कश्मीर में 20 सालों में 4824 बेगुनाहों की मौतें / पिछले 6 महीनों में 13 आम कश्मीरी आतंकियों की गोलीबारी में मारे जा चुके हैं, इनमें 2 महिलाएं और 3 बच्चे भी शामिल
बुधवार को सोपोर में गोलीबारी में फंसे एक 65 साल के बुजुर्ग की मौत हो गई, इसके पांच दिन पहले एक चार साल के बच्चे की एनकाउंटर में गोली लगने से मौत हुई थी पिछले साल 42 कश्मीरियों ने अपनी जान गंवाई थी, 2018 में 86 ने, जबकि सबसे ज्यादा 1024 आम नागरिकों की मौतें साल 2001 में हुई थीं
नई दिल्ली. जनवरी से लेकर जून तक 13 आम लोगों की मौत आतंकवादी ऑपरेशन के दौरान हुई है। इनमें वो लोग शामिल हैं, जो आतंकवादी एनकाउंटर के दौरान गोलीबारी के बीच में आ गए। कश्मीर में पिछले 20 सालों में ऐसे अपनी जान गंवाने वाले आम कश्मीरियों की संख्या 4 हजार से भी ज्यादा है।
इसका जिक्र इसलिए क्योंकि एक दिन पहले सोपोर में गोलीबारी में फंसे एक 65 साल के बुजुर्ग की मौत हो गई। उनके साथ 3 साल का उनका पोता भी था। दादा के शव के पास बैठे उस बच्चे की तस्वीर पूरी दुनिया के लिए कश्मीर से आतंकवाद की सबसे भयानक तस्वीर थी। अभी पांच दिन पहले ही एक चार साल के बच्चे की एनकाउंटर के बीच फंसकर गोली लगने से मौत हुई थी।
25 जून को अनंतनाग में चार साल के बच्चे की मौत
पांच दिन पहले की बात है। कश्मीर के बिजबिहेड़ा में एक चार साल के बच्चे की आतंकवादियों और सुरक्षाबलों के बीच हुए एनकाउंटर में मौत हो गई। निहान 4 साल का था। अपने अब्बा और चाचा के साथ कुलगाम से बिजबिहेड़ा आने की जिद की और कार में बैठ गया। बिजबिहेड़ा पहुंचकर अब्बा किसी काम से बाहर गए और निहान अपने चाचा के साथ कार में बैठा था। तभी अचानक एनकाउंटर शुरू हो गया और जब तक निहान के चाचा गाड़ी भगाते उन्होंने देखा कि निहान खून से सना पड़ा है।
एक गोली उसे आकर लगी थी। उनकी गाड़ी एक बंकर के पास खड़ी थी, शायद यही वजह थी कि आतंकियों की गोली उन्हें आकर लगी। निहान अकेला नहीं है। इस साल गोलीबारी के बीच मारे गए 13 लोगों में तीन बच्चे और दो महिलाएं शामिल हैं। पिछले साल 42 कश्मीरी लोगों ने एनकाउंटर के बीच फंसकर अपनी जान गंवाई थी। 2018 में ये आंकड़ा 86 पहुंच गया था। सबसे ज्यादा आम नागरिकों की मौतें साल 2001 में हुई थी। तब आतंकवाद चरम पर था और एक ही साल में 1024 लोगों ने गोलीबारी में फंसकर अपनी जान गंवाई थीं।
आतंकवाद जब चरम पर था उस दौरान साल 2000 से लेकर 2007 तक लगातार एनकाउंटर और गोलीबारी में मरनेवालों में सिविलियंस की संख्या सेना और सुरक्षाबल से भी ज्यादा थी। हालांकि, 2007-2011 तक सिविलियंस की संख्या कम हो गई। लेकिन, उसके बाद अचानक दो साल तक ये लगभग बराबर रही।
एक्सपर्ट कमेंट
सेना के कश्मीर कोर कमांडर रहे रिटायर्ड लेफ्टिनेंट जनरल सैयद अता हसनैन कहते हैं, ‘जब आतंकियों की संख्या कम होने लगती है तो उनके संगठन में बैचेनी बढ़ जाती है। तब वह सॉफ्ट टारगेट ढूंढते हैं। निहत्थे पुलिसवालों और उनके परिवारों को इसी वजह से पहले वो निशाना बना चुके हैं। इससे निपटने के लिए लोगों का आतंकवाद के विरोध में खड़े होना अहम होगा।’