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सरकार 15 अगस्त तक कोरोना का टीका लाना चाहती थी, लेकिन एक्सपर्ट्स के विरोध के बाद पीछे हटी, इस तरह के मामले में जल्दबाजी क्यों ठीक नहीं?

न्यूयॉर्क टाइम्स के कोविड-19 वैक्सीन ट्रैकर के मुताबिक, दुनियाभर में 145 से ज्यादा कंपनियां/संस्थाएं कोविड-19 का टीका बना रही हैं। 20 से ज्यादा टीके ह्यूमन ट्रायल्स के स्टेज पर आ चुके हैं। जल्द से जल्द टीका बनाने के लिए रात-दिन काम कर रहे वैज्ञानिकों का कहना है कि प्रक्रिया का पालन करें तो आम तौर पर वैक्सीन डेवलप होने में कई साल लग जाते हैं। हालांकि, कोविड-19 की गंभीरता देखते हुए ह्यूमन ट्रायल्स के फेज-1, फेज-2 और फेज-3 को मर्ज किया जा रहा है। ऐसा सिर्फ भारत में नहीं, बल्कि पूरी दुनिया में किया जा रहा है।

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कोरोना ने जिंदगी के हर पहलू को बुरी तरह प्रभावित किया है। मास्क और सोशल डिस्टेंसिंग न्यू नॉर्मल बन चुके हैं। स्कूल-कॉलेज ही नहीं, बल्कि कई कमर्शियल गतिविधियां अब भी बंद हैं। ऐसे में सभी को उम्मीद है कि कोरोना का टीका आने के बाद हालात पहले जैसे हो जाएंगे। लेकिन क्या इसके लिए जल्दबाजी ठीक है?

वैज्ञानिक नहीं चाहते कि जल्दबाजी में किसी टीके को जनता के इस्तेमाल के लिए जारी किया जाए। उनका कहना है कि इससे फायदा कम और नुकसान होने के आसार ज्यादा हैं।

अभी टीकों की क्या है स्थिति?
न्यूयॉर्क टाइम्स के कोविड-19 वैक्सीन ट्रैकर के मुताबिक, दुनियाभर में 145 से ज्यादा कंपनियां/संस्थाएं कोविड-19 का टीका बना रही हैं। 20 से ज्यादा टीके ह्यूमन ट्रायल्स के स्टेज पर आ चुके हैं। जल्द से जल्द टीका बनाने के लिए रात-दिन काम कर रहे वैज्ञानिकों का कहना है कि प्रक्रिया का पालन करें तो आम तौर पर वैक्सीन डेवलप होने में कई साल लग जाते हैं। हालांकि, कोविड-19 की गंभीरता देखते हुए ह्यूमन ट्रायल्स के फेज-1, फेज-2 और फेज-3 को मर्ज किया जा रहा है। ऐसा सिर्फ भारत में नहीं, बल्कि पूरी दुनिया में किया जा रहा है।

विशेषज्ञों को टीके के असर को लेकर गैरजरूरी उम्मीदों की चिंता है। उनका कहना है कि चूंकि, यह एक फ्लू का टीका है, ऐसे में यह किसी को भी 100 फीसदी सुरक्षा नहीं दे सकता। कोरोना का टीका ज्यादा गंभीर मामलों से जरूर बचा सकता है। ऐसे में फिलाडेल्फिया में चिल्ड्रंस हॉस्पिटल में वैक्सीन एजुकेशन सेंटर के डॉ. ऑफिट का कहना है कि यदि जानलेवा बीमारी से बचाने में कोई टीका 50 फीसदी भी असरदार रहता है तो उसे अपनाना चाहिए।

क्या है टीके के मानवीय परीक्षण की प्रक्रिया?
किसी भी टीके को इंसानों पर इस्तेमाल के लिए जारी करने से पहले कई चरणों से गुजारना होता है। क्लिनिकल स्टेज में टीके का इस्तेमाल चूहों जैसे जानवरों पर लैबोरेटरी में किया जाता है। इसके नतीजों के आधार पर ह्यूमन ट्रायल की मंजूरी मिलती है। इसके बाद इजाजत मिलने से पहले के तीन स्टेज होते हैं। फेज-1 में छोटे समूह पर टीके का ट्रायल होता है।

इसके बाद फेज-2 में अलग-अलग उम्र के बड़े समूह पर टीके के असर की जांच होती है। फेज-3 में यह आकार और बड़ा होता है। महामारी से निपटने के लिए अक्सर इन चरणों को आपस में मर्ज किया जाता है। भारत बायोटेक के कोवैक्सीन के असर की जांच के लिए फेज-1/फेज-2 ट्रायल एक साथ करने को कहा गया है।

