वैक्सीन की दो डोज में कितना अंतर सही:अमेरिका के सबसे बड़े कोविड एक्सपर्ट एंथनी फौची की चेतावनी, कहा- गैप बढ़ाने से संक्रमण का खतरा ज्यादा
कोरोना वैक्सीन के डोज के बीच गैप को लेकर अमेरिका के महामारी एक्सपर्ट डॉ. एंथनी फाउची ने चेतावनी दी है। उनका कहना है कि वैक्सीन के दो डोज के बीच समय बढ़ाने से लोगों में इन्फेक्शन का खतरा बढ़ सकता है। ब्रिटेन में यह देखा भी गया है। डॉ. फाउची ने NDTV से बातचीत में ऐसा कहा है।
भारत के संदर्भ में फाउची का यह बयान इसलिए अहम है, क्योंकि सरकार ने पिछले महीने ही कोवीशील्ड के दो डोज के बीच का गैप बढ़ाकर 12-16 हफ्ते किया है। इससे पहले यह 6 से 8 हफ्ते था। इससे पहले मार्च में भी यह गैप 28 दिन से बढ़ाकर 6-8 हफ्ते किया गया था। सरकार का कहना है कि दो डोज का गैप बढ़ाने से वैक्सीन का असर बढ़ जाएगा।
फाउची का कहना है कि हमें वैक्सीनेशन में गैप बढ़ाने की बजाय तय शेड्यूल के हिसाब से ही चलना चाहिए। साथ ही कहा है कि अगर आपके पास वैक्सीन की सप्लाई काफी कम है तो फिर गैप बढ़ाना जरूरी भी हो जाता है।
फाउची ने कोरोना के ज्यादा संक्रामक वैरिएंट डेल्टा पर जोर देते हुए कहा है कि वायरस को हराने के लिए लोगों को जल्द से जल्द वैक्सीनेट करने की जरूरत है। डेल्टा वैरिएंट सबसे पहले भारत में पाया गया था और कहा जा रहा है कि देश में दूसरी लहर की प्रमुख वजह यही वैरिएंट था। एक्सपर्ट्स के मुताबिक यह 40-50% ज्यादा संक्रामक है।
डेल्टा वैरिएंट वाले देशों में आगे भी संक्रमण फैलने का खतरा
फाउची के मुताबिक भारत के कई राज्यों में डेल्टा वैरिएंट हावी हो गया है। यह एक से दूसरे व्यक्ति में काफी तेजी से और असरदार तरीके से फैलता है। जिन-जिन देशों में यह वैरिएंट पाया गया है वहां संक्रमण बढ़ने का खतरा है। इस संबंध में खासकर उस देश को ज्यादा चिंता करनी चाहिए जिसके पास वैक्सीन की कमी है।
नॉन-वैक्सीनेट लोगों पर डेल्टा वैरिएंट ज्यादा हावी हो रहा
अमेरिकी एक्सपर्ट के मुताबिक यह देखा गया है कि डेल्टा वैरिएंट जब किसी नॉन-वैक्सीनेट व्यक्ति को संक्रमित करता है तो बहुत तेजी से हावी होता है। ब्रिटेन में ऐसा देखा जा रहा है। यह वैरिएंट अब 90% तक हावी होने के करीब है। फाउची ने कहा है कि कोरोना की अगली लहर से बचने के लिए लोगों को जल्द से जल्द वैक्सीनेट करने की जरूरत है।
वैक्सीन की दो डोज छोड़िए, तीसरी डोज के लिए ट्रायल शुरू, वैरिएंट्स के लिए खास बूस्टर डोज की भी तैयारी; जानिए अपने सवालों के जवाब
दुनिया में जैसे-जैसे लोगों को कोरोना वैक्सीन लग रही हैं, सभी के मन में सवाल हैं कि आखिर ये वैक्सीन उन्हें कब तक सुरक्षा देंगी? क्या ये वैक्सीन नए-नए तरह के कोरोना यानी कोरोना वायरस के नए वैरिएंट्स के खिलाफ कारगर होंगी?
