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कोरोना और लॉकडाउन के दौर में सिर्फ जीवन ही नहीं गृहस्थियां भी बदल रही हैं,ऐसे में इस बातों को ध्यान में रख संभाले घर

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पिछले दिनों सुधा से फोन पर शिकायत कर रही थी ‘कितना काम करती हूं ,न कोई अहसान न कोई परवाह। तंग आ गई मैं इस लॉकडाउन में काम करते-करते।’ उधर, उसके पति सौरभ की शिकायत है ‘जब कभी मैं कहता हूं इसको कि तुम्हारी हेल्प कर देता हूं, बस यही मना कर देती है कि रहने दीजिए। इतना गंदा काम करेंगे कि मुझे दोबारा करना पड़ेगा, तो क्यों दो बार मेहनत की जाए। मैं अपने आप कर लूंगी।’यह शिकायत कई घरों की है। बेचारे पति जिन्हें बचपन से हर काम समय पर किया हुआ मिलता था, कइयों ने तो घर में पानी का गिलास तक नहीं भरा। लेकिन आज उनमें से कई इतने ख़ाली हैं कि उन्हें समझ में नहीं आ रहा है कि कहां जाएं, क्या करें?

पत्नियां समझ नहीं पातीं कि यह परवाह या प्यार नहीं है तो और क्या है?

दूसरी तरफ विपिन और काव्या का केस है। काव्या का कहना है ‘विपिन मेरी बहुत केयर करते हैं। हालांकि उनको घर का काम नहीं आता लेकिन मेरा पूरा सहयोग करते हैं।’अब आप असमंजस में पड़ जाएंगे कि जब काम नहीं आता तो सहयोग कैसे किया गया? तो काव्या से ही जानिए। ‘जब सुबह मैं चाय बनाकर लाती हूं तब तक विपिन बिस्तर ठीक करके बच्चों को उठा देते हैं। उनको साथ लेकर दूध-चाय का काम वह निपटा देते हैं, उतनी देर में मैं घर की सफाई कर लेती हूं। शाम की चाय हमेशा विपिन ही बनाते हैं और सबसे बड़ी बात, जब मैं पसीने से तरबतर हो जाती हूं तब एसी या कूलर की स्पीड को सेट करते हुए ठंडे पानी से मेरे लिए शिकंजी जरूर बना देते हैं और मुझे अहसास कराते हैं कि मैं हूं न।’पहले केस में सुधा और सौरभ दोनों को एक-दूसरे से शिकायत है। सौरभ को उससे प्रेम है लेकिन अभिव्यक्ति या सामंजस्य का माध्यम सही नहीं है उसका। उसी जगह पर विपिन बाजी मार ले जाता है। वह काव्या की सहायता उन कामों में करता है जो छोटे-छोटे होते है।

रिश्ते सूक्ष्मदर्शी के नीचे हैं

इस लॉकडाउन में लगभग दो महीने से काफी लोग घर पर हैं और जिंदगी में परिवर्तन आए हैं। सारे रिश्ते, खासतौर पर पति-पत्नी के रिश्ते अपने नाज़ुक दौर से गुज़र रहे हैं। गृहस्थी की गाड़ी के दोनों पहिए जहां सामंजस्य बैठाते हुए चल रहे हैं, वहां ख़ुशियों ने अपनी जड़ें जमा ली हैं।

शब्द नहीं भावों को समझना है 

प्रेम शब्द बहुत गहराई लिए हुए हैं। यह बिना परवाह के पनप भी नहीं सकता। वास्तव में प्रेम है भी वही जो अपने जोड़ीदार के सुख-दुख को समझने की काबिलियत रखें। एक दूसरे की भावनाओं को अनकहे समझना समर्पण की सीढ़ी है। रिश्तों को निभाने में गलतियां नहीं, अच्छाइयां देखी जाती है। इसे परवाह से ही शुरू किया जा सकता है। परवाह होगी तो छोटी- मोटी चूकों दरगुजर करना भी आ जाएगा और प्रेम भी बढ़ेगा। यही प्रेम, रिश्तो को प्रगाढ़ बनाता है।

क्या करें कि घर संभला रहे 

  • पति- पत्नी दोनों एक दूसरे की जरूरतों, स्वास्थ्य, समय और मूड में सामंजस्य बनाते हुए काम निपटाएं, तभी घर और ऑफिस दोनों का काम मैनेज हो जाएगा।
  • पत्नी व्यस्त हो तो पति घर और बच्चों को देखे, ना कि यह कहकर पल्ला झाड़ ले कि यह मेरा काम नहीं है।
  • रिश्ता चाहे कोई भी हो प्रेम, परवाह और समर्पण के सींचने पर ही फलता- फूलता है। जितना साथ मिलकर काम करेंगे, मुस्कुराएंगे गृहस्थी की जड़े उतनी ही मजबूत होंगी।

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