भारत में रिकवरी ज्यादा और मृत्यु दर कम क्यों:कोरोना हमारे DNA में मौजूद एसीई-2 रिसेप्टर पर अटैक करता है; 60% भारतीयों में ये जीन बहुत मजबूत है, इसलिए हम ज्यादा सुरक्षित
बीएचयू के प्रोफेसर ज्ञानेश्वर चौबे और उनकी टीम ने दुनियाभर के 483 लोगों के जीनोम की स्टडी कर पता लगाया यूरोपीय और अमेरिकी लोगों में ये जीन सिर्फ 7% से 14% लोगों में ही है, इसके चलते वहां मृत्युदर बहुत ज्यादा स्वास्थ्य मंत्रालय के मुताबिक, भारत में कोरोना का रिकवरी रेट दुनिया में सबसे ज्यादा, मृत्यु दर सबसे कम है
भारत में कोरोना के अब तक 56 लाख से ज्यादा केस आ चुके हैं। 90 हजार से ज्यादा लोगों की जान जा चुकी है। दुनिया में अमेरिका के बाद सबसे ज्यादा कोरोना केस भारत में ही हैं। लेकिन, इस सबके बावजूद एक सुखद बात है कि इस बीमारी से सबसे ज्यादा ठीक होने वालों की संख्या भारत में ही है। देश में कोरोना के 80% से ज्यादा मरीज ठीक हो चुके हैं। यही नहीं, देश में मृत्यु दर भी लगातार घट रही है।
भारत में मृत्यु दर इतनी कम क्यों है? रिकवरी रेट सबसे ज्यादा क्यों है? इन्हीं बातों का पता लगाने के लिए बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के प्रोफेसर ज्ञानेश्वर चौबे और उनकी टीम लंबे समय से रिसर्च कर रही थी। अब उसके नतीजे आ गए हैं। इसमें कई चौंकाने वाले खुलासे हुए हैं। प्रोफेसर चौबे कहते हैं कि इस रिसर्च से यह बात साफ हो चुकी है कि भारत में लोगों की सेल्फ इम्युनिटी से कोरोना हार रहा है।
रिसर्च में क्या पता चला है?
बीएचयू में जन्तु विज्ञान के प्रोफेसर ज्ञानेश्वर चौबे ने इस अध्ययन के लिए दुनिया के अलग-अलग देशों के इंसानों के जीनोम को कलेक्ट किया। इसमें उन्होंने पाया कि भारत में हर्ड इम्युनिटी से ज्यादा कोरोना प्रतिरोधक क्षमता पहले से ही लोगों के जीन में मौजूद है। यह क्षमता लोगों के शरीर की कोशिकाओं में मौजूद एक्स क्रोमोसोम के जीन एसीई-2 रिसेप्टर (गेटवे) से मिलती है।
इसी वजह से जीन पर चल रहे म्यूटेशन कोरोनावायरस को कोशिका में प्रवेश से रोक देते हैं। इस म्यूटेशन का नाम- RS-2285666 है। भारत के लोगों का जीनोम बहुत अच्छी तरह से बना हुआ है। यहां लोगों के जीनोम में इतने यूनीक टाइप के म्यूटेशन हैं, जिसकी वजह से देश में मृत्युदर और रिकवरी रेट सबसे ज्यादा है।
एसीई-2 रिसेप्टर कैसे काम करता है?
कोरोनावायरस सबसे पहले हमारे जीन में मौजूद एसीई-2 रिसेप्टर पर अटैक करता है। 60% भारतीयों में ये जीन बहुत मजबूत है। इसके चलते इसका यहां इतना ज्यादा असर नहीं हो रहा है, जबकि यूरोपीय और अमेरिकी लोगों में ये जीन सिर्फ 7% से 14% ही पाया जाता है। इसके चलते कोरोना का असर पश्चिमी देशों में ज्यादा रहा है। वहां मृत्युदर भी बहुत ज्यादा है।
जीनोम क्या है?