दुनिया के तमाम साइंटिस्ट इनके जवाब जानने में जुटे हैं। एक्सपर्ट्स का मानना है कि भविष्य में ऐसा वैरिएंट भी आ सकता है जो मौजूदा वैक्सींस के असर को काफी कमजोर कर दे। ऐसे में साइंटिस्ट दो दिशा में काम कर रहे हैं। पहला-वैक्सीन की पूरी डोज लगने के करीब एक साल बाद बूस्टर के रूप में तीसरी डोज देना और दूसरा-खास वैरिएंट के लिए खास बूस्टर डोज तैयार करना।
अमेरिका के नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ हेल्थ ने बूस्टर डोज का असर जानने के लिए हाल में ही फुली वैक्सीनेटेड लोगों का क्लिनिकल ट्रायल शुरू किया है। फाइजर ने भी दोनों विकल्पों को जांचने के लिए ट्रायल शुरू किया है। वैक्सीन की दोनों डोज ले चुके कुछ वॉलंटियर्स को बूस्टर के रूप में उसी वैक्सीन की तीसरी डोज दी गई है।
इसी ट्रायल में दूसरे समूह को बीटा वैरिएंट के लिए तैयार खास वैक्सीन की डोज दी जाएगी। ब्रिटेन और दक्षिण अफ्रीका वैक्सीन के तीसरे डोज के अलावा खास वैरिएंट के लिए खास बूस्टर डोज पर रिसर्च कर रहे हैं।
तो आइए जानते हैं, वैक्सीनेशन के इस पेंच और बूस्टर डोज से जुड़े सवालों के जवाब…
Q. हमें हर साल फ्लू की वैक्सीन क्यों लगवानी पड़ती है, जबकि बचपन में ही लगे खसरे के दो टीके हमें ताउम्र बचाते हैं?
अलग-अलग पैथोजन हमारे इम्यून सिस्टम को अलग-अलग तरह से प्रभावित करते हैं। खसरे जैसी बीमारी एक बार होने के बाद जीवन भर के लिए दोबारा इंफेक्शन से सुरक्षा देती है, लेकिन बाकी वायरस या वैक्टीरिया के मामले में हमारी इम्यूनिटी समय के साथ कम हो जाती है।
खसरे का टीका पूरी उम्र काम करता है, तो टिटनेस वैक्सीन केवल एक साल तक। अमेरिका के सेंटर्स फॉर डिजीज कंट्रोल एंड प्रिवेंशन (CDC) टिटनेस के टीके के लिए हर साल बूस्टर डोज लगवाने की सलाह देता है।
तेजी से बदलते हैं इन्फ्लूएंजा के वायरस : कभी-कभी वायरस खुद को बदल सकता है, जिससे नए बूस्टर डोज की जरूरत होती है। इन्फ्लूएंजा वायरस अपने अंदर इतने ज्यादा बदलाव (म्यूटेशन) करता है कि उनके लिए हर साल नई वैक्सीन की जरूरत होगी।
