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वैज्ञानिकों का नया अलर्ट:दोबारा स्कूल खोलने से और बढ़ सकता है कोरोना का ट्रांसमिशन, स्टडी में दावा- 10 से 19 साल की उम्र के बच्चे भी वयस्कों की तरह फैला सकते हैं वायरस

जुलाई में दक्षिण कोरिया के दाइजियोन स्थित चेयोनदोंग एलिमेंट्री स्कूल में दो संक्रमित स्टूडेंट्स मिलने के बाद पैरेंट्स, टीचर और बच्चों का टेस्ट हुआ। वयस्कों की तुलना में 10 साल से कम उम्र के बच्चों में वायरस फैलाने की संभावना कम है, लेकिन जोखिम कम नहीं है एक्सपर्ट्स के मुताबिक, स्कूलों को डिस्टेंसिंग, मास्क के अलावा बच्चों और स्टाफ की टेस्टिंग के बारे में भी तैयारी करनी होगी

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कोरोनावायरस महामारी के बीच दुनिया के कई हिस्सों में स्कूल खुल गए हैं। ऐसे में एक्सपर्ट्स इस बात को लेकर चिंतित हैं कि बच्चों की स्कूल में वापसी से संक्रमण तेजी से बढ़ सकता है। दक्षिण कोरिया में 65 हजार लोगों पर की गई स्टडी भी इस बात का समर्थन करती है। स्टडी के मुताबिक, 10 से 19 साल की उम्र के बच्चे वयस्कों जितना ही संक्रमण फैला सकते हैं। जबकि 10 साल से कम उम्र के बच्चे, बड़ों की तुलना में ट्रांसमिशन कम करते हैं, लेकिन इसमें भी जोखिम शून्य नहीं है।

संक्रमण फैलेगा और हमें इसे अपने प्लान में शामिल करना होगा
स्टडी से पता चला है कि जैसे ही स्कूल खुलेंगे समाज में संक्रमण फैलेगा। एक्सपर्ट्स ने चेतावनी दी है कि इसमें हर उम्र के बच्चे शामिल होंगे। यूनिवर्सिटी ऑफ मिनेसोटा में इंफेक्शियस डिसीज एक्सपर्ट माइकल ऑस्टहोम कहते हैं “मुझे इसका डर है कि बच्चे केवल संक्रमित या बड़ों की तरह संक्रमित नहीं होंगे, यह इसलिए कि ये लगभग बबल पॉपुलेशन की तरह हैं। ट्रांसमिशन होगा। हमें यह करना है कि इसे मानना है और अपने प्लान्स में शामिल करना है।”

पुरानी स्टडीज बताती हैं कि बच्चों में संक्रमण की संभावना कम है
यूरोप और एशिया में हुई कई स्टडीज बताती हैं कि छोटे बच्चों में संक्रमित होने और वायरस फैलाने की संभावना बहुत कम है। हार्वर्ड ग्लोबल हेल्थ इंस्टीट्यूट के डायरेक्टर डॉक्टर आशीष झा का कहना है कि इनमें से ज्यादातर स्टडी छोटी और गलतियों से भरी थीं। नई स्टडी बहुत ही ध्यान से की गई है। यह सिस्टेमैटिक है और इसमें बड़ी जनसंख्या को शामिल किया गया है। इस मुद्दे पर की गई फिलहाल की सबसे बेहतरीन स्टडी है।” इसके अलावा दूसरे कई एक्सपर्ट्स ने भी इस स्टडी के स्केल की तारीफ की है।

ऐसे की गई स्टडी
शोधकर्ताओं ने 20 जनवरी से 27 मार्च के बीच अपने घरों में कोविड के लक्षणों को पहले बताने वाले 5706 लोगों की पहचान की। इस दौरान स्कूल बंद थे। इसके बाद इन मामलों को 59073 कॉन्टैक्ट्स को ट्रेस किया गया। उन्होंने लक्षणों के बारे में बगैर सोचे हर मरीज के घर में कॉन्टैक्ट्स को टेस्ट किया। हालांकि बाहर उन्होंने केवल लक्षण वाले कॉन्टैक्ट्स का टेस्ट किया।

जरूरी नहीं है कि घर में पहले लक्षण दिखने वाला व्यक्ति संक्रमित होने वाला पहला शख्स हो। शोधकर्ताओं ने इस लिमिटेशन को पहचाना। बच्चों में भी बड़ों के मुकाबले लक्षण दिखने की संभावना बहुत कम थी इसलिए स्टडी में बच्चों की संख्या पर ज्यादा विचार नहीं किया।

