Fight Against Corona मेरठ मेडिकल कालेज में कोरोना मरीजों की मौतों की दर ज्यादा देखते हुए इलाज के प्रोटोकाल में नई दवा शामिल की गई है। विशेषज्ञों को आशंका है कि कोरोना वायरस रक्त में चिपचिपापन बढ़ाकर थक्के बना रहा है। ऐसे में खून पतला करने की दवा शुरू की गई है। फेफड़े में खून के थक्के पहुंचने से सूजन बढ़ती है। सांस लेने में भारी तकलीफ से मरीजों की मौत जल्द हो रही है। ऐसे में यह दवा कइयों की जिंदगी बचा सकती है।
थक्के से फेफड़ा हो रहा नाकाम, किडनी भी फेल
केजीएमयू के पल्मोनरी मेडिसिन एंड क्रिटिकल केयर डा. वेद प्रकाश ने बताया कि मृतकों की केस हिस्ट्री बनाई जा रही है, ज्यादातर में ऐसे ही लक्षण मिले हैं। हाई रिस्क वाले मरीजों को रक्त पतला करने की दवा देने में एहतियात की जरूरत है, कारण इससे दिमाग समेत अन्य अंगों में ब्लीडिंग हो सकती है। बताया कि थक्के की वजह से कोरोना मरीजों की डायलिसिस में भी दिक्कत मिल सकती है।
अंगों को भारी नुकसान पहुंचाते हैं
उधर, शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली के ज्यादा एक्टिव होने से शरीर में बड़ी मात्रा में साइटोकाइन रिलीज होते हैं, जो अंगों को भारी नुकसान पहुंचाते हैं। इस वजह से भी थक्के बनने लगते हैं। हृदय रोग विशेषज्ञ डा. संजीव सक्सेना का कहना है कि विदेशों में कोरोना से मरने वालों में 40 फीसद से ज्यादा मरीजों में रक्त के थक्के बनने की आशंका है। इसमें 53 फीसद में बाइलेट्रल थ्रंबोसिस और 26 फीसद में प्रोक्सीमल थ्रंबोसिस मिला।
पोस्टमार्टम कर थक्कों पर करेंगे शोध
शासन से ओएसडी बनाकर मेरठ भेजे गए केजीएमयू के डा. वेद प्रकाश ने बताया कि मेरठ में मौतों की दर ज्यादा है। इसमें एक वजह थ्रंबोसिस भी हो सकती है। पोस्टमार्टम के जरिए इसका अध्ययन भी किया जाएगा। कोरोना वायरस को लेकर दुनियाभर में शोध हो रहे हैं, जिसमें कई देशों के भर्ती मरीजों में से 65 से 79 फीसद में थक्का बनने की प्रवृति देखी गई। रक्त में थक्का बनने से कई मरीज ब्रेन स्ट्रोक और हार्ट स्ट्रोक से जान गंवा बैठे। यह वायरस किडनी के साथ ही कई अन्य अंगों को तेजी से इन्वाल्व करता है। हीमोग्लोबिन के साथ जुड़कर शरीर की आक्सीजन खत्म करने लगता है। इस वजह से ज्यादातर मरीज मल्टी आर्गन फेल्योर का शिकार होकर जान गंवाते हैं। मेडिकल कालेज में भर्ती मरीजों में भी मल्टी आर्गन फेल्योर का खतरा बना हुआ है।