Q. कोरोना वैक्सीन दूसरी बीमारियों की वैक्सीन के मुकाबले जल्द क्यों बेअसर हो जाएगी?
कोरोना की मौजूदा वैक्सीन के असर के समय को लेकर फिलहाल कोई पुख्ता दावा नहीं किया जा सकता है क्योंकि बड़ी संख्या में आम लोगों को वैक्सीन लगना कुछ महीने पहले ही शुरू हुआ है।
अमेरिका में यूनिवर्सिटी ऑफ मैरिलैंड स्कूल ऑफ मेडिसिन के वैक्सीन विशेषज्ञ और एआईएच के बूस्टर ट्रायल की अगुआई करने वाले डॉ. कर्स्टन लाइक का कहना है कि हम क्लिनिकल ट्रायल्स में यह भी नहीं जान सके हैं कि कोरोना वैक्सीन के एक साल बाद हमारा इम्यून रिस्पॉन्स कैसा होगा? हालांकि शुरुआती संकेत उत्साहवर्धक हैं। रिसर्चर्स वॉलंटियर्स के खून की लगातार जांच करके उनके शरीर में कोरोना वायरस को निशाना बनाने वाले एंटीबॉडीज और टी-सेल्स को नाप रहे हैं।
लोगों के शरीर में एंटीबॉडीज और टी-सेल्स का स्तर का गिर तो रहा है, लेकिन बहुत धीरे-धीरे। ऐसे में यह कहा जा सकता है कि वैक्सीन सुरक्षा लंबे समय तक बनी रह सकती है। ऐसे लोग जिन्हें इंफेक्शन होने के बाद वैक्सीन लगी है, उनकी सुरक्षा और ज्यादा समय तक बनी रह सकती है।
मार्शफील्ड क्लीनिक रिसर्च इंस्टीट्यूट के सेंटर फॉर क्लीनिकल एपिडेमियोलॉजी एंड पॉपुलेशन हेल्थ के डायरेक्टर डॉ. एडवर्ड बेलोंगिया का कहना है, “इस बात की ज्यादा संभावना है कि कोरोना के मूल स्ट्रेन के खिलाफ इम्यूनिटी कई सालों तक बनी रहेगी। अगर ऐसा हुआ तो शायद कोविड-19 बूस्टर डोज की जरूरत न पड़े।”
Q. क्या कुछ कोरोना वैक्सीन लंबे समय तक चलेंगी और कुछ नहीं?
ऐसा हो सकता है। वैज्ञानिकों को पता है कि अलग-अलग टेक्नोलॉजी से बन रही वैक्सीन का असर अलग-अलग होगा। दुनिया की कुछ ताकतवर वैक्सींस में मॉडर्ना और फाइजर-बायोएनटेक शामिल हैं। दोनों वैक्सीन mRNA मॉलिक्यूल्स पर आधारित हैं। वहीं, अक्रिय वायरस (इनएक्टिवेटेड वायरस) पर आधारित चीन की सिनोफार्म वैक्सीन का असर कुछ कम है।
पेंसिल्वेनिया यूनिवर्सिटी के इमिनोलॉजिस्ट स्कॉट हेंसली का कहना है कि यह अभी पूरी तरह से साफ नहीं कि ऐसा क्यों है। RNA पर आधारित टीके अपेक्षाकृत नए हैं, इसलिए उनके जरिए पैदा होने वाली प्रतिरोधक क्षमता को गहराई से स्टडी नहीं किया गया है।
डॉ. हेंसली को चूहों को अलग-अलग तरह की वैक्सीन देने पर यही अंतर दिखाई दिया। दो तरह की वैक्सीन से पैदा हुए एंटीबॉडीज में बहुत ज्यादा अंतर पाया गया। इस बात की भी पूरी आशंका है कि कुछ वैक्सींस का असर बहुत तेजी से खत्म हो जाए।
Q. कैसे पता चलेगा कि हमारी वैक्सीन का असर कम हो रहा है?
वैज्ञानिक ऐसे बायोलॉजिक मार्कर यानी पैथोलॉजिकल जांच तलाश रहे हैं जो यह बता दें कि वैक्सीन अब कोरोना वायरस को रोकने लायक नहीं बची। ऐसे किसी मार्कर से आपके शरीर में एंटीबॉडीज की एक निश्चित मात्रा का पता चल सकेगा, जिससे नीचे होने पर माना जाएगा कि आपको इंफेक्शन का ज्यादा खतरा है। कुछ शुरुआती अध्ययनों से पता चलता है कि ऐसे जैविक मार्कर मौजूद हैं, वैज्ञानिक इनका पता लगाने के लिए रिसर्च कर रहे हैं।
