Newsportal

तीन कृषि कानूनों पर साढ़े तीन महीने बाद ब्रेक:SC ने कानूनों पर रोक लगाकर कमेटी बनाई, कहा- जो हल चाहेगा, वह कमेटी के पास जाएगा

0 256

संसद से साढ़े तीन महीने पहले पारित हुए तीन कृषि कानूनों के अमल पर सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को रोक लगा दी। कृषि कानूनों को चुनौती देती याचिकाओं पर फैसला सुनाते हुए सुप्रीम कोर्ट ने चार सदस्यों की कमेटी भी बना दी। यह कमेटी किसानों से बातचीत करेगी। सुप्रीम कोर्ट का फैसला न किसानों के लिए जीत है और न सरकार के लिए हार।

सबसे पहले जानते हैं कि फैसला क्या है…

  • पिछले साल सितंबर में सरकार ने किसानों की उपज, उस उपज की कीमत और जरूरी वस्तु से जुड़े तीन कानून संसद से पास कराए थे। 22 से 24 सितंबर के बीच राष्ट्रपति ने इन कानूनों पर मुहर लगा दी थी।
  • किसान इन कानूनों का विरोध कर रहे हैं। कुछ वकीलों ने भी इन कानूनों के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अर्जी लगाई थी। इस पर फैसला सुनाते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कानूनों के अमल पर रोक लगा दी।
  • सुप्रीम कोर्ट ने 4 विशेषज्ञों की कमेटी भी बना दी। इसमें कोई रिटायर्ड जज शामिल नहीं है।

कमेटी में ये विशेषज्ञ शामिल

  • भूपेंद्र सिंह मान, भारतीय किसान यूनियन
  • डॉ. प्रमोद कुमार जोशी, इंटरनेशनल पॉलिसी हेड
  • अशोक गुलाटी, एग्रीकल्चर इकोनॉमिस्ट
  • अनिल घनवत, शेतकरी संघटना, महाराष्ट्र

न किसान जीते, न सरकार हारी; लेकिन कैसे?

  • किसानों की मांग है कि तीनों कृषि कानून रद्द कर दिए जाएं। सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कानूनों को रद्द करने की बात नहीं कही है। बस इसके अमल को कुछ वक्त के लिए रोका है। किसान कोई कमेटी नहीं चाहते थे, लेकिन बातचीत में मदद के लिए सुप्रीम कोर्ट ने कमेटी बना दी है।
  • उधर, सरकार के लिए यह हार इसलिए नहीं है क्यांेकि वह खुद चाहती थी कि एक कमेटी बने और उसके जरिए बातचीत हो। सरकार के बनाए कानूनों की कॉन्स्टिट्यूशनल वैलिडिटी यानी संवैधानिक वैधता भी बरकरार है, क्योंकि सुप्रीम कोर्ट ने इस बारे में कुछ नहीं कहा है। साथ ही यह भी साफ किया है कि कानूनों के अमल पर रोक बेमियादी नहीं होगी।

आगे क्या होगा?

  • कमेटी क्या करेगी: कमेटी किसानों से बातचीत करेगी। हो सकता है कि सरकार काे भी इसमें अपना पक्ष रखने का मौका मिले। यह कमेटी कोई फैसला या आदेश नहीं देगी। यह सुप्रीम कोर्ट को अपनी रिपोर्ट सौंपेगी। कमेटी के पास कितना दिन का वक्त होगा, यह अभी साफ नहीं है।
  • क्या किसान मानेंगे: आंदोलन कर रहे 40 संगठनों के संयुक्त किसान मोर्चा का कहना है कि हम किसी कमेटी के सामने नहीं जाना चाहते, फिर भी एक बैठक कर इस पर फैसला लेंगे। हमारा आंदोलन जारी रहेगा।
  • सरकार से बातचीत: जब कमेटी बन जाएगी तो 15 जनवरी को सरकार और किसानों के बीच होने वाली 10वें दौर की बातचीत होगी या नहीं, यह भी अगले कुछ दिनों में साफ होगा।
  • आंदोलन की जगह: सुप्रीम कोर्ट ने किसान संगठनों से कहा है कि वे अगर रामलीला मैदान या कहीं और प्रदर्शन करना चाहते हैं तो इसके लिए दिल्ली पुलिस कमिश्नर से इजाजत मांगें। अगर इजाजत मिलती है तो आंदोलन की जगह बदल सकती है।
  • 26 जनवरी की परेड: किसानों ने कहा था कि 26 जनवरी को वे ट्रैक्टर परेड निकालेंगे। तब दिल्ली की सड़कों पर वे 2 हजार ट्रैक्टर दौड़ाएंगे। दिल्ली पुलिस ने सुप्रीम कोर्ट में अर्जी लगाकर कहा है कि प्रदर्शन का अधिकार होने के ये मायने नहीं हैं कि दुनियाभर के सामने भारत की छवि खराब की जाए। इस पर भी सुप्रीम कोर्ट से फैसला आने की उम्मीद है।
  • 8 पॉइंट में कोर्ट रूम LIVE: प्रधानमंत्री का भी जिक्र आया
    1. किसानों के इनकार पर सुप्रीम कोर्ट की हिदायत