प्रोफेसर चौबे बताते हैं कि एक इंसान में 3.2 अरब कोशिकाएं मिलती हैं, हर एक में डीएनए पाया जाता है। यही डीएनए कोशिकाओं को निर्देशित करती हैं कि उनके लिए कौन से जरूरी काम हैं और कौन से नहीं हैं। यही डीएनए जब किसी वायरस का शरीर पर अटैक होता है तो उन्हें मार भगाने के लिए भी निर्देश देती हैं।
डीएनए में 1 से लेकर 22 तक क्रोमोसोम होते हैं। जिन्हें हम एक्स और वाई क्रोमोसोम के नाम से जानते हैं। इनमें से एक्स क्रोमोसोम पर एसीई-2 रिसेप्टर पाया जाता है, जिस पर ये कोरोनावायरस अटैक करता है। किसी भी जीव के डीएनए में मौजूद समस्त जीनों की चेन को जीनोम कहते हैं। यह एसीई-2 रिसेप्टर भी जीनोम का ही एक हिस्सा है।
इस रिसर्च के पीछे मकसद क्या था?
प्रोफेसर ज्ञानेश्वर चौबे बताते हैं कि जब से यह महामारी शुरू हुई है, तभी से बहुत सारे लोगों की तरह हमारे मन में भी कई सवाल थे। जैसे लोगों डिफेंस सिस्टम वायरस के खिलाफ बहुत अच्छे से काम क्यों नहीं कर रहा है? कुछ लोगों को ही यह बीमारी क्यों हो रही है? कोरोना सबसे ज्यादा किन पर असर डाल रहा है?
महिलाओं या पुरुषों पर क्या अलग-अलग इम्पैक्ट हो रहा है? इन्हीं सब बातों का पता लगाने के लिए हमने दुनिया भर से लोगों के जीनोम सैंपल जुटाए और स्टडी की। इसमें अलग-अलग विश्वविद्यालयों के हमारे कॉलोबरेटर्स ने मदद की।
कितने देश से जीनोम जुटाए गए?
प्रोफेसर चौबे के मुताबिक अफ्रीका, अमेरिका, यूरोप, एशिया से लेकर साइबेरिया और पापुआ न्यू गिनी तक के 483 लोगों का जीनोम सैंपल लिया। कुल मिलाकर छह महाद्वीप के लोग इसमें शामिल रहे। इसके बाद यूरोप और अमेरिका का एक जीनोम कलेक्शन है, जिसे 1000 जीनोम बोलते हैं, उसमें 2000 से ज्यादा लोगों के जीनोम सैंपल थे।
उनके साथ हमने अपने रिजल्ट को वैलिडेट किया। फिर हमने कोरोनावायरस का इंसानों पर पड़ने वाले इफेक्ट को लेकर अलग-अलग 5 रिसर्च पेपर बनाए। जिनमें से 4 प्रकाशित हो चुके हैं।
भारतीय उपमहाद्वीप के लोग ज्यादा मजबूत हैं?
भारतीय उपमहाद्वीप, चीन और साउथ-ईस्ट एशिया के लोगों में देखा गया कि उनके जीनोम गेटवे की संरचना यूरोप और अमेरिका के लोगों से 50% ज्यादा मजबूत है।
यह रिसर्च किस पेपर में पब्लिश हुआ है?
यह अमेरिका के पब्लिक लाइब्रेरी ऑफ साइंसेज में प्रकाशित हुआ है। इस रिसर्च के लिए हमने जनवरी में ही काम शुरू कर दिया था। अप्रैल तक जीनोम सैंपल कलेक्ट कर लिए थे। इंसान का डीएन हमेशा एक जैसा ही रहता है, इसलिए सैंपल जुटाने के समय से कोई फर्क नहीं पड़ता है।
माइटोकॉन्ड्रिया पर कोरोनावायरस कैसे असर डालता है?
