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ज्योतिर्लिंग केदारनाथ : गर्भगृह में जाने की इजाजत नहीं, सावन के पहले दिन 200 से भी कम लोग पहुंचे, क्षेत्र की सभी दुकानें और होटल बंद

काशी विश्वनाथ मंदिर में  बार गर्भगृह तक जाने की नहीं होगी अनुमति, ऑनलाइन होगा रुद्राभिषेक; स्पीड पोस्ट के जरिए श्रद्धालुओं को भेजा जाएगा प्रसाद, मल्लिकार्जुन मंदिर का यूट्यूब के जरिए कराया जा रहा लाइव दर्शन,हिमाचल के कांगड़ा का अनोखा अर्धनारीश्वर शिवलिंग, दो हिस्सों में है शिवलिंग जिनमें अपने आप घटती-बढ़ती हैं दूरियां

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  • अभी सिर्फ उत्तराखंड के लोग ही यहां के चारधाम बद्रीनाथ, केदारनाथ, गंगोत्री और यमुनोत्री में दर्शन कर सकते हैं। अन्य राज्यों के लोगों को इन मंदिरों में दर्शन करने की अनुमति नहीं है।अभी सिर्फ उत्तराखंड के लोग ही यहां के चारधाम बद्रीनाथ, केदारनाथ, गंगोत्री और यमुनोत्री में दर्शन कर सकते हैं। अन्य राज्यों के लोगों को इन मंदिरों में दर्शन करने की अनुमति नहीं है।
  • पिछले साल सावन माह में 10 हजार से भी ज्यादा भक्त रोज पहुंचते थे
  • केदारनाथ हादसे के बाद इस साल कोरोना की वजह से दर्शनार्थियों की संख्या बहुत कम

6 जुलाई से सावन माह शुरू हो गया है। लेकिन, इस साल कोरोना के चलते उत्तराखंड के केदारनाथ ज्योतिर्लिंग में सावन के पहले दिन 200 से भी कम लोग पहुंचे। जबकि, पिछले साल यह आंकड़ा लगभग 10 हजार था। उत्तराखंड सरकार ने 1 जुलाई से राज्य के लोगों के लिए यहां के चारों धाम की यात्रा शुरू कर दी है। दर्शन करने के लिए चारधाम देवस्थानम् बोर्ड की वेब साइट पर रजिस्ट्रेशन कराना होता है।

केदारनाथ मंदिर के तीर्थ पुरोहित समिति के अध्यक्ष पं. विनोद प्रसाद शुक्ला ने बताया कि हर बार सावन माह में यहां भक्तों की भीड़ लगी रहती है। लेकिन, इस बार मंदिर के आसपास की लगभग सभी दुकानें और होटल्स बंद हैं, गिनती के लोग दर्शन करने पहुंच रहे हैं, कावड़ यात्रा भी बंद है। मंदिर में यहां के पुजारी नियमित की जाने वाली सभी पूजा पूरे विधि-विधान से कर रहे हैं। इनके अलावा प्रशासन के कुछ लोग ही दिनभर रहते हैं। 2013 के केदारनाथ हादसे के बाद इस साल महामारी की वजह से मंदिर तक भक्त नहीं पहुंच रहे हैं।

मंदिर आने वाले भक्तों को सोशल डिस्टेंसिंग और सेनेटाइजेशन का ध्यान रखना होता है। मंदिर के बाहर नंदी की प्रतिमा स्थित है, यहीं से भक्त दर्शन कर रहे हैं, गर्भगृह तक जाने की इजाजत नहीं है। पुजारी ही भक्तों की ओर से शिवलिंग पर जलाभिषेक कर रहे हैं। भक्तों को यहां बैठने की और यहां पूजा करने की अनुमति नहीं है। यहां अधिकतर स्थानीय लोग ही दर्शन के लिए पहुंच रहे हैं।

एक दिन में अधिकतम 800 लोग कर सकते हैं दर्शन

देवस्थानम् बोर्ड के मीडिया प्रभारी डॉ. हरीश गौड़ ने बताया कि 1 जुलाई से दर्शन व्यवस्था शुरू हुई है। 1 से 6 जुलाई के बीच 286 लोगों ने ऑनलाइन पूजा बुक की है। 1 जुलाई से अब तक केदारनाथ के दर्शन के लिए राज्य के करीब 1200 लोगों ने रजिस्ट्रेशन कराया है। जबकि चारों धाम के दर्शन के लिए 6 दिनों में करीब 5 हजार ई-पास जारी किए गए हैं। केदारनाथ में एक दिन में अधिकतम 800 लोगों को दर्शन कराने की व्यवस्था की गई है, लेकिन अभी काफी कम लोग यहां पहुंच रहे हैं।

