Newsportal

किसानों ने सरकार का प्रपोजल ठुकराया:किसान नेता बोले- पूरे देश में आंदोलन तेज होगा, अंबानी-अडानी के प्रोडक्ट और भाजपा नेताओं का बायकॉट करेंगे

0 413

कृषि कानूनों पर सरकार और आंदोलनकारी किसानों के बीच 6 दौर की बातचीत और सरकार के प्रस्ताव भेजने पर भी कोई रास्ता नहीं निकल सका है। गृहमंत्री अमित शाह से किसानों की मंगलवार को हुई बैठक के बाद बुधवार को सरकार ने किसान नेताओं को प्रस्ताव भेजा, लेकिन किसानों ने इसे सिरे से खारिज कर दिया। किसान नेताओं ने कहा कि प्रस्ताव गोल-मोल है। सरकार भलाई की बात कह रही है, लेकिन ये कैसे करेगी, स्पष्ट नहीं है। इसके बाद कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर गृह मंत्री के घर पहुंचे। दोनों के बीच करीब ढाई घंटे तक मीटिंग हुई।

प्रस्ताव पर विचार-विमर्श के बाद किसानों ने प्रेस कॉन्फ्रेंस की और आंदोलन की आगे की दशा-दिशा के बारे में बताया। किसानों ने 4 अहम ऐलान किए…

1. किसान शनिवार को देशभर में टोल प्लाजा फ्री कर देंगे। दिल्ली-जयपुर हाईवे को बंद किया जाएगा।
2. देशभर के सभी जिला मुख्यालयों में 1. दिसंबर को धरना दिया जाएगा। पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, मध्य प्रदेश और राजस्थान के किसान इसमें शामिल होंगे। जो शामिल नहीं हो पाएंगे, वो दिल्ली कूच करेंगे।
3. अंबानी-अडानी के मॉल, प्रोडक्ट और टोल का बायकॉट किया जाएगा। जियो के प्रोडक्ट्स का भी बायकॉट किया जाएगा। जियो की सिम को पोर्ट करवाया जाएगा।
4. भाजपा नेताओं का नेशनल लेवल पर बायकॉट करेंगे। उनके बंगलों और दफ्तरों के सामने प्रदर्शन किया जाएगा। कानूनों की वापसी तक आंदोलन नहीं थमेगा और ये तेज होता जाएगा।

सरकार ने किसानों की सबसे बड़ी मांग ठुकराई

सरकार ने किसानों के 10 अहम मुद्दों में से सबसे बड़ी मांग यानी कृषि कानून रद्द करने की मांग को सिरे से ठुकरा दिया। 5 मुद्दों पर सफाई देने की बात कही और 4 मुद्दों पर मौजूदा व्यवस्था में बदलाव का भरोसा दिया।

किसानों का मुद्दा सरकार के जवाब
कृषि सुधार कानूनों को रद्द करें। ऐतराज है तो हम खुले मन से विचार को तैयार हैं।
MSP पर चिंताएं हैं। फसलों का कारोबार निजी हाथों में चला जाएगा। सरकार MSP पर लिखित आश्वासन देगी।
किसानों की जमीन पर बड़े उद्योगपति कब्जा कर लेंगे। किसान की जमीन पर कोई ढांचा भी नहीं बनाया जा सकता। ढांचा बना तो मिल्कियत किसान की।
APMC मंडियां कमजोर होंगी। किसान प्राइवेट मंडियों के चंगुल में फंस जाएगा। राज्य सरकारें प्राइवेट मंडियों का रजिस्ट्रेशन कर सकें और उनसे सेस वसूल सकें, ऐसी व्यवस्था करेंगे।
किसानों की जमीन की कुर्की हो सकती है। वसूली के लिए कुर्की नहीं होगी। फिर भी सफाई देंगे।
किसान सिविल कोर्ट में नहीं जा सकते। यह विकल्प दिया जा सकता है।
पैन कार्ड दिखाकर फसल खरीद होगी तो धोखा भी होगा। राज्य सरकारें फसल खरीदने वालों के लिए रजिस्ट्रेशन का नियम बना सकेंगी।
पराली जलाने पर जुर्माना और सजा हो सकती है। किसानों की आपत्तियों को दूर किया जाएगा।
एग्रीकल्चर एग्रीमेंट के रजिस्ट्रेशन की व्यवस्था नहीं है। एग्रीमेंट होने के 30 दिन के अंदर उसकी एक कॉपी एसडीएम ऑफिस में जमा कराने की व्यवस्था करेंगे।
नया बिजली विधेयक वापस लें। विधेयक चर्चा के लिए है। किसानों के बिजली बिल के पेमेंट की मौजूदा व्यवस्था में कोई बदलाव नहीं होगा।