प्रोफेसर चौबे बताते हैं कि हमने अपना पहला रिसर्च माइटोकॉन्ड्रिया पर कोरोना से पड़ने वाले इंपैक्ट को लेकर किया था। यह रिसर्च अमेरिकन जनरल ऑफ सेल्स फिजियोलॉजी में प्रकाशित हुई है। इसमें पता चला कि कोरोना माइटोकॉन्ड्रिया को हाइजैक कर लेता है।
फिर उसे अपने हिसाब से चलाता है। दरअसल, माइटोकॉन्ड्रिया का काम हमारी कोशिकाओं को ऊर्जा देने का होता है, लेकिन जब कोरोना इस पर कब्जा कर लेता है, तो उससे खुद ऊर्जा लेने लगता है। फिर कोशिकाएं इनएक्टिव होने लगती हैं।
दुनिया की तुलना में भारत में रिकवरी रेट क्या है?
- भारत में कोरोना से ठीक होने की दर यानी रिकवरी रेट 80.86% है। हर दिन ये रिकवरी रेट बढ़ती जा रही है। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय की ओर से जारी आंकड़ों के अनुसार, दुनिया के बाकी देशों के मुकाबले भारत अच्छी स्थिति में है।
- कोरोना संक्रमण के मामले भारत में काफी कम हैं। भारत में दस लाख आबादी में 4,031 कोरोना संक्रमण के मामले सामने आए हैं, जबकि दुनिया के बाकी देशों में यह कहीं ज्यादा है।
- पेरू में प्रति 10 लाख आबादी पर 22,941 केस, ब्राजील में 21,303 केस, अमेरिका में 20,253, कोलंबिया में 14,749 और स्पेन में 14,749 केस आ रहे हैं। वहीं, दुनिया का कुल औसत 3,965 है।
दुनिया की तुलना में भारत में डेथ रेट क्या है?
- भारत में प्रति दस लाख आबादी में कोरोना से औसतन 64 मौतें हुई हैं। वहीं दुनिया के अन्य देशों जैसे स्पेन में 652, ब्राजील में 642, यूके में 615, यूएस में 598, मेक्सिको में 565, फ्रांस में 477 और कोलंबिया में 469 लोगों की प्रति दस लाख आबादी में मौत हुई है। दुनिया में औसत प्रति 10 लाख आबादी में 123 है।
- दुनिया में संक्रमण से ठीक होने वाले मरीजों की कुल संख्या का 19.5% मरीज भारत से हैं, जो कि सबसे ज्यादा है। इसके अलावा अब भारत में संक्रमण से ठीक होने वाले मरीजों की संख्या नए संक्रमित मरीजों के मुकाबले काफी ज्यादा है। भारत में कोरोना के एक्टिव केस सिर्फ 17.54% हैं। वहीं मृत्यु दर भी 1.59% है।
कोविड-19 वैक्सीन ट्रैकर:भारत बायोटेक कोवैक्सिन के फेज-3 ट्रायल्स अक्टूबर में करेगा; 50% इफेक्टिव होने पर भी अप्रूव हो जाएगा वैक्सीन
पूरी दुनिया इस समय कोरोनावायरस के दूसरे फेज का सामना कर रही है। कम होकर फिर केस बढ़ने लगे हैं। यूरोप में दोबारा लॉकडाउन की नौबत आ गई है। वहीं, दूसरी ओर कोरोना के खिलाफ उम्मीद की किरण बन रहे वैक्सीन भी अप्रूवल की स्टेज के करीब पहुंच रहे हैं।
