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दुर्लभ योग / 558 साल बाद गुरु, शनि और राहु-केतु के एक साथ वक्री रहते आया है सावन, नागपंचमी और रक्षाबंधन समेत 8 व्रत-त्योहार इसी महीने

सावन माह में ऐसा भोजन करें जो जल्दी पच सके सोमवार से शुरू और सोमवार को ही खत्म होगा सावन माह शिवजी के मंत्र ऊँ सांब सदाशिवाय नम: मंत्र का जाप करें

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आज से सावन माह शुरू हो रहा है। ये महीना 3 अगस्त तक रहेगा। इस साल सावन माह में गुरु, शनि, राहु और केतु चारों ग्रह एक साथ वक्री रहेंगे। 2020 से पहले ऐसा योग 558 साल पहले 1462 में बना था। सोमवार से शुरू और इसी वार को सावन खत्म होने से इस माह का महत्व और अधिक बढ़ गया है। उत्तर भारत और दक्षिण भारत के पंचांग में भेद भी हैं। दक्षिण भारत, महाराष्ट्र और गुजरात में 21 जुलाई से सावन शुरू और 19 अगस्त को खत्म होगा। जहां उत्तर भारत का पंचांग प्रचलित है, वहां 6 जुलाई से 3 अगस्त तक सावन रहेगा।

उज्जैन के ज्योतिषाचार्य पं. मनीष शर्मा के मुताबिक 558 साल पहले 1462 में भी गुरु, शनि, राहु-केतु एक साथ वक्री थे और सावन आया था। गुरु स्वयं की राशि धनु में वक्री, शनि अपनी राशि मकर में वक्री, राहु मिथुन में और केतु धनु राशि में वक्री था। ऐसा ही योग 2020 में भी बना है। उस समय सावन 21 जून से 20 जुलाई 1462 तक था।

सावन की प्रमुख तिथियां

इस माह में गणेश चतुर्थी व्रत 8 जुलाई को, कामिका एकादशी 16 को, हरियाली अमावस्या 20 को, हरियाली तीज 23 को, विनायकी चतुर्थी व्रत 24 को, नाग पंचमी 25 को, पुत्रदा एकादशी 30 को और रक्षा बंधन 3 अगस्त को मनाया जाएगा। तीज पर देवी पार्वती, चतुर्थी पर गणेशजी, पंचमी पर नागदेवता, एकादशी पर विष्णुजी, अमावस्या पर पितर देवता और पूर्णिमा पर चंद्रदेव की विशेष पूजा करनी चाहिए।

सोमवार से शुरू और सोमवार को ही खत्म होगा सावन

इस बार सावन सोमवार से शुरू होकर इसी वार को खत्म होगा। शिवजी की पूजा में सोमवार का विशेष महत्व है। सावन पांचवां हिन्दी माह है। इसके स्वामी वैकुंठनाथ हैं, और श्रवण नक्षत्र में इसकी पूर्णिमा आने से इसे श्रावण या सावन माह कहा जाता है। श्रवण नक्षत्र के स्वामी चंद्रदेव हैं। चंद्र का एक नाम सोम भी है। चंद्रवार को ही सोमवार कहते हैं। शिवपुराण के अनुसार शिवजी और पार्वतीजी का विवाह मार्गशीर्ष माह के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को रोहिणी नक्षत्र में हुआ था, उस दिन सोमवार ही था। इस साल ये तिथि 19 दिसंबर को रहेगी। रोहिणी नक्षत्र के स्वामी भी चंद्र हैं। चंद्रदेव को शिवजी ने अपने मस्तक पर स्थान दिया है। पार्वतीजी के साथ विवाह सोमवार को होने से और चंद्रदेव का वार होने से भी शिवजी को सोमवार विशेष प्रिय है।

शिवजी को चढ़ाई जाती है शीतलता देने वाली चीजें

सोम यानी चंद्र शीतल ग्रह है। शिवजी ने विषपान किया था, जिससे उन्हें बहुत ज्यादा तपन होती है, इसलिए शिवजी शीतलता देने वाली चीजों को पसंद करते हैं। इसलिए उन्होंने चंद्र को मस्तक पर धारण किया है। चंदन, बिल्व पत्र, जलाभिषेक, दूध, दही, घी, शहद ये सभी चीजें भी ठंडक देने वाली हैं। हल्दी गर्म रहती है, इस वजह शिवलिंग पर नहीं चढ़ाना चाहिए।

