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आतंकवादियों की गोलियां, डिगा ना सकीं हौंसला

चिकन करी, मसाला और दो प्याजा बनाने में SSP Bhupindervirk का जवाब नहीं, कभी नहीं पी शराब, हमेशा रहता है काम का नशा

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आतंकियों का मुकाबला करने वाले बठिडा के एसएसपी भुपिदर सिंह विर्क कुकिग के भी बादशाह हैं। उन्होंने आज तक अल्कोहल को हाथ तक नहीं लगाया, मगर चिकन करी, मसाला चिकन और चिकन दो प्याजा तो ऐसा बनाते हैं कि परिवार और दोस्त आए दिन इसकी सिफारिश करते रहते हैं। अनुशासन के पक्के व काम के प्रति कड़क विर्क व्यक्तिगत जीवन में एक नर्म दिल इंसान हैं। जानवरों से भी उन्हें खूब लगाव है। यही कारण है कि वह रोजाना शाम एक घंटा अपने पालतु कुत्तों के साथ बिताते हैं। क्रिकेट के शौकीन विर्क को फिल्में तो पुरानी पसंद हैं, लेकिन फेवरेट अभिनेत्री दीपिका पादुकोन हैं। हालांकि धरम भाजी यानी धर्मेद्र के सबसे बड़े फैन हैं। किताबें पढ़ने का शौक ऐसा कि घर में पूरी लाइब्रेरी बना रखी है। हरियाणा के जिला कुरुक्षेत्र के लखमड़ी गांव के रहने वाले भूपिदर सिंह विर्क शुरू से ही अपने नानके शहर पटियाला में पढ़े लिखे हैं। उच्च शिक्षा के बाद उन्होंने सेना या पुलिस में सेवा करने की ठान ली। सेना में भर्ती के लिए तीन बार लिखित परीक्षा और साक्षात्कार में सिलेक्ट तो हो गए, लेकिन अंतिम सूची में नंबर नहीं आया। फिर भी हिम्मत बरकरार रखी और पंजाब पुलिस में इंस्पेक्टर भर्ती हुए। पहली पोस्टिग मल्लावाला जिला फिरोजपुर में थाना प्रभारी के तौर पर हुई। जनवरी 1990 में वह बठिडा जिले में पहली बार डीएसपी फूल के साथ तैनात रहे। अपने संघर्ष और ईमानदारी से एसएसपी के मुकाम तक पहुंचे विर्क ने पंजाब में ऐसे दौर में काम किया जब आतंकवाद चरम पर था। वह घबराए नहीं और इसके खात्मे के लिए कमर कस ली थी। 1993 में उन्होंने बतौर डीएसपी गोविदवाल साहिब में दो खूंखार आतंकवादियों को मार गिराया। इस एनकाउंटर के बाद भूपिदर सिंह विर्क पंजाब पुलिस के उन अफसरों में शामिल हो गए, जिन्होंने पंजाब को आतंकवाद मुक्त करने के लिए काम किया। उनकी इस बहादुरी के लिए उन्हें साल 1993 में राष्ट्रपति शंकर दयाल शर्मा की ओर से गैलेनटरी अवार्ड से सम्मानित किया गया। 1990 के ब्लास्ट में हुए थे घायल, शरीर में आज भी हैं गोलियों के छर्रे, 1990 में अमृतसर के ब्यास थाने में ब्लास्ट हुआ। उस समय उनकी पोस्टिंग उसी थाने में थी। ब्लास्ट में वह गंभीर घायल हो गए। 20 दिन उपचार चला और उसी समय ठान लिया कि अब पंजाब से आतंकवाद खत्म करेंगे। ब्यास बम ब्लास्ट में उनके शरीर में गोलियों के कई छर्रे घुस गए थे, जिन्हें आज भी निकाला नहीं गया। इसके बाद 21 मई 1991 में आतंकवादियों ने उन पर छह गोलियां दागीं। दो गोलियां उनको लगीं। आए दिन हो रहे हमलों से भी एसएसपी विर्क घबराए नहीं। बताते हैं कि उन पर आतंकवाद के दौरान दस से ज्यादा हमले हुए। वह अजनाला, पटियाला, चंडीगढ़, पठानकोट जैसे जिलों में डीएसपी के तौर पर तैनात रहे, तो सीएम सिक्योरिटी में एसपी भी रहे। 25 पीढि़यों की पुस्तक से खोजकर रखे दो बेटों के नाम एसएसपी विर्क के परिवार में पत्नी के अलावा दो बेटे हैं। दोनों का नाम अपने बुजुर्गों के नाम पर रखा है। कहते हैं, उनके पास 25 पीढि़यों की एक पुस्तक है, जिसमें सभी बुजुर्गों के नाम व जानकारी है। इसी पुस्तक की मदद से उन्होंने बड़े बेटे का नाम आदल सिंह विर्क रखा, जोकि आदेश कालेज से एमएस सर्जरी कर रहा है। वहीं दूसरे बेटे का नाम बाजल सिंह विर्क रखा, जोकि नेवी में सब लेफ्टिनेंट है। पत्नी तजिदर कौर पूरे परिवार की देखभाल करती हैं। एमएससी व एमफिल डिग्री प्राप्त उनकी पत्नी को केंद्रीय विभाग में टीचर की नौकरी मिली थी, लेकिन उन्होंने नौकरी से ज्यादा परिवार को अहमियत दी।

बाहर वर्दी और घर में पहनते हैं कुर्ता-पायजामा भूपिदर सिंह विर्क प्रोफेशनल जीवन में जितने सफल हैं उतने ही घरेलू जिदगी दूसरों के लिए प्रेरणादायक। व्यस्त जिदगी के बावजूद खुद को फिट रखने के लिए सुबह योग करने के साथ सैर करना नहीं भूलते। संगीत सुनना व किताबें पढ़ना तो उनकी जिंदगी का हिस्सा है। वैसे तो पुलिस की वर्दी में ही दिखते हैं, लेकिन घर में कुर्ता-पायजामा पहनना पसंद करते हैं।

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