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तीसरे विश्व युद्ध की आहट, मोदी-ट्रंप ने बनाया `चाइना प्लान`

लद्दाख में भारत और चीन के टकराव के बीच पहली बार अमेरिका ने ये खुलकर कह दिया है कि चीन की आक्रामक नीतियों की वजह से ना सिर्फ भारत, बल्कि वियतनाम, फिलीपींस, इंडोनेशिया, मलेशिया जैसे देश भी खतरे में हैं.

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नई दिल्ली: चीन की कम्युनिस्ट पार्टी और उसकी सेना से तो भारत निपट लेगा, लेकिन अब ये दुनिया को सोचना है कि अगर चीन इसी तरह की उग्र हरकतें दूसरी जगहों पर भी करता रहा, तो फिर दुनिया का क्या होगा? आज भारत की बात पूरी दुनिया को समझ में आ रही है और दुनिया ये स्वीकार कर रही है कि चीन की कम्युनिस्ट पार्टी और उसकी सेना पीपल्स लिबरेशन आर्मी यानी PLA दुनिया के लिए अब खतरा बन चुकी है.

इसे आप तीसरे विश्व युद्ध की आहट भी मान सकते हैं, क्योंकि लद्दाख में भारत और चीन के टकराव के बीच पहली बार अमेरिका ने ये खुलकर कह दिया है कि चीन की आक्रामक नीतियों की वजह से ना सिर्फ भारत, बल्कि वियतनाम, फिलीपींस, इंडोनेशिया, मलेशिया जैसे देश भी खतरे में हैं. इस खतरे से निपटने के लिए अमेरिका यूरोप से अपने सैनिक कम करके, इन सैनिकों को एशिया में तैनात करने जा रहा है.

 

अमेरिका के इस प्लान के बारे में दुनिया को तब पता चला, जब अमेरिका ने जर्मनी से अपने सैनिक कम करने की वजह बताई. जर्मनी सहित यूरोप के कई देशों में अमेरिका के सैन्य अड्डे हैं और वहां पर बड़ी संख्या में अमेरिकी सैनिक तैनात हैं. अमेरिका ने यूरोप में अपनी ये सैन्य ताकत रूस के खतरे से निपटने के लिए वर्षों से लगा रखी है. लेकिन अब दुनिया का सबसे बड़ा खतरा तो चीन और वहां की कम्युनिस्ट पार्टी बन चुकी है.इसलिए अमेरिका ने कहा है कि वो जर्मनी में मौजूद अपने सैनिकों की संख्या को 52 हजार से कम करके 25 हजार करेगा. और इनमें से 9 हजार सैनिक अमेरिका दक्षिण पूर्व एशियाई देशों में तैनात करेगा. अमेरिका दुनिया भर में अपने सैनिकों की तैनाती की समीक्षा कर रहा है और उन्हें अब इस तरह से तैनात कर रहा है कि ये सैनिक जरूरत पड़ने पर चीन की सेना का मुकाबला कर सकें.अमेरिका इस बात को मान रहा है कि ये बहुत बड़ी चुनौती का वक्त है, और इस चुनौती का सामना करने के लिए जरूरी यही है कि सभी सैन्य संसाधन उचित जगह पर मौजूद हों. इसका अर्थ ये है कि अमेरिका उन रणनीतिक जगहों पर अपनी सैन्य ताकत बढ़ाएगा, जहां से चीन को घेरा जा सकता है. ये चीन के लिए बड़ा संदेश भी है कि उसकी हरकतों पर दुनिया चुप नहीं बैठेगी.

और अगर भारत और चीन के बीच कभी युद्ध की स्थिति बनी तो अमेरिका खुलकर भारत का साथ देगा. लेकिन ये वो हालात होंगे, जिसमें किसी तीसरी ताकत के आने से विश्व युद्ध का खतरा बन जाएगा. जिसमें एक तरफ चीन के साथ पाकिस्तान और उत्तर कोरिया जैसे देश होंगे, तो भारत के साथ अमेरिका, जापान, ऑस्ट्रेलिया जैसे देश होंगे, जो खुलकर चीन की आक्रामक नीतियों का विरोध कर रहे हैं.

 

इसमें रूस जैसे देशों के लिए धर्मसंकट होगा कि वो भारत जैसे पुराने दोस्त को चुनें या फिर चीन जैसे देश को, जो पिछले कुछ वक्त से रूस की बड़ी जरूरत बन गया है. लेकिन सवाल तो ये है कि ऐसी नौबत ही क्यों आए, क्यों दुनिया एकजुट होकर चीन से जवाब नहीं मांगती, जबकि जमीन की भूख में चीन का विस्तारवादी चेहरा पूरी दुनिया देख रही है.

 

फिर चाहे वो भारत के साथ लद्दाख में टकराव का मामला हो, ताइवान को सैन्य कार्रवाई की धमकी देने की बात हो, हॉन्गकॉन्ग में अपने खिलाफ आवाजों को कुचलने की बात हो, जापान के साथ पुराने मुद्दों पर नए सिरे से टकराव की बात हो या फिर दक्षिण चीन सागर में अधिकार जमाने के लिए दूसरे देशों को डराने-धमकाने की बात हो.

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