Q. कोरोना वायरस के वैरिएंट्स का क्या होगा?
वैरिएंट्स को रोकने के लिए हमें बूस्टर्स की जरूरत पड़ेगी, लेकिन यह भी अभी तक स्पष्ट नहीं है। हाल के महीनों में नए वैरिएंट्स के सामने आने के चलते बूस्टर पर रिसर्च तेज हो गई है। कुछ वैरिएंट्स में ऐसे म्यूटेशन हुए हैं जिसके कारण वे बहुत तेजी से फैलते हैं। कुछ वैरिएंट्स में ऐसे म्यूटेशन भी हो सकते हैं जो वैक्सीन के असर को कुंद कर सकते हैं। फिलहाल वैज्ञानिकों के पास इस बात की सीमित जानकारी है कि मौजूदा कोरोना वैक्सीन अलग-अलग वैरिएंट्स के खिलाफ कैसे काम करती हैं।
उदाहरण के लिए, पिछले महीने कतर में रिसर्चर्स ने फाइजर-बायोएनटेक की वैक्सीन पर एक रिसर्च पब्लिश की। यह रिसर्च दिसंबर से मार्च के बीच कतर के एक लाख नागरिकों पर की गई थी।
क्लिनिकल ट्रायल्स से पता चला कि कोरोना के मूल वायरस के खिलाफ वैक्सीन की एफिकेसी 95% थी। लेकिन सबसे पहले ब्रिटेन में मिले एल्फा वैरिएंट के खिलाफ इसकी एफिकेसी 89.5% हो गई।
वहीं, सबसे पहले दक्षिण अफ्रीका में मिले बीटा वैरिएंट के खिलाफ वैक्सीन की एफिकेसी सिर्फ 75% पाई गई। हालांकि दोनों वैरिएंट्स से संक्रमित मरीजों के गंभीर होने या मौत होने से रोकने के मामले में वैक्सीन की एफिकेसी 100% पाई गई।
वैक्सीनेशन से वैरिएंट का फैलना भी रुका है: साइंटिस्ट का कहना है कि अगर कोरोना के कुछ वैरिएंट्स मौजूदा वैक्सीन को गच्चा दे भी दें तो इसका मतलब यह नहीं कि वे एक बड़ी समस्या बन जाएंगे। बीटा वैरिएंट का इसका एक अच्छा उदाहरण है। इजराइल, ब्रिटेन और अमेरिका जैसे मजबूत वैक्सीनेशन वाले देशों में यह वैरिएंट कम फैला। बावजूद इसके साइंटिस्ट इस संभावना को खारिज नहीं कर सकते हैं कि भविष्य में ऐसे वैरिएंट्स भी सामने आ सकते हैं जो वैक्सीन को गच्चा देना के साथ तेजी से फैलेंगे भी।
स्टैनफोर्ड चिल्ड्रेन हेल्थ में एसोसिएट चीफ मेडिकल प्रैक्टिशनर डॉ. ग्रेस ली का कहना है कि यह पूरी तरह स्पष्ट है कि वैरिएंट्स तो अपरिहार्य हैं, सवाल ये है कि वे कितने असरदायक हैं?