5 विपक्षी नेता राष्ट्रपति से मिले, राहुल बोले- हिंदुस्तान का किसान डरेगा नहीं
20 सियासी दल किसानों की मांगों का समर्थन कर रहे हैं। कांग्रेस नेता राहुल गांधी और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकांपा) प्रमुख शरद पवार समेत विपक्ष के 5 नेता बुधवार को राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद से मिले। इनमें माकपा महासचिव सीताराम येचुरी, सीपीआई के डी. राजा और डीएमके के एलंगोवन भी शामिल थे।

राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकांपा) प्रमुख शरद पवार समेत विपक्ष के 5 नेता राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद से मिले।
राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकांपा) प्रमुख शरद पवार समेत विपक्ष के 5 नेता राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद से मिले।

राहुल गांधी ने कहा, ‘किसान ने देश की नींव रखी है और वो दिनभर इस देश के लिए काम करता है। ये जो बिल पास किए गए हैं, वो किसान विरोधी हैं। प्रधानमंत्री जी ने कहा था कि ये बिल किसानों के हित के लिए है, सवाल ये है कि किसान इतना गुस्सा क्यों है। इन बिलों का लक्ष्य मोदीजी के मित्रों को एग्रीकल्चर सौंपने का है। किसानों की शक्ति के आगे कोई नहीं टिक पाएगा। हिंदुस्तान का किसान डरेगा नहीं, हटेगा नहीं, जब-तक ये बिल रद्द नहीं कर दिया जाता।’

सरकार से मिला ड्राफ्ट दिखाते किसान।
सरकार से मिला ड्राफ्ट दिखाते किसान।

सरकार ने कहा- वर्क-इन-प्रोग्रेस
कैबिनेट के फैसलों की जानकारी देने के लिए सरकार के तीन मंत्रियों ने प्रेस कॉन्फ्रेंस की। इसमें किसानों को भेजे गए प्रस्ताव के बारे में पूछा गया तो सूचना एवं प्रसारण मंत्री प्रकाश जावडेकर ने जवाब दिया। उन्होंने कहा- जब एक अंतिम दौर की बातचीत हो रही हो, तो यह वर्क-इन-प्रोग्रेस माना जाता है। इसकी रनिंग कमेंट्री नहीं हो सकती। किसानों के मुद्दों पर सरकार संवेदनशील है।सरकार ने किसानों से 6 बार चर्चा की है। उम्मीद है अब आखिरी दौर होगा।

‘सरकार जिद पर अड़ी तो किसान भी पीछे नहीं हटेंगे’
भारतीय किसान यूनियन के प्रवक्ता राकेश टिकैत ने कहा- किसान पीछे नहीं हटेंगे। यह सम्मान का मुद्दा है। क्या सरकार कानून वापस नहीं लेना चाहती? क्या किसानों पर अत्याचार होगा? अगर सरकार जिद पर अड़ी है तो, किसान भी अपनी बात पर डटे हैं। कानून वापस होने ही चाहिए।

सरकार ने किसानों की शंकाओं पर कानून में बदलाव के प्रस्ताव दिए हैं।
सरकार ने किसानों की शंकाओं पर कानून में बदलाव के प्रस्ताव दिए हैं।

अकाली दल के कार्यकर्ता फ्री डीजल बांट रहे
आंदोलन में शामिल होने के लिए दिल्ली बॉर्डर की तरफ जा रहे लोगों को दिल्ली-अमृतसर हाईवे के एक पेट्रोल पंप पर फ्री डीजल दिया जा रहा है। शिरोमणि अकाली दल के कार्यकर्ताओं का कहना है कि पंजाब के ज्यादा से ज्यादा लोग आंदोलन में शामिल हो सकें, इसलिए यह सुविधा दे रहे हैं। इसके लिए स्थानीय युवाओं और अपने NRI दोस्तों की मदद ले रहे हैं।