10 साल से कम उम्र के बच्चों की संख्या आधी
बड़ों के मुकाबले दूसरों में वायरस फैला रहे 10 साल से कम उम्र के बच्चों की संख्या लगभग आधी थी। ऐसा इसलिए भी हो सकता है, क्योंकि आमतौर पर बच्चे कम सांस बाहर छोड़ते हैं या चूंकि वो जमीन के नजदीक सांस छोड़ते हैं। ऐसे में व्यस्क तक उनकी सांस पहुंचने की संभावना कम हो जाती है।

बच्चे बढ़ा सकते हैं कम्युनिटी ट्रांसमिशन
स्टडी में शामिल लेखकों ने चेतावनी दी है कि स्कूल खुलने के बाद बच्चों से फैलाए गए नए संक्रमण के मामले बढ़ सकते हैं। उन्होंने लिखा “स्कूल का बंद होना खत्म होने पर छोटे बच्चे ज्यादा अटैक रेट दिखा सकते हैं। इससे कोविड 19 का कम्युनिटी ट्रांसमिशन बढ़ेगा।”

जॉन्स हॉप्किन्स ब्लूमबर्ग स्कूल ऑफ पब्लिक हेल्थ में एपिडेमियोलॉजिस्ट कैटलिन रिवर्स के अनुसार, शोधकर्ताओं ने केवल बीमार महसूस कर रहे बच्चों को ट्रेस किया है। ऐसे में अभी यह साफ नहीं है कि बिना लक्षण वाले बच्चे कितने प्रभावी तरीके से वायरस फैला सकते हैं। उन्होंने कहा “मुझे लगता है कि यह लक्षण वाले बच्चे संक्रामक होते हैं। सवाल यहां उठता है कि जिन बच्चों में लक्षण नहीं है क्या वे संक्रामक हैं।”

मिडिल और हाईस्कूल के बच्चे बड़ों से भी ज्यादा तेजी से फैला सकते हैं वायरस

  • स्टडी के अनुसार, यह संभावना है कि मिडिल और हाईस्कूल में पढ़ने वाले बच्चों में बड़ों के मुकाबले ज्यादा तेजी से वायरस फैला सकते हैं। कुछ एक्स्पर्ट्स ने कहा कि यह जानकारी संयोग हो सकती है या बच्चों के व्यवहार से बनी हो सकती है।
  • यह बच्चे व्यसकों की तरह बड़े होते हैं और छोटे बच्चों की तरह इनमें भी कुछ लोगों में गंदी आदतें होती हैं। वहीं, छोटे बच्चों के मुकाबले इनमें साथियों से मिलने-जुलने की संभावना भी ज्यादा होती है। डॉक्टर ऑस्टरहोम कहते हैं कि “हम इसके बारे में पूरे दिन कयास लगा सकते हैं, लेकिन हम नहीं जानते हैं। मुद्दे की बात है कि ट्रांसमिशन होगा।”
  • इनके अलावा कई एक्सपर्ट्स ने कहा है कि स्कूलों को संक्रमण के बढ़ते मामलों को लिए तैयार रहना होगा। फिजिकल डिस्टेंसिंग, सफाई और मास्क के अलावा स्कूलों को यह फैसला भी करना होगी कि छात्रों और स्टाफ का टेस्ट कैसे करेंगे। लोगों को कब और कितना क्वारैंटाइन रहना होगा और कब स्कूल बंद रखना है या खोलना है।

सबूत नहीं होना बन रहा चुनौती

  • एक्सपर्ट्स के मुताबिक, वे लोग चुनौती का सामना कर रहे हैं, क्योंकि स्कूल के भीतर ट्रांसमिशन के सबूत अभी तक साफ नहीं हैं। डेनमार्क और फिनलैंड जैसे देश स्कूल खोलने में सफल हुए हैं, लेकिन चीन, इजरायल और दक्षिण कोरिया में स्कूल को फिर से बंद करना पड़ा है।
  • कोलंबिया यूनिवर्सिटी के मेलमैन स्कूल ऑफ पब्लिक हेल्थ में एपिडेमियोलॉजिस्ट जैफरी शैमेन कहते हैं कि “स्कूल दोबारा खोलने की सोच पर निर्भर लोग पेश किए जाने वाले सबूतों का चुनाव कर रहे हैं। और इससे बचना चाहिए।” उन्होंने कहा कि हालांकि यह स्टडी पुख्ता जवाब नहीं देती है। यह इस बात का संकेत देती है कि स्कूल समाज के अंदर वायरस का स्तर बढ़ा सकते हैं।
  • डॉक्टर जैफरी ने कहा कि बच्चों के लिए यह जरूरी है कि वे अपनी शिक्षा और लोगों से मिलने-जुलने वाले जरूरी साल न खोएं। स्कूल के पास भी इन दो ऑप्शन्स में से चुनने का मुश्किल टास्क है।

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