सस्ता सामान खरीदने नेपाल से भारत के इस बाजार आते थे लोग, दुकानों का किराया 50 हजार रुपए,भारत-नेपाल बॉर्डर का पंटोका गांव, बाशिंदे काम करने जाते थे नेपाल, बॉर्डर सील हुआ तो सब हो गए बेरोजगार
जो चीज भारत में 400 रुपए में मिल जाती है, वो नेपाल में 800 रुपए में मिलती है, यही वजह रही है कि नेपाली ग्राहक भारत आकर जमकर खरीदी करते रहे हैं कॉस्टमेटिक विक्रेता कहते हैं, हमारा सामान खूब बिकता था क्योंकि नेपाली लोगों को सजने-संवरने का बहुत शौक है, वो महंगी से महंगी चीजें खरीद कर ले जाते थे,
- जो चीज भारत में 400 रुपए में मिल जाती है, वो नेपाल में 800 रुपए में मिलती है, यही वजह रही है कि नेपाली ग्राहक भारत आकर जमकर खरीदी करते रहे हैं
- कॉस्टमेटिक विक्रेता कहते हैं, हमारा सामान खूब बिकता था क्योंकि नेपाली लोगों को सजने-संवरने का बहुत शौक है, वो महंगी से महंगी चीजें खरीद कर ले जाते थे
रक्सौल. बिहार के पूर्वी चम्पारण का एक छोटा सा शहर है रक्सौल। यहां का पूरा मार्केट एक सड़क के दोनों ओर सिमटा हुआ है। लेकिन दुकानों का किराया 50 हजार रुपए महीना तक है। वजह यहां से खरीददारी लाखों में हुआ करती थी। और ज्यादातर खरीददार होते थे नेपाली। सुबह से लेकर देर रात तक बाजार गुलजार होता था। इतनी भीड़ होती थी कि पैर रखने की जगह न मिले और अब हालात ऐसे हैं कि ग्राहकों को देखने के लिए व्यापारियों की आंखें तरस गई हैं।
नेपाल में राशन-कपड़ा-इलेक्ट्रॉनिक सामान से लेकर बर्तन तक भारत के मुकाबले काफी महंगे मिलते हैं। वहां की सरकार मोटी कस्टम ड्यूटी वसूलती है। ज्यादातर सामान दूसरे देशों से लाया जाता है। इसलिए जो चीज भारत में 400 रुपए में मिल जाती है, वो नेपाल में 800 रुपए में मिलती है। यही वजह रही है कि नेपाली ग्राहक भारत आकर जमकर खरीदी करते रहे हैं।
रक्सौल का पूरा बाजार बसा ही नेपालियों के चलते है। कपड़ा व्यापारी नियाज अहमद कहते हैं, ‘हम 2006 से रक्सौल में दुकान चला रहे हैं। यहां 80 से 90 प्रतिशत नेपाली ग्राहक थे। जब से लॉकडाउन लगा है और बॉर्डर सील है तो कोई भी ग्राहक रक्सौल नहीं आ पा रहा है। हमारी तो पूरी ग्राहकी ही चौपट हो गई। अब तो ऐसे हालात हैं कि दिन में एक, दो ग्राहक आ जाएं तो बहुत बड़ी बात है।’
रक्सौल के टैक्सटाइल चैम्बर ऑफ कॉमर्स के अध्यक्ष अरुण कुमार गुप्ता के मुताबिक रक्सौल में कपड़े की करीब 150 दुकानें हैं और हालात ऐसे हैं कि 120 से 130 दुकानों में तो ग्राहकी शुरू ही नहीं हो पा रही है। गुप्ता बताते हैं इस बाजार में मेन रोड पर बनी दुकानों का किराया 50 हजार रुपए महीना तक है लेकिन अब तो हालात ऐसे बन रहे हैं कि किराया देना ही मुश्किल हो गया है।