किसानों को 10 पॉइंट का प्रस्ताव:MSP पर लिखित में भरोसा देने और APMC को बचाने के लिए सरकार कानून बदलने पर राजी

नए कृषि कानूनों के खिलाफ पिछले 14 दिन से आंदोलन कर रहे किसानों को केंद्र सरकार ने बुधवार को 10 पॉइंट का प्रस्ताव भेजा था।

दिल्ली के दरवाजे पर 14 दिन से आंदोलन कर रहे किसानों को सरकार ने छह दौर की बातचीत के बाद आज 10 पॉइंट का प्रस्ताव भेज दिया। इस प्रस्ताव में सरकार मिनिमम सपोर्ट प्राइस यानी MSP की मौजूदा व्यवस्था जारी रखने पर लिखित में भरोसा देने पर राजी हो गई। सरकार ने यह भी कहा कि वह एग्रीकल्चर प्रोड्यूस मार्केट कमेटी यानी APMC के तहत बनी मंडियों को बचाने के लिए कानून में भी बदलाव करेगी। हालांकि, कृषि कानूनों को खत्म करने की किसानों की सबसे पहली मांग सरकार ने ठुकरा दी।

सरकार ने किसानों की 10 अहम मांगों में से एक को सिरे से ठुकरा दिया। 5 मुद्दों पर सफाई देने की बात कही और 4 मुद्दों पर मौजूदा व्यवस्था में बदलाव का भरोसा दिया।

1. नए कानून

  • किसानों का मुद्दा: कृषि सुधार कानूनों को रद्द करें।
  • सरकार का प्रस्ताव: कानून के वे प्रावधान, जिन पर किसानों को ऐतराज है, उन पर सरकार खुले मन से विचार करने को तैयार है।

2. फसलों का कारोबार

  • किसानों का मुद्दा: सरकारी एजेंसी को उपज बेचने का विकल्प खत्म हो जाएगा। फसलों का कारोबार निजी हाथों में चला जाएगा।
  • सरकार का जवाब: नए कानूनों में सरकारी खरीद की व्यवस्था में कोई दखल नहीं दिया गया है। MSP सेंटर्स राज्य सरकारें बना सकती हैं। वे वहां मंडियां बनाने के लिए भी आजाद हैं।
  • सरकार का प्रस्ताव: MSP की व्यवस्था भी लगातार मजबूत हुई है। फिर भी केंद्र सरकार MSP पर लिखित आश्वासन देगी।

3. किसानों की जमीन

  • किसानों का मुद्दा: किसानों की जमीन पर बड़े उद्योगपति कब्जा कर लेंगे। किसान अपनी जमीन खो देगा।
  • सरकार का जवाब: कृषि करार अधिनियम के मुताबिक, खेती की जमीन की बिक्री, लीज और मॉर्टगेज पर किसी भी तरह का करार नहीं हो सकता। किसान की जमीन पर कोई ढांचा भी नहीं बनाया जा सकता। अगर ढांचा बनता है, तो फसल खरीदने वाले को करार खत्म होने के बाद उसे हटाना होगा। यदि ढांचा नहीं हटा, तो उसकी मिल्कियत किसान की होगी।
  • सरकार का प्रस्ताव: यह साफ किया जाएगा कि किसान की जमीन पर ढांचा बनाए जाने की स्थिति में फसल खरीददार उस पर कोई कर्ज नहीं ले सकेगा और न ही ढांचे को अपने कब्जे में रख सकेगा।