पंचतत्वों में पृथ्वी तत्व के देवता हैं शिव

श्री गणेश अंक में लिखा है कि-

आकाशस्याधिपो विष्णुरग्नेश्चैव महेश्वरी।

वायो: सूर्य: क्षितेरीशो जीवनस्य गणाधिप:॥

इस श्लोक का सरल अर्थ यह है कि पंचतत्वों में आकाश तत्व के देवता विष्णु, अग्रि तत्व देवी दुर्गा, वायु तत्व के सूर्य, पृथ्वी तत्व के शिव और जल तत्व के देवता गणेशजी हैं। गर्मी में पृथ्वी से जल वाष्प बनकर उड़ जाता है, और सावन में पृथ्वी तत्व यानी की शिवजी पर पुन: जल तत्व वर्षा द्वारा अभिषेक करता है। पृथ्वी जल से तृप्त हो जाती है। पृथ्वी तत्व होने के कारण ही शिव का पार्थिव पूजन किया जाता है।

सावन में शिवलिंग पर दूध क्यों चढ़ाते हैं?

सावन माह में लगातार बारिश होती है। इस कारण कई तरह के छोटे-छोटे जीवों की उत्पत्ति होती है। कई प्रकार की विषैली नई घास और वनस्पतियां उगती हैं। जब दूध देने वाले पशु इन घासों को और वनस्तपतियों को खाते हैं तो पशुओं का दूध विष के सामान हो जाता है। ऐसा कच्चा दूध पीने से हमारे स्वास्थ्य को नुकसान हो सकता है। इसीलिए इस माह में कच्चे दूध के सेवन से बचना चाहिए। शिवजी ने विषपान किया था, इस कारण सावन माह में शिवलिंग का दूध से अभिषेक किया जाता है। इस माह हरी सब्जियां खाने से बचना चाहिए, क्योंकि सब्जियों में भी कई तरह के हानिकारक सूक्ष्म कीटाणु चिपके रहते हैं, जो हमारे स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचा सकते हैं। इस समय ऐसा भोजन करें जो जल्दी पच सके।

घर पर ही कर सकते हैं शिवजी की पूजा

जो लोग शिवालय नहीं जा सकते हैं, वे अपने घर में ही शिवलिंग का अभिषेक और पूजन कर सकते हैं। जिसके घर पर शिवलिंग न हो, वह आंगन में लगे किसी पौधे को शिवलिंग मानकर या मिट्टी का शिवलिंग बनाकर उसका पूजन कर सकते हैं। मिट्टी से शिवलिंग बनाकर पूजन करने को ही पार्थिव शिवपूजन कहा जाता है। ये पूजा शुभ फल देने वाली मानी जाती है।

सरल स्टेप्स में ऐसे कर सकते हैं संक्षिप्त पूजा

रोज सुबह जल्दी उठें और स्नान के बाद शिवलिंग पर जल चढ़ाएं। पंचामृत से अभिषेक करें।
मंत्र ऊँ नम: शिवाय, ऊँ महेश्वराय नम:, ऊँ सांब सदाशिवाय नम:, ऊँ रुद्राय नम: आदि मंत्रों का जाप करें।
चंदन, फूल, प्रसाद चढ़ाएं। धूप और दीप जलाएं। शिवजी को बिल्वपत्र, धतूरा, चावल अर्पित करें।
भगवान को प्रसाद के रूप में फल या दूध से बनी मिठाई अर्पित करें। धूप, दीप, कर्पूर जलाकर आरती करें।
शिवजी का ध्यान करते हुए आधी परिक्रमा करें। भक्तों को प्रसाद वितरित करें।

 

सावन में शिव की कहानी / भगवान शिव ने ली थी पार्वती के प्रेम की परीक्षा, शिव के पसीने से पैदा हुआ था राक्षस अंधक, हिरण्याक्ष को दिया था दान में

  • शिवपुराण की कथाएं सावन में पढ़ने और सुनने का महत्व है, तीन कथाओं से जानिए भगवान शिव के तीन अलग-अलग रूप

सावन मास में शिव भक्ति के साथ ही भगवान शिव की कथा सुनने का भी महत्व है। शिव पुराण में भगवान शिव के कई प्रसंग हैं। उनके 19 अवतारों के बारे में बताया गया है। इसके साथ ही किस-किस को भगवान ने क्या-क्या वरदान दिए ये भी कथाएं हैं। सावन के पहले दिन भगवान शिव की तीन छोटी-छोटी कथाएं यहां प्रस्तुत हैं।

