गवाहों के बयान होने हैं। बयान के लिए अदालत ने अगली तारीख दी है। इससे पिछली तारीख रद्द हो गई थी। एडवोकेट रामबाबू बताते हैं, पोस्टमार्टम में बच्ची के अंग ही नहीं मिले थे, डॉक्टर रेप की रिपोर्ट किस आधार पर देते। अब अदालत में कत्ल का मामला चल रहा है।

टप्पल की जिन गलियों में ट्विंकल को इंसाफ दिलाने के लिए रैलियां निकालीं गईं थीं वो अब शांत हैं। यहां सबकुछ सामान्य हो चुका है। यहां के लोगों के लिए ढाई साल की वो बच्ची अब बस धुंधली याद बन गई है।

हैदराबाद जैसे इंसाफ की मांग
शिल्पा शर्मा कहती हैं, ‘मुझे सबसे अच्छा हैदराबाद कांड लगा है। वहां चारों के चारों मार दिए। अब हैदराबाद में कभी दोबारा इस तरह का कांड नहीं होगा। यूपी में हर दिन रेप की खबर आ रही है। जो हैदराबाद में हुआ है, यूपी में हो जाएगा तो ऐसी खबरें आना बंद हो जाएंगी। यदि सरकार के बस का इंसाफ करना नहीं है तो अपराधियों को जनता के बीच में छोड़ दें। जनता अपने आप सब संभाल लेगी।’

शिल्पा शर्मा ने वो अखबार सहेज कर रख लिए हैं जिनमें ट्विंकल से जुड़ी खबरें छपीं थीं। लेकिन, इनके पन्ने पलटते हुए उनके हाथ कांपने लगते हैं। ट्विंकल से जुड़ा हर सामान उन्होंने सहेज लिया है। मैं चाहती हूं कि उसके बारे में और बात करूं लेकिन कपिल मुझे रोक देते हैं। वो कहते हैं, ‘घर में आज खुशी का दिन है। उसकी याद पूरे परिवार को रुला देगी।’ ये कहते-कहते उनकी अपनी आंख में आंसू थे। उनके वॉट्सऐप स्टेटस पर अब भी बेटी की तस्वीर है और लिखा है, ‘आई मिस माय एंजल।’

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