कश्मीर में कोरोना से 75 लोगों की मौत और पूरे राज्य में 6 हजार केस, लेकिन डल झील पर रहनेवाले 50 हजार परिवार अब भी सुरक्षित
शिकारा चलाने वाले राशिद की उम्र 67 साल है, उन्होंने हमेशा प्रोटोकॉल का ध्यान रखा, बिना मास्क पहने और सैनिटाइजर के घर से नहीं निकले डल झील के किनारों पर बैठकर लड़के घंटों मछली पकड़ते हैं और शिकारे वाले नाउम्मीदी से नाव पर बैठे उन्हें देखते हैं
श्रीनगर. अब्दुल राशिद। उम्र 67 साल, कश्मीर की मशहूर डल झील पर शिकारा चलाते हैं। बचपन से वो यही काम करते आ रहे हैं, अब तो उन्हें याद भी नहीं कि शिकारा चलाते कितने साल हो गए। वे बताते हैं इतने मुश्किल हालात जिंदगी में पहले कभी नहीं देखे थे। वह हर सुबह इस उम्मीद के साथ शिकारा लेकर डल झील निकलते हैं कि शायद कोई रोजी मिलेगी, लेकिन देर शाम खाली हाथ घर लौटना पड़ता है।
कोरोनावायरस के चलते लगे लॉकडाउन के तीन महीने हो गए। अभी भी कश्मीर की मशहूर झील पर सन्नाटा पसरा है। खाली शिकारे किनारों पर खड़े ऊब गए हैं। इन्हीं किनारों पर बैठकर कुछ लड़के घंटों मछली पकड़ते हैं और ये शिकारे वाले नाउम्मीदी से अपनी नाव पर बैठे उन्हें देखते रहते हैं। पहले ये जगह कश्मीर का सबसे गुलजार इलाका हुआ करती थी।
लॉकडाउन ने यहां की टूरिज्म और इकोनॉमी को बर्बाद कर दिया
पिछले साल अगस्त में जब आर्टिकल 370 हटाया गया तो डल झील की हाउसबोट और शिकारे टूरिस्ट से आबाद थे। एडवाइजरी जारी होने के बाद बाहरी लोगों को कश्मीर से लौटने के आदेश दिए गए तो टूरिस्ट इन हाउसबोट और शिकारों को छोड़कर जाने को राजी नहीं थे। लेकिन लॉकडाउन ने यहां के बाशिंदों और टूरिज्म पर निर्भर इकोनॉमी को बर्बाद कर दिया।
हाउसबोट और होटल दोनों खाली हैं, न टूरिस्ट हैं न बिजनेस। इसके बाद भी डल झील पर रहनेवाले ये लोग कोरोनावायरस से जुड़े खतरे को लेकर ज्यादा सतर्क हैं। इससे जुड़े एहतियात उनके लिए सबसे अहम हैं।
कोरोना को लेकर श्रीनगर में मार्च में ही लॉकडाउन लगा दिया गया था, पूरे देश में लगे लॉकडाउन से एक हफ्ते पहले। राशिद अपनी उम्र को देखते हुए दो महीने घर से बाहर नहीं निकले। जो भी जमा पूंजी थी, सब खत्म होती गई तो ईद के बाद वो दोबारा रोजी जुटाने शिकारा लेकर निकलने लगे, लेकिन इस दौरान भी उन्होंने कभी सुरक्षा से समझौता नहीं किया।
सरकारी गाइडलाइन और प्रोटोकॉल वे कभी नहीं भूले। जब भी घर से निकले तो मास्क पहनकर ही निकले। शिकारे पर हैंड सैनिटाइजर भी साथ लेकर गए। राशिद और बाकी शिकारेवालों के लिए सोशल डिस्टेंसिंग का नियम कभी नहीं टूटा। अपने शिकारे में बैठे राशिद बीता वक्त याद करते हैं, जब डल आबाद थी।
कहते हैं, ‘पहले मैं हर दिन हजार रुपए कमाता था, इन दिनों एक रुपए भी नहीं हाथ आते हैं, कोई नहीं जानता ये लॉकडाउन कब खत्म होगा और कश्मीर में कब सबकुछ नॉर्मल होगा, लेकिन अभी जो सबसे अहम है वो है इस महामारी से निपटना।’
घनी आबादी के बाद भी कोरोना नहीं पसार पाया पांव
घनी आबादी होने के बाद भी डल झील इलाके में कोरोना के ज्यादा केस नहीं मिले हैं। शायद एक भी नहीं। सही नंबर पता करना इसलिए संभव नहीं, क्योंकि ये बेतरतीब सा फैला इलाका कोरोना की किस गिनती के हिस्से आएगा अंदाजा लगाना मुश्किल है।
शिकारे वाले राशिद मायूस हैं लेकिन हिम्मत अब भी टूटी नहीं है। अपने शिकारे का चप्पू थोड़ा धीमा कर कुछ देर सांस लेते हैं फिर कहते हैं, ‘मैं उम्र के 60 साल पार कर चुका हूं, मुझे इस बीमारी का ज्यादा खतरा है, इसलिए जब कोरोना फैला तो मैंने फैसला किया कि मैं घर में ही बैठूंगा, लेकिन फिर जिंदगी चलानी है तो बाहर आना ही होगा, 64 दिन बाद बोट लेकर घर से बाहर निकला।’
सबसे ज्यादा मौतें श्रीनगर में
22 जून तक जम्मू-कश्मीर में 6088 कोरोना के केस थे। लगभग 85 लोगों की इस बीमारी से मौत हुई है। इन मौतों में से 75 कश्मीर और 10 जम्मू में हुई हैं। पूरे इलाके में सबसे ज्यादा मौतें श्रीनगर में हुई हैं। डल लेक पर बसी कॉलोनी वालों पर अतिक्रमण करने और झील की खूबसूरती खराब करने के कई इलजाम लगते हैं। डल झील के संरक्षण के जरूरी एहतियातों की गैरमौजूदगी और सीवेज से जुड़ी दिक्कतों का ठीकरा भी कई बार यहां के बाशिंदों के सिर आया है।
यहां लगभग 50 हजार परिवार रहते हैं। ये परिवार सरकार के रीलोकेशन प्लान का हमेशा विरोध करते आए हैं। यही वजह है कि ये कहीं और जाकर घर बनाने और रहने की बजाए वहीं डल झील पर बनी झुग्गी, अस्थाई घरों और छोटे-मोटे शेड्स में रहना पसंद करते हैं। आखिर सवाल उनके रोजगार का है।
डल झील बड़े-बड़े अस्पतालों से घिरी है। एक किनारे पर कश्मीर का सबसे पुराना हॉस्पिटल है जो कश्मीर में कोरोना की टेस्टिंग और इलाज का सबसे प्रमुख अस्पताल है। वहीं दूसरी ओर एसकेआईएमएस है जो कोरोना इलाज का दूसरा बड़ा सेंटर है। जवाहर लाल नेहरू मेमोरियल अस्पताल भी डल झील से जुड़े नगीन लेक से ज्यादा दूर नहीं है।
जो भी सरकारें आईं उन्होंने डल झील की सफाई के नाम पर करोड़ों रुपए खर्च किए। एनवायरनमेंट एक्सपर्ट की मानें तो डल झील धीमी मौत मर रहा है। इसके पीछे यहां के पानी में सीवेज का मिलना और जलकुंभी का उगना है।