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लोन की राशि से 30 करोड़ का साम्राज्य स्थापित करने वाले इस युवक की कहानी प्रेरणा से भरी है

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कोई भी अच्छी चीज आसानी से नहीं मिलती। जिन्दगी में सर्वोत्म या तो मुफ्त मिलता है अथवा बहुत मँहगा, वह सस्ता तो कदापि नहीं होता है। सफलता पाने के लिए प्रमाद त्याग कर निर्णय लेने होते है। कठोर रास्तों पर संघर्ष करना पड़ता है। मेहनत से बढ़ कर कुछ नहीं। कभी महज़ किसी यात्री बस की टिकट काटने वाले व्यक्ति आज अपनी मेहनत से खुद एक ट्रांसपोर्ट कंपनी के मालिक है।

51 वर्षीय श्री कृष्ण मोहन सिंह ने झारखण्ड (तत्कालिन बिहार) राँची के बस स्टैण्ड से टिकट बुकिंग क्लर्क के रुप में काम करने की शुरुआत की थी। आज उनकी बस कंपनी न्यू चन्द्रलोक एक रजिस्टर्ड कंपनी है जिसका सलाना टर्नओवर 30.करोड़ का है। उनके बेड़े में 15 अंतर जिला बसों की श्रृखंला है। उनके नाम का एक पेट्रोल पंप भी है। उनकी संपत्ति करोड़ों में है। 60 से अधिक कर्मचारी उनके यहाँ काम किया करते हैं। मगर आज से 30 साल पहले यह सब सोच पाना भी उनके लिए दुभर था। 24 साल पहले, अगस्त 1993 में उन्होंने पहली बस खरीदी थी और राँची-पटना बस सेवा शुरु की। और फिर धीरे-धीरे एक-एक कर आज इस ऊँचाई तक का सफर तय किया। कण-कण जोड़ कर कड़ी मेहनत और सूझ-बूझ के साथ किए निवेश ने उन्हें आज इस पायदान पर ला खड़ा किया है।

3 फरवरी 1966 को ध्रुवा, राँची के एक निम्न मध्य वर्गिय परिवार में जन्में कृष्ण के पिता जनार्दन प्रसाद सिंह केन्द्र सरकार अन्तर्गत हैवी इंजिनियरिंग कार्पोरेशन (HEC) में तृतीय वर्गीय कर्मचारी थे। 6 भाई बहनों में कृष्ण दूसरे नंबर पर हैं। उनके पिता की तनख्वाह लगभग 200 की थी, जो परिवार के पूर्ण नहीं हो पाती थी। उनके पिता को परिवार चलाने के लिए काफी पसीना बहाना पड़ता था। आज राँची के अपने आलिशान घर में पत्नी और चार बच्चों के साथ रहते हुए कृष्ण अपने उन दिनों को याद करते हुए बताते हैं कि उन्होंने सरकारी विद्यालय से स्कूल की पढ़ाई पूरी की और राँची विश्वविद्यालय समाजशास्त्र में स्नातक किया। उनके स्कूल का ड्रेस का खर्च वहन कर पाना भी उनके पिता के लिए कठिन था। स्कूल की फीस कम थी और HEC कर्मचारी होने के कारण मासिक शुल्क माफ था। जिस कारण वे स्कूली शिक्षा पूरी कर पाए। घर में कुछ गायें थीं जिनका दूध गाँव के घरों में बेच कर घर में कुछ अतिरिक्त कमाई जुट पाती थी। 1988 में काॅलेज पूरा करने के बाद भी उन्हें कोई काम नहीं मिल पाया था। उनके बड़े भाई पवन कुमार सिंह घर के पास ही बस स्टैण्ड में टिकट बुकिंग किया करते थे। कृष्ण ने उनके साथ ही काम करना शुरु किया। हर एक सीट बुकिंग पर उन्हें कुछ कमिशन मिलता था। घर की आर्थिक मदद के लिए यह करने के अलावा और कोई दूसरा तत्कालिन विकल्प नजर नहीं आ रहा था।

6 साल तक दोनों भाइयों ने बहुत काफी लगन और सूझ-बूझ से 2.4 लाख रुपये जमा कर लिए। अब तक उन्हें इस क्षेत्र में काफी अनुभव हो चुका था, जो उन्हें आगे भविष्य में काफी काम आया। इसी दरम्यान 1993 में उनका विवाह भी हो गया। भाइयों ने अब अपनी कमाई बढ़ाने का तय किया और ट्रांसपोर्ट बिज़नेस में ही निवेश करने का सोचा। बस के ढाँचे की कीमत 4 लाख होती थी जो इनकी पहुँच से कहीं अधिक थी। उन्होंने 1 लाख जमा कर बाकी की रकम प्राइवेट देनदार से 12% ब्याज पर ली। गाड़ी की संरचना के लिए 2.30 लाख रुपये का खर्च था। जिसके लिए उन्होंने बिल्डर को 1 लाख देकर बाकी की रकम धीरे-धीरे बाद में देने के वादे पर काम करवाया। इस प्रकार पहली बस सेवा न्यू चंद्रलोक नाम से राँची-पटना के बीच चली।

