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कश्मीर पर दिल की दूरी मिटाने का फॉर्मूला:अनुच्छेद-371 बन सकता है घाटी में विश्वास बहाली का रास्ता, ये अभी 11 राज्यों में लागू

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कश्मीर पर दिल की दूरी मिटाने का फॉर्मूला:अनुच्छेद-371 बन सकता है घाटी में विश्वास बहाली का रास्ता, ये अभी 11 राज्यों में लागू

नई दिल्ली10 मिनट पहलेलेखक: मुकेश कौशिक/मोहित कंधारी

जम्मू-कश्मीर से आर्टिकल-370 और पूर्ण राज्य का दर्जा हटने के एक साल 10 महीने बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राज्य की 8 पार्टियों के 14 नेताओं से प्रधानमंत्री आवास पर गुरुवार को साढ़े तीन घंटे की मैराथन बैठक की। इस बैठक से राज्य में राजनीतिक हालात फिर सामान्य होने की उम्मीद बंधी है।

बैठक के बाद महबूबा मुफ्ती और उमर अब्दुल्ला समेत कश्मीर के नेता पूर्ण राज्य का दर्जा लौटाने के साथ ही आर्टिकल-370 की बहाली पर अड़े दिखे। हालांकि, घाटी में विश्वास बहाली का फॉर्मूला अब अनुच्छेद-371 बन सकता है।

महबूबा मुफ्ती ने बैठक में भी पाकिस्तान से बातचीत का मुद्दा उठाया। वहीं, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राज्य में परिसीमन की प्रक्रिया जल्द पूरी करने पर जोर दिया ताकि चुनाव का रास्ता साफ हो सके।

11 राज्यों में लागू है आर्टिकल-371
सूत्रों के मुताबिक, गतिरोध के इस दोराहे में बीच का रास्ता भी तलाश लिया गया है। यह फॉर्मूला आर्टिकल-370 की वापसी के बजाय जम्मू-कश्मीर के कुछ हिस्सों में आर्टिकल-371 के विशेष प्रावधान लागू करने का हो सकता है।

आर्टिकल-371 हिमाचल, गुजरात, उत्तराखंड समेत देश के 11 राज्यों में लागू है। चुनाव आयोग के सूत्रों के अनुसार राज्य के परिसीमन का काम 31 अगस्त तक पूरा हो जाएगा। तब तक आर्टिकल-371 के फॉर्मूले पर सहमति बनाने की कोशिश जारी है।

क्या है आर्टिकल-371

  • आर्टिकल-371 अभी देश के 11 राज्यों के विशिष्ट क्षेत्रों में लागू है। इसके तहत राज्य की स्थिति के हिसाब से सभी जगह अलग-अलग प्रावधान हैं।
  • हिमाचल में इस कानून के तहत कोई भी गैर-हिमाचली खेती की जमीन नहीं खरीद सकता।
  • मिजोरम में कोई गैर-मिजो आदिवासी जमीन नहीं खरीद सकता, मगर सरकार उद्योगों के लिए जमीन का अधिग्रहण कर सकती है। स्थानीय आबादी को शिक्षा और नौकरियों में विशेष अधिकार मिलते हैं।
  • इस कानून के तहत मूल आबादी की परंपराओं से विरोधाभास होने पर केंद्रीय कानूनों का प्रभाव सीमित हो सकता है।
  • जम्मू-कश्मीर के कुछ विशिष्ट इलाकों में ऐसे प्रावधान लागू किए जा सकते हैं, जिससे आर्टिकल-370 बहाली की क्षेत्रीय दलों की मांग कमजोर पड़ जाएगी।

परिसीमन पर मतभेद की वजह… जम्मू से ज्यादा सीटें होंगी, कश्मीरी नेता ये नहीं चाहते

गुरुवार को दिल्ली में हुई बैठक में परिसीमन के फॉर्मूले पर स्पष्ट सहमति नहीं दिखी। इसकी वजह यूं समझिए…

1. राज्य में कुछ विधानसभा सीटों को ST के लिए आरक्षित किया जाना है। यानी SC की 7 आरक्षित सीटों के रोटेशन के अलावा ST के लिए 10-12 सीटें आरक्षित की जा सकती हैं।
2. राज्य विधानसभा सीटें 83 से बढ़कर 90 हो जाएंगी। पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर के लिए 24 अतिरिक्त सीटें खाली रहती हैं। रिफ्यूजी इनमें से एक तिहाई सीटें आरक्षित करने की मांग कर रहे हैं।
3. जनगणना-2011 के अनुसार, जम्मू की हिस्सेदारी क्षेत्रफल में 25.93% और आबादी में 42.89% है। वहीं, कश्मीर की हिस्सेदारी क्षेत्रफल में 15.73% और आबादी में 54.93% है।

क्षेत्रीय दलों को ऐतराज क्यों?

  • दलों का मानना है कि परिसीमन की 7 सीटों में बड़ा हिस्सा जम्मू का ही होगा।
  • SC सीटों के रोटेशन पर ऐतराज है, क्योंकि कश्मीर में 96.4% मुस्लिम हैं। SC सीट होने से फायदा नहीं होगा।
  • वे पीओके की 24 में से एक तिहाई सीट रिफ्यूजी के लिए आरक्षित करने के पक्ष में नहीं हैं। अगर ऐसा होता है तो पावर जम्मू में केंद्रित हो जाएगी।

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