सरकारी गेस्ट हाउस खुले हैं

यहां आने वाले श्रद्धालुओं के लिए सरकारी गेस्ट हाउस खुले हैं। लेकिन, लगभग सभी भक्त अपने निजी वाहन से केदारनाथ पहुंच रहे हैं और दर्शन करके अपने शहर की ओर लौट जाते हैं। यात्रियों को गेस्ट हाउस में एक दिन रुकने की अनुमति दी गई है, विशेष परिस्थितियों में ज्यादा दिन भी रुक सकते हैं।

केदारनाथ मंदिर एक ऊंचे स्थान पर बना है। मंदिर के मुख्य भाग में मंडप और गर्भगृह है। मंदिर के चारों ओर परिक्रमा करने का मार्ग भी है। मंदिर परिसर में शिवजी के वाहन नंदी विराजित हैं।

पौराणिक महत्व: नर-नारायण की भक्ति से प्रसन्न हुए थे शिवजी

शिवपुराण की कोटीरुद्र संहिता में बताया गया है कि बदरीवन में विष्णुजी के अवतार नर-नारायण ने पार्थिव शिवलिंग बनाकर पूजा की थी। उनकी भक्ति से शिवजी हुए और वर मांगने को कहा। तब नर-नारायण ने वर मांगा कि शिवजी हमेशा इसी क्षेत्र में रहें। शिवजी ने यहीं रहने का वर दिया और कहा कि ये जगह केदार क्षेत्र के नाम से प्रसिद्ध होगी। इसके बाद शिवजी ज्योति स्वरूप में यहां स्थित शिवलिंग में समा गए।

मल्लिकार्जुन मंदिर का यूट्यूब के जरिए कराया जा रहा लाइव दर्शन, पहले हर महीने आता था 4 करोड़ रुपए का चढ़ावा, इस बार नहीं के बराबर

  • आंध्र प्रदेश का श्री शैलम मल्लिकार्जुन मंदिर भारत के बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक है, यहां ज्योतिर्लिंग के साथ शक्तिपीठ भी हैi
  • अभी तक शैलम पूरी तरह से ग्रीन जोन में है, यहां पर एक भी कोरोना का केस नहीं आया है, मंदिर में दर्शन का समय सुबह 6.30 से शाम 4.30 तक है

श्रीशैलम. आंध्र प्रदेश के श्रीशैलम में मल्लिकार्जुन मंदिर है। भगवान शिव का यह मंदिर देश के 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक है। इसे दक्षिण का कैलाश भी कहा जाता है। श्रीशैलम मल्लिकार्जुन मंदिर के अंदर कई मंदिर बने हुए हैं, जिनमें मल्लिकार्जुन और भ्रामराम्बा सबसे प्रमुख मंदिर हैं। आज सावन के पहले सोमवार के मौके पर श्रीशैलम से  लाइव रिपोर्ट पढ़िए।

कोरोना के चलते रोजाना 3 से 4 हजार लोग ही दर्शन कर रहे हैं। पहले हर दिन 1 लाख तक भक्त दर्शन के लिए आते थे। 

सुबह के 5.30 बजे हैं, जगह श्रीशैलम का मल्लिकार्जुन मंदिर। फ्री दर्शन वाले गेट पर सिक्योरिटी वाले हाथ में थर्मल स्कैनर लेकर खड़े हैं। दर्शन के लिए मंदिर 6 बजे खुलेगा। गेट के सामने ही 10 से 15 लोग सफेद गोले में खड़े होकर अपनी बारी का इंतजार कर रहे हैं। आधार कार्ड दिखाकर लोग वीआईपी गेट का टिकट ले रहे हैं। एक टिकट की कीमत 150 रुपए है। हालांकि, इस बार वीआईपी और लोकल में कोई फर्क नहीं है।

अभी तक शैलम पूरी तरह से ग्रीन जोन में है। यहां पर एक भी कोरोना का केस नही आया है।

दोनों लाइनों में भक्तों की भीड़ नहीं के बराबर है। जहां पहले दर्शन के लिए घंटों लाइन में लगना होता था, वहीं अब 10 मिनट में दर्शन हो रहे हैं। वो भी भगवान के सामने आराम से खड़े होकर। वीआई गेट पर सबसे पहले सैनिटाइजर से हाथ साफ करना होता है। उसके बाद मंदिर का स्टाफ थर्मल स्कैनर से भक्तों के शरीर का तापमान जांच करता है, उसके बाद ही अंदर प्रवेश की अनुमति मिलती है।

श्री मल्लिकार्जुन मंदिर की दीवारों पर यह आकृति उकेरी गई है। ये सभी शिवलिंग के प्रतीक हैं।