4. APMC मंडियां

  • किसानों का मुद्दा: आशंका है कि मंडी समितियों यानी APMC के तहत बनी मंडियां कमजोर होंगी और किसान प्राइवेट मंडियों के चंगुल में फंस जाएगा।
  • सरकार का जवाब: किसान मंडियों के अलावा कोल्ड स्टोरेज से, सीधे अपने खेतों से या फैक्ट्रियों में जाकर भी अपनी फसल बेच सकें, इसके लिए नए विकल्प लाए गए हैं। किसानों को ज्यादा पैसा मिल सके और ज्यादा कॉम्पीटिशन रहे, इसलिए नए विकल्प लाए गए। मंडी समितियों में और MSP पर फसल बेचने के पुराने विकल्प भी बरकरार हैं।
  • सरकार का प्रस्ताव: कानून में बदलाव किया जा सकता है, ताकि राज्य सरकारें प्राइवेट मंडियों का रजिस्ट्रेशन कर सकें। ऐसी मंडियों से राज्य सरकारें सेस भी वसूल सकेंगी।

5. जमीन की कुर्की

  • किसानों का मुद्दा: नए कानून में किसानों की जमीन की कुर्की हो सकती है।
  • सरकार का जवाब: नए कानून की धारा-15 में यह साफ लिखा है कि वसूली के लिए किसान की जमीन कुर्क नहीं हो सकती। खरीददार के खिलाफ तो बकाया रकम पर 150% जुर्माना लग सकता है, लेकिन किसानों पर पेनल्टी लगाने का प्रावधान नहीं है।
  • सरकार का प्रस्ताव: फिर भी कोई सफाई चाहिए, तो उसे जारी किया जाएगा।

6. विवादों का कोर्ट में निपटारा

  • किसानों का मुद्दा: कोई विवाद हो जाए, तो नया कानून कहता है कि किसान सिविल कोर्ट में नहीं जा सकते।
  • सरकार का जवाब: 30 दिन में समस्या का हल हो सके, ऐसा प्रावधान किया गया है। सुलह बोर्ड के जरिए आपसी समझौते की भी व्यवस्था है।
  • सरकार का प्रस्ताव: सिविल कोर्ट में जाने का विकल्प भी दिया जा सकता है।

7. पैन कार्ड से फसल खरीद

  • किसानों का मुद्दा: रजिस्ट्रेशन की बजाय पैन कार्ड दिखाकर फसल खरीद होगी, तो धोखा भी होगा।
  • सरकार का जवाब: मार्केटिंग के ज्यादा विकल्प देने के लिए पैन कार्ड की व्यवस्था लाई गई।
  • सरकार का प्रस्ताव: राज्य सरकारों को यह अधिकार दिया जा सकता है कि वे फसल खरीदने वालों के लिए रजिस्ट्रेशन का नियम बना सकें।

8. पराली जलाने पर सजा

  • किसानों का मुद्दा: एयर क्वालिटी मैनेजमेंट ऑफ एनसीआर ऑर्डिनेंस 2020 को खत्म किया जाए, क्योंकि इसके तहत पराली जलाने पर जुर्माना और सजा हो सकती है।
  • सरकार का प्रस्ताव: किसानों की आपत्तियों को दूर किया जाएगा।

9. रजिस्ट्रेशन

  • किसानों का मुद्दा: एग्रीकल्चर एग्रीमेंट के रजिस्ट्रेशन की व्यवस्था नहीं है।
  • सरकार का जवाब: नए कानून के तहत राज्य सरकारें रजिस्ट्रेशन की व्यवस्था शुरू कर सकती हैं। वे रजिस्ट्रेशन ट्रिब्यूनल भी बना सकती हैं।
  • सरकार का प्रस्ताव: जब तक राज्य सरकारें रजिस्ट्रेशन का सिस्टम नहीं बनातीं, तब तक यह व्यवस्था की जाएगी कि एग्रीकल्चर एग्रीमेंट होने के बाद 30 दिन के अंदर उसकी एक कॉपी एसडीएम ऑफिस में जमा कराई जाए।

10. बिजली बिल

  • किसानों का मुद्दा: बिजली संशोधन विधेयक 2020 को खत्म किया जाए।
  • सरकार का जवाब: यह विधेयक अभी चर्चा के लिए है। प्रस्ताव है कि राज्य सरकार एडवांस में सब्सिडी को लोगों के खाते में जमा कराए।
  • सरकार का प्रस्ताव: किसानों के बिजली बिल के पेमेंट की मौजूदा व्यवस्था में कोई बदलाव नहीं होगा।

किसान आंदोलन के नायक:सरकार का सिरदर्द बने किसान आंदोलन के 6 अहम किरदारों से मिलिए, कोई फौजी रहा तो कोई डॉक्टर

