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कम्युनिटी ट्रांसमिशन से कैसे बचें:2 मीटर की तुलना में 1 मीटर की दूरी पर कोरोना संक्रमण का रिस्क 10 गुना ज्यादा, कम वेंटिलेशन वाली जगहों पर सिर्फ डिस्टेंसिंग से काम नहीं चलेगा

120 साल से भी पुरानी है सोशल डिस्टेंसिंग की थ्योरी, कोरोना से पहले दो महामारियों में इसे अजमाया जा चुका है एक्सपर्ट्स ने WHO के बताए फॉर्मूले की आलोचना की, कहा- दो मीटर की दूरी में ट्रांसमिशन होने की संभावना सिर्फ 1% है

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कोरोनावायरस से बचने के लिए सोशल डिस्टेंसिंग बेहद जरूरी है। पर क्या आपको पता है कि कितनी दूरी वायरस से बचने के लिए जरूरी है। इसे लेकर पहले दिन से ही वैज्ञानिकों के मत अलग-अलग रहे हैं। अब एक्सपर्ट्स सोशल डिस्टेंसिंग के लिए नया फॉर्मूला दे रहे हैं। उनका कहना है कि 2 मीटर की दूरी 1 मीटर से 10 गुना तक ज्यादा सुरक्षित है। इसके अलावा छोटी और कम वेंटिलेशन वाली जगहों पर सिर्फ सोशल डिस्टेंसिंग ही काफी नहीं है।

सोशल डिस्टेंसिंग को लेकर हेल्थ एजेंसियां क्या कहती हैं?

  • WHO द्वारा गठित एक आयोग ने कोरोना के ट्रांसमिशन में फिजिकल डिस्टेंसिंग को लेकर अध्ययन किया। इसमें पता चला कि 1 मीटर से कम की फिजिकल डिस्टेंसिंग में ट्रांसमिशन का रिस्क 12.8% है, जबकि एक मीटर तक में 2.6% है।
  • ब्रिटेन के साइंटिफिक एडवाइजरी ग्रुप के एक अध्ययन के मुताबिक, 2 मीटर की दूरी की तुलना में 1 मीटर की दूरी पर ट्रांसमिशन का रिस्क में 2 से 10 गुना ज्यादा रहता है।
  • एक्सपर्ट्स WHO की आलोचना करते हुए कहते हैं कि उसे आयोग ने पुरानी स्टडी के तथ्यों को ही अपने निष्कर्ष के तौर पर दुनिया के सामने रख दिया। लगभग यही नियम सार्स और मार्स वायरस के दौरान भी इस्तेमाल किया गया था।

सिर्फ डिस्टेंसिंग से ही काम नहीं चलेगा

  • छोटी और कम वेंटिलेशन वाली जगहों पर हवा के बाहर न पाने की वजह से ब्रीदिंग ड्रॉपलेट्स के ट्रांसमिशन का रिस्क ज्यादा रहता है। ऐसी जगहों पर डिस्टेंसिंग के साथ-साथ मास्क लगाना बेहद जरूरी होता है।
  • खुली और बड़ी जगहों पर कम से कम एक मीटर की दूरी बनानी ही चाहिए। हालांकि, दो मीटर की दूरी ज्यादा सेफ है। एक्सपर्ट्स का कहना है कि दो मीटर की दूरी में ट्रांसमिशन होने की संभावना सिर्फ 1% है।

जानिए कहां से आई सोशल डिस्टेंसिंग थ्योरी?

बोलने और खांसने में किस साइज के ड्रॉपलेट्स निकलते हैं और कितनी दूर तक ट्रांसमिट हो सकते हैं। इस बात का अध्ययन पहली बार 1897 में किया गया था, लेकिन तब उतने संसाधन मौजूद नहीं थे। इसलिए 1942 में इसका विजुअल डॉक्यूमेंटेशन पेश किया गया। ये विजुअल तभी का है। स्रोत-बीजीएम
बोलने और खांसने में किस साइज के ड्रॉपलेट्स निकलते हैं और कितनी दूर तक ट्रांसमिट हो सकते हैं। इस बात का अध्ययन पहली बार 1897 में किया गया था, लेकिन तब उतने संसाधन मौजूद नहीं थे। इसलिए 1942 में इसका विजुअल डॉक्यूमेंटेशन पेश किया गया। ये विजुअल तभी का है। स्रोत-बीजीएम
ड्रॉपलेट्स के ट्रांसमिशन के अध्ययन के आधार पर 1942 में बनाया गया विजुअल प्रजेंटेशन। स्रोत-बीजीएम
ड्रॉपलेट्स के ट्रांसमिशन के अध्ययन के आधार पर 1942 में बनाया गया विजुअल प्रजेंटेशन। स्रोत-बीजीएम

जगह पर ट्रांसमिशन का कितना रिस्क?

एक छोटे और चारों तरफ से बंद कमरे में डिस्टेंसिंग ज्यादा करनी होगी। आप जहां भी हैं उस कमरे या हॉल की साइज और वेंटिलेशन पर भी फिजिकल डिस्टेंसिंग की दूरी निर्भर करती है। लो रिस्क और मीडियम रिस्क वाली जगहों पर 1 मीटर की फिजिकल डिस्टेंसिंग तो रखनी ही चाहिए।

पर हाई रिस्क वाली जगहों पर 2 मीटर या उससे ज्यादा की दूरी बनानी है। रिसर्च एजेंसी द बीएमजे ने अलग-अलग जगहों को हाई रिस्क, मीडियम रिस्क और लो रिस्क में बांटा है। आइए जानते हैं कि कहां रिस्क का लेवल क्या है?

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