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पेट्रोल के बाद डीजल भी सौ रुपए के पार; सरकार का दावा महंगा क्रूड वजह, लेकिन पिछले 39 दिन में तो क्रूड सस्ता भी हुआ फिर क्यों कम नहीं हुए दाम?

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पेट्रोल के बाद अब डीजल की कीमतें भी 100 रुपए/लीटर को पार कर गई हैं। शनिवार को डीजल की कीमत में 25 पैसे का इजाफा हुआ। इससे राजस्थान के श्रीगंगानगर में डीजल 100.06 रुपए हो गया। वहीं पांच राज्यों राजस्थान, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना और केंद्र शासित प्रदेश लद्दाख में पेट्रोल पहले ही 100 रुपए के पार बिक रहा है।

आखिर पेट्रोल-डीजल के दाम में इतने इजाफे की वजह क्या है? दामों में इजाफे को लेकर सरकार का क्या कहना है? केंद्र और राज्य सरकारों के टैक्स और तेल कंपनियों के कमीशन का इसमें क्या रोल है? सरकार के पास इन कीमतों पर नियंत्रण का कोई रास्ता है या नहीं? आइए जानते हैं…

आखिर पेट्रोल-डीजल का दाम बढ़ने की वजह क्या है?
2 मई को पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव के नतीजे आए। उसके दो दिन बाद से पेट्रोल-डीजल के दाम बढ़ना शुरू हुए। पिछले 39 दिन में दिल्ली में ही पेट्रोल 5.57 रुपए महंगा हो चुका है। वहीं, डीजल 6.07 रुपए महंगा हो चुका है। शनिवार को दिल्ली में पेट्रोल की कीमत 96.18 रुपए और डीजल की कीमत 87.04 रुपए हो गई। इस दौरान एक भी दिन ऐसा नहीं गया जब कीमतें कम हुई हों।

पेट्रोल-डीजल के दाम में हो रहे इस इजाफे की वजह इंटरनेशनल मार्केट में क्रूड ऑयल के बढ़ते दामों को बताया जा रहा है। 3 मई को इंडियन बास्केट में क्रूड के दाम 65.71 डॉलर प्रति बैरल थे। जो इस वक्त बढ़कर 71 डॉलर प्रति बैरल हो चुके हैं।

दामों में इजाफे को लेकर सरकार का क्या कहना है?
पेट्रोलियम मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने सोमवार को कहा कि फिलहाल पेट्रोल-डीजल की कीमतें कम होने की गुंजाइश नहीं है। उन्होंने इसका कारण इंटरनेशल मार्केट में क्रूड ऑयल की कीमतों को बताया। प्रधान ने कहा कि क्रूड इस वक्त 70 डॉलर प्रति बैरल के पार पहुंच गया है।

हालांकि, सरकार के ही आंकड़े कहते हैं कि जब मोदी सरकार सत्ता में आई थी उस वक्त क्रूड ऑयल की कीमतें 109 डॉलर प्रति बैरल तक पहुंच गई थी। उस वक्त एक लीटर पेट्रोल की कीमत 70 से 72 रुपए के बीच थी।

कीमतों के बढ़ने पर एक और तर्क दिया जाता है। डॉलर के मुकाबले रुपए की कीमत का। अगर उस लिहाज से भी देखें तो जून 2014 में एक डॉलर 58.81 रुपए का था। इस लिहाज से उस वक्त क्रूड 6,326.19 रुपए प्रति बैरल था। वहीं, आज क्रूड की कीमत 5199.46 रुपए प्रति बैरल है। यानी, जून 2014 के मुकाबले आज भी क्रूड एक हजार रुपए प्रति बैरल से भी ज्यादा सस्ता है।

जब क्रूड 2014 के मुकाबले सस्ता है तो फिर क्यों महंगा है पेट्रोल-डीजल?
जून 2014 में एक लीटर पेट्रोल पर साढ़े 9 रुपए और डीजल पर करीब साढ़े 3 रुपए एक्साइज ड्यूटी थी। इस वक्त इसमें चार से 10 गुने तक का इजाफा हो चुका है। आज एक लीटर पेट्रोल पर 32.9 रुपए और डीजल पर 31.8 रुपए एक्साइज ड्यूटी लगती है।

इसी तरह राज्यों ने भी पिछले पांच साल में सेल्स टैक्स और वैट में भी इजाफा किया है। 16 जून 2017 से देश में हर रोज पेट्रोल-डीजल के दाम बढ़ने शुरू हुए। उसके बाद से भी केंद्र और राज्यों ने अपने-अपने टैक्स में काफी इजाफा किया है। इसे दिल्ली में पेट्रोल के दाम के एक उदाहरण से समझ सकते हैं।

ऊपर के ग्राफिक्स में स्पष्ट है कि पिछले तीन साल में पेट्रोल के दाम में कोई खास इजाफा नहीं हुआ। इजाफा अगर हुआ है तो केंद्र और राज्य सरकार के टैक्स में। दिल्ली में तो सबसे ज्यादा केंद्र का टैक्स बढ़ा है।