    एमएल शर्मा (कृषि कानूनों को चुनौती देने वाले मुख्य पिटीशनर): किसानों ने सुप्रीम कोर्ट की बनाई कमेटी के सामने पेश होने से इनकार कर दिया है।
    चीफ जस्टिस: कमेटी इसलिए बनेगी ताकि तस्वीर साफ तौर पर समझ आ सके। हम यह दलील भी नहीं सुनना चाहते कि किसान इस कमेटी के पास नहीं जाएंगे। हम मसले का हल चाहते हैं। अगर किसान बेमियादी आंदोलन करना चाहते हैं, तो करें। जो भी व्यक्ति मसले का हल चाहेगा, वह कमेटी के पास जाएगा। यह राजनीति नहीं है। राजनीति और ज्यूडिशियरी में फर्क है। आपको को-ऑपरेट करना होगा।

    2. कमेटी कोई आदेश जारी नहीं करेगी
    चीफ जस्टिस
    : हम कानून के अमल को अभी सस्पेंड करना चाहते हैं, लेकिन बेमियादी तौर पर नहीं। हमें कमेटी में यकीन है और हम इसे बनाएंगे। यह कमेटी न्यायिक प्रक्रिया का हिस्सा होगी। कमेटी किसी को सजा नहीं सुनाएगी, न ही कोई आदेश जारी करेगी। वह सिर्फ हमें रिपोर्ट सौपेंगी।

    3. प्रधानमंत्री का जिक्र
    एमएल शर्मा
    : किसान कह रहे हैं कि कई लोग चर्चा करने आए, लेकिन प्रधानमंत्री नहीं आए, जो मुख्य व्यक्ति हैं।
    चीफ जस्टिस: हम प्रधानमंत्री से बैठक में जाने को नहीं कह सकते। वे इसमें पार्टी नहीं हैं। प्रधानमंत्री के दूसरे ऑफिशियल यहां पर मौजूद हैं।

    4. किसानों की जमीन नहीं बेची जाएगी
    एमएल शर्मा
    : नए कृषि कानून के तहत अगर कोई किसान कॉन्ट्रैक्ट करेगा तो उसकी जमीन बेची भी जा सकती है। यह मास्टरमाइंड प्लान है। कॉर्पोरेट्स किसानों की उपज को खराब बता देंगे और हर्जाना भरने के लिए उन्हें अपनी जमीन बेचनी पड़ जाएगी।
    चीफ जस्टिस: हम अंतरिम आदेश जारी करेंगे कि कॉन्ट्रैक्ट करते वक्त किसी भी किसान की जमीन नहीं बेची जाएगी।

    5. बुजुर्ग, महिलाएं, बच्चे आंदोलन से वापस लौटेंगे
    एपी सिंह 
    (भारतीय किसान यूनियन-भानू के वकील): किसानों ने कहा है कि वे बुजुर्गों, महिलाओं, बच्चों को वापस भेजने को तैयार हैं।
    चीफ जस्टिस: हम रिकॉर्ड में लेकर इस बात की तारीफ करना चाहते हैं।

    6. 26 जनवरी को ट्रैक्टर रैली पर
    केके वेणुगोपाल 
    (अटॉर्नी जरनल): अगर गणतंत्र दिवस पर किसानों को दिल्ली में आने की इजाजत दी गई, तो कोई नहीं जानता कि वे कहां जाएंगे।
    चीफ जस्टिस: पुलिस आपकी है। शहर में एंट्री पर फैसला पुलिस को करना है। पुलिस को अधिकार है कि वह चेक करे कि किसी के पास हथियार तो नहीं है।

    7. रामलीला मैदान के लिए मंजूरी लीजिए
    विकास सिंह
     (किसान संगठनों के वकील): किसानों को अपने प्रदर्शन के लिए प्रमुख जगह चाहिए, नहीं तो आंदोलन का कोई मतलब नहीं रहेगा। रामलीला मैदान या बोट क्लब पर प्रदर्शन की मंजूरी मिलनी चाहिए।
    चीफ जस्टिस: किसान दिल्ली के पुलिस कमिश्नर से रामलीला मैदान या किसी और जगह पर प्रदर्शन के लिए इजाजत मांगें।

    8. आंदोलन में खालिस्तानी
    चीफ जस्टिस
    : एक अर्जी में कहा गया है कि एक प्रतिबंधित संगठन किसान आंदोलन में मदद कर रहा है। अटॉर्नी जनरल इसे मानते हैं या नहीं?
    केके वेणुगोपाल (अटॉर्नी जरनल): हम कह चुके हैं कि आंदोलन में खालिस्तानियों की घुसपैठ हो चुकी है।

Leave A Reply

Your email address will not be published.