दर्शन के लिए मुंह पर मास्क और सोशल डिस्टेंसिंग जरूरी

यहां से थोड़ा आगे बढ़ने पर पैर धोने के लिए एक मशीन लगाई गई है, जिसमें से 15 से 20 धाराएं निकल रही हैं। भक्त यहां पांव धोकर ही आगे बढते हैं। मंदिर में प्रवेश करते ही हमने सभा मंडप में नंदी के दर्शन किए और फिर भगवान मल्लिकार्जुन की प्रतिमा के ठीक सामने खडे हो गए। पहले यहां एक सेकंड भी रुकना मुश्किल होता था। लेकिन, इस बार हमने करीब 1 मिनट तक दर्शन किए। कोरोना के कारण मंदिर की व्यवस्था में बदलाव किया गया है। दर्शन के लिए मुंह पर मास्क और सोशल डिस्टेंसिंग जरूरी है। यहां से हम शक्तिपीठ भ्रमरांबिका देवी मंदिर पहुंचे ।

श्री मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग करनूल जिले में कृष्णा नदी के किनारे श्रीशैल पर्वत पर विराजमान है।

यह देवी माता पार्वती को समर्पित है। इसके बाद मंदिर से बाहर जाने के लिए रास्ता आ जाता है। मल्लिका का अर्थ माता पार्वती का नाम है, वहीं अर्जुन भगवान शंकर को कहा जाता है। यह मंदिर करनूल जिले में कृष्णा नदी के किनारे श्रीशैल पर्वत पर है। यहां भगवान शिव श्री मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग के रूप में विराजमान है।

कोरोना के कारण मल्लिकार्जुन मंदिर में पहली बार ऑनलाइन सेवा पूजा की शुरुआत हुई है। मंदिर की ऑफिशियल वेबसाइट पर बुकिंग करनी होगी।

यूट्यूब पर किया जा रहा लाइव प्रसारण

श्रीशैलम मंदिर के एग्जीक्यूटिव ऑफिसर केसी रामाराव बताते हैं कि मंदिर मे अभी केवल भगवान के दर्शन हो रहे हैं। कोरोना के कारण मल्लिकार्जुन मंदिर में पहली बार ऑनलाइन सेवा पूजा की शुरुआत हुई है। इसमें 8 से 10 तरह के पूजा और हवन किए जा रहे हैं। भक्त को मंदिर की ऑफिशियल वेबसाइट पर जाकर पहले कौन सी पूजा करवानी है, उसे बुक करना होगा।

मंदिर के पुजारी मंदिर में पूजा करते हैं उसका यूट्यूब पर लाइव प्रसारण किया जा रहा है।14 अप्रैल से शुरू हुई इस पूजा में अभी तक 8000 से ज्यादा भक्त दर्शन कर चुके हैं। इनमें से सबसे ज्यादा महामृत्युंजय मंत्र होम के आवेदन आए हैं। कोरोना से पहले सामान्य दिनों में 500 से ज्यादा और विशेष दिन ( शनिवार से सोमवार ) 1000 भक्त इस पूजा के लिए आवेदन करते थे।

मंदिर में प्रवेश करते ही सभा मंडप में नंदी विराजमान हैं। ऐसा माना जाता है कि भगवान शिव नंदी की सवारी करते हैं। 

कोरोना से पहले हर महीने 4 करोड़ रुपए का चढ़ावा आता था

श्री शैलम देवस्थानम के कॉल सेंटर में काम करने वाले एच. मल्लिकार्जून बताते हैं कि मंदिर में अभी 100 से ज्यादा पुजारी और 2000 से ज्यादा का स्टाफ हैं। अभी तो मंदिर में कोई चढ़ावा नहीं आ रहा है। लेकिन कोरोना से पहले हर महीने 3 से 4 करोड़ रुपए का चढ़ावा आता था। कोरोना के कारण रोजाना 3 से 4 हजार लोगों को ही दर्शन कराए जा रहा है। पहले यहां पर रोजाना 50 हजार से 1 लाख के बीच भक्त दर्शन के लिए आते थे।

श्रीशैलम मल्लिकार्जुन मंदिर के प्रमुख देवता माता पार्वती (मलिका) और भगवान शिव (अर्जुन) हैं। 

श्रीशैलम में भक्तों के लिए 200 कमरे का गणेशम भवन का भी निर्माण हो रहा है। अभी तक शैलम पूरी तरह से ग्रीन जोन में है। यहां पर एक भी कोरोना का केस नहीं आया है। मंदिर में दर्शन का समय सुबह 6.30 से शाम 4.30 तक रखा गया है।

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