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चिराग विहीन लोजपा:चिराग को अकेले छोड़ा, बाकी 5 सांसदों ने पारस को नेता चुना; लोकसभा अध्यक्ष को सौंपी चिट्ठी, आज चुनाव आयोग को जानकारी देंगे

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दिवंगत रामविलास पासवान की लोक जनशक्ति पार्टी (लोजपा) में बड़ी टूट हो गई है। पार्टी के पांचों सांसदों ने राष्ट्रीय अध्यक्ष चिराग पासवान को सभी पदों से हटा दिया है। साथ ही चिराग के चाचा पशुपति कुमार पारस को अपना नेता चुन लिया है। उन्हें राष्ट्रीय अध्यक्ष के साथ संसदीय दल के नेता का जिम्मा भी सौंपा गया है।

इसके साथ ही लोजपा सांसद पशुपति कुमार पारस, चौधरी महबूब अली कैसर, वीणा सिंह, चंदन सिंह और प्रिंसराज की चिराग से राहें अलग हो गई हैं। पार्टी में इस टूट की वजह भाजपा और जदयू के बीच चिराग को लेकर जारी तकरार को माना जा रहा है।

रविवार देर शाम तक चली लोजपा सांसदों की बैठक में इस फैसले पर मुहर लगी। बाद में पांचों सांसदों ने अपने फैसले की जानकारी लोकसभा अध्यक्ष ओम बिड़ला को भी दी। सांसदों ने उन्हें इस संबंध में आधिकारिक पत्र भी सौंप दिया। सोमवार को ये सांसद चुनाव आयोग को भी इसकी जानकारी देंगे। उसके बाद अपने फैसलों की आधिकारिक घोषणा भी करेंगे। उधर, पार्टी प्रवक्ता अशरफ अंसारी ने ऐसी किसी टूट से इनकार किया है।

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पशुपति कुमार पारस, चौधरी महबूब अली कैसर, वीणा देवी, चंदन सिंह और प्रिंस राज।
पशुपति कुमार पारस, चौधरी महबूब अली कैसर, वीणा देवी, चंदन सिंह और प्रिंस राज।

जदयू सांसद ललन सिंह के संपर्क में थे पारस
पशुपति कुमार पारस पिछले कुछ दिनों से लगातार जदयू सांसद ललन सिंह के संपर्क में थे। हाल ही में पटना में दोनों के बीच मुलाकात भी हुई थी। दिल्ली में भी इनके बीच लगातार बातचीत होती रही है। सांसदों के साथ भी उनका संपर्क बना हुआ था।

पारस ही नेता क्यों?
पारस लोजपा सांसदों में सबसे वरिष्ठ हैं। सबसे बड़ी बात यह है कि वे रामविलास पासवान के छोटे भाई हैं। वे सबको साथ लेकर चल सकते हैं। उनके नेता होने से दूसरे सांसद भी असहज महसूस नहीं करेंगे।

जदयू में जा चुके हैं लोजपा के कई नेता, यह सिलसिला और बढ़ेगा
5 सांसदों के फैसले के बाद लोजपा में बड़े घमासान की आशंका है। पहले ही लोजपा के कई नेता जदयू में शामिल हो चुके हैं। आगे यह सिलसिला और बढ़ेगा। उधर, चिराग की ओर से मनाने का दौर शुरू हो गया है। देर रात तक यह कसरत जारी थी। पिछली बार सांसदों ने चिराग की बात मान ली थी, लेकिन इस बार वे पीछे हटने को तैयार नहीं हैं।

21 साल में पहली बार टूटी पार्टी, अब दोनों गुटों में कब्जे की जोर आजमाइश
28 नवंबर 2000 को लोजपा बनी थी। तब से पहली बार पार्टी में टूट हुई है। अब संगठन में भी बड़ी संख्या में लोग पारस के साथ जा सकते हैं। इससे चिराग की ताकत और घट सकती है। अभी तक चिराग को रामविलास पासवान का पुत्र होने का फायदा मिलता रहा है। विस चुनाव के दौरान चिराग ने खुद को पीएम मोदी का हनुमान बताया था। लेकिन अब उनकी पार्टी पर कब्जे को लेकर जोर-आजमाइश होनी तय है।

अब आगे क्या…

केंद्रीय मंत्रिमंडल में शामिल हो सकते हैं पशुपति पारस
केंद्रीय मंत्रिमंडल विस्तार की चर्चा तेज है। ऐसे में पारस केन्द्र में मंत्री बन सकते हैं। 2019 में जब प्रधानमंत्री मोदी ने दोबारा कमान संभाली तब एक फॉर्मूला बना कि सहयोगी दलों को मंत्रिपरिषद में एक-एक सीट दी जाएगी। तब 16 सांसदों वाली जदयू मंत्रिपरिषद में शामिल नहीं हुई। उसकी कम से कम दो सीटों की मांग थी। वहीं 6 सांसदों वाली लोजपा से रामविलास पासवान मंत्री बने थे।

लेकिन विधानसभा चुनाव के ठीक पहले रामविलास पासवान का निधन हो गया। इसके बाद केंद्रीय मंत्रिमंडल में लोजपा का खाली हुआ कोटा भरा नहीं गया। विधानसभा चुनाव में भी लोजपा एनडीए से अलग 135 सीटों पर अकेले चुनाव लड़ी। इसमें जदयू की 115 सीटों पर उसने प्रत्याशी उतारे थे। इस चुनाव में जदयू ने 36 सीटों के नुकसान के लिए लोजपा को सीधे जिम्मेदार माना था।

तभी से सवाल उठने लगे कि लोजपा, एनडीए फोल्ड में रहेगी या नहीं। जदयू ने साफ कहा- यह गठबंधन के बड़े दल यानी भाजपा को तय करना है। अब जब केंद्रीय मंत्रिमंडल के विस्तार की बात चली तो मामला चिराग को लेकर फिर फंस गया, क्योंकि लोजपा को कैबिनेट में जगह मिलती तो जदयू रूठ जाती।

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