1990 के दशक में आमिर खान अपनी एक फिल्म के दृश्य में गाते नजर आते हैं – अकेले हैं तो क्या गम है…। तीस साल पहले शायद कोई गम नहीं था, लेकिन बीते कुछ वर्षों के दौरान अकेलापन भी एक ‘गम’ बन चुका है। वैसे अकेलापन अपने आप में कोई समस्या नहीं है, लेकिन जब यह हद से ज्यादा गुजर जाता है तो कई समस्याओं का सबब बन जाता है। इससे मानसिक तौर पर जो समस्याएं पैदा हो रही हैं, वे न केवल अवसाद का शिकार बना रही हैं, बल्कि खुदकुशी के लिए भी उकसा रही हैं। दुनियाभर में हुए लॉकडाउन के दौरान किए गए सर्वे भी इस ओर इशारा करते हैं कि अकेले लोगों को मानसिक तौर पर ज्यादा दिक्कतों का सामना करना पड़ा, बनिस्बत उनके जो परिवारों के साथ थे।
क्यों अकेलापन महसूस होने लगा हर जगह?
आज जिसे अकेलापन कह रहे हैं, वह पहले नहीं था। पहले संयुक्त परिवारों में वह सीखता था कि लड़कर भी साथ में कैसे रह सकते हैं। लेकिन अब संयुक्त परिवार खत्म हो रहे हैं तो ‘एडजस्ट’ करना वह भूलता जा रहा है और अकेले में रहने का आदी हो रहा है। पहले हमारे यहां मोहल्ला संस्कृति हुआ करती थी। अब यह बहुत छोटे शहरों में बची है। यह संस्कृति व्यक्ति को अकेला नहीं रहने देती थी, भले ही वह घर में अकेला क्यों न हो। मोहल्ले का हर आदमी हमें जानता था और हम मोहल्ले के हर आदमी को जानते थे। लेकिन मोहल्लादारी खत्म हो गई। पहले आदमी को देखकर दूसरा आदमी मुंह नहीं फेर लेता था, बल्कि उसके पास पहुंचकर उसके हालचाल पूछ लेता था। आज आदमी बस अपने परिवार तक सीमित रह गया है। और जब परिवार भी उसकी भावनाएं नहीं समझ पाता है तो फिर वह अकेला रह जाता है।
क्या सफलता मतलब ज्यादा अकेलापन?
सफलता आदमी को अपने उन करीबियों से दूर ले जाती है, जो उसके अपने होते हैं जैसे बचपन या मोहल्ले के दोस्त, रिश्तेदार या उसके शिक्षक। इसमें उनका कोई दोष नहीं है। यह स्वाभाविक है। और जरूरी नहीं है कि ऐसा केवल बहुत सफल या सेलेब्स के साथ ही होता है। आज काम-धंधे की तलाश में या अच्छी नौकरी के सिलसिले में व्यक्ति अपने परिवेश को छोड़कर नई जगह जाता है। अगर ऐसे में वह अंतर्मुखी है तो अकेलेपन का शिकार हो जाता है।
क्या अकेलापन मतलब डिप्रेशन?
नहीं। हर अकेला आदमी डिप्रेशन का शिकार नहीं है। अकेलापन डिप्रेशन का एक ट्रिगर हो सकता है यानी एक कारण हो सकता है, लेकिन जरूरी नहीं है कि अकेलेपन की वजह से आदमी डिप्रेशन का शिकार होगा ही। डिप्रेशन के तो जेनेटिक, सोशल, बायोलॉजिकल, पर्सनल आदि कई कारण हो सकते हैं। वैसे साइकोलॉजिकल बीमारियों में हमें कारणों में न उलझने के बजाय सीधे इलाज पर फोकस करना चाहिए। लेकिन हम उसके कारणों में ही उलझ जाते हैं।
क्या करें कि डिप्रेशन में न बदले अकेलापन?
जब व्यक्ति अकेला होता है और अगर वह किसी समस्या से परेशान भी है तो यह आगे चलकर डिप्रेशन में बदल सकता है। इसलिए समस्या डिप्रेशन में न बदलें, इसके लिए कुछ सामान्य कार्य किए जा सकते हैं। डिप्रेशन में आने के बाद तो उसका समाधान साइकोलॉजिस्ट और साइकिएट्रिस्ट द्वारा मिलकर किया जाने वाला इलाज ही है।
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जब अकेले महसूस करे तो किसी से भी बात करें, खासकर ऐसे लोगों से जो आपको बगैर जज किए सुनने की क्षमता रखते हो।
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अपने शौक को कल्पनाओं के पंख दें। अगर आप कोई क्रिएटिव काम करते आए हैं जैसे पेंटिंग, ड्राइंग, डांसिंग, म्यूजिक कम्पोजिंग तो उसे नेस्क्ट लेवल पर ले जाने का प्रयास करें।
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नियमित कसरत या योग करते रहें। सुबह की सैर पर जाएं। यह अकेलेपन से डिप्रेशन में जाने से बचाने का सबसे कारगर उपाय है।
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अपनी तुलना दूसरों से ना करें, क्योंकि जब भी हम तुलना करेंगे तो कुछ लोग ऐसे मिलेंगे ही जिनसे आप खुद को कमतर महसूस करेंगे। हर व्यक्ति अद्वितीय है। हर व्यक्ति में कुछ अच्छा होता है, कुछ खराब।
खतरनाक हैं ये संकेत
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जब कोई यह कहने लगे कि ज़िंदगी बेकार हो गई है।
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जब कोई हर बात में नाउम्मीदी दिखाने लगे।
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असहाय का भाव दिखाना कि कोई मदद नहीं कर रहा।
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पेंडिंग काम करने लगना जैसे बच्चों की शादी की योजना बनाना आदि।
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करीबियों को सीक्रेट बताने लगना जैसे बीमा पॉलिसियों के बारे में, पासवर्ड के बारे में बताना।
(ये डिप्रेशन के लक्षण हैं और इस स्थिति में किसी विशेषज्ञ को दिखाना जरूरी हो जाता है।)