मार्च 1994 में उन्होंने दूसरा बस खरीदा। फाईंनेनसर और बिल्डर को समय पर पैसे का भुगतान कर उन्होंने उनका विश्वास जीत लिया था और अब वे बड़े लोन के लिए तैयार थे। इस बार बस पूरी तरह 8 लाख के लोन पर लिया। जिसे बस की कमाई से जल्द ही पूरा कर दिया। 1997 तक उनके पास 3 बसें हो गई और टर्नओवर 12 लाख तक पहुँच गया। 1998 में उन्होंने 2 और नई बसें 16 लाख के लोन पर 12% की ब्याज दर पर लिया। अब उन्होंने राँची-सीवान बस सेवा भी प्रारंभ की।

न्यू चन्द्रलोक की अच्छी सेवा से उनकी गहरी साख बैठ गई थी। प्राईवेट फाईनेंसर से लोन आसानी से उपलब्ध हो जाता। 2000 में 19 लाख में उन्होंने और 2 नई बसे अपने बेड़े में शामिल किया। जो राँची-सीवान मार्ग पर चलाई क्योंकि इस मार्ग में काफी अधिक माँग थी। अब कुल 7 बसों से व्यवसाय 50 लाख तक का हो गया।

2003 तक उनके पास 10 बसें हो गई और अब कुछ नए मार्ग पर चलनी शुरु की। यह वह वक्त था जब उन्हें झारखण्ड राज्य के निजी बस संचालक एशोसिएशन का अध्यक्ष चुना गया। 10 बसों से अब उनकी किस्मत तेजी से बदलने लगी टर्नओवर 80 लाख तक हो गया।

उनके भाई पवन ने बताया अब वे पुरानी बसों को बदलने लगे क्योंकि रख-रखाव का खर्च मासिक किस्त से अधिक हो जाने लगा। नई बसों से न सिर्फ उनकी साख बढ़ती गई बल्कि यात्रीयों के सुरक्षा के दृष्टिकोण से भी यह बेहतर था।

गाड़ीयों में बैठने के साथ साथ सोने की भी व्यवस्था की गई। अब बस में 60 यात्रीयों के स्थान होने से आय में और वृद्धि होने लगी। 2015 तक कृष्णा नें 13 बसें कर ली जो बिहार झारखण्ड के विभिन्न मार्गों पर चलने लगे। कमाई 10 करोड़ तक हो गई।

अब टर्नओवर 30 करोड़ तक हो गया है। हाल ही में उन्होंने वैशाली में 35 एकड़ भूमि 8 करोड़ में खरीदा। राँची में एक पेट्रोल पंप लिया है जिससे हर माह 1 लाख की आय का ईज़ाफा हुआ है। आगे उनकी योजना 6 नई बसों की है जो विभिन्न ग्रामिण क्षेत्रों में सेवा देंगी। उनकी अच्छी और समयिक सेवा से उनकी और कंपनी की एक बेहतर साख बनी हुई है।

श्री मोहन सामाजिक कार्यों में भी अपना काफी योगदान रखते हैं। वे विभिन्न जनोपयोगी कार्य के साथ साथ उद्योंगों में कर्मचारीयों के हितों की रक्षा हेतु भी जिम्मेवारी निभाते हैं। कृष्णा जनकल्यानकारी कार्य में उन निर्धन मरीजों की चिकित्सा खर्च वहन करते हैं जिनके लिए यह खर्च कठिन हो जाता है। उनकी पत्नी श्रीमती सुमन देवी वार्ड पार्षद हैं। वे आगे भी समाज के लिए काफी सोच रखते हैं और काफी कुछ करना चाहते हैं।

न्होंने संघर्ष को याद करते हुए युवाओ के लिए संदेश स्वरुप कहा, “उन्हें परिस्थितियों की जाँच करते हुए स्वरोजगार की ओर भी ध्यान देना चाहिए। हमे ज्यादा इंतजार नहीं करना चाहिए। यदि हम पाँच साल इंतजार कर रहे हैं तो हम खुद का भी पाँच साल व्यर्थ कर रहे हैं। हम भी युवा थे हमें जब नौकरी नहीं मिल पायी तो हम अपना काम करते हुए आज यहाँ तक पहुँच सके। तो कोई भी सही सोच के साथ आगे बढ़ सकता है।”

“ईमानदारी, कठिन परिश्रम और संकल्प में वह शक्ति है जो आपके सपनों को हक़ीक़त बना देगी।” श्री कृष्ण मोहन सिंह की यह प्रेरणादायक कहानी उन लाखों युवाओं के लिए उर्जा स्त्रोत है जो परिस्थितियों और नौकरीयों में घटते अवसरों से हताशा के शिकार हो रहे हैं।

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