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एक्सपर्ट्स से जानिए इन्हें कैसे खत्म करना है, क्योंकि किसानों के पास बचे हैं सिर्फ 30 दिन

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टिड्डियों ने देश के किसानों पर तीन दशक का सबसे बड़ा हमला बोला है। इससे राजस्थान, हरियाणा, दिल्ली, गुजरात, मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र और पश्चिमी यूपी के किसान दहशत में आ गए हैं। वहीं, केंद्र सरकार ने 12 राज्यों में टिडि्डयों के खतरे को देखते हुए एडवाइजरी जारी की है। केंद्र और राज्य सरकारों की टीमें ड्रोन, ट्रैक्टर और मिनी ट्रकों की मदद से टिड्डियों के इलाकों की पहचान में जुटी हैं। किसान टिडि्डयों को भगाने के लिए देसी तरीके अपना रहे हैं। एक्सपर्ट्स का दावा है कि अब तक टिड्डियों ने 60 से 70 हजार हेक्टेयर फसल चौपट कर दी है।

कृषि विशेषज्ञों की मानें तो अभी जो टिडि्डयां आई हैं, वे अंडे देनी वाली टिड्‌डी नहीं हैं, ये सिर्फ फसल खाएंगी। फिर उड़ जाएंगी। इनका दूसरा हमला अगस्त-सितंबर में खरीफ की फसल पर हो सकता है। क्योंकि इन्हें अंडे देने में एक महीने का वक्त लगता है।

  • टिडि्डयों से अभी किस तरह का नुकसान हो रहा है?

25 साल तक लोकस्ट वाॅर्निंग ऑर्गेनाइजेशन में कृषि वैज्ञानिक रहे अनिल शर्मा कहते हैं कि अभी तो खरीफ की फसल नहीं है, मानसून आने के साथ वह लगाई जाएगी। लेकिन टिडि्डयां अभी फलों और सब्जियों को नुकसान पहुंचा रही हैं। टिडि्डयां पूरी हरियाली को खत्म कर देती हैं। उनके सामने जो भी हरी पत्ति दिखती है, उसे वे खा जाती हैं।

  • क्या ये बच्चे भी पैदा कर रही हैं?

डॉ. अनिल कहते हैं कि अभी जो टिडि्डयां आई हैं, वे बच्चे देने वाली नहीं हैं, ज्यादातर का कलर पिंक (गुलाबी) है, जब ये सेक्सुअली मेच्योर हो जाती हैं, तब ये अंडे देना शुरू करती हैं। ये अभी सिर्फ फसल खाएंगी और खुद को डेवलप करेंगी। फिर करीब एक महीने बाद जब पीली हो जाएंगी, तब बच्चों को जन्म देंगी।

  • एक दल में कितनी टिड्‌डी होती हैं?

सामान्य तौर पर एक दल में 4 से 8 करोड़ टिड्‌डी होती हैं। इससे ज्यादा भी हो सकती हैं। निर्भर करता है कि इन्होंने दल कितना बड़ा बनाया हुआ है। यह एक वर्ग किमी के दायरे में फैली होती हैं। यह लगातार फसल को खाती रहती हैं।

  • एक रात में कितना अनाज खा जाती हैं?

डॉ. अनिल कहते हैं कि टिडि्डयों का एक दल एक रात में करीब 3500 लोगों द्वारा खाए जाने जितना खाना खा जाती हैं। टिडि्डयां का अभी देश के 7 राज्यों में आतंक है।

  • बचाव के लिए किसान क्या करें?

डॉ. अनिल कहते हैं कि टिड्‌डी दल को कैमिकल द्वारा ही कंट्रोल किया जा सकता है। खासकर, पेस्टीसाइड्स का इस्तेमाल करके। क्योंकि जब करोड़ों की संख्या में टिट्डी आती हैं, तो उन्हें रोकने का और कोई उपाय नहीं है। जरूरत होती है कि इनके दल को बिखेरना की। ताकि वापस वे इक्ट्‌ठे न हो पाएं। यदि 30% से 40% टिडि्डयां भी मर जाएंगी, तो इनका दल बिखर जाता है, फिर ये फसलों पर बैठने का हिम्मत नहीं दिखा पाती हैं।

रेगिस्तानी इलाकों में किसान खाईं खोद देते हैं, ताकि जब यहां टिडि्डयां बैठें और अंडे दें तो वे उस पर मिट्टी डाल दें। ऐसे में टिडि्डयों की नई पीढ़ी विकसित नहीं होती है। कई बार पेट्रोल डालकर आग भी लगा देते हैं। टिडि्डयों से खरीफ की फसल बचाने के लिए किसानों को अपने खेतों की रखवाली करनी होगी, ताकि टिडि्डयों के दल को वे बैठने से पहले ही उड़ा दें। शाम के वक्त खेत के किनारे पर धुंआ करना होगा।

  • कितना उड़ती हैं?

टिडिड्यां जब दल में होती हैं, तो एक दिन में 120 से 150 किलोमीटर तक उड़ती हैं। यह सुबह होने के साथ ही बहुत जल्दी फरार हो जाती हैं, इसलिए आप कहां-कहां इन्हें खोजेंगे। ये हवा के रुख के साथ उड़ जाती हैं।

  • कहां से आती हैं?