Q. तो क्या हमें किसी खास वैरिएंट के लिए तैयार की गई बूस्टर डोज की जरूरत होगी?
कई वैज्ञानिकों को आंशका है कि कोरोना के मूल वायरस पर बेहद असरदार वैक्सीन उसके वैरिएंट्स के खिलाफ भी पर्याप्त सुरक्षा दे पाएंगी। हालांकि यह भी मुमकिन है कि किसी खास वैरिएंट के लिए तैयार वैक्सीन ज्यादा असरदार हो।
फाइजर ने इन दोनों विकल्पों को जांचने के लिए ट्रायल शुरू किया है। वैक्सीन की दोनों डोज ले चुके कुछ वॉलंटियर्स को बूस्टर के रूप में उसी वैक्सीन की तीसरी डोज दी गई है। इसी ट्रायल में वैक्सीन की दो डोज ले चुके वॉलंटियर्स के एक दूसरे समूह को खास तौर पर बीटा वैरिएंट के लिए तैयार की गई वैक्सीन दी जाएगी।
फाइजर के लिए ग्लोबल मीडिया रिलेशंस की डायरेक्टर जेरिका पिट्स का कहना है कि अब तक हमने जो सीखा है, उसके आधार पर हमारी सोच यह है कि जब तक कोरोना वायरस के फैलने और उससे होने वाली बीमारी में कमी नहीं दिखती है, हमें लोगों को कोरोना से बचाने के लिए वैक्सीनेशन के 12 महीने बाद बूस्टर डोज के रूप में तीसरी डोज देने की जरूरत पड़ेगी।
Q. बूस्टर डोज के समय क्या हम अपनी वैक्सीन ब्रांड बदल सकेंगे?
शायद ऐसा संभव हो। दूसरी बीमारियों पर हुई कई रिसर्च यह बताती है कि वैक्सीन बदलने से बूस्टर डोज की ताकत बढ़ती है। यूनिवर्सिटी ऑफ मैरिलैंड स्कूल ऑफ मेडिसिन के वैक्सीन विशेषज्ञ और एआईएच के बूस्टर ट्रायल की अगुआई करने वाले डॉ. कर्स्टन लाइक का कहना है कि यह कोरोना से पहले का आजमाया हुआ और सच्चा कॉन्सेप्ट है। डॉ. लाइक और उनके साथी कोरोना की बूस्टर डोज के लिए वैक्सीन के मिक्स एंड मैच का ट्रायल कर रहे हैं। इसके लिए वे अमेरिका में लगाई जा रही तीनों वैक्सीन (माडर्ना, जॉनसन एंड जॉनसन और फाइजर-बायोएनटेक) की फुल डोज लगवा चुके वॉलंटियर्स को भर्ती कर रहे हैं।
इन वॉलंटियर्स को मॉडर्ना का बूस्टर डोज दिया जा रहा है। इस बूस्टर डोज के बाद उनके इम्यून रिस्पॉन्स को परखा जाएगा। उधर, ब्रिटेन में वैज्ञानिक एस्ट्राजेनेका, क्योरवैक, जॉनसन एंड जॉनसन, मॉडर्ना, नोवावैक्स, फाइजर-बायोएनटेक और वॉलनेवा वैक्सीन के मिक्स एंड मैच को बूस्टर डोज के रूप में इस्तेमाल करने पर ट्रायल कर रहे हैं। इसी तरह दक्षिण अफ्रीका में इम्यूनिटी बायो, जॉनसन एंड जॉनसन की वैक्सीन के लिए बूस्टर डोज के रूप में ट्रायल हो रहा है।
Q. उन लोगों के बारे में क्या जिन्होंने अभी तक अपनी पहली खुराक नहीं ली है?
डॉ. हेंसली कहते हैं- यह मानकर तैयारी करना बुद्धिमानी है कि बूस्टर डोज की जरूरत होगी। हालांकि हमें यह ध्यान रखना होगा कि बूस्टर डोज की तैयारी हमारा ध्यान इस बात से न भटका दे कि दुनिया में करोड़ों लोगों को भी अभी वैक्सीन की पहली डोज की जरूरत है।
अगर ज्यादातर लोग फौरन ही सुरक्षित हो जाएंगे तो कोरोना वायरस के पास संक्रमण फैलाने के लिए कम ही मेजबान होंगे और वायरस के पास नए वैरिएंट्स पैदा करने के मौके कम होंगे। पूरी दुनिया में वैक्सीन पहुंचना बेहद जरूरी है, क्योंकि यही एक तरीका है जिससे नए वैरिएंट्स पैदा होने की आशंका कम होगी और इसी तरह महामारी का अंत भी होगा।