भारत बायोटेक और आईसीएमआर ने मिलकर जो स्वदेशी वैक्सीन-कोवैक्सिन बनाया है, उसके फेज-3 ट्रायल्स अक्टूबर में शुरू होने की तैयारी है। इस बीच, भारत में ड्रग रेगुलेटर ने कोरोना वैक्सीन के लिए नई गाइडलाइन जारी की है। इसके अनुसार यदि कोई वैक्सीन अपने ट्रायल्स में 50% भी इफेक्टिव साबित होता है तो उसे अप्रूवल दे दिया जाएगा।
आइए, जानते हैं इस समय देश-दुनिया में कोविड-19 वैक्सीन डेवलपमेंट किस स्टेज में है-
30 हजार लोगों पर होंगे कोवैक्सिन के फेज-3 ट्रायल्स
- भारतीय वैक्सीन निर्माता भारत बायोटेक ने कोविड-19 वैक्सीन कोवैक्सिन की सेफ्टी और इफेक्टिवनेस की जांच के लिए फेज-3 ट्रायल्स अक्टूबर में शुरू करने की योजना बनाई है। कंपनी का प्लान 25 से 30 हजार लोगों पर फेज-3 ट्रायल्स करने का है।
- इस समय कोवैक्सिन फेज-2 ट्रायल्स से गुजर रही है। भारत बायोटेक ने फेज-1 पूरा कर लिया है और इसका डेटा ड्रग कंट्रोलर जनरल ऑफ इंडिया (डीसीजीआई) को सौंप दिया है। भारत बायोटेक ने अपनी रिस्क पर हैदराबाद में अपने दो बायोसेफ्टी सेफ्टी लेवल (बीएसएल)-3 फेसिलिटी पर प्रोडक्शन शुरू कर दिया है।
- भारत बायोटेक में क्वालिटी ऑपरेशंस में प्रेसिडेंट साई प्रसाद ने कहा कि मौजूदा क्षमता 100-200 मिलियन डोज की है। कंपनी कोवैक्सिन को पार्टनर साइट्स पर मैन्युफैक्चर करने की संभावनाओं पर काम कर रही है। इसके लिए टेक्नोलॉजी ट्रांसफर एग्रीमेंट किए जा सकते हैं। कंपनी इस समय 4-5 देशों में कोवैक्सिन को मैन्युफैक्चर करने की संभावनाओं को टटोल रही है। वह कम से कम एक बिलियन डोज सालाना बनाने की क्षमता विकसित करना चाहती है।
भारत बायोटेक ने वॉशिंगटन यूनिवर्सिटी स्कूल से एग्रीमेंट किया
- भारत बायोटेक ने 23 सितंबर को वॉशिंगटन यूनिवर्सिटी स्कूल ऑफ मेडिसिन, सेंट लुइस से कोविड-19 के लिए नोवल चिम्प-एडेनोवायरस सिंगल डोज इंट्रा-नैजल वैक्सीन को लेकर लाइसेंसिंग एग्रीमेंट पर साइन किए हैं। इस एग्रीमेंट के तहत भारत बायोटेक को अमेरिका, जापान और यूरोप छोड़कर अन्य मार्केट्स में वैक्सीन डिस्ट्रिब्यूट करने के अधिकार मिल गए हैं। इस वैक्सीन के फेज-1 ट्रायल्स सेंट लुइस यूनिवर्सिटी के वैक्सीन एंड ट्रीटमेंट इवैल्यूशन यूनिट में शुरू होंगे।
डीसीजीआई ने वैक्सीन को लेकर गाइडलाइन जारी की
- डीसीजीआई ने कोविड-19 वैक्सीन विकसित कर रही फार्मा कंपनियों के लिए सेफ्टी, इम्युनोजेनेसिटी और इफेक्टिवनेस के लिए नई गाइडलाइंस जारी की है। नई गाइडलाइन के तहत यदि कोई वैक्सीन फेज-3 ट्रायल्स में 50% इफेक्टिवनेस भी दिखाती है तो उसे मंजूरी दे दी जाएगी।