  • भगवान शिव के पसीने से अंधक का जन्म

एक भगवान शिव और माता पार्वती घूमते हुए काशी पहुंच गए। एक बार शिव अपना मुंह पूर्व दिशा की ओर करके बैठे थे। उसी समय पार्वती ने पीछे से आकर अपने हाथों से भगवान शिव की आंखों को बंद कर दिया। ऐसा करने पर उस पल के लिए पूरे संसार में अंधेरा छा गया। जैसे ही माता पार्वती के हाथों का स्पर्श भगवान शिव के शरीर पर हुआ, वैसे ही भगवान शिव के सिर से पसीने की बूंदें गिरने लगीं। उन पसीने की बूंदों से एक बालक प्रकट हुआ।

उस बालक का मुंह बहुत बड़ा था और भंयकर था। उस बालक को देखकर माता पार्वती ने भगवान शिव से उसकी उत्पत्ति के बारे में पूछा। भगवान शिव ने पसीने से उत्पन्न होने के कारण उसे अपना पुत्र बताया। अंधकार में उत्पन्न होने की वजह से वह बालक अंधा था। इसलिए, उसका नाम अंधक रखा गया। कुछ समय बाद दैत्य हिरण्याक्ष के पुत्र प्राप्ति का वर मागंने पर भगवान शिव ने अंधक को उसे पुत्र रूप में प्रदान कर दिया।

  • भगवान शिव ने ली थी पार्वती की परीक्षा

शिवपुराण में दिए गए एक प्रसंग के अनुसार, पार्वती भगवान शिव को पति रूप में पाना चाहती थी। जिसके लिए पार्वती कई वर्षों से कठोर तपस्या कर रही थी। माता पार्वती की तपस्या देखकर भगवान शिव उनकी भक्ति पर प्रसन्न थे, लेकिन भगवान शिव उनके प्रेम की परीक्षा लेना चाहते थे। परीक्षा लेने के लिए भगवान शिव एक ब्राह्मण का रूप धारण करके माता पार्वती के आश्रम में गए। जहां देवी पार्वती तपस्या कर रही थी। पार्वती को तपस्या करते देख ब्राह्मण रूपी भगवान शिव ने माता से इतनी कठोर तपस्या करने का कारण पूछा।

ब्राह्मण के ऐसा पूछने पर पार्वती ने उन्हें बताया कि वे भगवान शिव को अपने पति रूप में पाना चाहती है। उन्हीं को पाने के लिए वे तपस्या कर रही है। माता पार्वती के ऐसा कहने पर ब्राह्मण रूपी शिव माता पार्वती के सामने भगवान शिव की निन्दा करने लगे। ब्राह्मण के मुंह से भगवान शिव की निन्दा सनने पर माता पार्वती ने ब्राह्मण की बातों का विरोध किया भगवान शिव के गुणों का वर्णन किया। माता पार्वती के ऐसा करने पर भगवान शिव उन पर बहुत प्रसन्न हुए और माता पार्वती को अपने शिव रूप के दर्शन दिए। साथ ही देवी पार्वते को ही अपनी पत्नी बनाने का वरदान भी दिया।

  • भगवान शिव से युद्ध में हार गया था अर्जुन

शिवपुराण की ही एक कथा और है। महाभारत के पांडव काम्यक वन में अपना वनवास बीता रहे थे। वही उनकी मुलाकात महर्षि वेदव्यास से हुई। महर्षि वेदव्यास ने अर्जुन को भगवान शिव की तपस्या करके, उनसे पाशुपतास्त्र और दिव्यास्त्र लेने को कहा। महर्षि के आदेश पर अर्जुन घने जंगल में भगवान शिव की कड़ी तपस्या करने लगा। अर्जुन की तपस्या की परीक्षा लेने के लिए भगवान शिव ने एक भील का रूप धारण कर लिया। भील रूपी शिव ने अर्जुन के पराक्रम का बहुत अपमान किया। भील द्वारा अपने पराक्रम का अपमान कए जाने पर अर्जुन ने उसे युद्ध करने को कहा।

अर्जुन ने ऐसा करने पर भील रूपी भगवान शिव और अर्जुन के बीच घोर युद्ध हुआ। युद्ध में भील ने अर्जुन को हरा दिया और उसका धनुष गांडीव भी छीन लिया। भील के वार से अर्जुन बेहोश होकर धरती पर गिर पड़ा। होश आने पर वह फिर से भगवान शिव की तपस्या करने लगा। अर्जुन की भक्ति और लगन से खुश होकर भगवान शिव ने उसे अपने शिव रूप के दर्शन दिए। साथ ही वरदान स्वरूप भगवान सिन ने अर्जुन को पाशुपतास्त्र और कई दिव्यास्त्रों की शिक्षा भी दी।

 

 

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