करीब 15 दिन से किसान आंदोलन सबसे बड़ी चर्चा का विषय बना हुआ है। पंजाब और हरियाणा से आए किसानों ने दिल्ली बॉर्डर पर डेरा जमा रखा है। उनके लगातार मज़बूत होते आंदोलन के चलते नरेंद्र मोदी सरकार दबाव में नजर आ रही है। इसके पहले किसी आंदोलन ने सरकार के लिए इस स्तर की परेशानी खड़ी नहीं की थी।

दिलचस्प ये भी है कि इतना व्यापक आंदोलन खड़ा करने के पीछे जिन लोगों की अहम भूमिका रही है, उन्हें आज भी कम ही लोग जानते हैं। यहां हम किसान आंदोलन के इन्हीं चेहरों के बारे में बता रहे हैं।

गुरनाम सिंह चढूनी। 60 साल के गुरनाम कुरुक्षेत्र के रहने वाले हैं।
गुरनाम सिंह चढूनी। 60 साल के गुरनाम कुरुक्षेत्र के रहने वाले हैं।

गुरनाम सिंह चढूनी

हरियाणा में किसान आंदोलन को मजबूती से खड़ा करने के पीछे जो सबसे बड़ा नाम है वह गुरनाम सिंह चढूनी ही है। 60 साल के गुरनाम कुरुक्षेत्र के चढूनी गांव के रहने वाले हैं और भारतीय किसान यूनियन हरियाणा के अध्यक्ष हैं। बीते दो दशकों से किसानों के मुद्दों पर लगातार सक्रिय रहने वाले चढूनी जीटी रोड क्षेत्र (कुरुक्षेत्र, कैथल, यमुना नगर, अंबाला) में चर्चित रहे हैं। हालांकि, 10 सितम्बर को पीपली में हुए किसानों पर लाठीचार्ज के बाद से उनका जिक्र काफी ज्यादा हो रहा है। इस घटना के विरोध में सारे प्रदेश में आंदोलन खड़ा करने की मुख्य भूमिका चढूनी ने ही निभाई।

चढूनी सियासत में भी हाथ आज़मा चुके हैं। वे पिछले साल बतौर निर्दलीय प्रत्याशी हरियाणा विधान सभा का चुनाव लड़ चुके हैं। 2019 के लोकसभा चुनावों में उनकी पत्नी बलविंदर कौर भी आम आदमी पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़ चुकी हैं।

डॉक्टर दर्शन पाल क्रांतिकारी किसान यूनियन से जुड़े हैं। यह वामपंथी विचारधारा वाला किसान संगठन है।
डॉक्टर दर्शन पाल क्रांतिकारी किसान यूनियन से जुड़े हैं। यह वामपंथी विचारधारा वाला किसान संगठन है।

डॉक्टर दर्शन पाल

डॉक्टर दर्शन पाल क्रांतिकारी किसान यूनियन से जुड़े हैं। यह संगठन वामपंथी विचारधारा का समर्थन करता है। पंजाब में इस संगठन का जनाधार बाकी किसान संगठनों की तुलना में काफी कम है। लेकिन, दर्शन पाल आज के किसान आंदोलन के सबसे बड़े चेहरों में से एक हैं। एमबीबीएस-एमडी डॉक्टर दर्शन पाल कई साल तक सरकारी नौकरी कर चुके हैं। करीब 20 साल पहले नौकरी छोड़ी और तब से अब तक किसानों की आवाज उठा रहे हैं।

किसान संगठनों के बीच तालमेल बनाने में डॉक्टर दर्शन पाल ने अहम भूमिका निभाई। पटियाला के रहने वाले डॉक्टर दर्शन पाल मीडिया से बातचीत करने की जिम्मेदारी भी निभा रहे हैं। वे किसान नेतृत्व के उन चेहरों में शामिल हैं जो क्षेत्रीय भाषाओं के साथ ही अंग्रेजी में भी किसानों की बात पूरी मज़बूती से मीडिया के सामने रखते हैं।

बलबीर सिंह राजेवाल से अमित शाह कई बार फोन पर बात कर चुके हैं।
बलबीर सिंह राजेवाल से अमित शाह कई बार फोन पर बात कर चुके हैं।