लोग स्टाफ भी कम करते जा रहे हैं। बर्तन कारोबारी निकेश कुमार शर्मा का मानना है कि कोरोना वायरस का डर खत्म होने के बाद नेपाली ग्राहक फिर वापस लौटेंगे क्योंकि उनके पास भी कोई विकल्प नहीं है। नेपाल में सामान इतना महंगा है कि वो वहां से ज्यादा दिनों तक खरीदी कर नहीं सकते।
बिहार सीमा जागरण मंच के प्रदेश अध्यक्ष और रक्सौल के बड़े कारोबारी महेश अग्रवाल कहते हैं, ‘नेपाल और भारत का रोटी-बेटी का संबंध है। यानी एक-दूसरे के यहां बेटी ब्याही जाती हैं और लोग कामधंधा करने आते-जाते हैं। न उनके बिना हमारा चलेगा और न हमारे बिना उनका चलेगा क्योंकि सालों का रिश्ता-नाता है। पूरा बाजार अनलॉक होने के बाद भी वीरान है। बॉर्डर जल्दी नहीं खुली तो आने वाले समय में स्थिति बहुत भयावह हो जाएगी। कई दुकानदार कामधंधा बंद करने के लिए मजबूर हो गए हैं।
कॉस्टमेटिक विक्रेता राजेंद्र कुमार कहते हैं कि, पहले के मुकाबले दस परसेंट ग्राहकी भी नहीं है। वे कहते हैं हमारा कॉस्मेटिक का सामान खूब बिकता था क्योंकि नेपाली लोग सजने-संवरने में बहुत शौकीन होते हैं। वो महंगी से महंगी चीजें खरीद कर ले जाते थे,लेकिन बीते चार महीने से जो हालात बने हैं, उसने सब तबाह कर दिया। किसी भी तरह बस मार्केट पहले की तरह खुल जाए हम यही चाहते हैं।
बॉर्डर का पंटोका गांव, बॉर्डर सील हुआ तो सब हो गए बेरोजगार
- कोई आखिरी बार अपनी पत्नी का चेहरा नहीं देख सका तो किसी का 8 साल का बच्चा नेपाल में ही फंसा
- पहले पूरा दिन नेपाल में बीतता था, वहीं काम-धंधा करते थे अब जाओ तो फोर्स के डंडे पड़ते हैं, जबकि नेपाल के लोग राशन-कपड़ा खरीदने यहां आ जाते हैं
- रक्सौल का पंटोका गांव भारत-नेपाल सीमा से एकदम सटा हुआ है, यहां के लोग सालों से काम करने नेपाल के बीरगंज जा रहे थे
रक्सौल. बिहार के पूर्वी चम्पारण के रक्सौल में एक छोटा सा गांव पंटोका है। यह गांव भारत-नेपाल की सीमा से सटा हुआ है। यहां से आधा किमी की दूरी पर नेपाल है। एक ओर कदम रखो तो भारत और दूसरी तरफ रखो तो नेपाल लग जाता है।
पंटोका के 90 प्रतिशत से ज्यादा लोग कामकाज करने नेपाल के बीरगंज जाया करते थे। कोई वहां रिक्शा चलाता था। कोई मजदूरी करता था। किसी की दुकान थी तो कोई घर बनाने का काम करता था। नेपाल जाने के लिए इन लोगों से न कभी कोई कागजात मांगे गए और न ही कोई पूछताछ हुई।
यहां की बहन-बेटियां नेपाल में ब्याही हैं और नेपाल की कई बेटियों का ससुराल पंटोका है। सालों से इन लोगों को कभी यह महसूस ही नहीं हुआ कि भारत और नेपाल दो अलग-अलग देश हैं। ये मिनटों में पैदल चलकर भारत से नेपाल पहुंच जाया करते थे। आधे घंटे साइकिल चलाई तो बीरगंज में होते थे।