- इस गाइडलाइन में कोविड-19 वैक्सीन बना रही एजेंसियों के लिए यह स्पष्ट किया गया है कि अप्रूवल के लिए कम से कम क्या होना चाहिए। दरअसल, आम तौर पर वैक्सीन के लिए जो गाइडलाइन होती है, उसमें नरमी लाते हुए कोविड-19 के वैक्सीन की गाइडलाइन बनाई है। ताकि जल्द से जल्द यह वैक्सीन उपलब्ध हो सके।
- आईसीएमआर के डायरेक्टर जनरल डॉ. बलराम भार्गव ने कहा कि रेस्पिरेटरी वायरस के लिए हमें 100% इफेक्टिवनेस कभी नहीं मिलती। हम 100% इफेक्टिवनेस तलाश रहे हैं लेकिन यदि 50-100 प्रतिशत इफेक्टिवनेस भी काफी होगी।
मुंबई के केईएम हॉस्पिटल में कोवीशील्ड वैक्सीन के ट्रायल्स शुरू
- मुंबई किंग एडवर्ड मेमोरियल (केईएम) हॉस्पिटल में बुधवार को ऑक्सफोर्ड/एस्ट्राजेनेका के वैक्सीन-कोवीशील्ड के ट्रायल्स शुरू हुए। वैक्सीन ट्रायल्स के लिए महाराष्ट्र एथिक्स कमेटी ने अनुमति दे दी है।
- केईएम हॉस्पिटल के डीन डॉ. हेमंत देशमुख का कहना है कि हॉस्पिटल ने ट्रायल्स के लिए वॉलेंटियर्स को स्क्रीन करना शुरू कर दिया है। अस्पताल में 100 वॉलेंटियर्स पर ट्रायल्स होंगे। मुंबई के बीवायएल नायर हॉस्पिटल को भी ट्रायल्स की मंजूरी मिल गई है।
- ट्रायल्स के हिस्से के तौर पर वॉलेंटियर्स का पहले आरटी-पीसीआर और एंटीजन टेस्ट कराया जाएगा। इसके बाद उन्हें वैक्सीन लगाया जाएगा। कोवीशील्ड के ट्रायल्स पुणे में भी हो रहे हैं। पुणे के सीरम इंस्टिट्यूट ऑफ इंडिया (एसआईआई) ने ब्रिटिश-स्वीडिश फार्मा कंपनी एस्ट्राजेनेका से कोवीशील्ड के मैन्युफैक्चरिंग के लिए पार्टनरशिप की है।
डब्ल्यूएचओ ने कहा- दो-तिहाई आबादी कोवैक्स से जुड़ी
- विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने कहा है कि नोवल कोरोनावायरस के खिलाफ वैक्सीन का बराबरी से डिस्ट्रिब्यूशन सुनिश्चित करने के लिए शुरू की गई पहल कोवैक्स फेसिलिटी में अब दुनिया की दो-तिहाई आबादी का प्रतिनिधित्व करने वाली 156 अर्थव्यवस्थाएं शामिल हो गई हैं।
- इसमें 64 हायर-इनकम इकोनॉमी शामिल हैं। यह अपने लिए वैक्सीन खुद खरीदेंगी। वहीं, 92 लो और मिडिल इनकम इकोनॉमी को कोवैक्स एडवांस मार्केट कमिटमेंट के तहत सपोर्ट हासिल करेंगी।
187 वैक्सीन बन रहे हैं दुनियाभर में
- डब्ल्यूएचओ के कोविड-19 वैक्सीन कैंडीडेट ड्राफ्ट लैंडस्केप के अनुसार, इस समय दुनियाभर में 187 वैक्सीन विकसित हो रहे हैं। इनमें नौ वैक्सीन फेज-3 यानी अंतिम दौर के ट्रायल्स में हैं। इन्हें मिलाकर 38 वैक्सीन क्लिनिकल ट्रायल्स के फेज-1, फेज-2 और फेज-3 में हैं। वहीं, 149 वैक्सीन प्री-क्लिनिकल स्टेज में हैं।