बलबीर सिंह राजेवाल

बलबीर सिंह राजेवाल इस आंदोलन का कितना प्रतिनिधित्व करते हैं उसका अंदाज़ा इस बात से भी लगाया जा सकता है कि अमित शाह उन्हें एक से ज्यादा बार फोन कर चुके हैं। 77 साल के बलबीर भारतीय किसान यूनियन के संस्थापक सदस्यों में से एक हैं। उनकी औपचारिक पढ़ाई भले ही सिर्फ़ 12वीं कक्षा तक हुई है लेकिन उनका अध्ययन इतना अच्छा रहा है कि बीकेयू का संविधान भी उन्होंने ही लिखा है।

इस आंदोलन में किसानों को वैचारिकी धार देने और सरकार से बातचीत की न्यूनतम शर्तों को तय करने में बलबीर की मुख्य भूमिका रही। वे इस वक्त बीकेयू राजेवाल के अध्यक्ष भी हैं। ये संगठन पंजाब में किसानों के बड़े संगठनों में से एक है।

जोगिंदर सिंह उगराहां।
जोगिंदर सिंह उगराहां।

जोगिंदर सिंह उगराहां

भारतीय किसान यूनियन (उगराहां) पंजाब के सबसे मज़बूत और सबसे बड़े किसान संगठनों में से एक है। जोगिंदर सिंह इसके अध्यक्ष हैं या यूं भी कह सकते हैं कि जोगिंदर ने ही यह संगठन तैयार किया। वे रिटायर्ड फौजी हैं। उनके प्रभाव के चलते ये संगठन तेजी से लोकप्रिय हुआ। महिला किसान भी संगठन से जुड़ने लगीं। दिल्ली पहुंचे किसानों में ऐसे लोगों की संख्या बहुत ज़्यादा है जो जोगिंदर के नेतृत्व में यहां आए हैं।

जगमोहन सिंह भारतीय किसान यूनियन (डकौंदा) के नेता हैं।
जगमोहन सिंह भारतीय किसान यूनियन (डकौंदा) के नेता हैं।

जगमोहन सिंह

भारतीय किसान यूनियन (उगराहां) के बाद पंजाब में जिस किसान संगठन की सबसे मज़बूत पकड़ है, वह है भारतीय किसान यूनियन (डकौंदा)। जगमोहन सिंह इसी संगठन के नेता है। कुछ रिपोर्ट्स के अनुसार 1984 में हुए सिख विरोधी दंगों के बाद से ही जगमोहन सिंह पूरी तरह से सामाजिक कार्यों के प्रति समर्पित हो गए।

जगमोहन फिरोजपुर के रहने वाले हैं। उनका आधार पंजाब के अलावा देश के दूसरे हिस्सों और सामाजिक कार्यकर्ताओं के बीच भी है। तमाम प्रदेशों के लोगों को इस आंदोलन में शामिल करने और तीस से ज़्यादा किसान संगठनों को एकजुट रखने में वे अहम भूमिका निभा रहे हैं।

राकेश टिकैत भारतीय किसान यूनियन के राष्ट्रीय प्रवक्ता हैं।
राकेश टिकैत भारतीय किसान यूनियन के राष्ट्रीय प्रवक्ता हैं।

राकेश टिकैत

मौजूदा किसान आंदोलन को सिर्फ़ पंजाब और हरियाणा तक ही सीमित आंदोलन बताया जा रहा था। लेकिन इस धारणा को राकेश टिकैत ने खत्म किया। वे उत्तर प्रदेश से सैकड़ों किसानों को साथ लेकर इस आंदोलन में शामिल हो गए। राकेश टिकैत एक जमाने में किसानों के सबसे बड़े नेता रहे महेंद्र सिंह टिकैत के बेटे और भारतीय किसान यूनियन के राष्ट्रीय प्रवक्ता हैं। आज वे इस आंदोलन के बड़े नामों में से एक हैं। माना जा रहा है कि सरकार से बातचीत और सुलह का रास्ता खोजने के प्रयासों में किसानों की तरफ से टिकैत ही सबसे महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं।

Leave A Reply

Your email address will not be published.