लेकिन पिछले कुछ महीनों में सबकुछ बदल चुका है। अब ये लोग नेपाल जाते हैं तो वहां इन्हें पुलिस डंडे मारती है। एसएसबी के जवान सीमा से आगे बढ़ने ही नहीं देते। पिछले एक महीने में ही कई ग्रामीणों के साथ सुरक्षा बलों ने मारपीट की है।
ग्रामीणों को लगता था कि पहले लॉकडाउन के चलते ऐसा हो रहा था, लेकिन अब नेपाल में बाजार-दुकान-दफ्तर सब खुल गया है और भारत में भी अनलॉक शुरू हो चुका है, इसके बावजूद भारत-नेपाल सीमा नहीं खुली। पंटोका में रहने वाले भुनेसरा कहते हैं, ‘ कमाने-खाने बीरगंज जाते थे। चार महीने से नहीं जा पाए। घर में ही बैठे हैं। क्योंकि रक्सौल में करने के लिए कुछ है ही नहीं।’
सरजूराम कहते हैं, ‘नेपाल का आदमी तो बिना डर के भारत आ रहा है, लेकिन हम लोग नहीं जा पा रहे। वहां जाओ तो नेपाल फोर्स के जवान मारते हैं। अंदर नहीं घुसने देते। जबकि वहां के लोग हमारे यहां अंदर तक घुस आते हैं।’
सरजूराम के मुताबिक, पंटोका का कोई आदमी नेपाल में ट्रांसपोर्ट का काम करता था। कोई दिहाड़ी पर जाता था। कोई रिक्शा चलाता था। सबके पास करने के लिए कुछ न कुछ था। कई लोग फैक्ट्री में काम करते थे। लॉकडाउन लगने के बाद से सब बंद है। अब दोनों देशों के बीच तनातनी चल रही है तो क्या पता पहले की तरह बॉर्डर कब खुलेगी।
अब नेपाल के लोग नहीं चाहते, हम उनके साथ काम करें
पंटोका के ही बच्चासा ने बताया कि, ‘मेरी नेपाल में किराने की दुकान है। पंटोका से महज आधा किमी दूर है। लेकिन चार महीने से दुकान भी नहीं खोल पाया। उसमें रखा बहुत सा सामान खराब हो गया होगा। इमरजेंसी में भी हमें कोई वहां घुसने नहीं दे रहा। जबकि उनके लोग चोरी-छुपे आ रहे हैं और कपड़ा-किराना यहां से लेकर जा रहे हैं।’
बच्चासा कहते हैं कि, भारत और नेपाल दो अलग-अलग देश हैं ऐसा हमें कभी लगा ही नहीं। न कभी कोई जांच हुई, न पड़ताल। कोई कागज कभी नहीं लगा। बस साइकिल उठाई और पहुंच गए नेपाल। अपनी जिंदगी में पहली दफा ऐसा देख रहे हैं कि बॉर्डर सील है और यहां-वहां से आने-जाने पर रोक है। संतोषी देवी कहती हैं कि, पहले दिन में एक भी आदमी गांव में नहीं होता था लेकिन अब सब दिनभर सड़क पर घूमते रहते हैं।
दुर्गाप्रसाद कुशवाह के मुताबिक, अब नेपाल के लोग भी नहीं चाहते कि हम उनके साथ काम करें। क्योंकि हमारे नहीं जाने से उन्हें ज्यादा मजदूरी मिलने लगी है। दुर्गाप्रसाद कहते हैं, बिहारी सबसे अच्छे कारीगर होते हैं। बीरगंज में नेपाली हमारे हेल्पर होते थे और हम कारीगर। हमें आठ सौ रुपया रोज मिलता था और उन्हें चार सौ रुपया।
अब हम नहीं जा रहे तो उनकी डिमांड बढ़ गई। उन्हें छ सौ रुपया मिलने लगा। हेल्पर थे तो थोड़ा बहुत काम सीख गए थे। इसलिए अब वो लोग भी नहीं चाहते कि हम वहां जाएं। वो लोग चाहते हैं कि दोनों देशों में लड़ाई और बढ़े और सरकार हमें नेपाल में न घुसने दे।