डॉ. अनिल शर्मा कहते हैं कि टिडि्डयों का 64 देशों में आना-जाना लगा रहता है। ये पैदा दक्षिण ईरान और दक्षिण-पश्चिम पाकिस्तान में होती हैं। यह इनका स्प्रिंग विडिंग एरिया है। यहां से कुछ दल अफ्रीका, मिडिल-ईस्ट एशिया की ओर उड़ जाती हैं। इनका समर विडिंग एरिया पाकिस्तान का थार इलाका है। यहां से जून-जुलाई महीने में भारत आती हैं।

  • कहां देती हैं अंडे?

डाॅ. अनिल कहते हैं कि पीले रंग वाली टिडि्डयां रेतीले जमीनों में अंडे देती हैं। क्योंकि इनके बच्चों को डेवलप होने के लिए गर्म जलवायु और बलुई मिट्‌टी वाली जगह की जरूरत होती है। भारत और पाकिस्तान में थार का इलाका इनके लिए बहुत ही मुफीद होता है।

  • टिडि्डयों की लाइफ साइकिल क्या है?

1- अभी जो टिडि्डयां भारत में आई हैं, उनमें ज्यादातर पिंक कलर की हैं, वे जब तक सेक्सुअली मेच्योर नहीं हो जाएंगी, तब तक ये पीले कलर की नहीं होंगी। जब ये पीले कलर की होंगी तभी, ये अंडे देंगी।

2- अंडे देने से पहले ये वापस रेगिस्तानी इलाकों में लौटने की कोशिश करती हैं, ताकि इनके बच्चे को विकसित होने के लिए मुफीद मौसम मिले। यदि मैदानी और पहाड़ी इलाकों में अंडे देंगी तो बच्चे मर जाएंगे।

3- पिंक टिड्‌डी को मेच्योर होने में एक महीने का वक्त लगता है। इसके बाद ही उन्हें अंडे देने में करीब एक महीने का वक्त लगता है। फिर अंडे विकसत होकर बच्चे बनेंगे।

4- बच्चों को उड़ने में एक महीने से ज्यादा का वक्त लगता है। क्योंकि वे पंख मजबूत होने पर ही उड़ते हैं, इसलिए कई टिडि्डयों के दल अगस्त-सितंबर में भी मैदानी इलाकों का रुख करते हैं।

  • सरकार ने क्यों जारी किया अलर्ट? 

सरकार ने मानसून से पहले किसानों के लिए इसलिए एडवाइजरी जारी की है, क्योंकि बरसात के साथ ही रेगिस्तानी इलाकों से टिडि्डयाें का दल उड़कर पश्चिम-उत्तर और मध्य भारत के राज्यों में पहुंच सकता है। खासकर, पाकिस्तान से सटे इलाकों में।

1993 की तरह मॉनिटरिंग और फॉलोअप लेकर इन्हें खत्म किया जा सकता है

टिडि्डयों के खिलाफ 8 से 10 कंट्रोल ऑपरेशन कर चुके कृषि वैज्ञानिक अनिल शर्मा कहते हैं कि इससे पहले टिडि्डयों का सबसे बड़ा अटैक 1993 में हुआ था। तब मैंने ऑपरेशन कराए थे। तब हमने सबसे ज्यादा फोकस मॉनिटरिंग और फॉलोअप पर किया था। हम दिन में टिडि्डयों को ट्रैक करते थे, रात में ऑपरेशन करते थे, इस बार भी यदि ऐसा किया जाए तो इस समस्या को आसानी से खत्म किया जा सकता है। तब एयर प्लेन भी लगाए गए थे। इस बार भी यूके से उपकरण आ रहे हैं, ड्रोन और गाड़ियां भी खरीदी जा रही हैं।

लोकस्ट वॉर्निंग ऑर्गेनाइजेशन की 50 टीमों के 200 कर्मचारी टिडि्डयों को भगाने में जुटे हैं

  • फरीदाबाद स्थित लोकस्ट वॉर्निंग ऑर्गेनाइजेशन में डिप्टी डायरेक्टर केएल गुर्जर कहते हैं कि अभी तो मुख्य रूप से राजस्थान ओर मध्यप्रदेश में ही टिडि्डयों का आतंक है। अभी खरीफ की फसल नहीं हैं, इसलिए इनसे सिर्फ सब्जियों का ही नुकसान है। टिडि्डयां सिर्फ पत्ते खा रही हैं।
  • इनको मारने के लिए कैमिकल का इस्तेमाल किया जा रहा है। इसमें 96% मैलाथियान इस्तेमाल किया जा रहा है। इसके अलावा लेम्ब्डासाइलोथ्रिन है, क्लोरोफाइरोफास भी प्रयोग कर रहे हैं।
  • गुर्जर कहते हैं कि हमारी टीमें रात से सुबह तक टिडि्डयों को मारने का अभियान चला रही हैं। अलग-अलग राज्यों में लोकस्ट की 50 टीमों के 200 कर्मचारी इस काम में लगे हैं। इसके अलावा राज्य के कृषि विभाग के अधिकारी भी सहयोग कर रहे हैं।

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