अमेरिका में पांच कंपनियों में होड़ मची है

  • अमेरिका के ऑपरेशन वार्प स्पीड (ओडब्ल्यूएस) के तहत यूएस नेशनल इंस्टिट्यूट्स ऑफ हेल्थ (एनआईएच) ने 18 से ज्यादा बायोफार्मास्युटिकल कंपनियों से साझेदारी की है ताकि कोविड-19 के टीके को जल्द से जल्द आम जनता के लिए जारी किया जा सके।
  • वार्प स्पीड यानी प्रकाश की गति से 27 गुना ज्यादा स्पीड, जिसकी चर्चा पहली बार अमेरिकी साई-फाई सीरीज में की गई थी। यह एक काल्पनिक स्पीड है, जिसे थ्योरी में संभव बताया जा रहा है।
  • ट्रम्प प्रशासन ने फेज-3 परीक्षणों के लिए फंडिंग देने का फैसला किया है। इसके लिए जून में पांच कंपनियों को चुना था, जो टीका बनाने की होड़ में सबसे आगे हैं। मैसाचुसेट्स की बायोटेक्नोलॉजी फर्म मॉडर्ना का टीका, ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी और एस्ट्राजेनेका के संयुक्त प्रयासों से विकसित टीका सबसे आगे है। जॉनसन एंड जॉनसन, मर्क और फाइजर को भी टीका विकसित करने के लिए चुना गया है।

भारत में पहले 15 अगस्त का टारगेट दिया, फिर कहा 2021 से पहले बना लेंगे?

  • भारत में भी हैदराबाद की कंपनी भारत बायोटेक के कोवैक्सीन टीके के ह्यूमन ट्रायल्स जल्द से जल्द किए जाने के निर्देश जारी हुए हैं। इस टीके को भारत बायोटेक ने आईसीएमआर और पुणे के नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ वायरलॉजी ने मिलकर विकसित किया है। आईसीएमआर ने ह्यूमन ट्रायल्स के लिए 12 संस्थाओं को क्लिनिकल ट्रायल साइट्स के तौर पर चुना है।
  • आईसीएमआर ने 2 जुलाई को इन संस्थाओं को जो पत्र लिखा है, उनमें स्पष्ट निर्देश दिए गए हैं कि यह टीका सार्वजनिक इस्तेमाल के लिए 15 अगस्त तक लॉन्च हो जाना चाहिए। इस पत्र में कहा गया कि ‘कोविड-19 की वजह से पैदा हुए स्वास्थ्य आपातकाल को देखते हुए क्लिनिकल ट्रायल से संबंधित सभी अनुमतियों को फास्ट ट्रैक में हासिल करें। यह भी सुनिश्चित करें कि इसके लिए स्वयंसेवकों का नामांकन 7 जुलाई तक पूरा हो जाए… यदि इसका पालन नहीं किया गया तो उसे गंभीरता से लिया जाएगा।’
  • विशेषज्ञों ने जल्दबाजी का विरोध किया। इसके बाद आईसीएमआर को स्पष्ट करना पड़ा कि हमारे आंतरिक पत्र की वजह से गलतफहमी हो गई। प्रक्रियाओं का शब्दशः पालन होगा और उचित समय पर सभी पुख्ता सावधानियों को बरतने के बाद ही टीका सार्वजनिक इस्तेमाल के लिए जारी होगा। सरकार ने भी यह बताने में देर नहीं लगाई कि सिर्फ प्रक्रिया में तेजी लाने को कहा गया है। 15 अगस्त की डेडलाइन सेट नहीं की गई है।

दिक्कत क्या है?
भारत बायोटेक के कोवैक्सीन के ह्यूमन ट्रायल्स के लिए जिन 12 संस्थाओं को चुना गया है, उनमें नागपुर का गिलुरकर मल्टीस्पेशलिटी हॉस्पिटल भी शामिल हैं। हॉस्पिटल के डायरेक्टर डॉ. चंद्रशेखर गिलुरकर के मुताबिक जिन व्यक्तियों पर ट्रायल किया जाएगा, उनके स्वास्थ्य की छह महीने तक नियमित जांच के बाद ही टीके की प्रभावशीलता की पुष्टि हो सकती है। वे कहते हैं कि रिसर्च टीम को ट्रायल्स के प्रतिभागियों की 14वें, 28वें, 42वें, 104वें और 194वें दिन जांच की जाएगी। नतीजों की पुष्टि होने पर दवा का असर स्पष्ट हो सकेगा।

टीका जारी करने में जल्दबाजी क्यों ठीक नहीं?

  • बड़े पैमाने पर परीक्षण या टीका जारी करने के बुरे परिणाम भी सामने आए हैं। अप्रैल 1955 में अमेरिका के पांच राज्यों में दो लाख बच्चों को पोलियो का टीका लगाया गया था। उनके शरीर में पोलिया का जीवित वायरस इंजेक्ट किया गया था ताकि उनके शरीर में रजिस्टेंस डेवलप किया जा सके। हालांकि, इस टीके की वजह से 40 हजार बच्चों को पोलियो हो गया। 200 बच्चों को लकवा हो गया और 10 की मौत हो गई। कुछ ही हफ्तों में इसका ट्रायल बंद करना पड़ा।
  • न्यूयॉर्क में एनवाययू लैंगोन मेडिकल सेंटर और बेलेवुई हॉस्पिटल के पीडियाट्रिक रेसिडेंट डॉ. ब्रिट ट्रोजन ने न्यूयॉर्क टाइम्स से कहा कि कोरोना के खिलाफ विकसित हो रहे टीकों को यदि जल्दबाजी में जनता के लिए लॉन्च कर दिया तो इसके बड़े पैमाने पर बुरे नतीजे भी सामने आ सकते हैं। इससे लोगों का टीकों और टीकों के विकास के साथ-साथ डॉक्टरों पर भरोसा भी उठ जाएगा। यह स्थिति ज्यादा भयावह होगी।

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