आठ साल का बेटा नेपाल में फंसा है, ला नहीं पा रहे
पंटोका के रामबाबू की परेशानी थोड़ी अलग है। उनका आठ साल का बच्चा पिछले चार महीने से नेपाल में फंसा है, लेकिन वो उसे पंटोका नहीं ला पा रहे। रामबाबू कहते हैं, मेरी नेपाल में ससुराल की तरफ की रिश्तेदारी है, वहीं बच्चा गया था। फिर लॉकडाउन लग गया तो वो वहीं फंसा रह गया।
अब जब नेपाल और भारत दोनों में ही लॉकडाउन खुल रहा है तब भी मैं अपने बच्चे को नहीं ला पा रहा क्योंकि बॉर्डर सील है। एक बार लेने निकला भी था लेकिन सीमा पर तैनात जवानों ने डंडा मारकर भगा दिया। रामबाबू के मुताबिक, नेपाल के लोग हर रोज सब्जी-किराना खरीदने भारत आ जाते हैं। लेकिन हम लोग यहां से नहीं जा पाते।
वे कहते हैं नेपाली या तो खेत से आते हैं या फिर सुरक्षा जवानों को पैसे देकर अंदर घुस जाते हैं। हमारे पास जवानों को देने के लिए पैसे नहीं हैं इसलिए हम उधर नहीं जा पा रहे। अब रामबाबू को बॉर्डर खुलने का इंतजार है, ताकि वो अपने आठ साल के बच्चे को अपने गांव ला सकें।
शादी करने लड़की अकेली आई, परिवार को आने नहीं दिया
पंटोका के लवकुश की नेपाल की संगीता से अप्रैल में शादी होना तय थी। फिर लॉकडाउन लग गया और बॉर्डर सील हो गई। लवकुश ने बताया कि जून में लॉकडाउन खुलने के बाद हमने शादी की तारीख तय की लेकिन नेपाल से लड़की के किसी भी रिश्तेदार को भारत नहीं आने दिया गया। पूरे परिवार को छोड़कर लड़की अकेली ही रक्सौल आ गई।
फिर ग्रामीणों ने दोनों की शादी करवा दी। इसमें लड़के का तो पूरा परिवार था लेकिन लड़की तरफ से कोई नहीं था। शादी के बाद से अभी तक लड़की नेपाल नहीं जा सकी है और उसके परिवार का भी कोई भारत नहीं आया है। दोनों को ही बॉर्डर खुलने का इंतजार है, ताकि पहले की तरह ये वहां जा सकें और वो लोग यहां आ सकें।
पत्नी का आखिरी बार चेहरा भी नहीं देख सके
देवशरण की पत्नी नेपाली की थीं। डिलीवरी होने वाली थी तो देवशरण पत्नी को उसके मां-बाप के पास ही छोड़ आए थे। डिलीवरी के दौरान ही उसकी तबीयत बिगड़ गई। शरीर में खून की कमी हो गई। डॉक्टर्स ने कहा कि, इसको बचा पाना मुश्किल है। उसके परिवार ने तुरंत देवशरण को इस बारे में बताया और नेपाल बुलाया। तमाम कोशिशों के बाद भी देवशरण को बॉर्डर से एंट्री नहीं मिल पाई।
उसने बताया कि मेरी पत्नी जिंदगी-मौत के बीच झूल रही है तो जवानों ने कहा कि अभी नेपाल के साथ टेंशन चल रही है, तुम वहां नहीं जा सकते। पत्नी ने बच्चे को जन्म तो दिया लेकिन न मां जिंदा बची और न ही बच्चा। परिवार ने दोनों का अंतिम संस्कार कर दिया। देवशरण पत्नी का आखिरी बार चेहरा भी नहीं देख पाया। कहता है, मैंने कभी नहीं सोचा था कि भारत और नेपाल के बीच ऐसे हालात बनेंगे।