अगर दूसरे राज्यों की बात करें तो उन राज्यों के टैक्स और ट्रांसपोर्टेशन के साथ संबंधित राज्य में पेट्रोल की कीमत कम या ज्यादा होती है। जैसे राजस्थान सरकार सबसे ज्यादा टैक्स वसूलती है इसलिए सबसे पहले पेट्रोल डीजल ने राजस्थान में शतक लगाया। उसमें भी श्रीगंगानगर से ऑयल प्लांट की दूरी सबसे ज्यादा है। इसलिए टैक्स के साथ ट्रांसपोर्टेशन पर सबसे ज्यादा खर्च यहां आता है। इसलिए राजस्थान में भी सबसे महंगा पेट्रोल-डीजल श्रीगंगानगर में मिलता है।

सरकार के पास इन कीमतों पर नियंत्रण का कोई रास्ता है या नहीं?

पेट्रोलियम मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने सोमवार को आने वाले दिनों में भी दाम बढ़ने की बात कही। सरकार इसके लिए क्रूड की कीमतों को दोष दे रही है, लेकिन ये पूरा सच नहीं है। आइए इसे इन आंकड़ों से समझते हैं।

तीन मई को इंडियन बास्केट में क्रूड के दाम 65.71 डॉलर प्रति बैरल थे। उस वक्त दिल्ली में डीजल 80.77 और पेट्रोल 90.44 रुपए लीटर था। इसके बाद पिछले 39 दिन में कई मौके ऐसे आए जब इंटरनेशनल मार्केट में क्रूड के दाम घटे लेकिन उसके बाद भी पेट्रोल-डीजल के दाम कम नहीं हुए। उदाहरण के लिए 18 मई को क्रूड 68.69 डॉलर/बैरल था। उसके बाद लगातार तीन दिन इसके दाम घटे, लेकिन पेट्रोल के दाम पहले दो दिन तो कम नहीं हुए तीसरे दिन उल्टे बढ़ गए।

जहां तक बात सरकार के पास रास्ते की है तो केंद्र चाहे तो एक्साइज ड्यूटी कम करके पेट्रोल-डीजल के दाम कम कर सकती है। वहीं राज्य सरकारें भी चाहें तो वैट या सेल्स टैक्स कम करके इसके दामों में कमी कर सकती हैं।

चुनाव में क्रूड महंगा होने पर भी नहीं बढ़ते दाम

5 राज्यों में चुनाव के ऐलान के अगले दिन दिल्ली में पेट्रोल के दाम में 24 पैसे और डीजल के दाम में 15 पैसे का इजाफा हुआ। इसके बाद 24 मार्च को पेट्रोल 18 पैसा, 25 मार्च को 21 पैसा, 30 मार्च को 22 पैसा, 15 अप्रैल को 16 पैसा सस्ता हुआ। इसी तरह डीजल भी 24 मार्च को 17 पैसा, 25 मार्च को 20 पैसा, 30 मार्च को 23 पैसा और 15 अप्रैल को 14 पैसा सस्ता हुआ।

अब इसका क्रूड कनेक्शन भी देख लेते हैं। चुनाव के ऐलान के वक्त क्रूड 64.68 डॉलर/बैरल था। उसके बाद 15 मार्च तक ये बढ़कर 68.25 डॉलर/बैरल हो गया लेकिन इस दौरान एक भी दिन पेट्रोल डीजल के दाम नहीं बढ़े।

इस दौरान देश के पांच राज्यों में चुनाव चल रहे थे।

सरकार तो कहती थी तेल को डी-रेग्युलेट करने से आम लोगों को फायदा होगा उसका क्या हुआ?
तेल के दामों को डी-रेग्युलेट करने की शुरुआत 2002 में हुई। जब पहली बार ATF यानी एविएशन टर्बाइन फ्यूल को डी-रेग्युलेट किया। उसके बाद 2010 में पेट्रोल की कीमतों को डी-रेग्युलेट किया गया। अक्टूबर 2014 में डीजल के दाम को भी बाजार के हवाले कर दिया गया। सरकार का दावा था कि इससे उपभोक्ता को सीधा लाभ मिलेगा। अगर तेल की कीमतें घटेंगी तो आपको सस्ता तेल मिलेगा और बढ़ेंगी तो आपको इसके लिए ज्यादा कीमत चुकानी होगी। इससे पहले सरकार तेल की कीमतें तय करती थी।

लेकिन, ऐसा सच में नहीं हुआ। क्योंकि जब क्रूड महंगा हुआ और तेल के दाम बढ़े तो आम लोगों को ज्यादा कीमत चुकानी पड़ी, लेकिन जब-जब सस्ता हुआ तो सरकारों ने टैक्स बढ़ाकर अधिक से अधिक मुनाफा कमाया। यानी, क्रूड सस्ता होने का फायदा आम लोगों को नहीं बल्कि सरकारों को हुआ। लेकिन जब तेल फिर महंगा हुआ तो सरकार ने टैक्स नहीं घटाए। इसका नतीजा ये हुआ कि आम लोगों पर टैक्स का बोझ बढ़ता गया।

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